Friday, May 14, 2010

हड़ताल के खिलाफ पूरा तंत्र

बुर्जुआ श्रम कानून पहले भी मज़दूरों के आर्थिक हितों और राजनीतिक अधिकारों की सीमित हिफाजित ही कर पाते थे, पर आज श्रम कानूनों और श्रम न्यायालयों का जैसे कोई मतलब ही नहीं रह गया है। लम्बे संघर्षों के बाद रोज़गार-सुरक्षा, काम के घण्टे, न्यूनतम मज़दूरी, ओवरटाइम, आवास आदि से जुड़े जो अधिकार मज़दूर वर्ग ने हासिल किये थे – वे उसके हाथ से छिन चुके हैं और इन मुद्दों पर आन्दोलन संगठित करने की परिस्थितियाँ एकदम वैसी ही नहीं हैं, जैसी आज से सौ या पचास साल पहले थीं। लेकिन ये परिस्थितियां 1947 से ही जारी हैं जरा संविधान पर नजर डालें-
संविधान में ही नहीं है हड़तालों की वैधानिकताअपने देश में हड़ताल के अधिकार को कानूनन परिभाषित नहीं किया गया है। ट्रेड यूनियन एक्ट, १९२६ में पहली बार रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियनों को विवाद की स्थिति में सीमित हड़ताल का कानूनी अधिकार प्रदान किया गया। आज भी हड़ताल के अधिकार को सीमित मान्यता ही प्राप्त है। हमारे संविधान में भी हड़ताल के अधिकार का जिक्र नहीं है, लेकिन उसमें ट्रेड यूनियनों की स्थापना को चूंकि मौलिक अधिकार बताया गया है, इसलिए हड़ताल को भी अधिकार मान लिया जाता रहा है। फिर जैसेमौलिक अधिकारों के साथ कुछ बाध्यताएं जुड़ी होती हैं, उसी तरह हड़ताल का आह्वान करने पर राज्य उसके खिलाफ कदम उठाने के लिए बाध्य होता है।साफ है कि श्रम संगठन का गठन हमारा मौलिक अधिकार भले हो, लेकिन हड़ताल हमारा मौलिक अधिकार नहीं है। यही नहीं, औद्योगिक विवाद कानून, १९४७ ने विधिसम्मत हड़ताल के लिए जो आधार निर्धारित कर रखे हैं, उसका पालन न करने पर हड़ताल गैरकानूनी माना जाएगा।क्या है हड़ताल?औद्योगिक विवाद कानून, १९४७ की धारा २ (1यू) के मुताबिक : 'किसी उद्योग में उन व्यक्तियों का आपसी सहमति से काम बंद करना या साझा रूप से काम खारिज कर देना हड़ताल कहलाएगा, जो काम जारी रखने के लिए नियु1त किए गए हैं या रोजगार के लिए आए हैं।Ó हालांकि इस कानून में यह नहीं कहा गया है कि हड़ताल में कौन जा सकते हैं, लेकिन इसमें इससे संबंधित दिशा-निर्देश हैं।
वैध हड़ताल के प्रावधानऔद्योगिक विवाद कानून, १९४७ की धारा २२ (१) के मुताबिक :जरूरी जनसेवा से जुड़ा हुआ कर्मचारी अनुबंध तोड़कर हड़ताल पर नहीं जा सकता।हड़ताल पर जाने से छह सप्ताह पहले नियो1ता को इसकी सूचना देनी होगी।या हड़ताल पर जाने से चौदह दिन पहले इसकी नियो1ता को जानकारी देनी होगी।या हड़ताल की नियत तिथि से पहले इसकी सूचना देनी पड़ेगी।समझौता टलने की स्थिति में समझौता कराने वाले अधिकारी के सामने, और समझौता हो जाने के सातवें दिन तक हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया जा सकता है।
यहां से शुरू हुआ श्रमिकों के अधिकार पर हमला
1917- केरल उगा न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में बलपूर्वक कराए गए बंद को गैरकानूनी बताया। यह इस तरह का पहला बड़ा फैसला था। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को बहाल रखा।
2002-सुप्रीम कोर्ट ने और एक कदम आगे जाते हुए कहा कि जबरदस्ती किए जाने वाले हड़ताल भी अवैध हैं।
2004-बांबे हाई कोर्ट ने जुलाई, २००३ में मुंबई में कराए गए बंद के लिए भाजपा और शिव सेना पर २० लाख रुपये का जुर्माना ठोंका।
2004-कोलकाता हाई कोर्ट ने तृणमूल द्वारा आयोजित बांग्ला बंद को अवैध और असांविधानिक बताया।
2007-केरल उगा न्यायालय ने चुनाव आयोग को वैसी पार्टियों की सदस्यता खत्म करने को कहा, जो बंद आयोजित करती हैं।
2008-सुप्रीम कोर्ट ने गुर्जर आंदोलन पर दिल्ली में आयोजित बंद का संज्ञान लिया और इस मामले में सरकारी उदासीनता को राष्ट्रीय शर्म कहा।
बंद जैसी गतिविधियां बर्दाश्त नहीं-सुप्रीम
कोर्टएजेंसी, Sunday, September 30, 2007 नई दिल्ली.
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि देश में बंद जैसी गतिविधियां बर्दाश्त नहीं की जाएंगी। इसके साथ ही कोर्ट ने डीएमके के द्वारा सोमवार को आहूत तमिलनाडु बंद पर रोक लगा दी है। रामसेतु मुद्दे पर डीएमके सोमवार को बंद का आह्वान किया था।तमिलनाडु के विपक्षी दलों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि बंद जैसी गतिविधियां बर्दाश्त नहीं की जाएंगी।गौरतलब है कि रामसेतु को लेकर भाजपा और डीएमके के बीच काफी तकरार बढ़ गई थी। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणनिधि ने राम और रामसेतु का बकवास और अप्रमाणिक करार दिया था। इससे सेतुसमुद्रम परियोजना का विरोध करने वाले लोगों का गुस्सा और बढ़ गया था।करुणानिधि करेंगे भूख हड़तालतमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके नेता एम करुणानिधि ने अदालत के इस फैसले का विरोध करने का निर्णय लिया। इस फैसले के विरोध में वे कल भूख हड़ताल करेंगे।
एम्स में डॉक्टरों की हड़ताल पर हाईकोर्ट की रोक
22 Apr 2009 -हाईकोर्ट ने कहा है कि एम्स के डॉक्टरों को स्ट्राइक पर नहीं जाना चाहिए। जुलाई 2006 में एम्स के तत्कालीन डाइरेक्टर को हटाने पर एम्स के डॉक्टरों की हड़ताल के मामले की सुनवाई पर हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी दी । हाईकोर्ट ने एम्स मैनिजमंट से 12 मई तक इसकी रिपोर्ट फाइल करने को कहा है। एक जनहित याचिका में मांग की गई है कि एम्स मैनिजमंट उन डॉक्टरों को खिलाफ कार्रवाई करे, जिन्होंने स्ट्राइक में हिस्सा लिया था।
ट्रक मालिकों की हड़ताल जनविरोधी-चिदंबरमनई दिल्ली (भाषा), शुक्रवार, 9 जनवरी 2009 -ट्रक मालिकों की हड़ताल को जनता के खिलाफ करार देते हुए सरकार ने कहा कि यह भी तेल हड़ताल की श्रेणी में आती है और वह स्थिति से निपटने के कदम उठा रही है।
वकीलों की हड़ताल पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस Feb 19, नई दिल्ली। श्रीलंका में तमिल नागरिकों पर हो रहे कथित अत्याचार के खिलाफ वकीलों द्वारा मद्रास हाई कोर्ट में की जा रही हड़ताल पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। याचिका में कहा गया कि मद्रास हाई कोर्ट में इस वर्ष सिर्फ नौ दिन कामकाज हुआ है। किसी न किसी कारण से हड़ताल हो जाती है और कामकाज प्रभावित होता है।याचिका में कोर्ट से हड़ताल को गैर कानूनी घोषित किए जाने की मांग की गयी है। कहा गया है कि हड़ताल को संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21 का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाए। कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि तत्काल कोर्ट में कामकाज शुरू होना सुनिश्चित किया जाए। याचिका में कहा गया है कि मद्रास हाई कोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन ने गत 29 जनवरी को आमसभा में प्रस्ताव पारित कर दिया जिसमें श्रीलंका में तमिल नागरिकों पर हो रहे अत्याचार के विरोध में अनिश्चित काल के लिए पूरे तमिलनाडु में अदालतों के बहिष्कार की घोषणा की गई। इस घोषणा के बाद तमिलनाडु में अदालतों का कामकाज पूरी तरह ठप हो गया।
हड़तालों का साल-2009
कंपनियों की हड़ताल : तेल कंपनियों की राष्ट्रवापी हड़ताल से पूरा देश ठहरा।
एनटीपीसी में हड़ताल : एनटीपीसी एग्जी1यूटिव फेडेरेशन ऑफ इंडिया के अधिकारियों ने अपनी १४ सूत्री मांगों को लेकर हड़ताल की घोषणा की।
कोल वर्कर्स की हड़ताल : ऑल इंडिया कोल वर्कर्स एसोसिएशन ने अपनी आठ सूत्री मांगों के संबंध में सरकार पर दबाव बनाने के लिए हड़ताल की घोषणा की।
हरियाणा में हड़ताल : वेतन आयोग की विसंगतियों को लेकर हरियाणा में जूनियर डॉ1टरों और इंजीनियरों की हड़ताल।
इंजीनियरों की हड़ताल : इंजीनियर्स इंडिया ऑफिसर के बैनर तले इंजीनियर्स इंडिया कंपनी के अभियंताओं ने कंपनी प्रबंधन को अनिश्चितकालीन हड़ताल का नोटिस दिया।
वकीलों की हड़ताल : दिल्ली और महाराष्ट्र में निचली अदालतों में हड़ताल।
ट्रक ऑपरेटरों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल : सरकार द्वारा डीजल के दामों में और कटौती न करने से नाराज ट्रक ऑपरेटरों ने हड़ताल की।
उत्तर प्रदेश सरकार के कर्मचारियों की हड़ताल : उ8ार प्रदेश कर्मचारी शिक्षक संघ द्वारा छठे वेतन आयोग को लागू करने की मांग को लेकर प्रदेश सरकार के चार लाख से अधिक कर्मचारी हड़ताल पर।।
बिहार में राज्य सरकार के कर्मचारियों की हड़ताल : छठे केंद्रीय वेतनमान को लागू करने सहित सात सूत्री मांगों को लेकर बिहार के अराजपत्रित कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर।
बिहार में शिक्षकों की हड़ताल : सरकार द्वारा छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू न करने पर बिहार राज्य प्राथमिक-माध्यमिक शिक्षाकर्मी संयु1त मोरचा के नेतृत्व में शिक्षकों की हड़ताल।
बिजली कर्मचारियों की हड़ताल : उत्तर प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश राज्य के विद्युत कर्मियो ने वेतन वृद्धि की मांग को लेकर हड़ताल की थी।
श्रम कानून और उनमें तथाकथित सुधार
1-उदहारण के रूप में एक फर्म में १०० से अधिक लोगो को रोजगार सरकारी अनुमति के बिना नहीं दिया जा सकता. इसके कारण कंपनियां हतोत्साहित है.
2-कठोर श्रम कानूनों के कारण बड़ी कम्पनियां सरकार की स्वीकृति के बगैर मजदूरों की छंटनी नहीं कर सकती । नतीजतन कपड़ा बनाने वाली कंपनियां अपने कारखानों को छोटा रखती हैं । ये कारखाने अपेक्षाकृत उतना उत्पादन नहीं कर सकते, जितना जरूरी है । प्रेक्षकों का कहना है कि यही कारण है कि भारतीय कपड़ा उद्योग में उस तरह की वृद्धि देखने में नहीं आ रही है, जैसी चीन में दिख रही है ।
3-श्रम कानूनों में सुधार के तहत कांट्रैक्ट लेबरर (संविदा श्रमिक) के दुघर्टना की हालत में मुआवजा देना कंपनी का दायित्व नहीं होगा। तब तो और नहीं जब ड्यूटी के बाद दुर्घटना हुई हो।
4-कांट्रेक्ट लेबरर की तनख्वाह की जिम्मेदारी ठेकेदार की न कि कंपनी की।
5-लंबित श्रम कानूनों पर अमल जल्द
11 March 2010 नई दिल्ली - आर्थिक परिदृश्य में बदलाव के साथ साथ श्रम कानूनों में भी परिवर्तन की जरूरत पर जोर देते हुए सरकार ने कहा कि वह लंबित कानूनों को जल्द ही संशोधित कर अमल में लाने के लिए प्रयासरत है ताकि कर्मचारियों को उनका लाभ मिल सके। श्रम और रोजगार मन्त्री मल्लिकार्जुन खरगे ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान बताया कि लंबित कानूनों में ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधियोंए कर्मचारियों तथा नियोक्ताओं से विचार विमर्श कर शीघ्र सुधार करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने श्रमिकों की रक्षा और कल्याण को सरकार की प्राथमिकता बताते हुए कहा कि वेतनमान भुगतान अधिनियम ए बोनस अधिनियम, ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम आदि में संशोधन के लिए संसद में विधेयक पेश किए गए हैं।
6- कांट्रेक्ट लेबर पैटर्निटी या मैटर्निटी लीव का अधिकार नहीं।
7-बिना नोटिस दिए नियोक्ता को कर्मचारी को निकालने का अधिकार।
8-कांट्रैक्ट लेबर के लिए फैक्ट्री में पेयजल, मेडिकल या अन्य सुविधाओं का कोई अधिकार।

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