Sunday, July 25, 2010

क्या घरेलू महिलाओं की हालत वेश्याओं और भिखारियों जैसी नहीं है

वेश्याओं, भिखारियों से गृहिणियों की तुलना करने पर सरकार की खिंचाई
संदीप राऊजी

अंततः यह साफ हो गया कि भारत का शासक वर्ग की नजरों में घरेलू औरतों की क्या इज्जत है। वैसे तो कई विद्वानों ने गृहस्थी को संस्थागत वेश्यावृत्ति का नाम दिया है और दुनिया के हर पूंजीवादी समाजों पर समान रूप से लागू होता है लेकिन भारतीय पूंजीवादी शासक पहली बार एक्सपोज हुआ। जनगणना में भारत सरकार ने घरेलू महिलाओं को भिखारी और वेश्याओं के समान कहा है जो कोई श्रम नहीं करती हैं और बैठे ठाले देश की धरती पर बोझ हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को इस पर लताड़ लगाई है लेकिन क्या वाकई इस देश में और दक्षिण एशिआई देशों में ऐसी स्थित नहीं है। सिर्फ यहीं क्यों नहीं सभी देशों में यही स्थित है। अब जरा खबर पर नजर दौड़ाते हैं....
सुप्रीम कोर्ट ने २३ जुलाई को जनगणना में गृहिणियों को वेश्याओं, भिखारियों और कैदियों के साथ एक सूची में रखने और आर्थिक रूप से उन्हें गैर-उत्पादक श्रमिक बताए जाने के लिए सरकार की खिंचाई की है। होममेकर यानी हाउस वाइफ महिलाओं की तुलना ऐसे वर्ग से किए जाने पर आपत्ति जताते हुए न्यायालय ने कहा कि यह रवैया महिलाओं के खिलाफ लैंगिक पूर्वाग्रह का संकेतक है।
न्यायालय ने संसद से मोटर वाहन कानून की समीक्षा करने को कहा ताकि दुर्घटना की स्थिति में गृहिणी की मौत होने पर परिवार के सदस्यों को उचित मुआवजा मिल सके और लैंगिक पूर्वाग्रह को टाला जा सके।
पीठ ने अलग लेकिन समरूपी फैसलों में वैवाहिक कानूनों में भी संशोधन किए जाने का सुझाव दिया ताकि महिलाओं को समाज में उन्हें यथोचित दर्जा हासिल हो सके।
न्यायालय ने कहा कि जनगणना के कार्य में भी यह स्तब्धकारी भेदभाव मौजूद है। 2001 की जनगणना में ऐसा प्रतीत होता है कि जो खाना पकाने, बर्तन साफ करने, बच्चों की देखभाल करने, पानी लाने, जलावन एकत्र करने जैसे घरेलू काम करती हैं उन्हें गैर श्रमिक वर्ग में शामिल किया गया है। उनकी तुलना भिखरियों, वेश्याओं और कैदियों के साथ की गई है तथा जनगणना के अनुसार वे आर्थिक रूप से उत्पादक कार्य में शामिल नहीं हैं।
यह खबर भले ही घरेलू महिलाओं के बारे में हमारी सोच में बदलाव का संकेत है लेकिन वास्तविक स्थिति के बारे में सचेत भी कर रही है। शायद इसे डिसआनर किलिंग से जोड़ कर भी देखा जाना चाहिए।

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