Saturday, July 3, 2010

अमेरिका से कारोबार घटने के डर से बाल श्रमिकों के 'दोस्तÓ बने निर्यातक

नई दिल्ली, 2 जुलाई

अमेरिकी जनरल स्टोरों ने बाल श्रमिकों के इस्तेमाल के लिए भारतीय कपड़ा निर्यातकों को पिछले साल काली सूची में डाला

वॉल-मार्ट, जेसी पेनी और जीएपी जैसे बड़े अमेरिकी स्टोरों द्वारा अपना बहिष्कार किए जाने की आशंका से अब भारत के कपड़ा निर्यातक बाल श्रमिकों के 'दोस्तÓ बन रहे हैं। कपड़ा निर्यातकों ने दिखावे के लिए ही सही 46,000 करोड़ रुपए के परिधान उद्योग से बाल श्रम को खत्म करने के लिए संहिता बनाई है।
कपड़ा निर्यातकों के शीर्ष संगठन परिधान निर्यात संवद्र्धन परिषद (एईपीसी) ने अपने सदस्यों के बीच 'कर सकते हैं या नहीं कर सकते हैंÓ के बारे में मसौदा संहिता वितरित की है। एईपीसी ने कहा कि अगले दो माह में यह संहिता पूरी तरह तैयार हो जाएगी।
परिषद ने कहा कि परिधान निर्यातकों से पर्यावरण अनुकूल तौर तरीके अपनाने को भी कहा गया है। निर्यातकों के बीच ऐसी आशंका है कि अमेरिका का श्रम विभाग लगातार दूसरे साल भारत को ऐसा देश करार दे सकता है जहां कपड़ा विनिर्माण में बाल श्रमिकों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
यदि किसी देश को अमेरिकी श्रम विभाग की एग्जिक्यूटिव आर्डर 13126 सूची (ईओएल) तथा ट्रैफिकिंग विक्टिम प्रोटेक्शन रीआथोराइजेशन (टीवीपीआरए) सूची में डाला जाता है तो यह माना जाता है कि अमुक देश में बाल श्रमिक काम कर रहे हैं। पिछले साल भारत को इन दोनों सूचियों में डाला गया था।
अब एईपीसी ने कपड़ा मंत्रालय के साथ मिलकर वाशिंगटन की लॉबिस्ट फर्म सिडले आस्टिन एलएलपी की सेवाएं ली हैं, जिससे भारतीय निर्यातकों के पक्ष में माहौल बनाया जा सके। कैलेंडर साल 2009 में भारत का कुल परिधान निर्यात 10 अरब डालर का रहा था। इसमें से 30 प्रतिशत की हिस्सेदारी अमेरिका की रही थी।

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