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Saturday, May 29, 2010
होजरी उद्योग के मजदूरों का मेहनताना बढ़ा
कानपुर, 29 मई : होजरी उद्योग से जुड़े मजदूरों के मेहनताना बढ़ाने की मांग को मान लिया गया है। होजरी उद्योग के मजदूर लगभग पिछले एक माह से अपने मेहनतान में बढ़ोतरी को लेकर आन्दोलनरत थे। होजरी उद्योग से जुड़े व्यापारियों ने उन्हें आश्वासन दिया है कि उन्हें नई सिलाई मशीनें खरीदने के लिए सरकार से सहायता दिलाने के प्रयास किए जाएंगे। मेहनताने में बढ़ोत्तरी की मांग को लेेकर शहर के 200 करोड़ रूपए के होजरी उद्योग में लगे करीब 10 हजार मजदूर पिछले एक महीने से कार्य बहिष्कार कर रहे थे। होजरी कंपनी के मालिकों की मानें तो हड़ताल से उद्योग को करोड़ों रूपए का नुकसान हो चुका है। उत्तर प्रदेश होजरी मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के संरक्षक और प्रसिद्ध होजरी निर्माता बलराम नरूला ने आज 'भाषाÓ को बताया कि मजदूरों और होजरी उद्योग के मालिकों का समझौता हो चुका है और मजदूर काम पर वापस लौट रहे हैं। उन्होंने बताया कि मजदूरों की मजदूरी में प्रति दर्जन बनियान की सिलाई में तीन रूपए से साढ़े तीन रूपए की बढ़ोत्तरी कर दी गई है। पहले मजदूूरों को प्रति दर्जन बनियान की सिलाई के लिए 26 रुपए मिलते थे जो अब बढ़कर 29 रुपए और 29 रुपए पचास पैसे हो गए है। इसी तरह अंडरवियर की सिलाई, अंडर गारमेंट की सिलाई, कटाई और उनकी पैकिंग तथा प्रेस आदि के लिए भी मजदूरी बढ़ा दी गई है और अब मजदूरों में मंहगाई को लेकर कोई आक्रोश नहीं है।जारी भाषा जफरगौरतलब है कि तमिलनाडु के तिरूपुर और पश्चिम बंगाल के कोलकाता के बाद होजरी अंडर गारमेंट उद्योग में उत्तर प्रदेश के कानपुर का तीसरा स्थान है। यहां होजरी की विभिन्न उत्पादन :बनियान और अंडरवियर बनाने वाली: प्रक्रिया में छोटी बड़ी करीब 500 इकाइयां काम कर रही है, जबकि सिलाई और अन्य छोटे-मोटे कामों के लिए करीब इतने ही लघु उद्योग की इकाइयां अलग है। औद्योगिक शहर कानपुर में 200 करोड़ रुपए का सालाना कारोबार वाली करीब 500 होजरी इकाइयां हैं। भारतीय होजरी मजदूर संघ के महामंत्री मनीराम अग्रवाल कहते हैं कि इस उद्योग में कई स्तर पर मजदूर काम करते है। इसमें सिलाई का काम करने वाले मजदूर, धुलाई का काम करने वाले मजदूर सब अलग अलग होते हैं और इन्हें मजदूरी प्रति पीस के हिसाब से दी जाती है। मजदूरी आदि मिला कर एक मजदूूर औसतन प्रति माह चार से पांच हजार रुपए कमा लेता है। मजदूरों के प्रति पीस हिसाब से मेहनताना हर तीसरे साल बढ़ता है लेकिन इस मंहगाई में इस मजदूरी से खर्चा पूरा नही होता है। होजरी मजदूरों की मांग थी कि उनके मेहनताने में 15 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की जाए। मजदूर अपनी इस मांग को लेकर पिछले करीब एक माह से काम का बहिष्कार कर रहे थे। होजरी मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के संरक्षक बलराम नरुला ने कहा कि सूत के दामों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी और बिजली की कटौती से होजरी उद्योग वैसे ही संकट में था, अब मजदूरों की हड़ताल से इस उद्योग की और कमर तोड़ दी। उन्होंने कहा कि मजदूूरों की एक अन्य मांग नई मशीनें दिलाने की है। इस बारे में सरकार के प्रतिनिधियों से बात की जाएगी कि मजदूूरों को उन्नत प्रौद्योगिकी की मशीने दिलाई जाएं ताकि वह अपना काम और बेहतर ढंग से कर सकें। नरुला कहते हैं कि पिछले वर्ष दीवाली के समय जो सूत 110 से 120 रुपए प्रति किलो बिक रहा था वह अब 155 से 165 रूपए प्रति किलो मिल रहा है। आश्चर्य की बात तो यह है कि देश में रूई की भरपूर फसल होने व रूई के दामों में अपेक्षाकृत न्यून्तम बढ़ोत्तरी होने के बावजूद सूत के दामों में इतनी अधिक बढ़ोत्तरी कैसे हो रही है। वह कहते है कि मार्च 2010 में सूत के दामों में करीब 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई जबकि रूई के दामों में केवल डेढ़ प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। वह कहते हैं कि इसके साथ साथ प्रदेश में बिजली की कमी भी इस उद्योग की बर्बादी का एक बड़ा कारण है। सुचारू रूप से सूत की आपूर्ति न होने से उत्पादन पर असर तो पड़ ही रहा था अब समय पर पर्याप्त बिजली न मिलने से होजरी उद्योग में उत्पादन लागत पहले से बहुत अधिक बढ़ गई है।
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