Saturday, August 14, 2010

मनरेगा से नहीं रुका पलायन, कोसी से सात लाख श्रमिकों का पलायन

कोसी में महिलाओं के भरोसे कृषि कार्य
- पुरुष श्रमिकों के पलायन से खेती प्रभावित
सहरसा, 14 अगस्त

आर्थिक रूप से पिछड़े कोसी इलाके को श्रमिकों का गढ़ माना जाता रहा है। परंतु विगत कुछ वर्षों में पुरुष श्रमिकों के बढ़े पलायन ने यहां की कृषि व्यवस्था को प्रभावित किया है। हालांकि सरकार ने मजदूरों के पलायन को रोकने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी एकक्ट (मनरेगा) के तहत 100 दिन के रोजगार देने की योजना चला रखी है, लेकिन इसका नतीजा सिफर ही दिख रहा है। नतीजतन कोसी के इलाके में कृषि कार्य महिलाओं के कंधों पर जा टिका है। इससे कृषि व्यवस्था प्रभावित हुई है।
अप्रैल से जून माह के बीच तीन महीने में इस इलाके के सात लाख से अधिक पुरुष श्रमिक बढिय़ा मजदूरी की आस में हरियाणा, पंजाब व अन्य प्रदेशों में पलायन करते हैं। मजदूरों के पलायन का आलम यह रहता है कि इस बार मई माह में सहरसा-अमृतसर के बीच चलने वाली जनसेवा एक्सप्रेस में भारी भीड़ की वजह से जगह नहीं मिलने से आक्रोशित मजदूरों ने सहरसा जंक्शन पर भारी बवाल किया था। अंतत: मजदूरों की भारी भीड़ को देखते हुए रेल प्रशासन ने जनसेवा-2 नामक दूसरी ट्रेन चलायी। ऐसी हालत में जुलाई व अगस्त माह में कोसी इलाके में होने वाली धान रोपाई के वक्त मजदूरों की भारी कमी हो जाती है।
वर्ष 2001 के आंकड़ों के अनुसार जिले में कृषकों की कुल संख्या 1,83,501 है। मजदूरों की बात करें तो जिले में सिर्फ जाबकार्ड धारी मजदूर 9,34,904 हैं। जिले में कुल श्रमिकों की संख्या 12 लाख के करीब है, जिनमें चार लाख के करीब महिला श्रमिक हैं। इनके कंधे पर ही कृषि व्यवस्था जा टिकी है।
कृषि विभाग से मिली जानकारी अनुसार इस बार महज 38 हजार हेक्टेयर भूमि में ही धान रोपाई हो सकी है, जबकि लक्ष्य 65 हजार हेक्टेयर भूमि में रोपनी का था। कम रोपनी के पीछे जहां सुखाड़ एक कारण है, वहीं दूसरा कारण श्रमिकों की कमी भी है।
नरियार गांव के किसान लाल बहादुर सिंह व प्रभु ंिसंह कहते हैं कि मजदूरों के परदेस पलायन करने की वजह से उन लोगों ने अपने अधिकांश खेत बटाई पर दे रखे हैं। महिषी प्रखंड अंतर्गत राजनपुर गांव के किसान मो. हफीज व बीसो यादव भी मानते हैं मजदूरों की कमी की वजह से खेती करना मुश्किल हो गया है। वहीं धान रोपाई कार्य में जुटी रंगीनिया महादलित टोला की घोलटी देवी, बेचनी देवी, सारो देवी, रधिया देवी, मीना देवी व रेखा देवी कहती हैं पति धान रोपने पंजाब चले गए हैं। आखिर यहां रहकर पेट भी तो नहीं भर सकता। रधिया देवी कहती हैं यहां वे लोग मजदूरी कर बच्चों व अपना भरण-पोषण कर लेते हैं। पति जो लाएंगे वह बचत होगी।
धान रोपाई का कार्य पंजाब से लौट रहे मधेपुरा जिलान्तर्गत बड़हरी गांव निवासी पहाड़ी ऋषिदेव, चलित्तर ऋषिदेव, सिरसीया के रामोतार सादा ने सहरसा जंक्शन पर बताया कि वे लोग धान रोपाई कर लौट आए हैं। अब दशहरा बाद अक्टूबर में धान काटने पुन: जाएंगे।

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