Saturday, July 24, 2010

गुजरात में रसायन फैक्ट्री में धमाके में दो मजदूरों की मौत

अहमदाबाद, 24 जुलाई

गुजरात के भरूच जिले में एक रसायन फैक्ट्री के भाप रिएक्टर में हुए धमाके में दो लोगों की मौत हो गई जबकि सात अन्य घायल हो गए। पुलिस ने शनिवार को बताया कि मृतकों की शिनाख्त प्रेम सतनारायण (28) और राजकुमार मंडल (30) के रूप में हुई है। दोनों ही प्रवासी मजदूर हैं और उत्तरी बिहार से यहां कमाने आए थे।
पुलिस ने कहा कि यह घटना कल अंकलेश्वर औद्योगिक क्षेत्र में स्थित उमा रसायन फैक्ट्री में हुई।
घायलों को जयाबेन मोदी अस्पताल में भर्ती कराया गया है जबकि एक घायल को वड़ोदरा जिला अस्पताल में भेजा गया है।
उन्होंने बताया कि इस घटना को लेकर मामला दर्ज कर लिया गया है और आगे की जांच जारी है।

कलपुर्जे की कंपनी में काम करने वाले 200 से ज्यादा मजदूर बीमार

कांचीपुरम :तमिलनाडु:, 24 जुलाई
यह है देश के औद्योगिक इलाकों में मजदूरों का हाल। औद्योगिक दुर्घटनाओं में पिछले कुछ समय से तेजी आई है लेकिन फिर भी औद्योगिक इकाइयां सुरशक्षा मानकों को मानने से परहेज कर रही हैं। शुक्रवार को श्रीपेरूमबुदूर के पास स्थित इलेक्ट्रॉनिक कल पुर्जे बनाने वाली कंपनी में 200 से ज्यादा मजदूर बीमार हो गए। कंपनी के अनुसार शनिवार को यहां किए गए कीटनाशक का छिड़काव कारण मजदूरों की हालत बिगड़ी।
अस्पताल सूत्रों ने कहा कि सभी मरीज खतरे से बाहर हैं। कलपुर्जे बनाने वाली कंपनी फॉक्सकन लगभग एक साल से बंद थी और हाल ही में फिर से खुली थी।
पुलिस ने कहा कि शुक्रवार को दिन की पाली में करीब 120 मजूदरों को कुछ दिक्कतें महसूस हुईं और उन्हें निगरानी में रखा गया जबकि इतनी ही संख्या में रात की पाली में मजदूरों को भी अस्पताल में भर्ती कराया गया।

जल विद्युत परियोजना के सुरंग को साफ करने के लिए ठेके का कर्मचारी भेजा

तीन किमी लंबी सुरंग में तेज धारा में बहने के बाद भी जिंदा निकला,
इडुकी, केरल, 24 जुलाई


कालार में चल रही जल विद्युत परियोजना की तेज प्रवाह वाले पानी से भरी सुरंग में घंटों फंसे रहने के बाद एक कर्मचारी जिंदगी और मौत के बीच से जूझ कर किसी तरह बाहर निकला। प्रबंधन इस बात का जवाब नहीं दे पा रहा है कि बिना सुरक्षा व्यवस्था के एक ठेके के कर्मचारी को कैसे सुरंग साफ करने के लिए भेज दिया गया।
जानकारी के अनुसार बेनी थामस (39) जो केरल राज्य बिजली विभाग में अस्थाई कर्मचारी के पद पर काम करता है कल अपने कुछ साथी कर्मचारियों के साथ जल से भरी सुरंग की सफाई का काम कर रहा था।
बेनी के तीन किलोमीटर लंबी सुरंग की सफाई का काम इसके उद्घाटन के पहले किया जा रहा था। इसी दौरान वह फिसल कर इसमें फंस गया। जिस समय वह सफाई कर रहा था उसे बचाव व सुरक्षा के समुचित उपकरण नहीं दिए गए थे।
इससे पहले कि उसके साथी कर्मचारी उसे बचाने का प्रयास करते वह पानी की तेज धार के साथ बहता चला गया। घंटों उसमें फंसे रहने के बाद मामूली चोट के साथ बाहर आए बेनी के लिए यह बताना मुश्किल था कि कैसे उसने उस दौरान जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष किया।
नेदुमकंदम के अस्पताल में भर्ती बेनी ने बताया 'मैं तेज प्रवाह की धारा के साथ चार मीटर की गोलाई वाली सुरंग में बहता चला गया। मैं सुरंग में मौजूद चट्टानों को पकड़कर अपने को बहने से बचाने की कोशिश कर रहा था लेकिन पानी के तेज बहाव के कारण मैं इसमें सफल नहीं हो पा रहा था।Ó
उसने कहा 'थोड़े समय के लिए तो मुझे लगा कि सब कुछ खत्म हो गया। लेकिन मैंने संघर्ष करना नहीं छोड़ा। तभी मुझे सुरंग के आखिरी सिरे से आती रौशनी की किरण दिखाई पड़ी जो मेरे लिए जिंदगी की उम्मीद थी।Ó

बाल श्रम का इस्तेमाल करने वाले उत्पादों की अमेरिकी सूची में भारतीय कपड़ा क्षेत्र भी

नई दिल्ली-वाशिंगटन, 24 जुलाई
आखिर अमेरिका ने भारत के कपड़ा निर्यातकों को उन देशों की सूची में डाल ही दिया जिसमें कपड़ा उद्योग में बाल श्रम का इस्तेमाल करने वाले देश आते हैं। हालांकि इसका विरोध भारतीय कपड़ा निर्यातक संघ ने किया था लेकिन इस सच्चाई को वह झुठलाने में नाकाम रहा। अमेरिका ने लगातार दूसरे साल उन देशों की सूची में भारत को शामिल किया है, जो निर्यात उत्पादों के उत्पादन में संभवत: बाल श्रमिकों को लगाते रहे हैं। अमेरिका द्वारा इस सूची में शामिल किए जाने से परिधान निर्यातकों की प्रतिष्ठा को झटका लगा है।
लेकिन इसमें भारत के दबाव के चलते कालीन उद्योग को अमेरिका शामिल नहीं किया है जोकि बाल श्रमिकों को इस्तेमाल करने वाला एक बड़ा क्षेत्र है। अमेरिकी श्रम विभाग की उस सूची में जहां उत्पादन में संभवत बाल श्रमिकों का इस्तेमाल हुआ है, कालीन उद्योग को शामिल नहीं किया गया है। पर देश के कपड़ा उद्योग को इस सूची में रखा गया है।
हालांकि, इससे भारत के अमेरिका को तीन अरब डालर के कपड़ा निर्यात पर शुरू में कोई असर पडऩे की संभावना नहीं है। लेकिन इससे देश के कपड़ा उद्योग की प्रतिष्ठा को वैश्विक खरीदारों मसलन वॉल-मार्ट, गैप तथा जे सी पेनी से आगे आघात लगने का अंदेशा है।
बाल श्रम जैसे अमानवीय कृत्य की पैरवी करने के लिए देश का एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल कपड़ा मंत्री दयानिधि मारन की अगुवाई में अगस्त के तीसरे हफ्ते में अमेरिका जा सकता है। यह प्रतिनिधिमंडल अमेरिकी अधिकारियों को भारतीय कपडा उद्योग द्वारा बाल श्रम के इस्तेमाल को रोकने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देगा। मतलब साफ है अमेरिका से बाल श्रम इस्तेमाल करने की छूट लेने की भारत कोशिश करेगा। यद्यपि कि अमेरिका इतना पाक साफ नहीं है कि वह बाल श्रम को अवैध घोषित कर दे क्योंकि वही इन उत्पादों का सबसे बड़ा खरीदार है।

रूस में खदान में मीथेन धमाके में एक खनिक की मौत

मास्को, 24 जुलाई
रूस की कोयले की एक खदान में मीथेन गैस के कारण आज तड़के हुए विस्फोट में एक खनिक की मौत हो गई जबकि बुरी तरह झुलसे दो अन्य लोग अस्पताल में भर्ती हैं।
आपात स्थिति मंत्रालय के प्रवक्ता वैलरी कोर्चागिन ने बताया कि अचानक मीथेन गैस जमा होने से विस्फोट हुआ। विस्फोट के समय 66 खनिक खदान में थे। उनमें से 65 को निकाला गया।
अभी स्पष्ट नहीं है कि घायलों को कितनी चोट आई है।
अधिकारियों ने बताया कि बचाव कार्य शुरू कर दिया गया है। इंटरफैक्स संवाद समिति ने आपदा स्थिति मंत्रालय की प्रवक्ता के हवाले से खबर दी है , ''स्थानीय समयानुसार तड़के दो बजे केमोरोवो क्षेत्र में क्रास्नोगोर्सकाया कोयले की खदान में एक धमाका हुआ। यह क्षेत्र मास्को से करीब साढे तीन हजार किलोमीटर पूर्व में स्थित है।ÓÓ
उन्होंने कहा कि धमाके के समय 67 लोग खान में कार्यरत थे। 52 लोगों को सुरक्षित निकाल लिया गया है जबकि दो लोग झुलस गए हैं जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। छह बचाव और राहत दलों को घटनास्थल रवाना कर दिया गया है।

Friday, July 23, 2010

जिनके दम पर रोशन है यह खेलों का संसार


11 जून को अफ्रीका के जोहान्सवर्ग शहर में फीफा विश्व कप का भव्य आयोजन हुआ। इसी दिन 140 देशों के मानव अधिकार कार्यकर्ताओं, टे्रडयूनियनों और कई अन्य संगठनों ने बाल मजदूरी के खिलाफ अपने-अपने देशों में प्रदर्शन किया। ऐसे प्रयासों के बावजूद फुटबाल उद्योग मे बाल मजदूरी और बंधुआ मजदूरी का चलन जारी है। फुटबाल उद्योग में बाल मजदूरी के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करती रिपोर्ट----
भारत में बच्चों से काम लेना साधारण सी बात मानी जाती है। लेकिन समाज में शिक्षा बढऩे के साथ ही लोगों की सोच में भी बदलाव आया है। पाकिस्तान के बंधुआ मजदूरों के ऊपर 1995 की एक रिपोर्ट ने वहां के फुटबाल उद्योग में बड़े पैमाने पर बाल मजदूरों और बंधुआ मजदूरों के इस्तेमाल का खुलासा किया था। यह पहली रिपोर्ट थी जिसनें खेलों की रंग-विरंगी दुनिया के पर्दे के पीछे की वीभत्स तस्वीर को सामने कर दिया था। तथाकथित राष्ट्रवादियों के पाकिस्तान के खिलाफ दुष्प्रचार के लिए यह एक बेहतरीन सामग्री थी और इसका वे बड़े पैमाने पर इस्तेमाल भी कर सकते थे क्योंकि इस खबर का अंतर्राष्ट्रीय महत्व था। बहरहाल उनकी इस खुशी को काफूर होते ज्यादा वक्त नहीं लगा क्योंकि उसके तुरन्त बाद ही फुटबाल उद्योग और खेल सामग्री के निर्यात के दूसरे सबसे बड़े बाजार भारत के ऊपर ही गाज गिर गयी। तभी से फुटबाल उद्योग में बाल श्रम के इस्तेमाल से सम्बन्धित यह मुद्दा समय-समय पर मीडिया और स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा उठाया जाता रहा है। इतने प्रयासों के बाद भी इस उद्योग में बाल श्रम का अभी भी उपयोग जारी है।साउथ एशियन कोलिशन ऑन चाइल्ड सर्विटय़ूड (एसएसीसीएस) ऐसी पहली संस्था है जिसने 1997 में पहली बार भारतीय खेल सामाग्री निर्माण उद्योग में काम करने वाले बाल श्रमिकों की दुस्वार कठिनाइयों को पूरे जोर के साथ विश्व पटल पर रखा। एसएसीसीएस ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में बाल श्रमिकों का जो संख्या बतायी है वह उस समय ही लाखों में थी। एस ए सी सी एस की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार 1998 में लगभग 10000 बच्चे जालंधर में कार्य करते थे। पहले, भारत में यह काम जालंधर और मेरठ में किया जाता था लेकिन आजकल गुडग़ांव में भी यह काम शुरू हो चुका है। भारत में खेल सामग्री उत्पादन में जालंधर पहले स्थान पर है जबकि उत्तर प्रदेश में मेरठ दूसरे स्थान पर। हरियाणा में गुडग़ांव तीसरे स्थान पर है।
बाल श्रमिकों का नारकीय जीवन
फुटबाल की सिलाई का कार्य बहुतायत रूप में घर पर ही किया जाता है। निर्माता कम्पनियां फुटबाल का पैनल अपनी फैक्ट्री में बनाती है और फिर उसे सब-कंाट्रैक्टर के माध्यम से लोगों के घरों पर काम करवाती हंै। इन मजदूरों में ज्यादातर बहुत गरीब परिवार के बच्चे होते हैं जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करने को मजबूर होते हैं। यही बच्चे ठेकेदारों के शिकार बनते हैं। नीदर लैंड से प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार इस मजदूरों में से 90 प्रतिशत लोग भारतीय समाज में अछूत समझे जाने वाले दलित तबके से ताल्लुक रखते हैं। फुटबाल उद्योग में लगे दलित मजदूर और उनके बच्चे बाल मजदूरी और बंधुआ मजदूरी के सबसे बड़े शिकार हैं। 1998 में जब न्यूनतम दैनिक मजदूरी 63 रुपये थी तब एक बालिग मजदूर को 20 रुपये मिलते थे। आज भी वही हाल है। सामान्यत: एक बंधुआ मजदूर को न्यूनतम मजदूरी के बारे में पता ही नहीं होता है। भारतीय कानून के अनुसार मुख्य निर्मात कम्पनियों को मजदूरों के वेतन और अन्य सुविधाओं की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। लेकिन हकीकत यह है कि इस बारे में न तो हमारे नीति निर्माताओं को चिन्ता है और न ही उन कम्पनियों को जिनके लिए ये बाल मजदूर अपना बचपना बर्बाद कर देते हैं। पांच साल से ही बच्चे इस काम में शामिल हो जाते हैं। इनमें से बहुत कम ऐसे बच्चे हैं जिन्होंने कभी स्कूल कभी स्कूल भी देखा हातो है। यदि स्कूल गये भी तो वे उसे जारी नहीं रख पाते क्योंकि उनके घर की माली हालात उन्हें यह करने नहीं देती। मेरठ के फुटबाल उद्योग में पूरा समय काम करने वाले बच्चों में से 40-50 प्रतिशत ऐसे बच्चे हैं जिनकी आयु 5 से 14 वर्ष के बीच है। पांच छ: वर्ष के बच्चे दस-दस घंटे काम करते हैं। उनके लिए यह न्यूनतम काम के घंटे होते हैं। सामान्यत: वह 11-12 घंटे लगातार काम करते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें बचपन में ही पीठ व जोड़ों के दर्द की शिकायत हो जाती है। 30 वर्ष के होते-होते उनकी आंख की रोशनी भी कम होने लगती है। और इस तरह वे किसी काम के नहीं रह जाते।
बालश्रम की रोकथाम का गोरखधंधा
फुटबाल निर्माण में बालश्रम रोकने के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय फुटबाल महासंघ (फीफा) के वर्ष 1996 के प्रसिद्ध समझौते, यूरोपीय संसद के 2007 के प्रस्ताव, भारतीय खेल सामग्री निर्माण उद्योग के संबंध में साफ निर्देशों और सभी सरकारी दावों के बावजूद फुटबाल निर्माण में न सिर्फ बाल श्रम बल्कि बंधुआ मजदूरी का चलन भी जारी है। इंटरनेशनल लेबर राइट्स फोरम के सहयोग से बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) द्वारा किए एक नए अध्ययन के अनुसार अभी भी 5,000 बच्चे फुटबाल सिलाई के साथ ही बेसबाल, क्रिकेट बाल, बास्केटबाल वॉलीबाल, टेनिस बाल और अन्य खेलों का सामान बनाने के काम में लगे हुए हैं। भारतीय खेल उद्योग कुल 318 तरह के खेल सामान बनाते हैं। उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर और पंजाब के जालंधर की झुग्गियों में ये बच्चे अपने परिवार द्वारा भारी कर्ज के चलते बंधुआ मजदूरों की तरह काम करने के लिए मजबूर किए जाते हैं। इसका उनके स्वास्थ्य और शिक्षा पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है।प्रसिद्ध बाल अधिकार कार्यकर्ता और बीबीए के अध्यक्ष कैलाश सत्यार्थी द्वारा किए गए अध्ययन के ये निष्कर्ष ऑफ साइड चाइल्ड लेबर इन फुटबाल स्टीचिंग- ए केस स्टडी ऑफ मेरठ डिस्ट्रिक्ट शीर्षक से जारी किए गए हैं। सत्यार्थी ने इस अध्ययन में जिन पांच बच्चों को शामिल किया है वे अब बीबीए के अंतर्गत स्कूल में दाखिल हो चुके हैं। पर यह सवाल यह है कि जितने बड़े पैमाने पर इस उद्योग में बंधुआ मजदूरी का चलन है क्या उसके समाधान के लिए ये प्रयास नाकाफी नहीं हैं। कैलाश सत्यार्थी के अनुसार मेरठ के बाहरी इलाके बुद्धविहार और कमालपुर या नजदीकी गांव शिवाल खास में हजारों बच्चे कृत्रिम चमड़े से फुटबाल बनाने के काम में लगे हुए हैं। इन सामानों पर बाद में बालश्रम मुक्त का ठप्पा भी लगा दिया जाता है। बीबीए द्वारा वर्ष 1996 में पहली बार इस मामले को सामने लाने के बाद से फुटबाल सिलने में बच्चों के उपयोग में काफी अधिक कमी आई है। अंतर्राष्ट्रीय उपभोक्ताओं के दबाव और बीबीए और अन्य स्वंयसेवी संगठनों की गतिविधियों के कारण फुटबाल उद्योग में लगे बच्चों की संख्या 20,000 से घटकर अब 5,000 रह गई है।
बालश्रम से हो रही है देश की प्रगति!
भारत के फुटबाल उद्योग से न सिर्फ विदेशी कम्पनियां अकूत कमाई करती हैं वरन इससे भारत सरकार को भी करोड़ों फायदा होता है। 1998-1999 के बीच भारत ने 125.54 करोड़ रुपये की खेल सामग्री का व्यापार किया जबकि यही वर्ष 2000 में बढ़कर 7854. 76 लाख रूपए हो गया। भारत से बनी खोल सामग्री ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, नीदरलैंड अमेरिका आदि देशों को निर्यात होती है। यह कितना अजीब लगता है कि इतनी सम्पदा हमारे देश के नन्हें-नन्हें बच्चे पैदा करते हैं। बीबीए के अध्यन से यह स्पष्ट हो गया है कि इन बच्चों से 12-14 घंटे तक काम लिया जाता है। बच्चों के शरीरिक स्वास्थ्य पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इनमें से 35 प्रतिशत बच्चों को चमड़ा सिलने की सुई के कटने से घाव हो जाता है। कई बार यह घाव पक कर नासूर बन जाता है। इसी तरह अन्य 35 प्रतिशत बच्चों को आंख में दर्द, 50 प्रतिशत को पीठ दर्द और 85 फीसदी बच्चों को हाथों और अंगुलियों में बराबर दर्द की शिकायत रहती है। हालत यह है कि ये बच्चे जिन कम्पनियों के लिए काम करते हैं वे बच्चों के दवा इलाज तक की व्यवस्था नहीं करतीं। बीबीए से जुड़े मनोज मिश्रा का कहना है कि बंधुआ और बाल मजदूरी से मुक्त कराए गए अब तक हजारों बच्चों ने मजिस्ट्रेट और श्रम निरीक्षकों के सामने बार-बार बयान दिया है कि उनसे कहीं दो वक्त के रुखे-सूखे भोजन पर कहीं तो कहीं नाममात्र की मजदूरी पर हर रोज 14 से 16 घंटे काम कराया जाता है। इसके बावजूद श्रम विभाग वर्षों के बाद भी क्यों चुप्पी साधे बैठा है ? श्रम मंत्री तक ने इस मसले पर चुप्पी साध रखी है। उन्होंने यह भी कहा कि कारखानों का पंजीयन न होने से बाल श्रम कानून के तहत चालान होते ही कारखाना मालिक किराए के उस मकान को छोड़ कहीं अन्यत्र अड्डा जमा लेता है, जिससे अदालत में दायर सैकड़ों मुकद्में उसके लापता होने से अब तक खारिज हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि बचपन बचाओ आन्दोलन का उद्देश्य समस्या को अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों के सामने सनसनी के रूप में पेश करना नहीं वरन उसके लिए प्रयास करना है। उन्होंने बताया कि बीबीए ने घरेलू उपभोक्ताओं के बीच भी यह अभियान शुरू किया है ताकि वे बालश्रम मुक्त खेल के सामान की मांग करें। जाहिर है यदि बीबीए अपने मकसद में कामयाब होता है तो निश्चित तौर पर यह भारत के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
सम्पर्क: एक कदम आगे-हिन्दी पाक्षिक, से.-5, वसुन्धरा, गाजियाबाद, उ.प्र. :: फोन नं. 09911806746

Wednesday, July 21, 2010

महाराष्ट्र में अब हाकरों का पंजीकरण होगा

हॉकरों का पंजीयन अनिवार्य करने के लिए विधेयक लाएगी महाराष्ट्र सरकार
मुम्बई, 21 जुलाई


श्रमिक वर्ग पर हर तरह की पाबंदियां धड़ल्ले लागू की जा रही हैं। रोजाना अपनी जान हथेली पर रखकर आजीविका कमाने वाले हाकरों के दमन का हथियार महाराष्ट्र सरकार तैयार कर रही है। जानकारी के अनुसार महाराष्ट्र सरकार आवासीय कॉलोनियों तथा अन्य इलाकों में सामान बेचने वाले हॉकरों के लिए पंजीयन अनिवार्य करने पर विचार कर रही है। इस पंजीयन को जरूरी बनाने के लिए राज्य विधानमंडल के जारी मानसून सत्र के दौरान विधान परिषद में इस सिलसिले में एक प्रस्ताव पेश किया जाएगा। इस विधेयक के मुताबिक हॉकरों के लिए स्थानीय निकायों में पंजीयन कराना जरूरी होगा। साथ ही सरकार को भी हॉकिंग और गैर हॉकिंग क्षेत्रों का निर्धारण करना होगा।
विधेयक में गलत इलाके में बिक्री करने या नीति में दिए गए किसी नियम को तोडऩे पर हॉकर को छह महीने कैद और पांच हजार रुपए जुर्माने की सजा दी जा सकती है।

एमसीडी की तोडफ़ोड़ में दो मजदूर दबे, एक की मौत

नई दिल्ली, 21 जुलाई
दिल्ली नगर निगम की ओर से मोरीगेट स्थित राम बाजार इलाके में एर जर्जर इमारत ढहवाने के दौरान मलबे में दो मजदूर दब गए। इनमें से एक मजदूर की मौत हो गई। दूसरे की हालत गंभीर बनी हुई है। हादसा उस समय हुआ जब एमसीडी के अधिकारी मजदूरों को दिहाड़ी पर लेकर दो मंजिला जर्जर इमारत को ढहाने पहुंचे थे। अभी इस मामले में कश्मीरी गेट थाना पुलिस ने कोई मामला दर्ज नहीं किया है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि मकान मालिक पहले ही इमारत को खाली कर चुका है। एमसीडी के अधिकारी अपनी निगरानी में मकान को ढहा रहे थे। जिससे अधिकारी ही इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। उत्तरी जिला पुलिस उपायुक्त डॉ. सागर प्रीत हुड्डा के मुताबिक मामले की जांच की जा रही है।
मरने वाले मजदूर की पहचान मुरादाबाद निवासी रामबीर (30) के रूप में हुई है। मोरीगेट, रामबाजार स्थित उक्त मकान को बीते 16 जुलाई को एमसीडी ने जर्जर घोषित कर दिया था। यह इमारत किसका है इसकी जानकारी नहीं मिल पाई है। बुधवार को एमसीडी के सिटी जोन से एई अनिल कुमार व जेई मो. शकील जामा मस्जिद इलाके से चार मजदूरों को लेकर इमारत ढहाने पहुंच गए थे।
दोपहर करीब सवा तीन बजे यह हादसा हुआ। करीब 10 फीट ऊंची एक दीवार दोनों मजदूरों के ऊपर आ गिरी। दोनों मजदूर मलबे के नीचे दब गए। उन्हें किसी तरह लोगों की मदद से मलबे से बाहर निकाला गया। रामबीर अन्य मजदूरोंके साथ मीना बाजार जामा मस्जिद इलाके में रहता था। पोस्टमार्टम के लिए शव को सब्जीमंडी मोर्चरी में रखवा दिया गया है। उधर घटना को देखते हुए निगमायुक्त केएस मेहरा ने शहरी क्षेत्र के उपायुक्त कृष्ण कुमार को पूरे मामले की जांच के आदेश दिए हैं। रिपोर्ट तीन दिनों के अंदर देने को कहा गया है।

Sunday, July 18, 2010

चंद ईंटों से सस्ती है भारत में मजदूरों की जान


कुएं में दबे मजदूर को निकालने की कवायद जारी
आगरा 17 जुलाई, एजेंसी


मजदूरों की जिंदगी भारत में कितनी सस्ती है उसकी बानगी है यह खबर। यहां ईंटों को निकालने के लिए मजदूरों को लगा दिया। वह भी उस कुएं में जो बेहद जर्जर हो गया था और उसके धंसने का भय पैदा हो गया था। ईंटों के कुएं में दफन होने के डर से ठाकुर ने मजदूरों को उन्हें बाहर निकालने के लिए लगा दिया।
आगरा के बरहन गांव में ईंट हटाते समय एक कुंए में दबे दो मजदूरों को निकालने के लिए खुदाई जारी है।
सूत्रों के अनुसार शुक्रवार से शनिवार दोपहर तक लगभग 50-55 फीट खुदाई हो चुकी थी लेकिन दोपहर बाद मिट्टी की एक ढेर पुन: गडे में पलट गई है। मजदूरों के जीवित होने के संबंध पर तो कुछ नही कहा जा सकता परन्तु एक बार फिर खुदाई प्रारम्भ कर मजदूरों को निकालने के प्रयास किए जा रहे है।
गौरतलब है कि शुक्रवार को बरहन गांव में भूरी सिंह नामक व्यक्ति के पुराने कुएं में पडी ईटों को पांच श्रमिक बाहर निकाल रहे थे। तभी उसमें नीचे काम कर रहे दो मजदूरों के उपर मिट्टी की ढाक गिर गई और दोनों मजदूर उसमें दब गए। हालांकि पुलिस ने अभी ठाकुर पर कोई मुकदमा दायर नहीं किया है।

विस्फोट में घायल युवा श्रमिक की मौत

रायगढ़ 11 जुलाई

देश में बहुत कम वेतन पर खतरनाक भट्ठियों में काम करने वाले लाखों मजदूरों की जान सुरक्षित नहीं है। आए दिन औद्योगिक दुर्घटनाओं में मजदूर अपनी जान से हाथ धो रहे हैं फिर भी मुनाफे की हवश में मालिकान सुरक्षा मानकों को नजरअंदाज करने की कोशिश कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में तरईमाल स्थित बी एस स्पंज आयरन फैक्टरी में हुए औद्योगिक हादसे में घायल हुए एक श्रमिक की उपचार के दौरान मौत हो गई है।
पुलिस अधिकारियों ने आज बताया कि बी एस स्पंज आयर प्रा. लि.मि. में एक सप्ताह पूर्व किलन के पाईप में देर रात हुए विस्फोट में झुलसे एक श्रमिक की प्राइवेट नर्सिंग होम में इलाज के दौरान कल रात मौत हो गई।
पुलिस ने मृतक की पहचान चंद्रपुर क्षेत्र के लोकेश्वर मालाकार (20) के तौर पर की है। मृतक के परिजनों ने प्रबंधन पर मजदूरों की सुरक्षा से समझौता करने का आरोप लगाया है। उधर क्षेत्रीय कांग्रेस विधायक हृदयराम राठिया ने मृतक के परिजनों को 10 लाख रू. मुआवजा देने की मांग प्रबंधन से की है अन्यथा आंदोलन करने की चेतावनी दी है।

तेजी से बढ़ रही है शहरी आबादी, वर्ष 2021 तक हो जाएगी 53 करोड़

नई दिल्ली, एजेंसी

देश की शहरी आबादी में बेतहाशा वृद्धि होती जा हो रही है और इसका कारण ग्रामीण आबादी पर बढ़ रहा दबाव है। सेज और बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहणों के कारण बड़ी तादाद में ग्रामीण आबादी मजदूरी करने के लिए शहरों की ओर कूच कर रही है। आधिकारिक आंकड़े शहरों में जनसंख्या विस्फोट होने के संकेत देते हैं, जिसके तहत आबादी वर्तमान में 32 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2021 तक 53 करोड़ हो जाएगी।
शहरी विकास मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मौजूदा जनगणना के तहत शहरी आबादी का आंकड़ा 32 करोड़ के पार हो जाने की आशंका है। मौजूदा आंकड़ों का संकलन अगले वर्ष तक होगा। वर्ष 2001 में हुई जनगणना में शहरी आबादी 28.61 करोड़ थी। यह आंकड़ा वर्ष 2021 तक बढ़कर 53 करोड़ हो सकता है।
अधिकारी का कहना है, ''शहरीकरण का रूझान उत्साहजनक है। भारत अगले दशक में वैश्विक औसत तक पहुंच जाएगा। यह रफ्तार अब काफी बढ़ गई है।Ó असल में यह उत्साहजनक माहौल पूंजीपतियों के मनमाफिक है। क्योंकि आधारभूत संरचनाओं से लैस शहरी और औद्योगिक इलाकों में मजदूरों की लंबी लाइन से उन्हें सस्ता श्रम हासिल करने में आसानी होगी। सस्ते श्रम के लिए बड़े पैमाने पर बेरोजगारी शासक वर्ग के लिए मजबूरी है।
मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक, शहरी आबादी बढऩे से जलापूर्ति, गंदे पानी की निकासी और लोक परिवहन जैसी आधारभूत संरचना पर काफी दबाव पड़ेगा। इससे सभी प्रमुख शहरों में मकानों की उपलब्धता पर भी असर पडेगा। लेकिन शासक वर्ग को केवल मुनाफे की मलाई खाने में ही दिलचस्पी है। मजदूरों की जीवन परिस्थियों में सुधार उसका न कभी उद्देश्य था और न ही है। इसीलिए सरकार एक तरफ तो शहरी इनफ्रास्ट्क्चर पर दबाव बढ़ने का रोना रो रही है और दूसरी तरफ भारी पैमाने पर सस्ते श्रमिक मिलने से उसकी बाछें खिल गई हैं।