बाल श्रम,आत्महत्याएं,औद्योगिक दुर्घटनाएं
23 मार्च
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Saturday, June 11, 2011
मारुती के मानेसर प्लाण्ट में हड़ताल आठवें दिन भी जारी
मारुती सुजुकी के मानेसर प्लाण्ट में वर्करों की हड़ताल कल आठवें दिन, शनिवार, 11 जून को भी जारी रही और हरियाणा सरकार द्वारा परसों, बृहस्पतिवार को हड़ताल को प्रतिबंधित किये जाने के बावजूद हड़ताली मजदूर कारखाने के अन्दर डटे रहे. इसी के साथ साथ शनिवार को गुडगाँव और आस पास के सभी ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधियों कि एक बैठक हुई जिसमे आन्दोलन को आगे ले जाने और इस हेतु व्यापक मजदूर आबादी का समर्थन जुटाने का फैसला किया गया. इस उद्देश्य से सोमवार से सभाओं का सिलसिला शुरू किया जायेगा.
दूसरी ओर सरकार के समर्थन और उसके द्वारा कल हड़ताल को प्रतिबंधित किये जाने किये जाने के चलते फैक्ट्री प्रशासन का हौसला बुलन्द है और उसने संघर्षरत मजदूरों की माँगों को मानने से इंकार कर दिया है.
आन्दोलन की पृष्टभूमि
देश की सबसे बड़ी कार कम्पनी मारुति सुजुकी के मानेसर प्लांट में विगत आठ दिन से दो हजार कर्मचारी हड़ताल पर हैं। कर्मचारियों की मांग है कि उनकी यूनियन बनाने की इजाजत दी जाए। यह मांग तो बहुत पहले से ही की जा रही थी लेकिन मैनेजमेंट ने इसे मानने से इंकार करता रहा है। उसका कहना था कि कम्पनी के मसलों को आपसी बातचीत के माध्यम से हल कर लेना एक मध्यम मार्ग है। लेकिन मजदूरों की बढ़ती मांग को देखते हुए मैनेंजमेंट अपना चेहरा साफ सुथरा रखने के लिए गत मई के आखिरी सप्ताह से ही प्रबंधकों की पिट्ठू यूनियन बनाने का गुपचुप काम शुरू कर दिया गया। अकेले अकेले एक एक मजदूर को बुलाकर कंपनी का एचआर ऐसे कागजात पर हस्ताक्षर करवाने लगा जिसके अनुसार प्रबंधन की यूनियन का मजदूर सदस्य माना जाता। यह बात जैसे ही अन्य मजदूरों को पता चली उनमें सुगबुगाहट शुरू हो गई। आखिर चार जून को मारूति वर्करों ने टूल डाउन कर दिया और फैक्ट्री में ही अनियतकालीन धरने पर बैठ गए। मैनेजमेंट पहले अकड़ दिखाता रहा और उसने ताबतड़तोड़ 11 कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया। कहने की जरूरत नहीं कि ये वे ही कर्मचारी हैं जो नए यूनियन बनाने की मांग की अगुआई कर रहे थे। प्रबंधन को मजदूरों की एकता का अनुमान नहीं था। वे सोचते थे नेताओं को बर्खास्त कर आंदोलन की कमर तोड़ देंगे। लेकिन हुआ उल्टा। दो दिन बीतते ही उसे अपने गैरकानूनी कदम को पीछे हटाना पड़ा और वह जितने मजदूरों के हस्ताक्षर करवाए थे वे कागजात मजदूरों को वापस देने पर राजी हो गया। लेकिन वर्करों की मांग थी यूनियन बनाने की। सो वे कम्पनी के अंदर डटे रहे। प्रबंधन को लग रहा था कि मजदूरों का धैर्य टूट जाएगा। लेकिन मजदूर डटे रहे। शायद उन्हें ऐसे मौके के लिए काफी इंतजार करना पड़ता जैसा कि उन्होंने काफी लम्बे समय तक इंतजार किया था।
समर्थन में पूरे गुडगाँव के मजदूर आगे आये
यही कारण रहा कि पाँच दिनों से संघर्षरत कामगारों के समर्थन में 9 जून को गुडगाँव-मानेसर बेल्ट के विभिन्न उद्योगों में कार्यरत मज़दूर भी आ गए. वहाँ के विभिन्न कारखानों में कार्यरत यूनियनों के पदाधिकारियों और कामगारों ने उस दिन मारुती सुजुकी इंडिया के संयंत्र के मुख्यद्वार पर एकत्र होकर सत्याग्रह किया और संघर्षरत मजदूरों की निहायत ही जायज माँग को अविलम्ब माने जाने की माँग की. गुडगाँव के विभिन्न उद्योगों के मजदूरों द्वारा किया गया एकजुटता का यह इजहार एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना थी जिसका दूरगामी प्रभाव पड़ने वाला है।
मजदूरों के तेवर देख प्रबंधन सक्रिय हो गया और उसने हरियाणा सरकार से गुहार लगाई। जैसा कि आज दिखता है कि सरकारें पूंजीपतियों की प्रबंधन कमेटी के तौर पर कार्य कर रही हैं, हरियाणा सरकार ने 10 जून को संविधान द्वार दिए गए कर्मचारियों के मूलअधिकार -हड़ताल- को ही अवैध घोषित कर दिया। यह बहुत सोची समझी रणनीति थी। इसमें हरियाणा के श्रममंत्री ने मजदूरों के पक्ष को बिना जाने समझे ही एकतरफा कदम उठाया। इस कदम से यह बात तो पूरी तरह स्पष्ट हो ही जाती है कि हरियाणा का श्रम मंत्रालय असल में मैनेजमेंट मंत्रालय है। यह ऐसा मंत्रालय है जो मजदूरों का शोषण कैसे किया जाए इस बारे में कम्पनियों के मैनेजमेंट से कंधा से कंधा मिलाकर काम करता है।
...और कुछ सोचने की बातें
इस पूरी कहानी में सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि देश का मध्यवर्ग जिन मारूति कारों का बड़े ठाठ से उपयोग करता है उसने कहीं से भी हरियाणा सरकार के इस गैरकानूनी कदम का विरोध करना उचित नहीं समझा। उसे इस बात का अहसास नहीं हो रहा है कि जो भी चीज वह उपयोग में लाता है वह मजदूरों के खून पसीने से बनाए गई हैं। वह जिन वस्त्रों का उपयोग करता है उनमें से ज्यादातर नोएडा गुड़गांव के एक्पोर्ट गारमेंट कारखानों में मजदूर 36-36 घंटे काम करके और कभी कभी जान गंवा कर तैयार करते हैं। मध्यवर्ग के बच्चे जिन कलम-कापी-किताबों को पढ़कर मैनेजर बनने का सपना देखते हैं वे बहुत ही अमानवीय परिस्थित में मजदूर और उनके बच्चों द्वारा तैयार किए जाते हैं। ऐसा कोई बिरला ही सामान होगा जो मध्यवर्ग इस्तेमाल करता है और जिसे बनाने में मजदूरों का खून पसीना न बहा हो।
मैनेजमेंट की नई चाल
ताजा जानकारी के अनुसार मैनेजमेंट ने वर्करों के सामने प्रस्ताव रखा है कि वह कम्पनी के वर्तमान यूनियन में कर्मचारियों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने के लिए तैयार है बशर्ते बर्खास्त किए गए 11 कर्मचारियों को बहाल करने की मांग को वर्कर छोड़ दें। असल में यह प्रबंधन द्वारा मजदूरों की मांग को खारिज करने का बहाना भर है। धरने पर बैठे वर्करों ने इसे मानने से इंकार कर अपने इरादे जता दिए हैं। और उन्होंने ऐसा कर साथियों के साथ एकजुटता दिखाई।
समर्थन की अपील
हम आप सभी से मानेसर के संघर्षरत साथियों का हर सम्भव सहयोग और समर्थन करने की अपील करते है. हमारा प्रस्ताव है कि कि आप हरियाणा के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और श्रममंत्री को अधिक से अधिक संख्या में ईमेल और पत्र भेज कर सरकार की इस दमनकारी कारर्वाई का विरोध करें और संघर्षरत साथियों कि जायज माँगों को जल्द से जल्द मांगे जाने के लिए दबाव बनायें.यह बहूत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार मजदूरों का हित सुनिश्चित करने की जगह कम्पनी प्रशासन के हितों के अनुरूप कार्य कर रही है.
मुख्यमंत्री
cm@hry.nic.in
लेबर कमिश्नर
labourcommissioner@hry.nic.in
श्रम मंत्रालय
labour@hry.nic.in
Friday, June 10, 2011
क्या यूनियन की मांग करना गुनाह है?
मानेसर के मारुती सुजुकी इंडिया के प्लाण्ट के विगत छह दिनों से संघर्षरत कामगारों के समर्थन में कल बृहस्पतिवार दिनांक 9 जून 2011 को गुडगाँव-मानेसर बेल्ट के विभिन्न उद्योगों में कार्यरत मज़दूर भी आ गए. उन्होंने मारुति प्रबंधन के खिलाफ एक विशाल रैली निकाली। दुर्भाग्य से मीडिया में ब्लैकआउट के चलते इन खबरों का गला घोंट दिया गया। मजदूरनामा को मिले समाचार के अनुसार, वहाँ के विभिन्न कारखानों में कार्यरत यूनियनों के पदाधिकारियों और कामगारों ने मारुती सुजुकी इंडिया के संयंत्र के मुख्यद्वार पर एकत्र होकर सत्याग्रह किया और संघर्षरत मजदूरों की निहायत ही जायज माँग को अविलम्ब माने जाने की माँग की. गुडगाँव के विभिन्न उद्योगों के मजदूरों द्वारा किया गया एकजुटता का यह इजहार एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना हैऔर इससे लड़ाकू साथियों का हौसला बुलन्द हुआ है.
दुनिया भर में चल रहे तमाम उथल पुथल के बावजूद भारतीय शासक वर्ग यह समझने को राजी नहीं है कि मेहनतकश जनता के दमन का रास्ता आखिर भीषण विस्फोट की ओर ले जाता है। भारत में श्रमिक वर्ग के साथ जो अन्याय अत्याचार हो रहा है वह अभूतपूर्व है। और यह रोष ज्वालामुखी बन चुका है। हालत यह हो गई है कि मजदूर यूनियन बनाने की मांग अघोषित तौर पर एक अवैध मांग हो चुकी है जबकि भारतीय संविधान में यह कर्मचारियों का मौलिक अधिकार माना गया है। आखिर यह देश संविधान के अनुसार चल रहा है या पूंजीपतियों के हितों के अनुसार चलाया जा रहा है।
हम आप सभी से मानेसर के संघर्षरत साथियों का हर सम्भव सहयोग और समर्थन करने की अपील करते है. हमारा प्रस्ताव है कि कि आप हरियाणा के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और श्रममंत्री को अधिक से अधिक संख्या में ईमेल और पत्र भेज कर संघर्षरत साथियों कि जायज माँगों को जल्द से जल्द मांगे जाने के लिए दबाव बनायें और यह सुनिश्चित करें कि कम्पनी प्रशासन उनके आन्दोलन का दमन न कर पाये.
मुख्यमंत्री
cm@hry.nic.in
लेबर कमिश्नर
labourcommissioner@hry.nic.in
श्रम मंत्रालय
labour@hry.nic.in.
दुनिया भर में चल रहे तमाम उथल पुथल के बावजूद भारतीय शासक वर्ग यह समझने को राजी नहीं है कि मेहनतकश जनता के दमन का रास्ता आखिर भीषण विस्फोट की ओर ले जाता है। भारत में श्रमिक वर्ग के साथ जो अन्याय अत्याचार हो रहा है वह अभूतपूर्व है। और यह रोष ज्वालामुखी बन चुका है। हालत यह हो गई है कि मजदूर यूनियन बनाने की मांग अघोषित तौर पर एक अवैध मांग हो चुकी है जबकि भारतीय संविधान में यह कर्मचारियों का मौलिक अधिकार माना गया है। आखिर यह देश संविधान के अनुसार चल रहा है या पूंजीपतियों के हितों के अनुसार चलाया जा रहा है।
हम आप सभी से मानेसर के संघर्षरत साथियों का हर सम्भव सहयोग और समर्थन करने की अपील करते है. हमारा प्रस्ताव है कि कि आप हरियाणा के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और श्रममंत्री को अधिक से अधिक संख्या में ईमेल और पत्र भेज कर संघर्षरत साथियों कि जायज माँगों को जल्द से जल्द मांगे जाने के लिए दबाव बनायें और यह सुनिश्चित करें कि कम्पनी प्रशासन उनके आन्दोलन का दमन न कर पाये.
मुख्यमंत्री
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लेबर कमिश्नर
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श्रम मंत्रालय
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Tuesday, June 7, 2011
मारूति वर्करों के साथ एक जुटता की अपील
प्रिय साथी,
मारुती सुजुकी के मानेसर स्थित सयंत्र के मजदूरों का अपनी युनियन को मान्यता प्रदान करने और ठेका मजदूरों को नियमित किये जाने की माँगों के समर्थन में परसों से जारी हड़ताल को आज कम्पनी प्रशासन के दमन का सामना करना पड़ा जब उसने 11 संघर्षरत मजदूरों को बर्खास्त कर दिया. अपने मनपसन्द युनियन के गठन की माँग एक बेहद न्यायसंगत माँग है और इसे किसी भी तरह से नाजायज नहीं कहा जा सकता है, लेकिन कम्पनी प्रशासन ने इस पर ध्यान देने की जगह आन्दोलन के दमन की ओर बढ़ रहा है.
मारुती सुजुकी के मानेसर स्थित सयंत्र के संघर्षरत मजदूरों के समर्थन में कल मंगलवार, 7 जून 2011 को गुडगाँव के सभी यूनियनों और संगठनों की एक विशाल रैली का आयोजन होने वाला है. आप सभी से इसे सफल बनाने और मानेसर के संघर्षरत साथियों का हर सम्भव सहयोग और समर्थन करने की अपील करते है.
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