Sunday, March 12, 2017

मारुति संघर्ष: 37 मज़दूरों को दोषी करार दिया

117 लोगों को आरोपमुक्त किया
⁠⁠⁠                                                                                                                                                 मारूति मामले में
     आज कोर्ट का फैसला आ गया। 148 लोग जो जेल में थे , उनमें से 31 को दोषी करार दिया गया और 117 लोग जो जेल में चार साल की सजा भुगत चुके थे आरोपमुक्त कर दिया गया। 

31 में से 13 लोगों पर  ह्त्या, ह्त्या के प्रयास, आगजनी, षडयंत्र का आरोप तय हुआ। बाकि 18 पर मारपीट, चोट पहुंचाने और अनाधिकृत प्रवेश, जमघट लगाने का आरोप तय हुआ है।
31 दोषी मजदूरों में से 13 मज़दूरों राममेहर, संदीप ढिलों, राम विलास, सरबजीत, पवन कुमार, सोहन कुमार, अजमेर सिंह, सुरेश कुमार, अमरजीत, धनराज, योगेश, प्रदीप गुर्जर, जियालाल को 302, 307, 427,436, 323, 325, 341, 452, 201,120B जैसी धाराओं के अंतर्गत दोषी ठहराया गया है। इसमें मारूति यूनियन बॉडी मेम्बर सहित जियालाल शामिल हैं। 
दूसरी कैटेगरी में शामिल 14 लोगों को धारा 323,325,148,149,341,427 के तहत आरोपी ठहराया गया है।

    तीसरी कैटेगरी में शामिल 4 लोगों को धारा 323,425,452,  के तहत आरोपी ठहराया गया है। 
सभी आरोपियों को 17 मार्च को सजा सुनाई जायेगी।

    ये एक राजनीतिक फ़ैसला था जिसमें तथ्यों के परे जाकर सजा सुनाई गयी है। ये फ़ैसला पूंजीपतियों के पक्ष में ना सिर्फ 148 मारूति मजदूरों, 2500 परिवारों के ख़िलाफ़ है बल्कि पूरे मज़दूर वर्ग खासकर गुड़गांव से नीमराणा तक के औद्योगिक क्षेत्र के मज़दूरों के ख़िलाफ़ है। इस फ़ैसले से राज्य सत्ता न्याय वयवस्था का रूख स्पष्ट हो जाता है और सवाल उठता है कि मज़दूर आख़िर किस से न्याय की उम्मीद करें। क्या 13 यूनियन सदस्यों को इसलिए फंसाया गया, सजा दी गयी कि वे मज़दूरों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और मारूति मैनेजमैन्ट की आँख में खटक रहे थे।
     बचाव पक्ष की अधिवक्ता ने कहा कि माना मानेसर प्लांट के घटनाक्रम में एक व्यक्ति की जान गयी मगर इन 13 लोगों के ख़िलाफ़ बहुत कमज़ोर साक्ष्य है। जिन 117  मजदूरों को आज आरोपमुक्त घोषित किया गया, उन्होनें ने जो चार साल जेल में गुजारे उसका हिसाब कौन देगा, इसके लिए किसी को दोषी ठहराया जाएगा, क्या उनके चार साल कोई वापस लौटा सकता है। इनका दोष मुक्त साबित होना यह दिखाता है कि इनके नाम पूरे घटनाक्रम को दूसरा रूप देने के लिए, मज़दूरों के ख़िलाफ़ झूठा माहौल बनाने के लिए डाला गया था। अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने ये फैसला हाईकोर्ट में कहीं भी टिकने वाला नहीं है हम आगे इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में जाएंगे।
   
(अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू में 13 अक्टूबर 2016 को प्रकाशित मारुति मज़दूरों पर केंद्रित पन्ना)

कल जिस प्रकार से गुड़गांव से लेकर मानेसर तक जिस प्रकार से मजदूरों ने अपने साथियों के समर्थन में खाने का बहिष्कार कर अपनी एकजुटता और ताकत दिखायी वो प्रशासन और प्रबंधन के लिए आगे उठने वाले आंदोलन की एक झलक भर है। आज जिस प्रकार से गुड़गांव कोर्ट से लेकर मानेसर प्लांट तक कदम कदम पर पुलिस तैनात थी वो प्रशासन और प्रबंधन के मज़दूर विरोधी रूख को दर्शाता है। ये लोग मजदूरों के संगठन, उनकी एकजुटता से डरते हैं। आज मानेसर प्लांट के मजदूरों को काफी देर तक प्लांट के अंदर रोककर रखा गया।

     आज इस फ़ैसले के बाद कमला नेहरू पार्क, गुड़गांव में पुलिस की भारी मौजूदगी में  ट्रेड यूनियन की बैठक हुई। जिसमें सभी ने इस अन्यायपूर्ण फ़ैसले की एक स्वर से भर्त्सना की और इसके विरोध में बावल से लेकर गुड़गांव तक की सभी यूनियनों ने आगामी 16 मार्च को लंच बहिष्कार का फ़ैसला किया। साथ ही सब ने होली ना मनाने का फ़ैसला किया। आंदोलन की आगे की रणनीति तय करने के लिए आगामी 15 मार्च को देवीलाल पार्क में ट्रेड यूनियनों की बैठक है।
पूरी प्रक्रिया में जिस प्रकार से आरोप गठित हुए, सुनवाई चली वो न्याय व्यवस्था की जटिलता जिससे मजदूरों के फ़ैसले प्रभावित होते हैं को स्पष्ट तरीके से सामने लाती है।
सवाल यह है कि गुड़गांव से लेकर बावल तक का मज़दूर आंदोलन इस फ़ैसले से कितना प्रभावित होगा, आंदोलन आगे की रणनीति किस प्रकार तय करेगा.

-सुमित, मारुति आंदोलन में सक्रिय कार्यकर्ता 

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