Monday, October 10, 2011

आर पार के मुकाम पर है सुजुकी मजदूरों की लड़ाई


भारत में सुजुकी कारपोरेशन की स्वामित्व वाली गुडग़ांव स्थित तीनों कंपनियों की पांच फैक्टरियों में से चार में हड़ताल आज, 10 अक्टूबर, 2011 को भी जारी रही और उनमें उत्पादन पूरी तरह ठप रहा। इन चारों फैक्टरियों में मजदूर पूर्ववत् फैक्टरी के अंदर धरने पर बैठे रहे। हालांकि सुजुकी प्रबंधन द्वारा मजदूरों के हिंसा में लिप्त होने और कुछ मजदूरों को हड़ताल से ''मुक्त'' करवाने की झूठी खबरों को फैलाया जा रहा है, इसका मजदूरों पर मनोबल और एकता पर कोई असर नहीं पड़ा है।

मारुति सुजुकी इण्डिया लि. के प्रबंधन द्वारा पिछले 30 सितम्बर की मध्य रात्रि को हुए समझौते के उल्लंघन करने, मजदूरों का उत्पीडऩ जारी रखने और उन्हें सबक सिखाने की कोशिश के विरोध में आरम्भ हुई इस हड़ताल नें अलग-अलग फैक्टरियों तथा स्थायी और अलग-अलग किस्म के अस्थायी मजदूरों के बीच ऐसी एकता को जन्म दिया और मजबूत किया है जो इस इलाके के मजदूर आंदोलन के इतिहास में अभूतपूर्व है। सुजुकी प्रबंधन मजदूरों की इस एकता को ही तोडऩे की हर सम्भव कोशिश कर रहा है। कल, यानी 9 अक्टूबर को, सुजुकी मोटरसाइकिल इण्डिया प्रा., लि. परिसर में ठेकेदार तिरुपति एसोसिएट से जुड़े हुए गुण्डों द्वारा मजदूरों पर हमला करने की उकसावे की कार्रवाई उसके इसी कोशिश का हिस्सा है। वे यह प्रयास कर रहे हैं कि किसी तरह मजदूरों की इस जायज हड़ताल को एक ''कानून व्यवस्था'' का मुद्दा बनाकर प्रशासन की दखलंदाजी को आमंत्रित किया जाए। लेकिन कल सुजुकी मोटरसाइकिल में उनकी यह कोशिश नाकाम साबित हुई है। मजदूरों के प्रतिनिधि द्वारा लगातार कोशिश करने के बाद आखिरकार पुलिस को एफआइआर दर्ज करने और दो अपराधियों को गिरफ्तार करने को मजबूर होना पड़ा है। हालांकि इस मामले में शुरू में हरियाणा पुलिस का रवैया भी हीला-हवाली का था। लेकिन ठेकेदार के गुण्डों द्वारा की गई कार्रवाई इतनी स्पष्ट तौर पर उकसावे भरी थी कि पुलिस को आखिरकार कार्रवाई करने पर मजबूर होना पड़ा। और मीडिया के अधिकतर हिस्से ने भी घटनाक्रम के उसी रूप को ही प्रकाशित करना पड़ा, जो सही था।

मारुति सुजुकी के मजदूरों की लड़ाई अब ऐसी जगह पर पहुंच गई है जहा पीछे हटने की कोई गुंजाइश नहीं है और सामने जो कुछ है वह आर पार की लड़ाई है। इस लड़ाई में सुजुकी की तीन अन्य फैक्टरियों के मजदूरों ने भी अपने रोजी रोटी और भविष्य को दांव पर लगा दिया है। मजदूरों के बीच भाइचारे का इससे अच्छा उदाहरण मिलना सम्भव नहीं है। ऐसे में वे सभी लोग जो मजदूरों के युगांतरकारी शक्ति और एकता पर विश्वास करते हैं, यह कर्तव्य बन जाता है कि इस लड़ाई को सफलता के मुकाम तक पहुंचाने में अपनी पूरी ताकत लगा दें। क्योंकि, जैसा कि, हमने पहले भी कहा है, यह एक ऐसी लड़ाई है जिसपर सिर्फ मारुति सुजुकी या फिर सुजुकी कारपोरेशन के मजदूरों के भविष्य का फैसला नहीं होने वाला है बल्कि इस पूरे इलाके में मजदूर आंदोलन के भविष्य की दशा दिशा भी तय होने वाली है। पूंजी के एकतरफा हमलावर रवैये के वर्तमान दौर में गुडग़ांव के मजदूरों ने जिस एकता और संयम का प्रदर्शन किया है वह निश्चित तौर पर वह सराहनीय है। और उनके इस संघर्ष को चौतरफा सहयोग और समर्थन दिया जना चाहिए।
हम एक बार फिर सभी राजनीतिक और सामाजिक संगठनों, बुद्धिजीवियों, छात्रों, युवाओं, नागरिकों और समाज के विभिन्न तबके के लोगों को मजदूरों के इस संघर्ष का समर्थन करने और उन्हें हर तरह का सहयोग प्रदान करने की अपील करते हैं।
मारुति-सुजुकी के संघर्षरत साथियों को कोई भी आर्थिक सहयोग 'मारुति सुजुकी एम्प्लाइज यूनियन' के द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे निम्न खाते में भेजें :

Account no. 002101566629

IFSC code: ICIC0000021

SHIV KUMAR

ICICI Bank,

Branch- Gurgaon, Sector-14, Haryana, India.


(हम आपसे इस सन्देश को अधिक से अधिक मित्रों-परिचितों तक अग्रसारित करने का भी अनुरोध करते है

Friday, September 23, 2011

बढ़ता जा रहा है मारुति-सुजुकी के मजदूरों को मिलने वाला समर्थन

मारुति सुजुकी मानेसर के जुझारु मजदूरों का संघर्ष विगत 25 दिनों से जारी है। लेकिन अभी गतिरोध के समाधान का कोई संकेत नहीं मिल रहा है। पिछले 25 दिनों से धरने पर बैठे मजदूरों में से कुछ ने हमें यह संकेत दिया है कि कंपनी शायद अगले दो दिनों में इस मामले को सुलझाने के लिए फिर से बातचीत की पहल करे। मजदूर चाहते हैं कि वार्ता शुरू हो और उनको विभिन्न वामपंथी और क्रांतिकारी संगठनों, छात्रों, बुद्धिजीवियों सहित समाज के अन्य तबकों का जो समर्थन मिल रहा है उसके मद्देनजर मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड के प्रबंधन पर वार्ता शुरू करने का दबाव बढ़ता जा रहा है।
बृहस्पतिवार 22 अगस्त को दिल्ली में दो जगहों पर मारुति सुजुकी के मजदूरों के साथ एकजुटता का इजहार करने के लिए दो छोटे किंतु जोरदार प्रदर्शन हुए। इसके अलावा उनके समर्थन में गुडग़ांव में एक सम्मेलन हुआ तथा बुधवार यानी 21 अगस्त को कोलकाता के मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड के क्षेत्रीय कार्यालय के सामने भी कई स्थानीय ट्रेड यूनियनों ने मिलकर प्रदर्शन किया। यही नहीं जापान की राजधानी टोकियो स्थित मारुति मोटर मोटर कारपोरेशन के मुख्यालय के सामने भी एक जोरदार प्रदर्शन करते हुए इस बुहराष्ट्रीय कंपनी से भारत में अपने मजदूर विरोधी कारगुजारियों को तुरंत रोकने और मारुति सुजुकी, मानेसर के माजदूरों की जायज मांगों को तत्काल स्वीकार करने की मांग की गई।
मारुति सुजुकी के मजदूरों के संघर्ष के समर्थन में कल दिल्ली में दो जगहों पर प्रदर्शन हुए। विभिन्न वामपन्थी और क्रान्तिकारी संगठनों और ट्रेड यूनियनों ने संयुक्त रूप से हरियाणा भवन पर एक जोरदार प्रदर्शन किया. वहाँ हुई सभा में वक्ताओं ने मारुति-सुजुकी इण्डिया लिमिटेड प्रबन्धन के दमनकारी और मजदूर विरोधी तौर तरीकों की कड़ी आलोचना की और इस मामले में केन्द्र और हरियाणा सरकार के रवैये की भी कड़े शब्दों में भर्सना की। अपराह्न बारह बजे से आरम्भ होकर सभा करीब तीन बजे तक जारी रही। सभा में हरियाणा सरकार से मारुति सुजुकी के मैनेजमेंट के अड़ियल रवैये के चलते जारी गतिरोध को तुरन्त सुलझाने की माँग की गयी और इस सम्बन्ध में अधिकारीयों को ज्ञापन दिया गया। इस प्रदर्शन में क्रांतिकारी युवा संगठन, आल इंडिया ट्रेडयूनियन्स फेडरेशन, इंकलाबी मजदूर केंद्र, मजदूर एकता केंद्र, क्रांतिकारी नौजवान सभा, मजदूर एकता कमेटी, यूथ फार सोशल जस्टिस आदि दिल्ली के ढेरो छोटे बड़े संगठनों के प्रतिनिधि शामिल थे।
मारुति सुजुकी के संघर्ष के समर्थन में एक ट्रेड यूनियन संगठन, न्यू ट्रेड यूनयिन इनशिएटिव, की ओर से दूसरा प्रदर्शन तीस हजारी मेट्रो स्टेशन के सामने हुआ। ये दोनों प्रदर्शन अपेक्षाकृत छोटे ही थे लेकिन इन्होने इस आन्दोलन को विभिन्न संगठनों और समाज के विभिन्न हिस्सों से प्राप्त हो रहे समर्थन को अभव्यिक्ति प्रदान की।

Wednesday, September 21, 2011

मारुति सुजुकी के मजदूरों के समर्थन में हरियाणा भवन पर प्रदर्शन

प्रिय साथी,
मारुति सुजुकी के मानेसर प्लाटं के संघर्षरत मजदूरों के समर्थन में कल (बृहस्पतिवार. 22 सितंबर, 2011 को) दिल्ली में कार्यरत विभिन्न संगठनों और ट्रेड यूनियनों का हरियाणा भवन पर संयुक्त धरना आयोजित किया जा रहा है। धरना सुबह 11 बजे से शुरू होगा। इस हेतु हम सभी मंडी हाउस के पास इकट्ठा होंगे। आप सभी से अनुरोध है कि अधिक से अधिक संख्या में भागीदारी करें और इस संदेश को अधिक से अधिक मित्रों को अग्रसारित करें।


धन्यवाद

Friday, September 16, 2011

संघर्ष के कोष में सहयोग की अपील

प्रिय साथी,

मारुति सुजुकी इम्प्लाइज युनियन के साथियों के ओर से हमें निम्न विज्ञप्ति प्राप्त हुई है. हम आप सभी से इस पर गौर फरमाने और इसे अधिक से अधिक साथियों तक अग्रसारित करने की अपील करते है. इसका अंग्रेजी प्रारूप इसके ठीक पहले भेजा गया है :




मारुति सुजुकी एम्पलाइज यूनियन (एम.एस.ई.यू.)


16 सितम्बर, 2011


अपील


मारुति सुजुकी एम्पलाइज यूनियन का संघर्ष एक महत्वपूर्ण स्थिति में पहुँच गया है। हम आप सबसे अनुरोध कर रहे हैं कि हमारे यूनियन को नैतिक समर्थन के साथ-साथ आर्थिक सहायता पहुंचाकर इस लड़ाई को जीत के मुकाम तक पहुंचाने में मदद करें।


मानेसर-गुड़गांव-धारूहेड़ा-बावल औद्योगिक क्षेत्र के सभी मजदूर और, खास कर, सुजुकी पॉवरट्रेन इण्डिया लिमिटेड, सुजुकी कास्टिंग्स और सुजुकी मोटरसाइकिल इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड के मजदूर हमारे समर्थन में खड़े हुए हैं। इसके साथ ही हमें देश और दुनिया भर के मेहनतकश वर्ग तथा इससे सहानुभूति रखने वाले जनता का समर्थन प्राप्त है।


हमारी माँगें :
1. यूनियन गठन करने का मजदूरों का अधिकार।
2. सभी चार्ज शीट को खत्म किया जाये।
3. सभी टर्मिनेशन और सस्पेंशन को वापस लिया जाए।
4. ठेका मजदूरों की माँगें मानी जाये।


मारूती सुजुकी मैनेजमेण्ट द्वारा, हम मारूती सुजुकी के मजदूर साथियों पर पुलिसया दमन और असमाजिक तत्वों के बल पर दमनकारी नीतियों का विरोध करते हैं।


आप अपनी सहायता राशि निम्नलिखित खाते में भेज सकते हैं:
शिव कुमार
खाता संख्या: 002101566629
IFSC Code : ICIC0000021
ICICI Bank,
Branch - Gurgaon, Sector-14, Haryana (India)
आप अपने सहायता राशि देने के बाद हमें email : mseu.manesar@gmail.com पर सुचित करें जिससे कि मारुति सुजुकी एम्पलाइज युनियन आपके ईमेल का उत्तर दे कर मिली राशि को आपको बता सके।


इन्क़लाबी सलाम
सोनू कुमार
अध्यक्ष
शिव कुमार
महासचिव
सुमित कुमार
खजांची
मारुति सुजुकी एम्पलाइज युनियन

मारुति-सुजुकी, मानेसर के संघर्षरत मजदूरों के समर्थन में आन्दोलन व्यापक हुआ

आन्दोलन को फैलने से रोकने के लिए मारुति-सुजुकी ने अपने दोनों संयंत्र बन्द किये

कल 14 सितम्बर की शाम को बहूराष्ट्रीय कम्पनी सुजुकी के मालिकाने वाली तीन इकाइयों, सुजुकी पवारट्रेन इण्डिया लि., सुजुकी कास्टिंग्स और सुजुकी मोटरसाईकल इण्डिया प्रा.लि. के मजदूरों के मारुति-सुजुकी इण्डिया लि., मानेसर के संघर्षरत मजदूरों के समर्थन में हड़ताल में चले जाने से डर कर मारुति-सुजुकी प्रबन्धन ने आज गुडगाँव और मानेसर स्थित अपने दोनों फैकटारियों को कल शुक्रवार को बन्द घोषित कर दिया. शनिवार को विश्वकर्मा पूजा की छुट्टी है और अगला दिन रविवार है, इस तरह दोनों कारखाने अगले तीन दिनों तक बन्द रहेंगे और इस तरह से वे दावानल की तरह फैलते हुए आन्दोलन की आग को रोक देना चाहते है. इस बीच मारुति-सुजुकी इण्डिया लि.के मानेसर संयन्त्र लड़ाकू साथियों का संघर्ष आज 18 वें दिन में प्रवेश कर गया और उनके समर्थन में सुजुकी पवारट्रेन इण्डिया लि., सुजुकी कास्टिंग्स और सुजुकी मोटरसाईकल इण्डिया प्रा.लि. के मजदूरों का धरना आज भी जारी रहा.

सुजुकी पवारट्रेन इण्डिया लि. मारुति सुजुकी इण्डिया लि. के लिए डीजल इंजनों और ट्रांस्मिसनों का निर्माण करती है, और इसमे 1250 स्थायी और प्रशिक्षु तथा 600 ठेका मजदूर हैं. सुजुकी कास्टिंग भी इसी के अन्तर्गत आती है और इसमें 350 -400 स्थायी और प्रशिक्षु तथा 500 ठेका मजदूर कार्यरत हैं. सुजुकी मोटरसाईकल इण्डिया प्रा.लि. में 1200 -1400 मजदूर हैं जो प्रतिदिन 1200 मोटरसाइकिल और स्कूटरों के उत्पादन का अत्यधिक कठिन लक्ष्य हासिल करते हैं. इस तरह से सुजुकी समूह के करीब 4500 कामगार मारुति सुजुकी की लड़ाई के साथ एकजुटता में हड़ताल पर हैं. इन तीनों कारखानों में श्रमिकों की कुल संख्या को 'बिजनेस लाइन' ने 7000 बताया है. मारुति-सुजुकी के गुडगाँव संयंत्र को भी इस चपेट में आने से रोकने के लिए ही कम्पनी प्रबन्धन ने शुक्रवार को छूती की घोषणा की है.

मारुति-सुजुकी के संघर्षरत श्रमिकों को पूरे गुडगाँव-मानेसर-धरुहेरा औद्योगिक पट्टी में मजदूरों और ट्रेड यूनियनों का व्यापक समर्थन हासिल है और उसने पूरे इलाके में संघर्ष की नयी चेतना का संचार कर दिया है. इस आन्दोलन का ही प्रभाव है कि ऑटो पार्ट्स का निर्माण करने वाली निकटवर्ती मुंजाल सोवा के 1200 अस्थायी मजदूर विगत 12 सितम्बर को काम करने की अमानवीय परिस्थितिओं और मालिकों की मनमर्जीपन के खिलाफ हड़ताल पर चले गए. उन्हें हरियाणा में लागू न्यूनतम वेतन से भी कम 4000 से 4500 रुपयों का वेतन दिया जाता था. मालिकों ने फैलते मजदूर आन्दोलन के डर से भयभीत होकर 13 सितम्बर की मध्यरात्रि को मजदूरों से समझौता कर लिया और उन्हें 125 श्रमिकों को तुरन्त स्थाई बनाने और शेष को तीन वर्षों के प्रशिक्षण के पश्चात स्थाई बनाने का वादा करने पर मजबूर होना पड़ा.

भारत में सबसे अधिक संख्या में कारों का निर्माण करनेवाली एक भीमकाय बहुराष्ट्रीय कम्पनी और उसके पीछे खड़ी केंद्र और राज्य सरकारों तथा पूरी राज्यसत्ता की शक्ति का मारुति-सुजुकी के ये नौजवान मजदूर जिस दृढ़ता और बहादूरी के साथ मुकाबला कर रहे है वह बेमिसाल है और उसीने आज पूरे सुजुकी समूह के कामगारों को एकजुट कर दिया है. लेकिन संघर्ष की यह डगर फिर भी कठिन है और उन्हें और अधिक समर्थन, सहयोग और एकजुटता की जरूरत है. हम सभी से उन्हें यह समर्थन और सहयोग मुहैया करने की अपील को एक बार फिर दोहराते हैं.

कल शुक्रवार 16 सितम्बर को गुडगाँव के कमला मार्केट में आयोजित गुडगाँव-मानेसर-धारूहेड़ा बेल्ट के सभी ट्रेड यूनियनों और मजदूर संगठनों की संयुक्त रैली से आन्दोलन को और गति, सहयोग और समर्थन हासिल होने की उम्मीद है.

-रेड ट्यूलिप

Thursday, September 8, 2011

क्या यूनियन बनाने की मांग करना गैरकानूनी है

मानेसर के मारुती सुजुकी इंडिया के प्लाण्ट में दोबारा संघर्ष की स्थित उत्पन्न हो गई है। पिछली बार मैनेजमेंट को पीछे हटना पड़ा लेकिन इस बार उसने पूरी तैयारी के साथ हमला बोला है। सबकुछ ठीन होने के उनके दावे के बावजूद वहां कुछ भी ठीक नहीं है। दुर्भाग्य से मीडिया में ब्लैकआउट के चलते इन खबरों का गला घोंट दिया जा रहा है। मीडिया से जुड़े कुछ मित्रों ने बताया कि मारुति मैनेजमेंट की तरफ से सभी अखबारों और चैनलों को धमकी भरी सलाह भेजी गई कि वे मजदूरों के पक्ष को प्रकाशित या प्रसारित न करें (अन्यथा उन्हें विज्ञापन से हाथ धोने पड़ सकते हैं)। इसका असर यह हो रहा है कि मैनेजमेंट जो प्रेस विज्ञप्ति भेज रहा है उसी को अखबार चिपका रहे हैं जबकि मजदूर चिल्ला चिल्ला कर हकीकत बयां कर रहे हैं लेकिन उसे कोई अखबार नहीं छाप रहा है। हां अंग्रेजी अखबार द हिंदू ने साहस करके मजदूरों का पक्ष छापा। दैनिक जागरण और हिंदुस्तान समेत नई दुनिया, राजस्थान, नवभारत टाइम्स आदि ने तो मैनेजमेंट के सामने घुटने टेक दिये हैं।
मजदूरनामा को मिले समाचार के अनुसार, मजदूरों को उकसाने के लिए मैनेजमेंट ने गुड कंडक्ट बांड की शर्त रखी जिसे कुछ एक मजदूरों के अलावा किसी ने नहीं भरा और सूचना मिलते ही मजदूर हड़ताल पर चले गए।

दुनिया भर में चल रहे तमाम उथल पुथल के बावजूद भारतीय शासक वर्ग यह समझने को राजी नहीं है कि मेहनतकश जनता के दमन का रास्ता आखिर भीषण विस्फोट की ओर ले जाता है। भारत में श्रमिक वर्ग के साथ जो अन्याय अत्याचार हो रहा है वह अभूतपूर्व है। और यह रोष ज्वालामुखी बन चुका है। हालत यह हो गई है कि मजदूर यूनियन बनाने की मांग अघोषित तौर पर एक अवैध मांग हो चुकी है जबकि भारतीय संविधान में यह कर्मचारियों का मौलिक अधिकार माना गया है। आखिर यह देश संविधान के अनुसार चल रहा है या पूंजीपतियों के हितों के अनुसार चलाया जा रहा है।


हम आप सभी से मानेसर के संघर्षरत साथियों का हर सम्भव सहयोग और समर्थन करने की अपील करते है. हमारा प्रस्ताव है कि कि आप हरियाणा के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और श्रममंत्री को अधिक से अधिक संख्या में ईमेल और पत्र भेज कर संघर्षरत साथियों कि जायज माँगों को जल्द से जल्द मांगे जाने के लिए दबाव बनायें और यह सुनिश्चित करें कि कम्पनी प्रशासन उनके आन्दोलन का दमन न कर पाये.

मुख्यमंत्री
cm@hry.nic.in
लेबर कमिश्नर
labourcommissioner@hry.nic.in
श्रम मंत्रालय
labour@hry.nic.in.

मारुती सुजुकी के मानेसर संयंत्र के मुख्यद्वार पर जोरदार प्रदर्शन

पहली सितम्बर की शाम को मारुति सुजुकी के मानेसर संयंत्र के मुख्यद्वार पर इस फैक्टरी के संघर्षरत मजदूरों के समर्थन में एक जोरदार प्रदर्शन हुआ जिसमें मारुति सुजुकी के मानेसर संयंत्र के मजदूरों के अलावा उसके गुडगाँव फैक्टरी और सुजुकी पवारट्रेन, मानेसर और गुडगाँव, मानेसर, धरुहेरा बेल्ट के विभिन्न कारखानों के सैकड़ों मजदूर, ट्रेड यूनियनों के नेता और कार्यकर्ता, हरियाणा और दिल्ली से आये हुए विभिन्न संगठनों के अनेक कार्यकर्ता, छात्र और बुद्धिजीवी शामिल हुए। मुख्यद्वार पर शाम 4 बजे आरम्भ होकर देर शाम तक चलती रही।


सभा में वक्ताओ ने एक स्वर से मारुति सुजुकी इण्डिया के प्रबन्ध तन्त्र के दमनकारी और तानाशाहना रवैये की कटु आलोचना की और वर्त्तमान संकट के लिए उसे ही पूरी तरह जिम्मेवार ठहराया। वक्ताओ ने मारुति सुजुकी के मानेसर संयंत्र के मजदूरों के कानून और संविधान सम्मत अधिकारों को स्वीकार न करने और गतिरोध पैदा करने के लिए जहाँ मारुति प्रबंधन की भर्सना की वहीँ हरियाणा और केंद्र सरकार को उनकी मिली भगत और मजदूर विरोधी रवैये के लिए आलोचना का निशाना बनाया। मारुति ग्रुप के कारखानों के मजदूरों के अलावा एचएमएसआइ, हीरो होंडा, ऍफ़ सी सी रिको, रिको ऑटो धरुहेरा, रिको ऑटो मानेसर, ओमाक्स, लुमेक्स, सोना स्टीरिंग और इस औद्योगिक पट्टी अनेक कारखानों के मजदूरों और उनके प्रतिनिधियों ने इस प्रदर्शन में हिस्सा लिया और सभा में अपने विचार रखे।


विभिन्न स्थानीय फैक्टरी आधारित स्वतन्त्र यूनियनों के प्रतिनिधियों के अलावा एआइटीयूसी, एचएमएस, सीआइटीयू, आइएनटीयूसी, एनटीयूआइ और एआइसीसीटीयू जैसे केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के नेताओं ने संघर्षरत मजदूरों के साथ आपनी एकजुटता का इजहार किया और इस आन्दोलन को और व्यापक बनाने जाने की आवश्यकता पर बल दिया और इस दिशा पुरजोर प्रयास करने का आश्वासन दिया।

प्रस्तुत है प्रदर्शन के कुछ चित्र :


"अच्छे आचरण का करार"

जिसे मारुति प्रबन्धन ने थोपने की कोशिश की


Good Conduct Bond *

In Terms of Clause 25(3) of the Certified Standing Orders

I,............................ S/o............................... Staff
no............. do hereby execute and sign this good conduct bond
voluntarily in my own volition in accordance with Clause 25(3) of the
Certified Standing Orders. I undertake that upon joining my duties I shall
give normal production in disciplined manner and that I shall not resort to
go slow, intermittent stoppage of work, stay-in strike, work to rule,
sabotage or otherwise indulge in any activity, which would hamper the normal
production in the factory. I am aware that resorting to go slow,
intermittent stoppage of work, stay-in strike, or indulging in any other
activity having adverse effect on the normal production constitutes a major
misconduct under the Certified Standing Orders and the punishment provided
for committing such acts of misconducts includes dismissal from service
without notice, under clause 30 of the Certified Standing Orders. I,
therefore, do hereby agree that if, upon joining my duties, I am found
indulging in any activity such as go slow, intermittent stoppage of work,
stay-in strike, work to rule, sabotage or any other activity having the
effect of hampering normal production, I shall be liable to be dismissed
from service as provided under the Certified Standing Orders.



Date:........................
Signature of the workman

अपील : मारुति सुजुकी के संघर्षरत मजदूरों का हर तरह से सहयोग और समर्थन करें!

प्रिय साथी,


भारत में सबसे अधिक कारों का निर्माण करने वाली जापानी कम्पनी मारुति सुजुकी इण्डिया लि. के तानाशाहाना, दमनकारी और श्रमिकविरोधी रवैये के चलते उसके मानेसर स्थित संयंत्र के मजदूर एक बार पुनः संघर्ष के रास्ते पर उतरने को बाध्य हुए है।


मजदूरों द्वारा अपनी स्वतंत्र यूनियन की मांग पर मजबूती से कायम रहने के लिए उनको सबक सिखाने के उद्देश्य से फैक्टरी प्रबन्धन ने विगत 28 अगस्त को एकतरफा तौर पर "लाक आउट" कर दिया और 29 अगस्त की सुबह से मजदूरों के संयंत्र परिसर में प्रवेश करने पर यह शर्त लगा दिया कि सिर्फ वे मजदूर ही अन्दर जा सकते है जो प्रबन्धन द्वारा प्रस्तुत "अच्छे आचरण के करार" पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार हों। उस करार पर हस्ताक्षर करने का अर्थ यह था कि मजदूर अपने सभी विधिसम्मत और मानवीय अधिकारों को खुद ही त्याग दें। स्वाभाविक तौर पर बहुसंख्यक मजदूरों ने उस करार पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया और फैक्टरी के बाहर धरने पर बैठ गए। कहने कि आवश्यकता नहीं कि कम्पनी कि यह कारर्वाई पूरी तरह गैरकानूनी है और कर्मचारियों पर " अच्छे आचरण का क़रार" थोपने को अदालत द्वारा "जबरदस्ती" और "बलप्रयोग' ठहराया जा चुका है।


आपने इस एकतरफा उकसावे कि कारर्वाई के पहले प्रबन्धन ने इसकी पूरी तैयारी कर ली थी. 28 अगस्त कि शाम से ही फैक्टरी परिसर को हरियाणा पुलिस और अन्य सुरक्षाकर्मियों ने घेर लिया था और उनकी निगरानी में संयंत्र परिसर को टीन की चादरों और बाँस -बल्लियों से घेर कर एक अभेद्य दुर्ग में तब्दील कर दिया गया। इसके पूर्व ही प्रबन्धन ने मजदूरों पर धीमे और कम काम करने, " गो स्लो" करने और तोड़फोड़ करने का आरोप लगाने की सारी कागजी खानापूरी कर रखी थी। इस सभी बातों से यह स्पष्ट है कि प्रबन्धन ने बदले की कारर्वाई की पूरी योजना बना रखी थी और हरियाणा सरकार की इसमें पूरी मिली भगत थी और उसके प्रशासन ने इस विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनी के भाड़े के टट्टू कि भूमिका निभाई।


अपने दमनचक्र को जारी रखते हुए फैक्टरी प्रबन्धन ने 29 अगस्त को बेबुनियाद और मनगड़ंत आरोपों पर 11 श्रमिकों को बर्खास्त और अन्य 10 श्रमिकों को निलम्बित कर दिया। अगले दिन 30 अगस्त को 28 अन्य श्रमिकों को भी निलंबित कर दिया गया। गैर कानूनी तरीके से निकले गए इन सभी 49 मजदूरों पर धीमे और कम काम करने, " गो स्लो" करने और तोड़फोड़ करने के बेबुनियाद आरोप लगाये गए है। बर्खास्त किये गए 11 मजदूर वही है जिन्हें विगत जून के 13 दिन कि हड़ताल के बाद हुए अंतरिम समझौते के तहत बहल करवाया गया था। दरअसल उस आन्दोलन में मजदूरों की जो आंशिक जीत हुई थी, उसका बदला लेने और मजदूरों को आखिरी सबक सिखाने के उद्देश्य से ही मारुति सुजुकी प्रबन्धन ने योजनाबद्ध तैयारी के साथ जानबूझ कर यह संकट खड़ा किया है और इसमें उन्हें पूरे पूँजीपति वर्ग, आटोमोबाइल उद्योग के मालिकन और राजसत्ता की पूरी ताकत का सहयोग और समर्थन हासिल है। ऐसे में यह जरुरी है कि मारुति सुजुकी के संघर्षरत मजदूरों को हर तरह का सहयोग और समर्थन प्रदान किया जाय। पिछले बार के संघर्ष में जिस तरह उन्हें पुरे मानेसर गुडगाव इलाके के मजदूरों का समर्थन प्राप्त हुआ था उसी तरह का सहयोग और समर्थन ही अब उनके आन्दोलन को सफलता के मुकाम तक ले जा सकता है।


यह स्पष्ट है कि मारुति सुजुकी प्रबन्धन ने प्रशासन के साथ मिली भगत से सिर्फ मारुति में ही नहीं पूरे हरियाणा में उभरते हुए मजदूर आन्दोलन को पूरी तरह कुचल देने के उद्देश्य से बदले की कारर्वाई की यह साजिश रची है। अतः यह लड़ाई बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे न केवल मारुति कर्मचारियों के भविष्य का फैसला होने वाला है बल्कि, इस बात का भी फैसला होने वाला है कि न सिर्फ इस औद्योगिक क्षेत्र में बल्कि पूरे उत्तर भारत में भविष्य में मजदूरों को अपनी जायज मांगों के लिए संघर्ष करने और उसके लिए जरूरत के अनुसार संगठनों का निर्माण करने की इजाजत होगी कि नहीं। यह सिर्फ जनतांत्रिक अधिकारों को हासिल करने का सवाल नहीं है बल्कि, अतीत के संघर्षों से हासिल जनतांत्रिक अधिकारों को बनाए रखने का भी सवाल है। इस रूप में मारुति के नौजवान मजदूर सिर्फ अपने हकों की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं बल्कि, पूरे मजदूर वर्ग और आम जनता की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनकी लड़ाई आज ऐसे मुकाम पर है कि उसे बहुत समझदारी और साहस के साथ आगे ले जाने के जरूरत है। इस काम में उन्हें हर बुद्धिजीवी, हर मजदूर, नौजवान के सहयोग और समर्थन की जरूरत है। हम सभी सामाजिक-राजनीतिक संगठनों, उनके कार्यकर्ताओं, प्रगतिशील और जनपक्षधर बुद्धिजीवियों और आम जनता से इन संघर्षरत मजदूरों को हर संभव सहयोग और समर्थन करने की अपील करते हैं।


हम प्रस्तावित करते हैं कि
1. हरियाणा के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और श्रममंत्री के पास मजदूरों के इस आंदोलन के समर्थन में अधिक से अधिक संख्या में ईमेल, पत्र और तार-फैक्स भेजें और भिजवाएं जाएँ।
2. अधिक से अधिक संख्या में मारुति सुजुकी गेट के सामने पहुंच कर धरने पर बैठे मजदूरों के प्रति अपने सहयोग और समर्थन का इजहार किया जाय।
3. इस आंदोलन, उसकी पृष्ठभूमि, आवश्यकता और प्रासंगिकता के बारे में अधिक से अधिक लोगों को सूचित किया और यदि सम्भव हो तो प्रचार अभियान चलाया जाय।
4. मजदूरों के लिए सहयोग और समर्थन जुटाने के लिए अपने-अपने इलाकों में बैठकें विचार-गोष्टियाँ और छोटी-बड़ी सभाएं आयोजित किया जाय।


कर्मचारी-प्रबंधन में बढ़ी तकरार
शर्मिष्ठा मुखर्जी / नई दिल्ली August 31,
देश की प्रमुख कार कंपनी मारुति सुजूकी इंडिया (एमएसआईएल) के मानेसर संयंत्र में प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच तकरार और तेज हो गई है। गुडग़ांव-मानेसर क्षेत्र के विभिन्न कर्मचारी संगठनों से जुड़े 5,000 कर्मचारी गुरुवार को मानेसर में कंपनी कार्यालय के सामने इकट्ठा होकर एकजुटता का प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं।
ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) के सचिव डी एल सचदेवा ने कहा, 'मंगलवार को एक बैठक में यूनियनों ने फैसला किया था कि वे गुरुवार को अपनी एकता का प्रदर्शन करने के लिए मानेसर संयंत्र के कर्मचारियों के साथ मारुति के उस संयंत्र के सामने एकत्रित होंगे। मारुति के कर्मचारियों ने काम शुरू करने से पहले प्रबंधन के अच्छे आचरण के बॉन्ड पर दस्तखत नहीं करने का फैसला किया है।
सचदेवा ने कहा, 'गुडग़ांव-मानेसर क्षेत्र में 40 श्रमिक संगठन हैं। होंडा मोटरसाइकिल ऐंड स्कूटर इंडिया, सोना स्टीयरिंग, रिको ऑटो सहित सभी प्रमुख संगठनों ने प्रदर्शन में भाग लेने का फैसला किया है। इस बीच कंपनी ने अनुबंध आधार पर आईटीआई में प्रशिक्षित 120 कर्मचारियों को लाकर संयंत्र में उत्पादन चालू कर दिया है। इसके अलावा गुडग़ांव संयंत्र से 50 इंजीनियरों और 290 सुपरवाइजरों को बुलाकर मानेसर संयंत्र में काम पर लगा दिया गया है। संयंत्र में आज 60 वाहनों का उत्पादन किया गया। कम से कम 80 अनुबंधित कर्मचारियों को अभी ज्वॉइन
करना है।
एमएसआईएल के एक प्रवक्ता ने कहा, 'हमने आज सुबह मानेसर संयंत्र में उत्पादन शुरू कर दिया। सोमवार से उत्पादन बंद होने के बाद फैक्ट्री से आज पहली स्विफ्ट बनकर निकली। फिलहाल संयंत्र में उत्पादन के लिए 500 अनुभवी कर्मचारी उपलब्ध हैं, जिन्हें अगले कुछ दिनों में चरणबद्ध तरीके से काम पर लगाया जाएगा। उन्होंने कहा कि पिछले दो दिन में कंपनी ने अतिरिक्त मजदूरों की मदद से प्रेस, वेल्ड और पेंट क्षेत्र में काम शुरू करने की तैयारी की है। संयंत्र के ये विभाग काफी सक्रिय हैं।कंपनी द्वारा कर्मचारियों से मानेसर संयंत्र में प्रवेश से पहले 'अच्छे व्यवहार के बॉन्डÓ पर दस्तखत की मांग करने के बाद से सोमवार से उत्पादन पूरी तरह से ठप था। प्रबंधन ने जून के मध्य में 1,6000 मजदूरों द्वारा विभिन्न मांगों को लेकर बुलाई गई 13 दिन की हड़ताल के बाद से संयंत्र में काम की गुणवत्ता और निर्मित कारों की संख्या में गिरावट का आरोप लगाया था। प्रवक्ता ने कहा कि अभी तक 40 स्थायी कर्मचारी बॉन्ड पर दस्तखत कर चुके हैं।
मंगलवार को एमएसआईएल ने 16 स्थायी कर्मचारियों को निलंबित कर दिया था और 12 प्रशिक्षुओं की सेवाएं जारी रखने से इनकार कर दिया था। इससे पहले बीते सोमवार को 21 अन्य कर्मचारियों को भी निलंबित किया जा चुका था। संयंत्र में वाहनों का उत्पादन लगातार दो दिनों तक बाधित रहा, जिससे कंपनी को 2,400 वाहनों की उत्पादन हानि हुई। इन वाहनों का कुल मूल्य 80 करोड़ रुपये था।

प्रधानमंत्री से गुहार लगाएंगे कर्मचारी
मारुति उद्योग के श्रमिकों और प्रबंधन के बीच आचार संहिता को लेकर जारी विवाद को सुलझाने के लिए श्रमिकों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है। अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) के अध्यक्ष और सांसद गुरुदास दासगुप्ता ने पिछले दिनों प्रधानमंत्री से कहा था कि वे हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्ïडा को इस विवाद के निपटारे के लिए कहे।
एटक के राष्टरीय सचिव डीएल सचदेवा ने कहा कि इसी मुद्ïदे को लेकर दासगुप्ता गुरुवार को दोबारा प्रधानमंत्री से मिलेंगे। मारुति के मानेसर संयंत्र 2 में कार्यरत कुल लगभग 1,000 नियमित कर्मचारियों में से 25 से 30 कर्मचारियों ने आचार संहिता पर हस्ताक्षर किए हैं।

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मारुति के 16 कर्मचारी निलंबित, 12 प्रशिक्षु बर्खास्त

ऐसा लगता है कि मारुति सुजुकी के मानेसर सयंत्र के संघर्षरत मज़दूरों का संघर्ष अब एक कठिन दौर से गुजर रहा है. इस बार पुनः मजदूरों के संघर्ष में उतरने का मुख्य कारण यही है कि पिछले जून में 13 दिन चले उनके आन्दोलन में जो आंशिक सफलता मिलि थी वह मारुति प्रबन्धन के गले नहीं उतर रही थी और उन्होंने उसका बदला लेने के लिए मजदूरों को संघर्ष में उतरने के लिए बाध्य कर दिया. मालिको ने फैक्टरी की घेराबंदी और पूरी तैयारी केसाथ इस बार मजदूरों के आन्दोलन का पूरी तरह दमन कर देने के उद्देश्य से उन्हें संघर्ष के लिए उकसाया. 16 जून के समझौते कि भावना का पूरी तरह उल्लंघन करते हुए मजदूरों को बर्खास्त करना शुरू कर दिया और अच्छे व्यव्हार के करार पर हस्ताखर करवाने के लिए मजबूर कर मजदूरों को हड़ताल में उतरने के लिए उकसावा दिया. इसके पहले उसने लक्ष्य पूरा न होने और ख़राब गुणवत्ता के नाम पर अनुशाश्नात्मक करवाई कि पूर्व पीठिका तैयार कर ली थी.
ऐसे में यह जरुरी है कि मारुति सुजुकी के संघर्षरत मजदूरों को हर तरह का सहयोग और समर्थन किया जाय. पिछले बार के संघर्ष में जिस तरह उन्हें पुरे मानेसर गुडगाव इलाके के मजदूरों का समर्थन प्राप्त हुआ था उसी तरह का सहयोग और समर्थन ही अब उनके आन्दोलन को सफलता के मुकाम तक ले जा सकती है.

कार बनाने वाली देश की प्रमुख कंपनी मारुति सुजुकी इंडिया [एमएसआई] और उसके मानेसर कारखाने के कर्मचारियों के बीच गतिरोध जारी है। कंपनी ने मंगलवार को 16 और स्थाई कर्मचारियों को निलंबित कर दिया जबकि 12 प्रशिक्षुओं की सेवा समाप्त कर दी। इस गतिरोध के कारण कंपनी का उत्पादन मंगलवार दूसरे दिन भी पूरी तरह प्रभावित रहा।
मारुति सुजुकी के प्रवक्ता ने कहा कि अभी तक उत्पादन शुरू नहीं हुआ है लेकिन ठेका कर्मचारियों तथा तकनीकीविदों की सेवा लिए जाने जैसे वैकल्पिक उपायों से मंगलवार उत्पादन शुरू होने के संकेत हैं। उत्पादन और गुणवत्ता से समझौते का मामला पिछले सप्ताह सामने आने के बाद से कंपनी कर्मचारियों के प्रति कड़ा रूख अपना रही है। कंपनी ने सोमवार 10 कर्मचारियों को निलंबित कर दिया था जबकि पांच अन्य को बर्खास्त कर दिया था। इसके अलावा छह प्रशिक्षु कर्मचारियों की सेवा समाप्त कर दी थी। प्रवक्ता ने कहा कि हमने 16 और स्थाई कर्मचारियों को मंगलवार को निलंबित कर दिया और 12 अन्य तकनीकी प्रशिक्षुओं की सेवा समाप्त कर दी।
जिन कर्मचारियों को निलंबित और बर्खास्त किया गया है, उन पर पिछले सप्ताह उत्पादित कारों की गुणवत्ता के साथ छेड़छाड़ कर कंपनी को नुकसान पहुंचाने का आरोप है। बहरहाल, कर्मचारियों का कहना है कि प्रबंधन जून में उनकी 13 दिन की हड़ताल का बदला लेने के लिए यह सब कर रहा है। कर्मचारियों ने हरियाणा के मानसेर स्थित कारखाने में नए कर्मचारी संघ को मान्यता देने को लेकर हड़ताल की थी।
उत्पादन और गुणवत्ता प्रभावित होने की खबर के बाद कंपनी ने सोमवार को 'बेहतर आचरण बाड' पर हस्ताक्षर के बिना कारखाने में प्रवेश से कर्मचारियों को मना कर दिया। उसके कारण सोमवार उत्पादन पूरी तरह ठप रहा। नए यूनियन मारुति सुजुकी इंप्लायज यूनियन [एमएसईयू] के महासचिव शिव कुमार ने कहा कि कारखाने में यूनियन के गठन के हमारे आवेदन को हरियाणा सरकार द्वारा खारिज किए जाने के मद्देनजर प्रबंधन हमारे खिलाफ बदले की कार्रवाई कर रहा है और हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य कर रहा है। कुमार ने जून में हुए आदोलन का नेतृत्व किया था।
उन्होंने कहा कि निलंबित और बर्खास्त कर्मचारियों में प्रस्तावित एमएसईयू के पदाधिकारी शामिल हैं। हालाकि प्रबंधन सूत्रों का कहना है कि पिछले कुछ सप्ताह से एमएसआई उत्पादन लक्ष्य हासिल करने तथा गुणवत्ता को लेकर गंभीर मुद्दों का सामना कर रहा है। सूत्र ने कहा था, '24 अगस्त को 1,230 कार उत्पादित करने की योजना थी लेकिन केवल 437 कार एसेंबल किए गए। इसमें से केवल 96 कार गुणवत्ता मानकों पर खरा उतर सके। उसने कहा कि कर्मचारी उत्पादन घटा रहे हैं तथा गुणवत्ता से जानबूझकर समझौता कर रहे हैं।
हालाकि इस बारे में पूछे जाने पर कुमार ने कहा कि कुछ प्रबंधन समर्थित कर्मचारी उत्पाद तैयार होने के बाद यह कर रहे हैं। वे जून में हुए आदोलन का बदला लेने के लिए ऐसा कर रहे हैं। कुछ कर्मचारियों पर कंपनी को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाते हुए कंपनी प्रबंधन ने बेहतर आचरण के वचन पर हस्ताक्षर और उसे लागू करने का निर्णय किया है। इसमें कर्मचारियों से यह आश्वासन मांगा गया है कि वे उत्पादन कम नहीं करेंगे और किसी भी ऐसी गतिविधियों में शामिल नहीं होंगे जिससे कारखाने में उत्पादन प्रभावित होता है।

रेड ट्यूलिप के सौजन्य से

Thursday, June 16, 2011

मानेसर स्थित मारुति सुजकी इंडिया में श्रमिकों की हड़ताल समाप्त

11 बर्खास्त कर्मचारी वापस हुए, शनिवार से कामकाज शुरू करेंगे कर्मचारी


मानेसर स्थित मारुति सुजकी इंडिया में नई यूनियन के गठन को लेकर चली आ रही श्रमिक हड़ताल का पटाक्षेप बृहस्पतिवार की देर रात हो गया। श्रमिक शनिवार से कामकाज शुरू करेंगे।

हरियाणा के श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) शिवचरण लाल शर्मा की मध्यस्थता में श्रमिकों व प्रबंधन के बीच बृहस्पतिवार की देर रात हुई बैठक में एक ऐसा समझौता हुआ है जिससे यह पता चलता है की तेरह दिनके अपने शानदार संघर्ष के बावजूद हरियाणा सरकार और मारुति प्रबन्धन के मिलीभगत और दबाव के चलते मजदूरों को कुछ झुक कर समझौता करना पड़ा है। समझौते के तहत मारुति सुजकी इंडिया द्वारा बर्खास्त किए गए सभी 11 कर्मियों को वापस काम पर ले लियागया है। नई यूनियन की माँग के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है ऐसा लगता है की उसके प्रस्ताव को टाल दिया गया। बीबीसी ने यह खबर दी है कि " कर्मचारी संगठनों ने अलग यूनियन बनाने की मांग छोड़ दी है"। जबकि एन ड़ी टी वी खबर का कहना है कि "कर्मचारी भी प्रबंधन की इस मांग के सामने झुक गए हैं कि कम्पनी में दूसरी यूनियन नहीं बनेगी।" नवभारत टाइम्स के अनुसार "यूनियन बनाने पर कोई चर्चा नहीं हुईं।"

श्रम मंत्री शिवचरण लाल शर्मा के हवाले से सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि शनिवार से सभी कर्मचारी काम पर लौटेंगे। शुक्रवार को कंपनी में अवकाश घोषित कर दिया गया है। इसके बदले कर्मचारी रविवार को काम करेंगे। हड़ताल पर रहे कर्मियों का 13 + 13 (तेरह दिन की हड़ताल और इतने ही दिन का वेतन) का वेतन काटा जाएगा। बर्खास्त किए गए वे 11 कर्मचारी जिन्हें काम पर वापस ले लिया गया है, की प्रबंधन द्वारा अनुशासनात्मक जांच की जाएगी। श्रमिकों ने मारुति प्रबंधन, श्रम मंत्री और श्रम अधिकारियों को आश्वासन दिया कि 13 दिनों की हड़ताल के दौरान जो उत्पादन प्रभावित हुआ है, उसे अतिरिक्त काम कर पूरा करेंगे।

सिविल लाइन स्थित पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस में दोपहर 2 बजे से प्रदेश सरकार, जिला प्रशासन, मैनेजमेंट और कर्मचारी प्रतिनिधियों के बीच शुरू हुई बातचीत देर रात तक चलती रही। बैठक में मारुति सुजकी इंडिया प्रबंधन की ओर से एलके जैन, आरएस गांधी, अनिल गौड़, सीएस राजू, श्रम विभाग के वित्तायुक्त सरबन सिंह, श्रमायुक्त सतवंसी अहलावत, अतिरिक्त श्रमायुक्त नितिन यादव, उपायुक्त पीसी मीणा, उप श्रमायुक्त जेपी मान तथा श्रमिकों की ओर से रविंदर कुमार, ऋषिपाल, सोनू कुमार,नवीन कुमार, शिव कुमार, सुमित ने समझौता पर हस्ताक्षर किए।

इस पूरे प्रकरण में हरियाणा सरकार और उसके श्रम विभाग का आचरण शुरू से बहुत घृणास्पद और संदेहजनक रहा है। समझौते से ठीक पहले प्रदेश के श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पंडित शिवचरण लाल शर्मा के बयान से भी यह बात साबित हो जाती है। एक संवाददाता से बातचीत में ने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि मारुति कंपनी में चल रहा श्रमिक विवाद जल्द ही सुलझ जाएगा। इसके लिए वे हर स्तर पर प्रयासरत है। अपनी मध्ययुगीन पितृसत्तात्मक सोच जाहिर करते हुए उनका कहना था कि ऐसा विवाद फिर कहीं पैदा न हो, इसके लिए मालिक व श्रमिक के बीच बाप-बेटे जैसा संबंध स्थापित करने पर बल देना होगा। कितने नायब विचार है। ऐसा व्यक्ति जिसे भारत के श्रम कानूनों की भी कोई जानकारी नहीं है और यह भी नहीं जानता है कि मालिक- मजदूरों के बीच का सम्बन्ध अधिकारों के संतुलन के आधार पर चलता है न कि उनकी पितृसत्तात्मक सोच के अनुरूप एक राज्य का श्रम मंत्री कैसे हो सकता है।

फ़िलहाल आन्दोलन समाप्त हो गया है लेकिन इसका सार संकलन किया जाना और उससे सबक निकला जाना अभी बाकी है।

Wednesday, June 15, 2011

अपील : मारुति सुजुकी के संघर्षरत मजदूरों को सहयोग और समर्थन तेज करें !


मानेसर स्थित मारुति सुजुकी इंडिया के संयंत्र में हड़ताल आज बारहवें दिन भी जारी रही। आज, बुधवार को हड़ताली मजदूरों और प्रबंधन या प्रशासन के बीच कोई वार्ता नहीं हुई । इस तरह कल मुख्य मंत्री भूपिंदर सिंह हूडा के जिस अपील पर अन्य कारखानों में सांकेतिक हड़ताल स्थगित कर दी गयी थी, वह खोखली साबित हुई। हड़ताली मजदूरों की जायज माँगों पर कोई तवज्जो देने की जगह आज शाम मुख्य मंत्री भूपिंदर सिंह हूडा ने मारुति सुजुकी इंडिया के प्रबन्ध निदेशक और सी ई ओ शिंजो नाकानिशी और अन्य उच्चाधिकारियों से मुलाकात की और ऐसा समझा जाता है कि उन्हें नयी यूनियन न बनाने देने में सरकार के सहयोग का आश्वासन दिया।


दूसरी ओर, अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) के महासचिव अनिल कुमार ने बताया कि "हम मारुति सुजुकी श्रमिकों के साथ एकजुटता में 17 जून को एक दिन का भूख हड़ताल करेंगे और 20 जून को दो घंटे के लिए काम बन्द रखा जाएगा। अगर तब तक एक अलग यूनियन और 11 बर्खास्त कर्मचारियों की बहाली की मांग को स्वीकार नहीं कर लिया जाता है।" कुमार के अनुसार, मजदूर 17 जून को काम पर तो आएंगे लेकिन वे भूखे रहेंगे और 20 जून को गुड़गांव, रेवाड़ी, धारूहेड़ा और मानेसर के हरियाणा के औद्योगिक क्षेत्रों में स्थित कारखानों में से अधिकांश में दो घंटे तक उत्पादन ठप रखा जायेगा।


गुड़गांव, रेवाड़ी, धरुहेरा और मानेसर और अन्य सभी जगह से 65 कारखानों के 20,000 से अधिक मजदूरों द्वारा 17 जून को भूख हड़ताल और 20 जून को सुबह 11 बजे से दोपहर एक बजे तक टूल डाउन में शामिल होने की सहमति देने का समाचार मिला है।


इस हड़ताल के बारे में मारुति प्रबंधन द्वारा बार बार अपना रुख बदलने और पिछले बारह दिनों से भूखे प्यासे फैक्टरी शेड में धरना दे रहे मजदूरों को बिजली-पानी तक की सुविधा से वंचित रखने एवं उन्हें अब भी तरह तरह से उत्पीड़ित करने से यह साफ हो गया है की वह समस्या का न्यायसंगत समाधान के बारे में गम्भीर नहीं है। वह सिर्फ यह चाहता है कि संघर्षरत मजदूरों को थका कर समर्पण करने के लिए बाध्य कर दिया जाय। हरियाणा सरकार और उसके श्रम विभाग का रवैया तो और भी घृणास्पद है। उसके श्रम विभाग के अधिकारियों द्वारा नए यूनियन के गठन की गोपनीय सूचना को मारुति प्रबंधन को लीक करने से चलते ही यह संकट पैदा हुआ और जब से वार्ताओं को दौर शुरू हुआ, उन्होंने लगातार मारुति प्रबंधन को अपना रुख बदलने की इजाजत दी। ऐसे में लगता यही है कि लड़ाई लम्बी खिंच गई है।


लेकिन फिर भी यह लड़ाई महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे न केवल मारुति कर्मचारियों के भविष्य का फैसला होने वाला है बल्कि, इस बात का भी फैसला होने वाला है कि न सिर्फ इस औद्योगिक क्षेत्र में बल्कि पूरे उत्तर भारत में भविष्य में मजदूरों को अपनी जायज मांगों के लिए संघर्ष करने और उसके लिए जरूरत के अनुसार संगठनों का निर्माण करने की इजाजत होगी कि नहीं। यह सिर्फ जनतांत्रिक अधिकारों को हासिल करने का सवाल नहीं है बल्कि, अतीत के संघर्षों से हासिल जनतांत्रिक अधिकारों को बनाए रखने का भी सवाल है। इस रूप में मारुति के नौजवान मजदूर सिर्फ अपने हकों की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं बल्कि, पूरे मजदूर वर्ग और आम जनता की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनकी लड़ाई आज ऐसे मुकाम पर है कि उसे बहुत समझदारी और साहस के साथ आगे ले जाने के जरूरत है। इस काम में उन्हें हर बुद्धिजीवी, हर मजदूर, नौजवान के सहयोग और समर्थन की जरूरत है। हमें एक बार फिर सभी सामाजिक-राजनीतिक संगठनों, उनके कार्यकर्ताओं, प्रगतिशील और जनपक्षधर बुद्धिजीवियों और आम जनता से इन संघर्षरत मजदूरों को हर संभव सहयोग और समर्थन करने की अपील करते हैं।
साथ ही हम यह समझते हैं कि मारुति सुजुकी के मजदूरों का १२ दिन पुराना संघर्ष अब एक बहुत ही नाजुक दौर में प्रवेश कर रहा है। यह एक ऐसा दौर है जब प्रबंधन और प्रशासन यह कोशिश करते हैं कि मजदूर थक हार कर हथियार डाल दें। और अगर ऐसा नहीं होता है तो उनकी ओर से भड़काऊ कार्रवाईयां की जाती हैं जिससे कि उनका आड़ लेकर आन्दोलन का निर्ममता पूर्वक दमन किया जा सके, जैसा कि पिछले दिनों होण्डा के आन्दोलन में हुआ था। हम चाहते हैं कि जो भी संगठन या व्यक्ति इन हड़ताली मजदूरों का समर्थन करना चाहते हैं, वे अपनी ओर से पूरे संयम का परिचय दें और ऐसी कोई कार्रवाई न करें जिससे कि प्रशासन और प्रबंधन को हिंसा की कार्रवाई का बहाना मिल जाए।

हम प्रस्तावित करते हैं कि

१- सभी लोग हरियाणा के मुख्यमंत्री, श्रममंत्री, गृहमंत्री के पास मजदूरों के इस आंदोलन के समर्थन में अधिक से अधिक संख्या में ईमेल, पत्र और तार-फैक्स भेजें और भिजवाएं।
२- मारुति सुजुकी गेट के सामने पहुंच कर धरने पर बैठे मजदूरों के प्रति अपने सहयोग और समर्थन का इजहार करें।
३-इस आंदोलन, उसकी पृष्ठभूमि, आव्यशकता और प्रासंगिकता के बारे में अधिक से अधिक लोगों को सूचित करें और यदि संभव तो प्रचार अभियान चलाएं।
४- मजदूरों के लिए सहयोग और समर्थन जुटाने के लिए अपने-अपने इलाकों में बैठकें और आम सभाएं आयोजित करें।

Tuesday, June 14, 2011

चूहे बिल्ली का खेल खेल रहा है मारुति सुजीकी का मैनेजमेंट


मानेसर से लौटकर विस्तृत रिपोर्ट
10 दिन से मानेसर के मारुति सुजुकी प्लाण्ट में 2000 मजदूर हड़ताल हैं, जिनमें तकरीबन एक हजार मजदूर फैक्ट्री के अंदर बने शेड में 10 दिन से धरने पर बैठे हुए हैं। कल सोमवार को जारी बातचीत टूटने के बाद अब यह आग पूरे गुड़गांव मानेसर में फैलती नजर आ रही है। मानेसर गुड़गांव की लगभग 60- 65 फैक्ट्रियों की यूनियनों के करीब 50 हजार वर्करों ने धरने पर बैठे मजदूरों के समर्थन में आज दो घंटे का टूल डाउन करने की घोषणा की है। इन यूनियनों में हीरो होण्डा, होण्डा मोटर साइकिल इंडिया और रिको आटो जैसी बड़ी फैक्ट्रियों की यूनियनें भी बढ़चढ़ कर भाग ले रही हैं। एटक के अलावा सीटू, इंटक, एचएमएस से जुड़ी हुई यूनियनों के अलावा रिको जैसी फैक्ट्रियों की स्वतंत्र यूनियनें भी इस टूल डाउन को सफल बनाने की कोशिश कर रही हैं।

मानेसर मारुति वर्करों की कल 13 जून को हड़ताल के दसवें दिन मैनेजमेंट और कर्मचारियों के बीच दिन भर वार्ताओं का दौर चलता रहा। देर शाम तक मैनेजमेंट के अड़ियल रवैये और बार-बार अपना रुख बदने के चलते बातचीत टूट गई। पहले तो ऐसा लग रहा था कि मैनेजमेंट नई यूनियन को मान्यता देने पर सहमत हो गया है लेकिन वह मजदूरों द्वारा अपने बर्खास्त साथियों को वापस लिए जाने की मांग पर मैनेजमेंट ने ऐसा दिखाया कि मानो वह उससे सहमत हो गया है। लेकिन उसने अपनी ओर से यह नई शर्त रख दी कि सभी 11 बर्खास्त वर्करों को वापस लिए जाने की स्थित में मजदूरों को मैनेजमेंट की पिट्ठू पुरानी यूनियन को मान लेना पड़ेगा। ऐसी स्थित में बातचीत का टूटना लाजिमी था।

दूसरी ओर, कल दूसरे दिन मानेसर स्थित होण्डा और मानेसर गुड़गांव बेल्ट के अन्य फैक्ट्रियों के वर्करों ने आम सभाओं के माध्यम से हड़ताली मजदूरों का समर्थन किया और घोषणा की कि यदि वार्ताएं बेनतीजा रहती हैं तो वे अगले दिन यानी आज, दिन मंगलवार 14 जून को दो घंटे का टूल डाउन करेंगे। ऐसे उम्मीद है कि आज पूरे गुड़गांव मानेसर बेल्ट में विभिन्न फैक्ट्रियों के 50,000 से अधिक मजदूर इस सांकेतिक हड़ताल में हिस्सेदारी करेंगे। इस हड़ताल को नेतृत्व दे रहे एटक के अलावा इन्टक, एचएमएस भी इसमें शिरकत करेंगी।

कल दोपहर तीन बजे, होण्डा, मानेसर के गेट पर हुई मजदूरों की सभा को सम्बोधित करते हुए एटक के सुरेश गौड़ ने अधिक से अधिक संख्या में मजदूरों को मंगलवार को होने वाले टूल डाउन में शामिल होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि मारुति सुजुकी मानेसर के वर्कर साथियों के साथ जो कुछ हो रहा है वह सिर्फ उन्हीं का मुद्दा नहीं है, यह सभी मजदूरों का मुद्दा है और मजदूर वर्ग की आपसी एकजुटता की मिशाल कायम करनी चाहिए।

नलों और बाथरूम तक पर ताला जड़ा

एक तरफ मैनेजमेंट की तरफ से यह बयान आया है कि वह अपने कर्मचारियों की बहुत चिंता करता है और उसके सीएमडी भार्गव कैंटीन में मजदूरों के साथ लाइन में ही खड़ा होकर खाने की प्लेट का इंतजार करते हैं। दूसरी ओर असली स्थित यह है कि इस भीषण गर्मी में टीन शेड के नीचे 10 दिन से धरने पर बैठे एक हजार मजदूरों के लिए पानी के नलों तक को बंद कर दिया गया है। यहां तक कि एक को छोड़कर बाकी सभी बाथरूमों पर ताला जड़ दिया गया है और कैंटीन तो बंद है ही। मजदूर बाहर से खाना मंगा रहे हैं। परिजनों, शुभचिंतकों और यहां तक कि पत्रकारों को भी मजदूरों से मिलने और बातचीत करने नहीं दिया जा रहा है। जो भी वहां जाता है उसे गेट पर तैनात सिक्यूरिटी गार्ड और मैनेजमेंट के लोग सीधे कम्पनी के पीआरओ से मिलने की सलाह देते हैं। हड़ताली मजदूरों के परिजनों से हमें पता चला है कि जिस दिन धरना शुरू हुआ उस दिन मैनेजमेंट की ओर से वर्करों के घरों पर ढोरों फोन किए गए जिनमें उनको धमकी दी गई और परेशान किया गया। जिसके चलते कई मजदूरों के रिश्तेदार धरना स्थल पर पहुंच गए और रोने गाने की स्थिति पैदा हो गई। यह सब कुछ जानबूझ कर वर्करों के मनोबल को तोड़ने के लिए गया था। आखिर अपने प्रिय मजदूरों को मैनेजमेंट इतनी सुविधाएं देकर अपनी मांग मनवाने का यह एक नायाब तरीका अख्तियार किया है।

रोज ही बेहोश हो रहे हैं मजदूर


पता चला है कि भीषण गर्मी और पानी न मिलने की वजह से प्रतिदिन दो चार वर्कर बेहोश हो जाते हैं, जिनकी चिकित्सा की कोई व्यवस्था वहां उपलब्ध नहीं है। हालांकि धरना अभी तक पूरी तरह से शांतिपूर्ण रहा है लेकिन फैक्ट्री प्रबंधन को वहां सैकड़ों की संख्या में निजी सिक्यूरिटी गार्ड तैनात करने की तो सुध है लेकिन अपने ही कर्मचारियों को कुछ बुनियादी सुविधाएं ही उपलब्ध कराने के ख्याल नहीं है। धरना शुरू होने के दूसरे दिन मजदूरों के कुछ शुभचिंतकों ने फैक्ट्री के बाहर टेंट लगाकर उनके लिए कुछ सुविधाएं मुहैया करते रहने की कोशिश की लेकिन मानेसर पुलिस ने उनके टेंट उखाड़कर उन्हें वहां से भगा दिया।

धरने पर बैठे एक मजदूर ने हमें टेलीफोन से सूचित किया कि इन सारी परिस्थितियों के बावजूद वर्करों का मनोबल ऊंचा है और वह अपनी दोनों मांगों- अपनी यूनियन को मान्यता दिए जाने और बर्खास्त साथियों को वापस लिए जाने पर किसी तरह का समझौता करने पर तैयार नहीं हैं। जबकि मैनेजमेंट यह चाहता है कि मजदूरों में फूट डालकर हड़ताल को खत्म करवा दे। अतः कभी वे पांच बर्खास्त मजदूरों को वपास लेने तो कभी छह को वापस लेने की बात कर रहा है।

मजदूरों द्वारा गठित ताजा मारुति सुजुकी एम्प्लाइज यूनियन (एमएसईयू) के महासचिव शिव कुमार ने कहा है कि प्रबंधन द्वारा छह जून को बर्खास्त किए गए सभी 11 वर्करों को वापस लेना ही होगा।


मैनेजमेंट मीडिया के माध्यम से फैक्ट्री को हो रहे घाटे का बढ़ाचढ़ा कर प्रचार कर रहा है लेकिन इस घाटे के लिए असल में वही जिम्मेदार है और वह जानी समझी रणनीति के तहत यह घाटा बर्दास्त कर रहा है। इसके पीछे उस इलाके के सभी फैक्ट्रियों के प्रबंधन का सहयोग हासिल है। जो यह समझते हैं कि यदि मजदूरों द्वारा अपनी मनपसंद यूनियन के गठन की मांग को एक बार मान लिया गया तो भविष्य में सभी फैक्ट्रियों में उनकी मनमानियां नहीं चल पाएंगी और मजदूरों को वे सुविधाएं देनी पड़ेंगी जिनके वे हकदार हैं। जिस तरह से कोई फैक्ट्री बोर्ड का यह विशेषाधिकार है कि वह अपने फैक्ट्री के लिए जैसा भी उचित समझे, प्रबंधन का चुनाव करे, उसी तरह से यह मजदूरों का विशेषाधिकार है कि वह जैसा भी उचित समझे अपने लिए वैसी ही यूनियन का निर्माण करे और जिसे भी उचित समझे उसका पदाधिकारी बनाए। यह एक बुनियादी किस्म का और संविधान प्रदत्त अधिकार है। दरअसल, इस अधिकार को सदा के लिए छीन लेने के उद्देश्य से ही फैक्ट्री प्रबंधन ने इतना अड़ियल रवैया अख्तियार किया हुआ है। और इसी के चलते उसे अपने इस मकसद में इलाके में तमाम फैक्ट्रियों के प्रबंधकों और सम्पूर्ण मालिक वर्ग का सहयोग और समर्थन हासिल हो रहा है। हरियाणा सरकार और श्रम मंत्रालय के अधिकारी भी अपनी मालिक परस्त नीतियों के चलते इनका समर्थन कर रहे हैं और वार्ताओं में उनकी दखलंदाजी भी निष्पक्ष नहीं है।


मारूति के मजदूर कभी बीमार नहीं पड़ते


प्रबंधन ऐसा मान कर चलता है कि उसके कम्पनी के वर्कर कभी बीमार नहीं होते। शायद इसीलिए यहां मजदूरों को सिक लीव का प्रावधान नहीं है। मारुति सुजुकी, मानेसर में 900 परमानेंट कर्मचारी हैं जिन्हें 16,000 रुपये की तनख्वाह मिलती है। हर परमानेंट कर्मचारी को साल भर में सिर्फ 20 छुट्टी मिलती है। हर उस दिन की छुट्टी के लिए, जो कि स्वीकृत नहीं है, हर मजदूर की तनख्वाह से 1200 से लेकर 1600 रुपये की कटौती होती है। इस तरह से केवल स्थाई कर्मचारियों को 11 दिन के हड़ताल से नुकसान एक करोड़ 8 लाख रुपये से लेकर एक करोड़ 58 लाख रुपये के बीच होगा। ऐसा केवल स्थित में होगा जब एक दिन के हड़ताल पर केवल एक दिन की तनख्वाह काटी जाए और कोई पेनाल्टी न लगाई जाए।

संयंत्र में 1500 ट्रेनी कर्मचारी हैं जिन्हें 12,000 वेतन मिलता है और स्थायी बनाए जाने के लिए उन्हें तीन वर्ष तक इसी स्थिति में रहना होता है। 600 कैजुअल वर्कर हैं। हरेक कैजुअल वर्कर को 6,500 रुपये वेतन मिलता है। दोनों ही ट्रेनी और कैजुअल वर्कर को बिना स्वीकृत छुट्टी के लिए उनकी तनख्वाह से प्रति दिन 1200 रुपये की कटौती होती है।

एक न्यूज चैनल के पत्रकार द्वारा किए गए तुलनात्मक अध्ययन से यह स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि देश के सबसे बड़े कार निर्माता मारुति सुजुकी के कर्मचारियों को मिलने वाली तनख्वाहें और सुविधाएं इस उद्योग के अन्य क्षेत्रों मसलन होण्डा मोटर्स में मजदूरों को प्राप्त होने वाली तनख्वाहों और सुविधाओं से बहुत नीचे हैं।

मजदूरों की यह भी मांग है कि स्वास्थ्य सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की जाए और सिक लीव को फिर से बहाल किया जाए। गुड़गांव में मकान के किरायों में जितनी तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है उसे देखते हुए वे किराया भत्ता को बढ़ाकार 1400 से 4,000 रुपये करने और 600 रुपये महीने आवागमन भत्ता देने की मांग कर रहे हैं जैसा कि हीरो होण्डा के वर्करों को दिया जाता है।

Saturday, June 11, 2011

मारुती के मानेसर प्लाण्ट में हड़ताल आठवें दिन भी जारी


मारुती सुजुकी के मानेसर प्लाण्ट में वर्करों की हड़ताल कल आठवें दिन, शनिवार, 11 जून को भी जारी रही और हरियाणा सरकार द्वारा परसों, बृहस्पतिवार को हड़ताल को प्रतिबंधित किये जाने के बावजूद हड़ताली मजदूर कारखाने के अन्दर डटे रहे. इसी के साथ साथ शनिवार को गुडगाँव और आस पास के सभी ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधियों कि एक बैठक हुई जिसमे आन्दोलन को आगे ले जाने और इस हेतु व्यापक मजदूर आबादी का समर्थन जुटाने का फैसला किया गया. इस उद्देश्य से सोमवार से सभाओं का सिलसिला शुरू किया जायेगा.

दूसरी ओर सरकार के समर्थन और उसके द्वारा कल हड़ताल को प्रतिबंधित किये जाने किये जाने के चलते फैक्ट्री प्रशासन का हौसला बुलन्द है और उसने संघर्षरत मजदूरों की माँगों को मानने से इंकार कर दिया है.

आन्दोलन की पृष्टभूमि

देश की सबसे बड़ी कार कम्पनी मारुति सुजुकी के मानेसर प्लांट में विगत आठ दिन से दो हजार कर्मचारी हड़ताल पर हैं। कर्मचारियों की मांग है कि उनकी यूनियन बनाने की इजाजत दी जाए। यह मांग तो बहुत पहले से ही की जा रही थी लेकिन मैनेजमेंट ने इसे मानने से इंकार करता रहा है। उसका कहना था कि कम्पनी के मसलों को आपसी बातचीत के माध्यम से हल कर लेना एक मध्यम मार्ग है। लेकिन मजदूरों की बढ़ती मांग को देखते हुए मैनेंजमेंट अपना चेहरा साफ सुथरा रखने के लिए गत मई के आखिरी सप्ताह से ही प्रबंधकों की पिट्ठू यूनियन बनाने का गुपचुप काम शुरू कर दिया गया। अकेले अकेले एक एक मजदूर को बुलाकर कंपनी का एचआर ऐसे कागजात पर हस्ताक्षर करवाने लगा जिसके अनुसार प्रबंधन की यूनियन का मजदूर सदस्य माना जाता। यह बात जैसे ही अन्य मजदूरों को पता चली उनमें सुगबुगाहट शुरू हो गई। आखिर चार जून को मारूति वर्करों ने टूल डाउन कर दिया और फैक्ट्री में ही अनियतकालीन धरने पर बैठ गए। मैनेजमेंट पहले अकड़ दिखाता रहा और उसने ताबतड़तोड़ 11 कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया। कहने की जरूरत नहीं कि ये वे ही कर्मचारी हैं जो नए यूनियन बनाने की मांग की अगुआई कर रहे थे। प्रबंधन को मजदूरों की एकता का अनुमान नहीं था। वे सोचते थे नेताओं को बर्खास्त कर आंदोलन की कमर तोड़ देंगे। लेकिन हुआ उल्टा। दो दिन बीतते ही उसे अपने गैरकानूनी कदम को पीछे हटाना पड़ा और वह जितने मजदूरों के हस्ताक्षर करवाए थे वे कागजात मजदूरों को वापस देने पर राजी हो गया। लेकिन वर्करों की मांग थी यूनियन बनाने की। सो वे कम्पनी के अंदर डटे रहे। प्रबंधन को लग रहा था कि मजदूरों का धैर्य टूट जाएगा। लेकिन मजदूर डटे रहे। शायद उन्हें ऐसे मौके के लिए काफी इंतजार करना पड़ता जैसा कि उन्होंने काफी लम्बे समय तक इंतजार किया था।

समर्थन में पूरे गुडगाँव के मजदूर आगे आये

यही कारण रहा कि पाँच दिनों से संघर्षरत कामगारों के समर्थन में 9 जून को गुडगाँव-मानेसर बेल्ट के विभिन्न उद्योगों में कार्यरत मज़दूर भी आ गए. वहाँ के विभिन्न कारखानों में कार्यरत यूनियनों के पदाधिकारियों और कामगारों ने उस दिन मारुती सुजुकी इंडिया के संयंत्र के मुख्यद्वार पर एकत्र होकर सत्याग्रह किया और संघर्षरत मजदूरों की निहायत ही जायज माँग को अविलम्ब माने जाने की माँग की. गुडगाँव के विभिन्न उद्योगों के मजदूरों द्वारा किया गया एकजुटता का यह इजहार एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना थी जिसका दूरगामी प्रभाव पड़ने वाला है।
मजदूरों के तेवर देख प्रबंधन सक्रिय हो गया और उसने हरियाणा सरकार से गुहार लगाई। जैसा कि आज दिखता है कि सरकारें पूंजीपतियों की प्रबंधन कमेटी के तौर पर कार्य कर रही हैं, हरियाणा सरकार ने 10 जून को संविधान द्वार दिए गए कर्मचारियों के मूलअधिकार -हड़ताल- को ही अवैध घोषित कर दिया। यह बहुत सोची समझी रणनीति थी। इसमें हरियाणा के श्रममंत्री ने मजदूरों के पक्ष को बिना जाने समझे ही एकतरफा कदम उठाया। इस कदम से यह बात तो पूरी तरह स्पष्ट हो ही जाती है कि हरियाणा का श्रम मंत्रालय असल में मैनेजमेंट मंत्रालय है। यह ऐसा मंत्रालय है जो मजदूरों का शोषण कैसे किया जाए इस बारे में कम्पनियों के मैनेजमेंट से कंधा से कंधा मिलाकर काम करता है।

...और कुछ सोचने की बातें

इस पूरी कहानी में सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि देश का मध्यवर्ग जिन मारूति कारों का बड़े ठाठ से उपयोग करता है उसने कहीं से भी हरियाणा सरकार के इस गैरकानूनी कदम का विरोध करना उचित नहीं समझा। उसे इस बात का अहसास नहीं हो रहा है कि जो भी चीज वह उपयोग में लाता है वह मजदूरों के खून पसीने से बनाए गई हैं। वह जिन वस्त्रों का उपयोग करता है उनमें से ज्यादातर नोएडा गुड़गांव के एक्पोर्ट गारमेंट कारखानों में मजदूर 36-36 घंटे काम करके और कभी कभी जान गंवा कर तैयार करते हैं। मध्यवर्ग के बच्चे जिन कलम-कापी-किताबों को पढ़कर मैनेजर बनने का सपना देखते हैं वे बहुत ही अमानवीय परिस्थित में मजदूर और उनके बच्चों द्वारा तैयार किए जाते हैं। ऐसा कोई बिरला ही सामान होगा जो मध्यवर्ग इस्तेमाल करता है और जिसे बनाने में मजदूरों का खून पसीना न बहा हो।

मैनेजमेंट की नई चाल

ताजा जानकारी के अनुसार मैनेजमेंट ने वर्करों के सामने प्रस्ताव रखा है कि वह कम्पनी के वर्तमान यूनियन में कर्मचारियों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने के लिए तैयार है बशर्ते बर्खास्त किए गए 11 कर्मचारियों को बहाल करने की मांग को वर्कर छोड़ दें। असल में यह प्रबंधन द्वारा मजदूरों की मांग को खारिज करने का बहाना भर है। धरने पर बैठे वर्करों ने इसे मानने से इंकार कर अपने इरादे जता दिए हैं। और उन्होंने ऐसा कर साथियों के साथ एकजुटता दिखाई।

समर्थन की अपील

हम आप सभी से मानेसर के संघर्षरत साथियों का हर सम्भव सहयोग और समर्थन करने की अपील करते है. हमारा प्रस्ताव है कि कि आप हरियाणा के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और श्रममंत्री को अधिक से अधिक संख्या में ईमेल और पत्र भेज कर सरकार की इस दमनकारी कारर्वाई का विरोध करें और संघर्षरत साथियों कि जायज माँगों को जल्द से जल्द मांगे जाने के लिए दबाव बनायें.यह बहूत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार मजदूरों का हित सुनिश्चित करने की जगह कम्पनी प्रशासन के हितों के अनुरूप कार्य कर रही है.


मुख्यमंत्री

cm@hry.nic.in

लेबर कमिश्नर

labourcommissioner@hry.nic.in

श्रम मंत्रालय
labour@hry.nic.in

Friday, June 10, 2011

क्या यूनियन की मांग करना गुनाह है?

मानेसर के मारुती सुजुकी इंडिया के प्लाण्ट के विगत छह दिनों से संघर्षरत कामगारों के समर्थन में कल बृहस्पतिवार दिनांक 9 जून 2011 को गुडगाँव-मानेसर बेल्ट के विभिन्न उद्योगों में कार्यरत मज़दूर भी आ गए. उन्होंने मारुति प्रबंधन के खिलाफ एक विशाल रैली निकाली। दुर्भाग्य से मीडिया में ब्लैकआउट के चलते इन खबरों का गला घोंट दिया गया। मजदूरनामा को मिले समाचार के अनुसार, वहाँ के विभिन्न कारखानों में कार्यरत यूनियनों के पदाधिकारियों और कामगारों ने मारुती सुजुकी इंडिया के संयंत्र के मुख्यद्वार पर एकत्र होकर सत्याग्रह किया और संघर्षरत मजदूरों की निहायत ही जायज माँग को अविलम्ब माने जाने की माँग की. गुडगाँव के विभिन्न उद्योगों के मजदूरों द्वारा किया गया एकजुटता का यह इजहार एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना हैऔर इससे लड़ाकू साथियों का हौसला बुलन्द हुआ है.


दुनिया भर में चल रहे तमाम उथल पुथल के बावजूद भारतीय शासक वर्ग यह समझने को राजी नहीं है कि मेहनतकश जनता के दमन का रास्ता आखिर भीषण विस्फोट की ओर ले जाता है। भारत में श्रमिक वर्ग के साथ जो अन्याय अत्याचार हो रहा है वह अभूतपूर्व है। और यह रोष ज्वालामुखी बन चुका है। हालत यह हो गई है कि मजदूर यूनियन बनाने की मांग अघोषित तौर पर एक अवैध मांग हो चुकी है जबकि भारतीय संविधान में यह कर्मचारियों का मौलिक अधिकार माना गया है। आखिर यह देश संविधान के अनुसार चल रहा है या पूंजीपतियों के हितों के अनुसार चलाया जा रहा है।


हम आप सभी से मानेसर के संघर्षरत साथियों का हर सम्भव सहयोग और समर्थन करने की अपील करते है. हमारा प्रस्ताव है कि कि आप हरियाणा के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और श्रममंत्री को अधिक से अधिक संख्या में ईमेल और पत्र भेज कर संघर्षरत साथियों कि जायज माँगों को जल्द से जल्द मांगे जाने के लिए दबाव बनायें और यह सुनिश्चित करें कि कम्पनी प्रशासन उनके आन्दोलन का दमन न कर पाये.

मुख्यमंत्री
cm@hry.nic.in
लेबर कमिश्नर
labourcommissioner@hry.nic.in
श्रम मंत्रालय
labour@hry.nic.in.

Tuesday, June 7, 2011

मारूति वर्करों के साथ एक जुटता की अपील


प्रिय साथी,
मारुती सुजुकी के मानेसर स्थित सयंत्र के मजदूरों का अपनी युनियन को मान्यता प्रदान करने और ठेका मजदूरों को नियमित किये जाने की माँगों के समर्थन में परसों से जारी हड़ताल को आज कम्पनी प्रशासन के दमन का सामना करना पड़ा जब उसने 11 संघर्षरत मजदूरों को बर्खास्त कर दिया. अपने मनपसन्द युनियन के गठन की माँग एक बेहद न्यायसंगत माँग है और इसे किसी भी तरह से नाजायज नहीं कहा जा सकता है, लेकिन कम्पनी प्रशासन ने इस पर ध्यान देने की जगह आन्दोलन के दमन की ओर बढ़ रहा है.

मारुती सुजुकी के मानेसर स्थित सयंत्र के संघर्षरत मजदूरों के समर्थन में कल मंगलवार, 7 जून 2011 को गुडगाँव के सभी यूनियनों और संगठनों की एक विशाल रैली का आयोजन होने वाला है. आप सभी से इसे सफल बनाने और मानेसर के संघर्षरत साथियों का हर सम्भव सहयोग और समर्थन करने की अपील करते है.

Tuesday, May 24, 2011

अन्ना का आन्दोलन और भ्रष्टाचार

पिछले कुछ हफ्तों में हमने आँखें खोल देेने वाले कई ऐसे उदाहरण देखे कि पूरी तरह भ्रष्ट कोई सरकार कैसे आज्ञाकारी मीडिया को अपने उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करता है। यहाँ दिए जा रहे विश्लेषण के मार्फत हम देखेंगे कि कैसे अन्ना हजारे को मनमोहन सिंह-चिदम्बरम सरकार ने गत मार्च में और अप्रैल 2०11 की शुरुआत में 'बिजूखेÓ (डमी) की तरह इस्तेमाल किया। यह अनुमान करना, काफी जल्दबाजी होगी कि अन्ना हजारे घोटाला, सरकार में उच्च स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार के नित-नए खुलासे से पैदा हुए जनाक्रोश को मोडऩे के अपने मकसद को हसिल करने में कितने दिन तक सफल रहता है। 'अन्ना हजारे ड्रामाÓ के साथ सोचा गया था कि सबकुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन, अप्रैल के दूसरे हफ्ते में ही इस 'अराजनीतिक गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ताÓ ने खून से सने नरेन्द्र मोदी की तारीफ कर, उससे अपनी नजदीकियों की गंध दे दी। और पागलाई हुई मीडिया की गिरफ्त में आए हुए कुछ अच्छी नीयत के लोगों को इससे थोड़ी सी निराशा हुई होगी या कम से कम इस अभियान के बारे में कुछ और सोचने को मजबूर हुए होंगे।
1991 में नवउदारवादी सरकार के आगमन से पहले भ्रष्टाचार विरोधी प्रचार अभियान व्यावसायिक मीडिया के लिए एक नियमित परियोजना हुआ करती थी। इस तरह की रिपोर्टिंग में एक चलताऊ फार्मूला, जिसमें व्यावसायिक संघ का एक हीरो हुआ करता था, जो राज्य आबकारी विभाग के सब इन्स्पेक्टर या रेलवे सुरक्षा बल या किसी नगर निगम के कर्मचारी की रिश्वतखोरी को रंगेहाथ पकडऩे में सफलता हासिल कर लेता था। ऐसे समाचार कथाओं के कानफाड़ू शोर और असली राजनीतिक भ्रष्टाचार के बारे में जो कुछ, हर कोई जानता था, उस सबको मिलाकर मीडिया ने नवउदारतावादी परिवर्तन के लिए एक माहौल तैयार किया। इस सब में लाइसेंस राज को ही विकास में एकमात्र अवरोध के रूप में दिखाया जाता था, जो सारे भ्रष्टाचार का जनक था।
लेकिन उस सरकार द्वारा जिसमें मनमोहन सिंह वित्तमन्त्री हुआ करते थे और चिदम्बरम वाणिज्य मन्त्री हुआ करते थे, ''नियम-कानूनों को खत्म किये जाने और ''आर्थिक आजादीÓÓ के आने की प्रक्रिया की शुरुआत होते ही, हमें भ्रष्टाचार के उस असली 'दैत्यÓ का दर्शन हुआ जो पर्दे के पीछे सही मौके का इंतजार कर रहा था। नव उदारवादी परिवर्तन का शुरुआती दौर स्टॉक मार्केट में आए अभूतपूर्व उछाल का भी दौर था। और तबसे हमने बारम्बार व्यावसायिक मीडिया को इसका गुणगान करते देखा है कि शेयर की कीमतों में आई अचानक तेजी, कैसे उभरती हुई नवउदारवादी नीतियों की सफलता का प्रमाण है। 'सुपर शेयर दलालÓ हर्षद मेहता को रातों-रात 'बिग बुलÓ के तौर पर एक मीडिया स्टार बनाना इसी कहानी की एक शुरुआती कड़ी है।
लेकिन जल्द ही, जैसा कि हर उछाल के साथ होता है, बुलबुला फूट गया। 1992 की गर्मियों में यह बात जगजाहिर हो गई कि शेयर की कीमतों में आई इस तेजी को हर्षद मेहता ने अपनी तिकड़मबाजी से अंजाम दिया है। यह एक आसान तिकड़म था। प्रतिभूतियों को एक निश्चित अवधि (रिपो•ा) के बाद खरीदने या बेचने का समझौता, एक बैंक के साथ दूसरे बैंक के सौदे में एक प्रमुख विकल्प होता है। प्राय: ऐसा सौदा बिचौलिए दलालों के माध्यम से किया जाता है। इसमें प्रतिभूतियों का वास्तव में हस्तानान्तरण नहीं होता बल्कि, बैंक रसीद के माध्यम से खरीद (या ऋण) के मामलों में यह सुनिश्चित करता है कि प्रतिभूतियों का वास्तव में अस्तित्व है। हर्षद मेहता ने कुछ ऐसे बैंकों को खोज निकाला जो एक शुल्क के भुगतान पर ऐसी प्रतिभूतियों के लिए बैंक रसीद जारी करने के लिए तैयार थे जिनका अस्तित्व ही नहीं था। इसके बाद इन प्रतिभूतियों में निवेश किया गया और चूँकि, इसकी वजह से कीमतें ऊपर जा रही थीं, अत: उनकी पुनर्खरीद भी आसान थी और इस तरह हर्षद मेहता और उसके सहयोगियों के पास बेहिसाब पैसा आ गया। जब इस घोटाले का भण्डाफोड़ हुआ तो कीमतें मुँह के बल गिर गईं और इसके अनेक शिकारों में से विजया बैंक का अध्यक्ष भी था, जिसने खुदकुशी कर ली। यह अकेला घोटाला आने वाले समय का संकेतक था और निश्चित तौर पर उस एक घोटाले में इतना पैसा बर्बाद हुआ जो पूरे एक दशक या उससे अधिक समय में लाइसेंस राज के सब इन्स्पेक्टरों के द्वारा घूस में नहीं लिया जा सकता था। बाद में पता चला कि हर्षद मेहता गैंग में निवेश करने वालों में स्वयं तत्कालीन वाणिज्य मन्त्री चिदम्बरम, अपने पत्नी के नाम पर किए गए निवेश के माध्यम से शामिल थे। और बाद में यह भी सामने आया कि इन शेयरों को ''प्रमोटर कीमतÓÓ पर यानी बाजार मूल्य से बहुत ज्यादा नीचे दामों में खरीदा गया था। चिदम्बरम को बेआबरू होकर इस्तीफा देना पड़ा लेकिन इसकी कोई सीबीआई जाँच नहीं हुई। जब सीबीआई जाँच के लिए याचिका दाखिल की गई तो भाजपा के तत्कालीन राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने चिदम्बरम की कामयाबी के साथ पैरवी की। 'चिदम्बरमोंÓ और 'जेतलियोंÓ के बीच कभी इस बारे में कोई राजनीतिक मतभेद नहीं रहा है कि क्या सही और क्या गलत है।
हर्षद मेहता घोटाला आने वाले दशकों के नवउदारवादी भ्रष्टाचार के लिए एक 'आदर्शÓ साबित हुआ। एक वर्ष पूर्व शशि थरूर को भी बेइज्जत होकर विदेश राज्य मन्त्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि उसने एक ''मित्रÓÓ के नाम पर बाजार मूल्य से बहुत कम कीमतों पर शेयर हासिल किए थे और चिदम्बर के साथ घटी पूर्ववर्ती घटना की ही तरह इस घोटाले में किसी तरह की जाँच की इजाजत नहीं दी गई।
इन तमाम सालों में लगातार बढ़ रहे मुक्त बाजार चोरियों और घोटालों के बीच व्यावसायिक मीडिया और सरकार ने लोगों का ध्यान बँटाने के लिए जनसम्पर्क के तरीकों का विकास कर लिया। जैसा कि चिदम्बरम के साथ हुआ और सम्भवत: उतने ही घमण्डी अमरीका प्रशिक्षित थरूर के साथ भी हुआ कि उन्हें घोटाले के चरम बिन्दु पर ही इस्तीफा देना पड़ा, जिससे कि यह बात सुनिश्चित की जा सके कि इन कारनामों जल्दी ही भुला दिया जाएगा, वक्त गुजर जाएगा और ये महानुभाव मुक्त बाजार का गुणगान करने के लिए पुन: अवतरित होंगे। साथ ही व्यावसायिक मीडिया इस बात को सुनिश्चित करेगी कि बुरी यादों को ताजा नहीं किया जाएगा।
किन्तु इस सबसे अलग, लेकिन उपयोगी तरीका था, पुराने ढंग के भ्रष्टाचार विरोधी अभियानों का, जोकि प्राय: छोटे व्यवसायियों को परेशान करने वाले छुटभैयों के खिलाफ केन्द्रित होता था। यह एक अर्थ में एक सांसारिक संयोग है, लेकिन दूसरे अर्थों में नहीं, क्योंकि भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन की शुरुआत अन्ना हजारे द्वारा महाराष्ट्र में 1991 में की गई। एक सेवानिवृत्त सैनिक हजारे इमरजेंसी के दौरान ग्रामीण महाराष्ट्र में प्रकट हुए और शराब विरोधी जुझारू दस्तों का गठन किया, जो फसाद करने और शराबियों और शराब बेचने वालों को कोड़े लगाने का काम करता था। इस गैर राजनीतिक गांधीवादी ने अपनी गतिविधियों को एनजीओ के पैसे से 'आदर्श ग्रामÓ बनाने और इस तरह से बढ़ते हुए ग्रामीण असंतोष का अराजनीतिक समाधान प्रस्तुत करने की ओर आगे बढ़ा। आजमाए हुए नुस्खे को अमल में लाते हुए भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन ने जंगल विभाग के सब इन्सपेक्टरों जैसे छुटभैये लोगों को अपना निशाना बनाया व प्रेस का ध्यान अपनी ओर खींचने की क्षमता को और माँजता गया।
आकर्षण में बने रहने की बेचैन चाहत के वशीभूत हजारे ने आमरण अनशन की घोषणा करने का दाँवपेंच विकसित किया, जो हर बार कुछ ही दिनों बाद ही 'शानदार सफलताÓ के दावे वाले प्रेस वक्तव्य के साथ समाप्त हो जाती थी। 2००3 में एक आमरण अनशन महाराष्ट्र के स्थानीय राजनेताओं के खिलाफ जाँच की घोषणा के साथ समाप्त हुआ। 2००6 में सूचना अधिकार कानून 2००5 में प्रस्तावित संशोधन के खिलाफ एक और आमरण अनशन एक प्रेस विज्ञप्ति के साथ उस समय समाप्त हो गया, जब प्रस्तावित संशोधन में फेरबदल का आश्वासन मिला।
2०11 की शुरुआत से ही मनमोहन सरकार एक के बाद एक अभूतपूर्व घोटालों के पर्दाफाश से परेशान रही है। 2जी घोटाला के चलते केन्द्रीय संचार मन्त्री अन्दिमुत्तु राजा को इस्तीफा देना और जेल जाना पड़ा। ऐसा समझा जाता है कि इसमें उन्होंने सरकार को हजारों करोड़ रुपये का चूना लगाया था। उसके बाद हजारे ने, जो एक अरसे से जनता की निगाहों में नहीं आ पाए थे, लोकपाल विधेयक न लाए जाने की स्थिति में आमरण अनशन की घोषणा की। लेकिन और दिलचस्प समाचारों जैसे, जपान के भूकम्प, अरब विद्रोह और क्रिकेट मैच वगैरह के चलते उस पर किसी का खास ध्यान नहीं गया।
इसी बीच 17 मार्च को 'हिंदूÓ ने जब अमेरिकी दूतावास द्वारा भेजे गए गुप्त केबलों का पर्दाफाश करना शुरू किया तो यह पता चला कि लोकसभा में परमाणु संधि पर विश्वास मत हासिल करने के ठीक पहले 17 जुलाई 2००8 को कांग्रेसी नेता सतीश शर्मा के एक निकट सहयोगी ने अमेरिकी दूतावास के एक अधिकारी को रुपयों से भरे दो सूटकेस दिखाए थे। जो कि पार्टी द्वारा सांसदों को खरीदने के लिए जुटाए गए 5० से 6० करोड़ रुपये के फण्ड का एक हिस्सा भर था। यह ऐसा घोटाला था जिसमें सरकार ऊपर से नीचे तक शामिल थी।
एक सीमा का अतिक्रमण हो चुका था। हालांकि मनमोहन सिंह ने इसे सिरे से नकार दिया, लेकिन इस पर विश्वास करने की कोई वजह नहीं थी कि क्यों अमेरिकी दूतावास का एक कर्मचारी अपने ही गृह मन्त्रालय को गलत सूचना देगा।
मनमोहन सिंह और चिदम्बरम सरकार बेनकाब हो चुकी थी। हर्षद मेहता के शुरुआती दिनों से लेकर लगातार चोरियों और भ्रष्टाचार के एक सिलसिले ने, जिसकी चरम परिणति अकल्पनीय 2जी घोटाले के रूप में हुई, इसने भारतीय जनतन्त्र में जो कुछ भी 'शेषÓ था, उसे भी खोखला कर दिया, लेकिन उनका शासन अभी भी बदस्तूर जारी था। व्यावसायिक मीडिया अभी भी उनकी सेवा में मौजूद थी और अकूत धन की ताकत के बल पर उन्हें बेहतरीन जनसम्पर्क विशेषज्ञों की सुविधा उपलब्ध थी, जिन्हें मुक्त बाजार से किराए पर आसानी से खरीदा जा सकता था।
अत: अब वह घटना घटी जिसे हम ''अन्ना हजारे घोटालाÓÓ कह सकते हैं। यदि हम 14 से 22 मार्च 2०11 के बीच भारतीय स्रोतों तक सीमित गूगल न्यूज को खंगालें तो हमें सिर्फ तीन ऐसे लेख मिलते हैं जिसमें अन्ना हजारे का उल्लेख किया गया था। बुधवार 23 मार्च को अन्ना हजारे ने यह घोषणा की कि प्रधानमन्त्री कार्यालय से उसी दिन उनके पास टेलीफोन आया है। बकौल अन्ना, प्रधानमन्त्री कार्यालय का कहना था कि वे भ्रष्टाचार विरोधी विधेयक पर बातचीत को तैयार हैं। 24 मार्च से 31 मार्च के बीच भारतीय स्रोतों तक सीमित गूगल न्यूज को खंगालने पर कुल 4,281 ऐसे लेख मिले, जिनमें अन्ना के नाम का उल्लेख था और अप्रैल में अभूतपूर्व मीडिया गहमागहमी के बीच नाटक का अंतिम अंक खेला गया, जिसमें कुछ दिनों का आमरण अनशन था, सोनिया गांधी और विभिन्न बॉलीवुड की हस्तियों द्वारा अपीलों पर अपीलें थीं और फिर सम्भवत: पटकथानुसार सरकार ने ''घुटने टेकÓÓ दिये और एक समिति बनाने तथा भ्रष्टाचार विरोधी कानून बनाने पर सहमत हो गई।
तो, हमें अपनी बात बहुत स्पष्टता से कह देनी चाहिए कि व्यवस्था ने अन्ना हजारे के ''आमरण अनशनÓÓ से पैदा हुए जनदबाव के आगे घुटने नहीं टेके। इस ''गांधीवादी गैर राजनीतिकÓÓ, ''नागरिक समाजÓÓ के स्वयम्भू प्रवक्ता के आमरण अनशन पर तबतक कोई ध्यान नहीं दे रहा था, जबतक कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने उसको फोन नहीं किया। व्यवस्था ने ही प्रचार का यह तूफान खड़ा किया, जिससे कि उसके आगे घुटना टेकने का प्रहसन किया जा सके।
इस दौर में बिना प्रभावित हुए मीडिया का सामना करना, बहुत ही मुश्किल था। लेकिन बेहतर से बेहतर ढंग से संगठित घोटाले भी आखिरकार बिखर ही जाते हैं और इसके बिखराव की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। यह कल्पना करना भी बहुत ही आसान है कि जो अच्छे नीयत वाले लोग, जो इस मीडिया तूफान के चलते इसके प्रभाव में आए, मसलन, मेधा पाटकर और स्वामी अग्निवेश, अब अन्ना के नरेन्द्र मोदी जयगान के बाद बहुत सहज महसूस नहीं कर रहे हैं।
चलते-चलते कुछ बुनियादी बातों का जिक्र कर लेतें हैं। मनमोहन सिंह, चिदम्बर और उनके अमेरिकी आकाओं की इस दुनिया में सबसे बड़ा गुनाह है गरीब होना, खासकर, अगर आप अमीरों के शासन की मुखालफत करें। इस मुक्त बाजार में हर कुछ बिकाऊ है, जिसमें सांसदों के वोट हैं, मीडिया है, केन्द्रीय मन्त्री हैं, ''न्यायÓÓ, ''जनतन्त्रÓÓ, ''सिविल सोसायटीÓÓ है और सम्भवत: ''गांधीवादी गैर राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ताÓÓ भी। अन्ना हजारे का यह स्वांग इसलिए चल पाया कि अभी भी बहुत सारे ऐसे भले और इमानदार लोग हैं, जो इस बात पर यकीन करना चाहते हैं कि अभी भी इस व्यवस्था को आयोगों और विधेयकों द्वारा बदला जा सकता है। हालांकि सारे प्रमाण इसके खिलाफ हैं। हमारा सुझाव यही है कि हम उठ खड़े हों और अपनी चेतना को प्रधानमन्त्री कार्यालय के जनसम्पर्क विशारदों और मीडिया द्वारा प्रभावित होने से बचाएं।

श्रमजीवी पहल पत्रिका से साभार

फैक्टरी में ताला मारकर चला जाता था मालिक

जनार्दन

राष्ट्रीय राजधानी में, नरेन्द्र सिंघल उद्योग नगर, पीरागढ़ी स्थित एच-9 में 'पिंकी पोर्च प्रइवेट लिमिटेडÓ नामक जूता चप्पल बनाने वाली कम्पनी है। कम्पनी के बेसमेंट में आग लगती है और दस मजदूर जिन्दा जलकर मर जाते हैं।
आग लगने के बाद मजदूरों में अफरा-तफरी मच जाती है, वे इधर ऊधर भागने लगते हैं लेकिन कोई भी दरवाजा उन्हें खुला नहीं मिलता। फैक्टरी गेट पर भी ताला लगा होता है। बाहर निकलने या छत पर जाने के सारे दरवाजे बन्द होते हैं। मजदूर अपने परिजनों से फोन पर यह बताते हंै कि मौत नजदीक है और तत्काल मदद की गुहार लगाते हैं। परिजन पुलिस को सूचना देकर फैक्टरी के लिए निकल पड़ते हैं। इस दौरान फंसे मजदूरों से फोन पर उनका संवाद कायम रहता। लेकिन फैक्टरी तक पहुँचते-पहुँचते फोन से दूसरी तरफ की आवाज आनी बन्द हो जाती है और सिर्फ रिंग बजती रहती है।
ढाई घण्टे बाद जब फायर बिग्रेड का दस्ता वहाँ पहुँता है तो वे मजदूरों को बचाने के बजाय आग बुझाना ज्यादा जरूरी समझता है। और पचास गाडिय़ाँ मिलकर 24 घण्टे तक आग बुझाती रहती हैं। इस दौरान मजदूरों के परिजन खिड़की तोड़कर अंदर जाने की कोशिश करते हैं तो पुलिस अपना रंग दिखाते हुए उन लोगों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटना शुरू कर देती है। जबकि फैक्टरी मालिक नरेन्द्र सिंघल पर 'कठोर कार्रवाईÓ करते हुए सिर्फ लापरवाही का मामला दर्ज करती है।
शाम को पहुँचती हैं मुख्यमन्त्री शीलादीक्षित और एक शब्द बोलती हैं 'न्यायिक जाँचÓ। हालॉंकि मुख्यमन्त्री महोदया के साथ आए उद्योग मन्त्री रमाकान्त गोस्वामी ने एक-दो शब्द ज्यादा बोला कि वे सभी विभागों के अधिकारियों की संयुक्त बैठक बुलाकर कोई नीति जरूर बनाएंगे और यह कि मरे हुओं को मुआवजा तो 'इएसआइर्Ó देगी।
एक तरफ है फायर ब्रिगेड, पुलिस प्रशासन, पैक्टरी मालिक इनश्योरेन्स, मुख्यमन्त्री, न्यायिक जाँच आदि आदि, दूसरी तरफ है जली हुई लाशें, गायब मजदूर, रोते-बिलखते परिजन, सब कुछ आँखों में जज्ब किए वे आम जन जिन्होंने खिड़की तोड़कर मजदूरों की जान बचाने का साहस किया और बदले में लाठियाँ खायीं।
पीडि़तों के प्रत्यक्षदर्शी परिजनों का आरोप है कि फैक्टरी मालिक ताला लगाकर चला गया था। इसलिए, जब आग लगी तो मजदूर बाहर नहीं निकल सके। मजदूर अंदर से मदद की गुहार के लिए चिल्लाते रहे। अपने परिचितों को फोन कर मदद माँगते रहे, लेकिन फैक्टरी मालिक, पुलिस व अग्निशमन विभाग द्वारा बचाव कार्य में लापरवाही बरते जाने के चलते उन्हें नहीं बचाया जा सका। मियाँवाली नगर थाना पुलिस ने फैक्टरी मालिक के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज कर लिया है।
उस वक्त फैक्टरी में करीब एक दर्जन मजदूर काम कर रहे थे। आग लगते ही मजदूरों ने इसकी सूचना पुलिस व अग्निशमन विभाग को दी। लेकिन अग्निशमन और बचाव दल ने अंदर फंसे मजदूरों को बचाने को प्राथमिकता न देते हुए आग पर काबू पाने में ज्यादा 'तत्परताÓ दिखाई। अंदर आग भड़कने पर सभी मजदूर जान बचाकर दूसरी मंजिल पर पहुंचे, लेकिन छत पर जाने के रास्ते में बने दरवाजे पर ताला लगा था। ऐसे में मजदूर अपने परिजनों को फोन कर व बाहर खड़े लोगों को टार्च दिखाकर मदद की गुहार लगाने लगे।
घटना में मारे गए 24 वर्षीय मनोज के भाई राकेश ने बताया कि रात साढ़े नौ बजे तक उसकी फोन पर मनोज से बात होती रही। वह मदद की गुहार लगाता रहा। इस दौरान वहां जुटी भीड़ ने फैक्टरी के पीछे की खिड़की तोड़कर मजदूरों को बाहर निकालने का प्रयास किया, लेकिन फैक्टरी मालिक के इशारे पर पुलिस ने उन्हें रोक दिया। उल्टा भीड़ पर ही लाठियां बरसाकर तितर-बितर कर दिया।
प्रत्यक्षदर्शी संजीव गुप्ता ने बताया कि बेसमेंट से दूसरी मंजिल तक आग पहुंचने में ढाई से तीन घंटे का समय लगा था। यदि प्रशासन समझदारी से काम लेता और फैक्टरी की दीवार तोड़ देता तो कई मजदूरों को बचाया जा सकता था।
यह हाल है दुनिया में तेजी से बढ़ती अरबपतियों की संख्या और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देश की राष्ट्रीय राजधानी के नाक के भीतर का दृश्य!
श्रमजीवी पत्रिका से साभार

स्वर्ग की तलाश में नर्क जा पहुंचे भारतीय कामगार

नौकरी की तलाश में अमेरिका पहुंचे भारतीय कामगारों को वहां पहुंचने के बाद अहसास हुआ कि वाकई दुनिया का खूबसूरत नर्क क्या होता है। दुनिया भर में मानवाधिकारों और श्रम कानूनों पर एकमेव फतवा देने वाले अमेरिकी उद्योगपति किस तरह द्वितीय विश्वयुद्ध की मानसिकता में हैं, उसकी बानगी इस रिपोर्ट में मिलती है-
अमेरिका में भारतीय कामगारों के उत्पीडऩ का मामला प्रकाश में आया है। संघीय अधिकारियों ने अलबामा स्थित एक समुद्री सेवा कम्पनी के खिलाफ पांच सौ भारतीय कर्मचारियों के साथ अमानवीय व्यवहार करने के लिए मुकदमा दायर किया है। इन कर्मचारियों को घटिया आवास देने के अलावा खराब भोजन खाने के लिए मजबूर किया गया।
यूएस ईक्वल एम्प्लॉयमेंट अपॉरच्युनिटी कमीशन (ईईओसी) ने सिग्नल इंटरनेशनल नामक कम्पनी के खिलाफ मुकदमा दायर किया है। आयोग के अनुसार, इन भारतीय कामगारों को किसी दूसरी कम्पनी में काम करने के लिए बुलाया गया था, जो इस मामले का हिस्सा नहीं हैं। आयोग ने कहा कि इनसे अधिक पैसे लेने के बावजूद उन्हें खराब भोजन दिया गया। यही नहीं, उन्हें नीचा दिखाने के लिए नाम के बजाय नम्बर के हिसाब से बुलाया जाता था। जब दो कामगारों ने शिकायत करने की कोशिश की तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई।
आयोग ने कहा कि वर्ष २००४-०६ के बीच सैकड़ों भारतीयों ने सिग्नल के भर्तीकर्ताओं को २ हजार डॉलर (करीब नौ लाख रुपये) देकर, यात्रा वीजा हासिल की थी। कम्पनी ने उन्हें नौकरी और ग्रीन कार्ड दिलाने का वादा किया था। कई भारतीयों ने तो अपना घर बेचकर यह धन जुटाया था। साल २००६ के अन्त में इन्हें पता लगा कि उन्हें ग्रीन कार्ड की बजाय १० महीने का मेहमान कामगार वीजा दिया गया है।
श्रमजीवी पहल पत्रिका से साभार

यूनियन अधिकारों को छीने जाने के खिलाफ अमेरिकी कामगारों का संघर्ष



मध्य फ रवरी से लेकर मार्च के पूरे महीने संयुक्त राज्य अमेरिका के विनकानसिन राज्य में दसियों हजार मजदूरों-कर्मचारियों ने सार्वजनिक क्षेत्र के यूनियनों के मोल-भाव करने के अधिकारों को खत्म किये जाने के खिलाफ आन्दोलन का रास्ता अख्तियार किया। दुनिया के हर देशों और राज्यों की सरकारों की तरह वहाँ की सरकार भी मजदूरों के हितों और अधिकारों में कटौती करने की राह पर है। विनकानसिन के गवर्नर स्काट वाकर ने यूनियनों की कमर तोड़ देने के लिए उनके मोल-भाव करने के अधिकार को खत्म करने का कदम उठाया था। इस हेतु, राज्य की रिपब्लिकन सरकार ने विगत १६ फरवरी को अनुमानित ३००,००० कामगारों के सामूहिक तौर पर मोल-भाव करने के अधिकार खत्म करने के लिए कानून बनाना चाहती थी, जिनमें अध्यापकों से लेकर कारागार रक्षकों तक विभिन्न किस्म के कर्मचारी शामिल हैं।
सरकार के इस कदम के खिलाफ दसियों हजार मजदूरों ने विनकानसिन की राजधानी मैडिसन शहर में गत मध्य फ रवरी से लेकर मार्च के लगभग पूरे महीने अपना जोरदार संघर्ष जारी रखा। आस-पास के राज्यों की सरकारों द्वारा ऐसे ही मजदूर विरोधी कदम उठाए जाने की आशांका में यह आन्दोलन, अन्य कई राज्यों जैसे ओहियो, न्यू जर्सी, पेनसिलवानिया, फ्लोरिडा, इण्डियाना, मिशीगन, आदि में भी फ ैल गया। चँूकि ओहियो राज्य की विधान सभा में भी मजदूरों के सामूहिक मोल-भाव के अधिकारों में कटौती करने का विधयेक प्रस्तुत किया जाने वाला था, अत: वहाँ के कामगार भी हजारों की संख्या में इस संघर्ष में शामिल हो गये।
इस आन्दोलन में अमेरिका का राजधानी वाशिंगटन में रिपब्लिकनों और डेमोक्रेटों के बीच बजट घाटे में कटौती को लेकर जारी लड़ाई का भी असर था। डेमोक्रेट भी बजट घाटे में कटौती चाहते हैं, लेकिन रिपब्लिक न यह चाहते हैं कि बजट घाटे में कटौती के नाम पर सामजिक कल्याण के कामों और कामगारों को मिलने वाली सुविधाओं में पूरी तहर कटौती कर दिया जाय। विनकानसिन के विधेयक के पारित हो जाने से पेन्शन और स्वास्थ्य बीमा के बारे में मोल-भाव करने का यूनियन का अधिकार छिन जाता। हालांकि, डेढ़ महीने के संघर्ष के बावजूद राज्य की रिपब्लिकन सरकार ने विधानसभा में अपनी बहुतम के दम पर इस विवादित विधेयक को पारित करवा लिया, लेकिन तबतक विनकानसिन के कामगारों के समर्थन की लहर पूरे अमेरिका में फ ैल चुकी थी। सार्वजनिक क्षेत्र के इन कामगारों के समर्थन में निजी क्षेत्र के मजदूरों ने भी एकजुटता में आन्दोलन किया और अमेरिका के दसियों राज्यों में कर्मचारियों और मजदूरों के जुझारू संघर्ष हुए।
ऐसा लगता है कि विनकासिन राज्य में मजदूरों के अधिकारों की कटौती की इस घटना में पूरे अमेरिका में कामगारों और कर्मचारियों को झकझोरकर जगा दिया है और उनक ी आपसी एकता को मजबूत कर दिया है। यह एक ऐसा लक्षण है जो न सिर्फ अमेरिका के मेहनतकशों के लिए अच्छा है, बल्कि पूरी दुनिया के श्रमजीवियों के लिए आशा और उत्साह का विषय है, क्योंकि पूरी दुनिया के पैमाने पर अतीत के संघर्षों से मजदूर वर्ग ने जो भी अधिकार और सहूलियतें हासिल की थीं, उनके एक के बाद एक छिने जाने का सिलसिला जारी है और उन्हें रोकने का एकही रास्ता है - एकताबद्घ संघर्ष!
श्रमजीवी पहल पत्रिका से साभार

यहाँ भी झोंक दिए गए ठेका मजदूर


प्राकृतिक आपदा से इंसानी समाज को पहले खतरा था और अब भी है। लेकिन आज विभिन्न देशों की सरकारें आर्थिक विकास के नाम पर प्रकृ ति से साथ जो छेड़-छाड़ कर रही हैं उसका जीता-जागता उदाहरण जापान में कुछ दिन पहले आयी सुनामी के बाद जो कुछ हुआ वह है। अब जब उन्होंने तेल जैसे उर्जा के पराम्परागत स्रोत का भरपुर शोषण कर लिया है तो वे बड़ी तेजी से दुनिया के देशों में नाभिकीय संयन्त्र स्थापित करने के दिशा में बढ़ रहे हैं। इसी के साथ-साथ दुनिया के एक बहुत बड़ी आबादी नाभिकीय विकरण के खतरे के नीचे आती जा रही है। दिनाँक ११ अपै्रल २०११ को 'दि हिन्दुÓ में प्रकाशित हिरोको ताबुची की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है ११ मार्च २०११ को जब सुनामी ने जापान के फ ुकु शिमा दाई-ची न्यूक्लीयर पावर प्लाण्ट को अपनी चपेट में लिया तो किस तरह वहाँ ठेके पर काम करने वाले मजदूर विकिरण के प्रभाव में आये, ये ऐसे अकुशल मजदूर थे जिन्हें नाभिकिय विकिरण के बारे में कुछ भी नहीं पता था।
जापान में कियो विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर यूको फुजित, जो लम्बे समय के न्यूक्लीयर पावर प्लाण्ट में काम की स्थिति के सुधार के लिए अभियान चलाते रहे हैं, कि जापान सरकार ने प्लाण्ट में खतरनाक स्थिति के बावजूद भी मजदूरों को लगाया है जो उनके जीवन के साथी ही न्यूक्लियर सुरक्षा के लिए भी खतरनाक है।
जापान के १८ व्यावसायिक उर्जा संयन्त्र में लगभग ८३ हजार मजदूर काम करते हैं। इस आबादी का ८८ प्रतिशत आबादी ठेके के मजदूर हैंं। फु कोशिमा दाई-ची प्लाण्ट में १०,३०३ मजदूर काम कर रहे थे इनमें से ८९ प्रतिशत मजदूर ठेके के थे। एक उदाहरण मायासुकी इशीवाजा का है। सुनामी के आने के बाद जब प्लाण्ट में भगदड़ मची तो पचपन का साल का वह मजदूर इतना घबराया हुआ था कि अपने आप को बड़ी मुश्किल से संभाल पा रहा था। वह हेलमेट हाथ में लिये गेट की ओर भागा। गेट पर बहुत सारी गाडिय़ों की भीड़ लगी हुई थी और दरबान सबसे उनके पहचान पत्र देखकर अन्दर जाने की अनुमति दे रहा था। मजदूर गार्ड पर चिल्लाने लगा कि तुम्हें पहचान पत्र की पड़ी है और सुनामी आ रही है इसकी चिन्ता नहीं है। लेकिन गार्ड करता भी तो क्या करता? उसकी भी तो नौकरी खतरे में पड़ सकती थी। अन्तत: इशीवाज को बाहर जाने की इजाजत मिली।
यह मजदूर नाभिकीय खतरे के बारे में न कोई जानकारी रखता था और न हीं, वह टोकियो पावर कम्पनी का कर्मचारी ही था। वह उन हजारों खानाबदोश लोगों में से था जो न्यूक्लियर पावर प्लाण्ट के खतरनाक काम को बड़े पैमाने पर करते हैं। दूसरे देशों के न्यूक्लियर पावर प्लाण्टों में की यही हाल है। इन मजदूरों को ज्यादा दिहाड़ी की लालच देकर अस्थायी तौर पर रखा जाता है। ये मजदूर विकिरण के खतरे के बावजूद ज्यादा पगार के लालच में काम करते हैं। इस पावर प्लाण्ट को नाभिकिय और औद्योगिक सुरक्षा एजेंसी चलाती है। इसका कहना है कि ये ठेके के मजदूर इस बार, पिछले साल विकिरण से प्रभावित कर्मचारियों की तुलना में १६ गुना अधिक विकिरण से प्रभावित हुए हैं।

श्रमजीवी पहल पत्रिका के मई अंक से साभार

मजदूर वर्ग को अधिकार देना देश हित के खिलाफ!

यह कहना है केन्द्रीय श्रम और रोजगार मन्त्री मल्लिकार्जुन खडग़े का

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) का संस्थापक सदस्य होने के बावजूद भारत ने इसके दो अतिमहत्वपूर्ण संधियों (कन्वेंशन्स) की अभीतक पुष्टि नहीं की है। ये दो संधियां हैं-संधि संख्या 87 और संधि संख्या 98, जो क्रमश: एकताबद्ध होने के अधिकार और संगठित होने के अधिकार के संरक्षण (1948) तथा संगठित होने एवं सामूहिक मोलभाव के अधिकार संधि (1949) से संबंधित है। इन दोनों को उन केंद्रीय आठ संधियों में से समझा जाता है, जो मजदूर वर्ग के अधिकारों की दृष्टि से बुनियादी तत्व हैं।
अन्तरराष्ट्रीय मजदूर वर्ग द्वारा समय समय पर इन संधियों के महत्व को रेखांकित किया जाता रहा है। सबसे पहले 1995 में कोपेनहेगन में हुई सामाजिक विकास पर विश्व सम्मेलन में, उसके बाद 1998 में आईएलओ के बुनियादी सिद्धांतों और कार्यस्थल और उसके बाद के अधिकारों की घोषणा में और अन्तिम तौर पर जून 2००8 में जब अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने न्यायोचित वैश्विकरण हेतु सामाजिक न्याय के घोषणा पत्र को स्वीकार किया। भारत जोकि आईएलओ के संचालक निकाय में अभी तक निर्वाचित सीट है, उन आठ में से सिर्फ चार केन्द्रीय संधियों को मान्यता प्रदान की है। वे हैं- संधि संख्या 29-(बंधुआ मजदूर), संधि संख्या 1००- (समान पारिश्रमिक), संधि संख्या 1०5- (बंधुआ मजदूरी की समाप्ति) और संधि संख्या 111- (रोजगार और पेश में भेदभाव की समाप्ति)। गत नौ मार्च को केन्द्रीय श्रम और रोजगार मन्त्री मल्लिकार्जुन खडग़े ने राज्य सभा में एक लिखित सवाल के जवाब में बताया कि उपरोक्त दोनों संधियों को भारत सरकार इसलिए पुष्टि नहीं कर रही है कि इससे सरकारी कर्मचारियों को कुछ ऐसे अधिकार देने पड़ेंगे जो भारतीय संविधान के अनुरूप नहीं हैं।
परोक्ष रूप से उन्होंने इसे भारतीय शासक वर्ग की मजबूरी बताया। संधि 87 की दुनिया के 15० देशों ने पुष्टि कर दी है। जबकि संधि 98 की 16० देशों ने पुष्टि कर दी है।

Monday, May 23, 2011

कृषि और ग्रामीण मजदूरों पर महंगाई का कहर

यूपीए-2 के निरंकुश शासन के दो वर्ष पूरे हो गए हैं। भ्रष्टाचार, महंगाई, अव्यवस्था और जनता के साथ लूटपाट के लिए कुख्यात अपराधियों से भरे मंत्रिमंडल को यूपीए-2 में बहुत सोच समझकर आकार दिया गया है। अपराधियों के इस मंत्रिमंडल ने सबसे ज्यादा कहर देश की मजदूर आबादी पर ढाहा है। पिछले साल मंदी के नाम पर छंटनी और वेतन में कटौती करने वाला यह नापाक गठबंधन इस बार विकास दर के सब्जबाग दिखाकर जनता से फिरौती वसूल कर रहा है। शहरी और ग्रामीण मजदूरों की आबादी सबसे ज्यादा हैरान और परेशान है। तनख्वाहें तो कछुए की गति से बढ़ रही हैं जबकि महंगाई खरगोश की तरह कुलांचें ले रही है। ऐसे में वास्तविक तनख्वाहें मंदी के दौर से भी नीचे चली गई हैं। इसकी तस्दीक खुद यह अपराधी गिरोह कर रहा है।

कृषि एवं ग्रामीण श्रमिकों की खुदरा-महंगाई नौ प्रतिशत से ऊपर

गत सप्ताह जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार कृषि और ग्रामीण मजदूरों के लिए महंगाई दहाई से बस एक अंक ही कम रह गई है। जबकि कृषि श्रमिक इंडेक्स के मामले में 16 राज्यों में एक से दस अंक की वृद्धि दर्ज की गई। अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य इंडेक्स पर आधारित मुद्रास्फीति का आंकड़ा अभी भी नौ प्रतिशत से ऊपर बना हुआ है। अप्रैल महीने में खेतिहर मजदूरों के मामले में खुदरा मूल्यों पर आधारित मुद्रास्फीति जहां मार्च की तुलना में मामूली घटकर 9.11 प्रतिशत रही, वहीं ग्रामीण श्रमिकों के मामले में यह मामूली बढ़कर 9.11 प्रतिशत हो गई।

श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा जारी आंकडों के अनुसार अप्रैल 2011 में मार्च 2011 के मुकाबले कृषि श्रमिकों का सामान्य इंडेक्स जहां दो अंक बढ़कर 587 अंक पर पहुंच गया वहीं ग्रामीण श्रमिकों का इंडेक्स तीन अंक बढकर 587 अंक हो गया। खुदरा बाजार के इन इंडेक्सों पर आधारित मुद्रास्फीति की दर पिछले साल अप्रैल के मुकाबले हालांकि अब भी काफी ऊपर है।
मंत्रालय की विज्ञप्ति के अनुसार महाराष्ट्र में कृषि और ग्रामीण श्रमिक दोनों इंडेक्सों में सर्वाधिक क्रमशः 10 और 9 अंक की बढ़त दर्ज की गई। ज्वार, बाजरा, मछली, सूखी मिर्च, पान पत्ता, जलाने की लकड़ी, सूती कपड़े के दाम बढ़ने से खेतिहर श्रमिकों का इंडेक्स बढ़ा है। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में दोनों ही इंडेक्स में सबसे ज्यादा गिरावट क्रमशः सात और पांच अंक दर्ज की गई। यह गिरावट चावल, गेहूं आटा, दाल, सरसों तेल, प्याज, हरी मिर्च, हल्दी, लहसुन, जकड़ी और सूती कपडा के दाम घटने से आई है।

-संदीप राऊजी

Thursday, May 19, 2011

कंपनी में ही मजदूर को ट्रक ने रौंदा

गुड़गांव. आईएमटी मानेसर के सेक्टर-सात स्थित एक निजी कंपनी में कार्यरत मजदूर को कंपनी से सामान भरकर ले जा रहे टाटा-407 ने सरेआम रौंद दिया। गंभीर रूप से घायल मजदूर ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। साथी की मौत के बाद अन्य मजदूरों ने हंगामा किया और मृतक के शव को पोस्टमार्टम के लिए भी नहीं ले जाने दिया।
कंपनी अधिकारियों द्वारा मृतक की पत्नी और दोनों बच्चों को एक-एक लाख रुपये की आर्थिक सहायता का आश्वासन देने के बाद ही मृतक के शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया। दोपहर बाद मानेसर थाने की पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम करा परिजनों को सौंप दिया गया।
बिहार निवासी 25 वर्षीय विरेंद्र पुत्र कामेश्वर अपनी पत्नी और दो छोटे बच्चों के साथ मानेसर इलाके में किराये के मकान में रहता था। पास ही आईएमटी मानेसर सेक्टर-सात स्थित प्लास्टिक के बोरे बनाने वाली कंपनी पॉलीब्लैंड इंडिया प्राइवेट लि. में नौकरी करता था। शनिवार की अल-सुबह कंपनी से सामान भरकर एक टाटा-407 निकल रहा था। तभी टाटा-407 से उसे चपेट में ले लिया। गंभीर रूप से घायल विरेंद्र की मौके पर ही मौत हो गई।
विरेंद् की मौत के बाद उसके साथी मजदूरों ने वहां हंगामा कर दिया व विरेंद्र के शव को पोस्टमार्टम के लिए नहीं ले जाने दिया। कंपनी के अधिकारियों ने मृतक की पत्नी और दोनों बच्चों को एक-एक लाख की आर्थिक सहायता देने का आश्वासन दिया। इसके बाद मजदूरों ने मृतक के शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाने दिया। मानेसर थाने की पुलिस ने मृतक के साथी रंजीत के बयान पर आरोपी टाटा-407 चालक नई दिल्ली निवासी लक्ष्मण गुप्ता के खिलाफ मामला दर्ज कर कार्रवाई की है।

Saturday, May 14, 2011

फुकुशिमा परमाणु संयंत्र के कर्मचारी की मौत

टोक्यो। जापान में विनाशकारी भूकम्प और प्रलयंकारी सुनामी के कारण क्षतिग्रस्त हुए फुकुशिमा परमाणु बिजली संयंत्र में मलबे की सफाई कर रहे एक कर्मचारी शनिवार को मौत हो गई। समाचार एजेंसी क्योदो के अनुसार संयंत्र की संचालक कंपनी ने बताया कि 60 वर्षीय कर्मचारी ने शनिवार तड़के ही काम करना शुरू किया था और करीब एक घंटे तक काम करने के बाद उसने तबियत बिगड़ने की शिकायत की। उसे अस्पताल ले जाया गया जहां वह बेहोश हो गया। तीन घंटे बाद उसकी मौत हो गई। रपट के अनुसार चिकित्सकों को कर्मचारी के शरीर पर किसी घाव के निशान नहीं मिले। उल्लेखनीय है कि 11 मार्च के शक्तिशाली भूकंप और विनाशकारी सुनामी के कारण फुकुशिमा परमाणु संयंत्र का कूलिंग सिस्टम क्षतिग्रस्त हो गया था। इसके करीब 15-20 दिन बाद बिजली विभाग के मजदूरों ने विकिरण की परवाह न करते हुए प्लांट प्रवेश किया था, ताकि प्लांट में हो रहे रिसाव को रोका जा सके। बिजली विभाग के मजदूरों का यह प्रयास ऐसे समय पर था, जबकि उस क्षेत्र में जाना जान जोखिम में डालने जैसा था। उस समय वहां विकिरण का बहुत ज्यादा खतरा था। प्लांट के आसपास विखरे हुए कचरे को साफ करने का काम एक अलग कंपनी करती है, जिसके मजदूर की काम करने के दौरान मृत्यु हुई।

Wednesday, May 11, 2011

मजदूरी मांगने पर भट्ठा मालिक की दलित मजदूर की हत्या

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में एक भट्ठा मालिक ने मजदूरी की मांग करने पर एक दलित मजदूर की हत्या करके उसके शव को पेड़ पर टांग दिया। राज्य पुलिस मुख्यालय के प्रवक्ता ने बताया कि मीरा देवी नाम की एक दलित महिला ने बलिया जिले के नगरा पुलिस थाने पर दर्ज करायी रिपोर्ट में आरोप लगाया है कि भट्ठा मालिक रामबदन सिंह ने अपने तीन अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर उसके पति राजामोहन की जान ले ली और उसके शव को पेड़ पर टांग दिया। मीरा देवी ने आरोप लगाया है कि उसके पति की हत्या इसलिए की गई, क्योंकि वह मजदूरी की मांग कर रहा था। प्रवक्ता ने बताया है कि भट्ठा मालिक रामबदन को गिरफ्तार कर लिया गया है और अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिये दबिश दी जा रही है।

Monday, May 9, 2011

मंत्री खा रहे मलाई और मजदूर के हिस्से धूल

जालंधर। पंजाब सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी दर की समीक्षा किए जाने का विरोध करते हुए आॅल मजदूर शक्ति संघ ने इसकी पुन: समीक्षा करने की मांग की है तथा कहा है कि ईंट भट्ठों में काम करने वालों को प्रति एक हजार ईंट पर उसकी कीमत का बीस फीसदी मजदूरी दिए जाने की व्यवस्था सरकार करे।
आॅल मजदूर शक्ति संघ के प्रमुख इकबाल मट्टू ने कहा कि सरकार ने न्यूनतम मजदूरी दर की हाल ही में समीक्षा की है। इसके तहत जो निर्धारण किया गया है वह मजदूरों के हित में नहीं है। यह कैसी सरकार है जो मजदूरों का विरोध करती है।
मट्टू ने कहा, महंगाई के इस दौर में जहां मंत्रियों और अधिकारियों को हजारों रुपये के वेतन के अलावा तमाम सुख सुविधाएं मिलती हैं, वहीं मजदूरों को दिन में धूप और रात में धूल फांकना पडता है। इसलिए सरकार से हमारी गुजारिश है कि मजदूरों को आदमी समझते हुए उनके लिए 500 रुपये न्यूनतम मजदूरी निर्धारित किया जाए।
मजदूर नेता ने यह भी कहा कि ईंटें बनाने वाले श्रमिकों की हालत बदतर है। भट्ठा मालिक तकरीबन साढे चार हजार रुपये में एक हजार ईंटें बेचते हैं, जबकि उन्हें बनाने वाले मजदूरों को केवल तकरीबन 200 रुपये प्रति हजार ईंट दिया जाता है। राज्य सरकार से हमारी यह भी मांग है कि इन श्रमिकों को प्रति एक हजार तैयार ईंट की कीमत का बीस फीसदी मजदूरी के तौर भुगतान किया जाए।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में पंजाब सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों के श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी दरों की समीक्षा करते हुए इसे 139 रुपये से 192 रुपये के बीच कर दिया है। नये मानकों के तहत ईंट भट्ठे में काम करने वाले श्रमिकों को उनकी कुशलता के आधार पर 147 से लेकर 192 रुपये तक दिया जाएगा।
मट्टू ने जोर देकर यह भी कहा कि बाहर से आने वाले श्रमिक यहां बदतर स्थिति में काम करते हैं। उनके पास कोई सुविधा नहीं है और वे गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। जानवरों की तरह उनसे काम लिया जाता है और बदले में कुछ नहीं दिया जाता है। सरकार को चाहिए वह हरेक श्रेणी के मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी दर 500 रुपये तय करे ताकि उन्हें खाना मिल सके और उनके बच्चों को स्कूल जाने का भी मौका मिल सके।
कर्नाटक में 11 श्रमिकों की मौत
कोप्पाला, कर्नाटक
रविवार को कर्नाटक में एक ट्रक और लॉरी की भिंडत में ट्रक में सवार 11 श्रमिकों की मौत हो गई और नौ अन्य घायल हो गए। मृतकों में आठ महिलाएं भी शामिल हैं।
कर्नाटक पुलिस के अनुसार उनमें से अधिकांश लोग बूदागुम्पा गांव में एक निजी मुर्गी पालन केंद्र में काम करते थे। वे जब अपने कार्यस्थल के लिए जा रहे थे तब यह हादसा हुआ।
उन्होंने बताया कि दुर्घटना में दस लोगों की मौके पर ही मौत हो गई जबकि एक व्यक्ति ने कोप्पाला जिला अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड दिया। सभी घायलों को अस्पताल में दाखिल कराया गया है।
गोरखपुर में श्रमिकों और पुलिस में झड़प
गोरखपुर, 9 मई
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में सोमवार को प्रदर्शनकारी श्रमिकों और पुलिस के बीच जमकर हिंसक झड़प हुई। पुलिस ने प्रदर्शनकारी श्रमिकों को तितर-बितर करने के लिए पानी की बौछार की।
चिलुआताल थाना क्षेत्र स्थित धागा बनाने वाली निजी फैक्ट्री अंकुर उद्योग लिमिटेड के प्रबंधन ने बीते दिनों 15 कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए उन्हें निलम्बित कर दिया था। उनकी बहाली की मांग को लेकर सैकड़ों श्रमिक सोमवार को मंडलायुक्त कार्यालय के बाहर प्रदशर्न करने जा रहे थे।
प्रदर्शनकारियों में महिलाएं भी थीं। पुलिस ने उन्हें रोका तो प्रदर्शनकारी बेकाबू हो गए। इस बीच पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई। प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने पानी की बौछार की। चार श्रमिक नेताओं को हिरासत में भी लिया गया है।
चिलुआताल थाना प्रभारी गजेंद्र राय ने संवाददाताओं को बताया कि फिलहाल स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है। प्रदर्शन के मद्देनजर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किए गए हैं।

Wednesday, April 13, 2011

Yemen-revolution at the doorstep!



Anti-government protestors march with banners during a demonstration demanding the resignation of Yemeni President Ali Abdullah Saleh, in Taiz, Yemen, Wednesday, April 13, 2011. Yemeni security forces clashed with thousands of protesters who hurled rocks and burned tires in the southern port city of Aden on Wednesday, killing at least one person as demonstrations swelled in the capital. (AP Photo/Hani Mohammed

Wednesday, March 30, 2011

खदान में दबे 45 मजदूर
इस्लामाबाद. 21 मार्च को पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में ध्वस्त हुई कोयला खदान में 45 की मौत हो गई है। खदान में अब किसी के जीवित बचे होने की संभावना नहीं है। मिथेन गैस भर जाने के कारण खदान में कई विस्फोट हुए थे। बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा से करीब 30 किमी दूर सोरांग में, सरकारी पाकिस्तान खनिज विकास निगम (पीएमडीसी) की खदान रविवार को विस्फोट के बाद ध्वस्त हो गई थी। बलूचिस्तान के कृषि मंत्री असलम बिजेंजो ने प्रांतीय सभा में बताया कि 45 मजदूरों की मौत की पुष्टि हो गई है। अधिकारियों ने बताया कि यदि कोई मजदूर जीवित पाया गया तो यह चमत्कार ही होगा। खदान में गैस निकलने की समुचित व्यवस्था न होने की वजह से वहां मिथेन गैस भर गई थी। इसके कारण वहां विस्फोट हुए और फि र रविवार सुबह खदान ध्वस्त हो गई। बचाव कार्य में लगे आपात दल के सदस्यों को भी गैस की वजह से चक्क र आने लगे। इस वजह से थोड़ी देर के लिए बचाव कार्य रोकना भी पड़ा था। अधिकारियों ने बताया कि जांच की जा रही है कि खुदाई रोकने के लिए जारी की गई चेतावनी पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया। बलूचिस्तान के खान मंत्री रहमान मेंगाल के मुताबिक, प्रांतीय सरकार ने पाकिस्तान खनिज विकास निगम से खतरनाक माहौल और सुरक्षा उपायों के अभाव में खदान बंद कर देने के लिए कहा था।

कई मजदूर मिटटी में दबे
जयपुर भट्टा बस्ती इलाके में शुक्रवार शाम सीवर टैंक की खुदाई के दौरान मिट्टी ढहने से दो मजदूर नीचे दब गए। उनमें से एक को कुछ देर बाद सकुशल निकाल लिया गया, जबकि ज्यादा गहराई में दबे दूसरे मजदूर को नहीं निकाला जा सका। देर रात तक आपदा प्रबंधन दल के प्रयास जारी थे।
थानाधिकारी राजेश विद्यार्थी ने बताया कि शहीद इंदिरा नगर बस्ती में शहजाद के मकान के पिछले हिस्से में सीवर टैंक की खुदाई का काम शुक्रवार सुबह शुरू हुआ था। संजय नगर भट्टा बस्ती निवासी मुराद (22) व नवाब (28) वहां काम कर रहे थे। नवाब टैंक के नीचे खुदाई कर मिट्टी को ऊपर मौजूद मुराद को पकड़ा रहा था। शाम करीब पौने 4 बजे तक करीब 15 फीट खुदाई होने पर नवाब ने मुराद से कहा कि रस्सी फेंककर उसे ऊपर खींच ले। मुराद ने रस्सी नीचे फेंकी, पर इसी बीच मिट्टी भरभराकर ढह गई और वह भी नीचे गिर गया। दुर्घटना का पता चलने पर लोग इकट्ठा हो गए। भट्टा बस्ती थानाधिकारी व आपदा प्रबंधन दल मौके पर पहुंचे। स्थानीय लोगों ने मुराद को तो बाहर निकाल लिया, लेकिन नवाब खां दबा रहा।
तंग गलियां व रेतीला इलाका होने से हुई परेशानी: थानाधिकारी के अनुसार मकान के पिछले हिस्से में जहां खुदाई हो रही थी, वह काफी संकरी जगह है। मकान भी तंग गलियों में होने से जेसीबी से खुदाई नहीं की जा सकी। रेतीला इलाका होने से मिट्टी लगातार धंस रही है। इससे नवाब को बाहर निकालने में दिक्कतें आ रही हैं।

ईमारत से गिरकर मजदूर की मौत
उल्लहासनगर। उल्हासनगर महानगरपालिका मुख्यालय की इमारत पर काम कर रहे मजदूर की तिसरी मंजिल से गिर जाने से बुरी तरहा जख्मी हो जाने से ठेके दार पर कारवाई की मांग की जा रही है। जबकि कडीया मजदूर काला पाटिल कीं गंभीर अवस्था को देख मुंबई के अस्पताल में भर्ती कराये जाने की खबर मिली है।