Saturday, July 10, 2010

छह दिन बाद नेवेली लिग्नाइट के कर्मचारी काम पर लौटे




नेवेली, 6 जुलाई
तमिलनाडु स्थित सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली उत्पादन की अग्रणी कंपनी नेवेली लिग्नाइट कारपोरेशन (एनएलसी)के कर्मचारियों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल मंगलवार को समाप्त कर दी। कंपनी के करीब 14,000 कर्मचारी वेतन और अन्य मांग को लेकर पिछले छह दिनों से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर थे।
कंपनी के सूत्रों ने बताया कि सोमवार आधी रात से हड़ताल खत्म कर दी गई और कर्मचारी मंगलवार सुबह की पाली में काम पर लौट आए।
1 जुलाई को केंद्रीय संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी ए राजा ने एनएलसी में चल रही हड़ताल को खत्म करने के लिए कोयला मंत्रालय से हस्तक्षेप करने की मांग की है।
सरकारी बिजली उत्पादक कंपनी के दो ट्रेड यूनियनों से जुड़े कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए थे। कंपनी कर्मियों के वेतन मानों जनवरी, 2007 से संशोधन नहीं हुआ है। केंद्रीय कोयला राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जयसवाल को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि प्रबंधन ने फिटमेंट के समय 25 फीसद वेतन लाभ पर सहमति जताई थी जिसे एक जनवरी, 2007 से प्रभावी होना था, लेकिन बाद की बातचीत में वह मुकर गया और कहा कि वह एक सितंबर, 2009 से सिर्फ नौ महीने का ही वेतन लाभ दिया जा सकता है।
तमिलनाडु की एनएलसी की दो प्रमुख कर्मचारी यूनियनों ने वेतन में सुधार के मामले पर वार्ता विफल होने के बाद बुधवार रात से हड़ताल पर जाने की घोषणा की। किसी भी प्रकार की हिंसा रोकने के लिए कंपनी की खानों, बिजली संयंत्र और कार्पोरेट कार्यालय के बाहर करीब 2,000 पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं।
एनएलसी प्रबंधन ने राज्य सरकार से कहा है कि हड़ताल होने पर बिजली आपूर्ति बाधित हो सकती है। पीएमके और सत्तारूढ़ डीएमके से जुड़ी यूनियनें 14,000 स्थाई कर्मचारियों के बहुमत का प्रतिनिधित्व करती हैं। प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच विवाद की प्रमुख वजह वेतन वृद्धि की तिथि को लेकर है। एक कर्मचारी नेता ने नेवेली से टेलीफोन पर कहा, “हम चाहते हैं कि वेतन वृद्धि एक जनवरी 2007 से प्रभावी हो। इस मांग पर प्रबंधन पहले सहमत था। अब प्रबंधन चाहता है कि वेतन वृद्धि एक सितम्बर 2009 से प्रभावी हो।”

इससे पहले गत वर्ष 29 मार्च को नेवेली लिगनाइट कॉर्पोरेशन के हजारों अस्थाई कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए। लगभग 4,335 अस्थायी कर्मचारियों ने 8.33 प्रतिशत बोनस और प्रबंधन द्वारा उनकी यूनियन को मान्यता दिये जाने की मांग को लेकर यह हड़ताल की है। गौरतलब है कि यूनियन के प्रतिनिधियों और कंपनी प्रबंधन के बीच बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकलने के बाद इन कर्मचारियों ने हड़ताल पर जाने का फैसला लिया। एनएलसी श्रमिक यूनियन का दावा है कि इस हड़ताल में अन्य कर्मचारी भी हिस्सा लेंगे।

आठ घंटे की मांग पर ग्रेनो में कंपनी गेट पर श्रमिकों का प्रदर्शन

ग्रेटर नोएडा, जुलाई 09
अब एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का ) का मजदूर वर्ग अपनी अन्य मांगों में काम के घंटे आठ करने की राजनैतिक मांग को शामिल करने लगा है। उल्लेखनीय है कि एनसीआर में लगभग सभी कंपनियां कर्मचारियों से 12 घंटे काम कराती हैं। और यह लगभग सभी मजदूरों-कर्मचारियों की मजबूरी बन गई है।
शुक्रवार को ग्रेटर नोएडा में काम के घंटे कम करने मांग को लेकर कासना स्थित मैसर्स अंजनी टेक्नोप्लास्ट कंपनी के कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया। कर्मचारियों ने कंपनी प्रबंधकों से उत्पीड़न बंद करने व उनकी मांगों को पूरा करने की मांग की। मांग के समर्थन में कर्मचारियों ने कंपनी प्रबंधकों को ज्ञापन सौंपा। कर्मचारियों का आरोप है कि उन्हें काम के पैसों का भुगतान समय पर नहीं किया जाता। कई बार तो दो से तीन महीने का भुगतान एक साथ किया जाता है। इससे परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कर्मचारियों से बारह से चौदह घंटे काम लिया जाता है, जो नियमानुसार गलत है। उनके द्वारा अधिक समय तक किए गए कार्य का भुगतान भी नहीं किया जाता। कर्मचारियों का आरोप है कि कैंटीन में भोजन करने की एवज में वेतन से आठ सौ रुपये काटे जाते थे। पिछले काफी समय से कैंटीन बंद चल रही है, लेकिन वेतन की कटौती पूर्व की भांति हो रही है। कर्मचारियों का कहना है कि यदि उनकी मांगों को पूरा नहीं किया गया तो प्रदर्शन जारी रहेगा।

देश को निवेशकों का बनाना है ठिकाना, न्यायिक सुधार तो है बहाना


-व्यावसायिक अदालत विधेयक जल्द ही अधिनियम हो जाएगा। : मोइली
-व्यावसायिक अदालतों को होगा एक साल में मामले को निपटाने का अधिकार


लंदन,10 जुलाई
कानूनी सुधारों को तेजी से लागू कर रहे भारत की नजर विदेशी निवेशकों पर लगी है। व्यावसायिक अदालतों को स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य भी यही है। भारत के केंद्रीय कानून मंत्री ने शनिवार को कहा कि सरकार दूसरी पीढ़ी के कानूनी सुधार करने की तैयारी में है जिससे मुकदमे में होने वाली देरी समाप्त होगी। मोइली, ब्रिटेन के विधि मंत्री जस्टिस केनेथ क्लार्क के न्यौते पर ब्रिटेन की यात्रा पर आए हैं। वह निवेशकों को विश्वास दिलाने में लगे हैं कि निवेशकों को भारतीय कानून व्यवस्था से भयभीत होने की जरूरत नहीं है।
भारतीय शासक वर्ग को आवाम की तकलीफ की फिक्र ने कानून सुधारों के लिए मजबूर होने की बात सोचना मासूमियत होगी। असल में वे सुधार भी कर रहे हैं तो मालिकों की तकलीफ को कम करने के लिए। ताकि वे धन लगाने और बाहर ले जाने की मनमर्जी में को बखूबी अंजाम दे सकें।
मोइली ने लंदन में पत्रकारों से कहा कि सरकार न्याय की नियामक व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त करेगी और संस्थाओं की आजादी में दखल दिए बिना न्यायपालिका के सुचारु काम काज के लिए एक निगरानी व्यवस्था लाने को इच्छुक है। उन्होंने कहा, 'न्याय दिलाने में तेजी के लिए और उत्कृष्ट केंद्र स्थापित करने को पहले चरण में हमने राष्ट्रीय विधि स्कूलों की स्थापना की। दूसरे चरण में हम दूसरी पीढ़ी के विधिक सुधार लाना चाहते हैं। भारत में कानूनी कार्यवाही में 15 वर्ष से भी अधिक समय लगते हैं। सरकार इन्हें कम करके तीन वर्ष से भी कम समय में निपटारा करना चाहती है।Ó
उन्होंने कहा कि विधि शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाकर और देश को निवेशकों का पसंदीदा स्थान बनाएगी। अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालतों की स्थापना करके देश को निवेशकों का पसंदीदा ठिकाना बनाया जाएगा। इन अदालतों को एक साल के भीतर किसी भी मामले का निपटारा करने का अधिकार होगा।
उन्होंने कहा कि व्यावसायिक अदालत विधेयक जल्द ही अधिनियम हो जाएगा। इससे मध्यस्थता के माध्यम से मुकदमों का तेजी से निपटारे का मार्ग प्रशस्त होगा। लोकसभा ने इस विधेयक को पारित कर दिया है और अब इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा।
द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग के अध्यक्ष और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि पांच करोड़ रुपये से अधिक के किसी भी निवेश का फैसला व्यावसायिक अदालत एक साल के भीतर करेंगी।Ó उन्होंने कहा कि भारत सरकार की पहली प्राथमिकता विधिक शिक्षा व्यवस्था में सुधार और देश भर के 933 विधि महाविद्यालयों में पाठ्य सामग्री को उन्नत बनाने की है।
मोइली ने कहा, 'भारत में 10 लाख से अधिक वकील हैं। हम विधि कालेजों के शिक्षकों के अध्यापन व्यवस्था को फिर से तैयार करने और इसे विश्व स्तर का बनाने की आकांक्षा रखते हैं। सरकार की दूसरी प्राथमिकता उत्कृष्टता के केंद्रों को मजबूत करने और उनका विस्तार करने की है। हम एक से अधिक राष्ट्रीय विधि स्कूल स्थापना करना चाहते हैं जो पूरे देश के हर राज्य एक-एक में हो।Ó

Friday, July 9, 2010

निर्माण क्षेत्र में एक करोड़ श्रमिकों की कमी फिर भी मजदूरी नहीं बढ़ी


निर्माण गतिविधियों में प्रतिदिन 3.30 करोड़ कुशल और अकुशल कामगारों की जरूरतनई

दिल्ली, 9 जुलाई

निर्माण गतिविधियों में तेजी आने के साथ ही यह क्षेत्र फिलहाल एक करोड़ श्रमिकों की कमी झेल रहा है। भू-संपत्ति कारोबार क्षेत्र के संगठन 'कन्फेडरेशन आफ रीएल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएसन आफ इंडिया -क्रेडाई- का कहना है यदि यही स्थिति रही तो अगले दशक में स्थिति और गंभीर हो जाएगी, जब श्रमिकों की मांग तीन गुना तक बढ़ जाएगी।
क्रेडाई के अध्यक्ष संतोष रूंगटा ने बताया कि निर्माण गतिविधियों में प्रतिदिन 3.30 करोड़ कुशल और अकुशल कामगारों की जरूरत होती है। इसमें करीब 30 प्रतिशत तक की कमी है। हम इसके लिए जरूरी कदम उठाने जा रहे हैं ताकि अगले दशक में श्रमिकों की कमी न झेलनी पड़े।
कृषि क्षेत्र में आय बढऩे और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार और बडी संख्या में खाड़ी देशों में श्रमिकों के पलायन से निर्माण क्षेत्र में राजमिस्त्री, प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन और अन्य निपुण श्रमिकों की कमी हो गई है।
रूंगटा ने कहा कि रीयल एस्टेट को इस चुनौती को हल्के में नहीं लेना चाहिए। इस कमी को दूर करने के लिए उद्योग को आधुनिक तकनीक को अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि नवीन प्रौद्योगिकी ही आज की जरुरत है, हम तकनीक का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, विकसित देशों में डेवलपर्स जिस आधुनिक तकनीक को अपना रहे हैं उसपर हमें गौर करना चाहिए।

Thursday, July 8, 2010

ताकि विस्थापन का मसला, प्रतिरोध के मूल प्रश्न को ही न विस्थापित कर दे

चंद्रमोहन
पिछले दस वर्षों में औद्योगीकरण और ढांचागत विकास के लिए भूमि अधिग्रहण की गति बहुत तेज हुई है। इसी के साथ इसका प्रतिरोध भी तेज हुआ है। यह समस्या देश की प्रमुख राजनीतिक समस्या बन चुकी है, लेकिन इसका समाधान कैसे हो इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

विस्थापन के खिलाफ अभी तक सिर्फ प्रभावित लोग ही संघर्ष के मैदान में हैं। देश के अन्य तबके, खासकर मजदूर वर्ग पूरी तरह आंदोलन से दूर खड़े हैं। इससे राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिरोध की राजनीति की ठोस शक्ल सामने नहीं आ पा रही है। शासक वर्ग जनता के हर सवाल को स्थानीय सवाल बना देने में अभी तक सफल हैं, जबकि जनता की पक्षधर राजनीति उन्हें राष्ट्रीय रूप नहीं दे सकी है। इसके कारणों को समझना हमारे लिए बेहद जरूरी है।

एक और तथ्य है जिसे रेखांकित करना जरूरी लगता है। विस्थापन के विरोध में पूरे देश में जो अलग - अलग आंदोलन चल रहे हैं उनमें से ज्यादातर जमीन का अधिकतम दाम पाने भर के संघर्ष में बदलते जा रहे हैं। यह मालिक - किसानों के नजरिये में आया एक महत्वपूर्ण बदलाव है। निश्चित तौर पर इस सोच के बदलाव के पीछे ठोस कारण होंगे। एक कारण तो समझ में आता है कि छोटी खेती लगातार किसानों के लिए बोझ बनती जा रही है। हर वर्ष वह जितनी लागत लगाता है उससे कम पाता है। इसके साथ एकमुश्त बड़ी रकम पाने का लालच है, वह सोचता है कि इसके बल पर वह कोई काम-धंधा शुरू कर लेगा और जीवन कुछ आसान हो जाएगा। यह सोच ही उसकी आर पार की लड़ाई को पहले दिन से ही कमजोर करना शुरू कर देती है।

इसका अर्थ है कि खेती लगातार पूंजी पर निर्भर होती गई है और किसान भी जमीन से अधिक पूंजी को महत्व देने लगा है। रह गया जमीन से भावनात्मक लगाव, तो उसे खाली पेट कब तक ढोया जा सकता है? शहरों में, गांवों से आकर मजदूरी करने वाले किसानों की लगातार बढ़ती संख्या आज की एक निर्मम सचाई है।

विस्थापन की समस्या को एक किसान समस्या के रूप में देखना, कई तरह की राजनीतिक विसंगतियां पैदा कर देता है। क्या देश में किसानों की बढ़ती गरीबी, आत्महत्याएं, शहरों की ओर उनका पलायन आदि के लिए जमीनों के अधिग्रहण की प्रक्रिया जिम्मेदार है? क्या इसी कारण खेती के पैदावार की विकास दर घटती जा रही है? यदि ऐसा ही है तो सस्ते बीज, खाद, पानी, बिजली और उपज के वाजिब मूल्य पाने के लिए आवाज उठाने की क्या जरूरत है?

सच तो यह है कि विस्थापन के सवाल को किसान समस्या के रूप में उठा देने से किसानों की वास्तविक समस्याएं आंखों से ओझल हो जाती हैं। इसके साथ ही देश की अन्य मेहनतकश आबादी स्वाभाविक तौर पर इस लड़ाई से कट जाती है। यहां तक कि गांवों की भूमिहीन मेहनतकश आबादी भी इस लड़ाई से खुद को जोड़ नहीं पाती। निश्चित तौर पर विस्थापन की प्रक्रिया में किसान पहला पक्ष है। लेकिन यह एकमात्र पक्ष नहीं है। यह विस्थापन एक केंद्रीकृत आर्थिक नीति का परिणाम है। इस आर्थिक नीति के पीछे देश के पूंजीवादी विकास की एक स्पष्ट योजना है। वह है, देश को सस्ते श्रम पर आधारित एक विशाल विनिर्माण क्षेत्र में बदलने की, ताकि विश्व बाजार में एक मजबूत प्रतियोगी के तौर पर हस्तक्षेप किया जा सके।

देश के अधिकांश लोगों की भीषण गरीबी देश के पूंजीपति वर्ग के लिए वरदान है। इससे श्रम शक्ति की कीमत बढऩे नहीं पाती है। इस आर्थिक नीति की मार चौतरफा है। इस नीति के तहत ही ठेका मजदूरी, आउटसोर्सिंग, विनिवेशीकरण हो रहा है, श्रम कानूनों को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है। इसी की मार छोटे उद्यमियों-व्यापारियों पर है और इसी के चलते गरीब किसानों-आदिवासियोंको बेदखल किया जा रहा है। इसी कारण काल्याणकारी राज्य को बाजारू राज्य में बदला जा रहा है जिसमें सामाजिक जीवन के लिए हर आवश्यकता बिकाऊ माल बना दी जाती है और जो खरीद नहीं सकता उसे जीने का भी अधिकार नहीं होता। यह पूरी प्रक्रिया पूंजी के संकेंद्रीकरण को लगातार बढ़ाती जाती है और मुट्ठी भर वित्तीय महाप्रभु देश की समस्त प्राकृतिक भोतिक संपदा के मालिक बनकर श्रम शक्ति के मनमाने दोहन में लग जाते हैं। धीरे-धीरे उनकी लूट का तंत्र पूरी दुनिया में फैलने लगता है और राज्य मशीनरी को वे एक युद्ध मशीनरी में बदल कर अपने इस लूट तंत्र की हिफाजत में लगा देते हैं। जनवाद अंतिम सांसें लेने लगता है और इसकी बात भी करने वाले को देश के विकास में बाधक, देशद्रोही, आतंकवादी घोषित करके जेलों में डाल दिया जाता ।

विस्थापन के प्रश्न को इसलिए हमें बहुत व्यापक रूप में देखना होगा, न कि सिर्फ किसान प्रश्न के रूप में। विस्थापन एकाधिकारी पूंजीवाद की लुटेरी नीतियों का परिणाम है, यह स्वयं में कोई कारण नहीं है। हमारी नीति इन कारणों के खिलाफ देश की समस्त शोषित-पीडि़त जनता को गोलबंद करने की होनी चाहिए। विस्थापन के खिलाफ किया जा रहा हमारा प्रतिरोध तभी एक अखिल भारतीय जनांदोलन रूप लेगा।यहीं पर मजदूर वर्ग की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है। क्योंकि इन नीतियों का अंतिम लक्ष्य ही है श्रम शक्ति के दोहन की तीव्रता बढ़ाकर और पूंजी पैदा करना। पूंजी व्यय हो चुकी श्रम शक्ति है और यह श्रम शक्ति के बगैर निर्जीव है। इस श्रम शक्ति का वास्तविक मालिक मजदूर वर्ग, इसीलिए इस संघर्ष की मुख्य और अग्रणी शक्ति है। इसी वर्ग की यह अहम जिम्मेदारी है कि वह पूंजी केंद्रित विकास योजनाओं के विकल्प के रूप में श्रम एवं मनुष्य केंद्रित विकास योजनाएं रखे और सारी मजदूर एवं मेहनतकश जनता को इसे लागू करने के लिए गोलबंद करे।

ऐसा न करके, अगर विस्थापन के सवाल को सिर्फ किसान प्रश्न बनाकर मजदूरों को इससे अलग रखा गया तो इससे पूंजीवादी पार्टियों को ही फायदा होगा। पूंजीवादी राजनीति के अलग-अलग चेहरे इस आंदोलन की पीठ पर सवार होकर संसद-विधानसभाओं में पहुंचते रहेंगे और गरीब किसानों की तबाही-बर्बादी का अनवरत चलने वाला सिलसिला कभी रुकेगा नहीं। आज के दौर में छोटी पूंजी को बड़ी पूंजी की मार से बचाने की लड़ाई तभी कारगर होगी जब हम पूंजी के वर्चस्व को चुनौती देने की दिशा में आगे बढ़ेंगे। तभी तमाम मजदूर जनता इस संघर्ष का हिस्सा बनेगी। एकाधिकारी पूंजी के हमले की शिकार जनता के सभी हिस्सों को एक साथ ले चलने की कार्य नीति पर अमल करना होगा।

पूंजीपति वर्ग ने अपने लालच के कारण देश के मजदूरों-गरीब किसानों और तमाम उत्पीडि़त वर्गों-समूहों पर एक साथ हमला करके सभी को अपने खिलाफ कर लिया है। इस तरह उशने मजदूर वर्ग - गरीब किसान जनता की जुझारू जनता की ठोस जमीन तैयार कर दी है और देश की बहुसंख्य जनता को पूंजी की सत्ता के खिलाफ एकजुट होने का मौका मुहैया करा दिया है।

इस मौके का हमें लाभ उठाना चाहिए। गांव-गांव में गरीब किसानों की किसान समितियां और मजदूर समितियां गठित करना शुरू कर देना चाहिए। शहरों में मजदूर समितियों का गठन करके उन्हें कस्बे, ब्लॉक और गांव समितियों से एकताबद्ध करके ऐसा सांगठनिक ढांचा तैयार करना चाहिए जो एक व्यापक जन आंदोलन को संभाल सके, उसे सही दिशा दे सके। ऐसा नहीं है कि इतिहास आज पूंजीवादी नीतियों के पक्ष में है। इनका हर कदम इनके समूल नाश की दिशा में इन्हें ले जा रहा है। इसके खिलाफ देश की समस्त शोषित-उत्पीडि़त जनता की फौलादी एकता की जमीन तैयार होती जा रही है। हमें इस जमीन में सही फसल उगाने का काम तुरंत शुरू करना होगा।
(‘ऑल इंडिया वर्कर्स काउंसिल बुलेटिन’ से साभार)

Wednesday, July 7, 2010

लखनऊ में गैस रिसाव से छह मजदूरों की मौत

प्रशाशन की साठगांठ ने ली मजदूरों की जान, दस दिन पहले पुलिस ने मारा था छापा,
-एक की हालत गंभीर
-सॉस बनाने की फैक्ट्री में हुआ हादसा
लखनऊ, 7 जुलाई

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के तालकटोरा थाना क्षेत्र में सॉस बनाने वाली एक फैक्ट्री के टैंकर में बनी गैस की चपेट में आने से छह मजदूरों की की मौत हो गई है। इसमें एक महिला मजदूर भी शामिल है। एक मजदूर को गंभीर हालत में ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया गया। गुस्साये लोगों ने वहां वाहनों में तोडफ़ोड़ कर दी और सड़क जाम कर प्रदर्शन किया।
घटना गुरुवार शाम सात बजे की है।
मायापुरम कालोनी में सॉस बनाने वाली आकांक्षा फूड्स फैक्ट्री के टैंकर में केमिकल डालकर फलों को मिक्स किया जा रहा था। इसके बाद तैयार सॉस निकालने एक महिला मजदूर टैंकर के अंदर उतरी। कुछ देर तक जब महिला बाहर नहीं आयी तो एक-एक कर छह और मजदूर भी टैंकर में उतरे। टैंकर में जाने के काफी देर बाद जब वे वापस नहीं लौटे तो वहां मौजूद कर्मचारियों ने पुलिस व फायर ब्रिगेड को इसकी सूचना दी। पुलिस व दमकल ने मौके पर पहुंचकर बमुश्किल मृतकों के शव निकाले। लोगों का आरोप है कि दस दिन पहले पुलिस व जिला प्रशासन ने यहां छापा मारा था लेकिन लेनदेन कर सारा मामला दबा दिया गया।

एमसीडी के एक महिला समेत 14 सफाईकर्मियों को मिली जमानत

सात महीने से वेतन न मिलने पर सफाई कर्मचारियों ने किया था प्रदर्शन
पश्चिमी दिल्ली, 7 जुलाई


निगम उपायुक्त कार्यालय के बाहर वेतन की मांग को लेकर प्रदर्शन करने पर गिरफ्तार सभी 14 सफाईकर्मियों को महानगर दंडाधिकारी ने जमानत दे दी। वहीं प्रदर्शन 0में घायल पुलिस और आम जनता की मेडिकल रिपोर्ट में भी सामान्य चोटें आई हैं।
गौरतलब है कि 3 जून को 7 माह से वेतन न मिलने पर नजफगढ़ स्थित उपायुक्त कार्यालय के बाहर सफाईकर्मियों ने जम कर बवाल मचाया था। इस दौरान लो फ्लोर बस और पुलिस जिप्सी में भी आग लगा दी गई थी। साथ ही सफाईकर्मियों द्वारा किए गए पथराव में कई पुलिसकर्मी और आम लोग घायल हुए थे। इस पर पुलिस ने दंगा करने, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, जान से मारने समेत कई धाराओं में मामला दर्ज किया था। साथ ही दस पुरुष और चार महिला सफाईकर्मियों को गिरफ्तार कर द्वारका कोर्ट में पेश किया था। एक दिन न्यायिक हिरासत में रखने के बाद महानगर दंडाधिकारी ने चार महिलाओं को अंतरिम जमानत दे दी थी, जबकि पुरुष सफाईकर्मी न्यायिक हिरासत में चल रहे थे।
सोमवार को जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए महानगर दंडाधिकारी एन के लाका ने सभी चौदह सफाईकर्मियों को जमानत दे दी। सफाईकर्मियों की ओर से पेश वकील अवनीश राणा और वाईपी सिरोही ने बताया कि घायल पुलिसकर्मियों और जनता की मेडिकल रिपोर्ट न आने के चलते जमानत पर सुनवाई नहीं हो पा रही थी। बुधवार को मेडिकल रिपोर्ट महानगर दंडाधिकारी के समझ पेश कर दी गई। रिपोर्ट में सभी घायलों की चोटें सामान्य बताई गई हैं, जिसके चलते महानगर दंडाधिकारी ने सभी को जमानत दे दी है। वकील राणा ने आरोप लगाया कि सफाई कर्मियों को फंसाने के लिए पुलिस पर हमला दिखाया गया था।

रेलवे स्टेशन भगदड़ मामले में एनएचआरसी ने रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष को दिया नोटिस

नई दिल्ली, 7 जुलाई
मई महीने में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुए भगदड़ मामले का संज्ञान लेते हुए मानवाधिकार आयोग ने रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष और उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक को नोटिस जारी करते हुए उनसे रिपोर्ट देने को कहा है। आयोग ने इन्हें चार हफ्तों का समय देते हुए इनसे पीडि़त परिवार के लोगों को दिए मुआवजा संबंधी जानकारी मांगी है। उल्लेखनीय है कि बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूरों के गर्मी में घर वापसी के कारण भीड़ बढ़ गई थी जिसके कारण भगदड़ मच गई। अक्सर ही गर्मी में उत्तर प्रदेश और बिहार में शादियां होती हैं क्योंकि किसान गेहूं की फसल काट चुके होते हैं। ऐसे में मजदूरी कर रहे एनसीआर की एक बड़ी आबादी अपने घरों को रवाना होती है।
आयोग ने इस मामले का संज्ञान मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील प्रबीर कुमार दास के द्वारा दायर की गई एक शिकायत याचिका पर लिया है। दास ने अपनी शिकायत में यह आरोप लगाया है कि रेलवे के अधिकारियों की लापरवाही के कारण यह दुर्घटना हुई। दास ने इस मामले में आयोग से हस्तक्षेप कर जांच करने और जांच में दोषी पाए गए लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है।
गौरतलब है कि 16 मई को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर टे्रनों के प्लेटफार्म में अंतिम समय पर अदला-बदली करने से हुई इस दुर्घटना में दो यात्रियों की मौत हो गई थी और आठ अन्य घायल हो गए थे।

यहां नौकरानी को दासी बनाने वाले बेदाग छूट जाते हैं

नौकरानी को दास बनाने वाले वरिष्ठ राजनयिक को क्लीन चिट

नई दिल्ली, 7 जुलाई

यह भारत देश है। यहां नौकरानियों से बलात्कार, मारपीट और उत्पीड़न की घटना में बेदाग छूटना लक्जरी है। अपनी नौकरानी को दासी बनाने वाले एक वरिष्ठ राजनयिक को सरकार ने बुधवार को वस्तुत: क्लीन चिट दे दी। वह अमेरिकी अदालत में अपनी नौकरानी को दास बनाने के आरोपों का सामना कर रही है। विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि अपनी पूर्व नियोक्ता नीना मल्होत्रा के खिलाफ मुकदमा दायर करने वाली नौकरानी शांति गुरुंग उनके भारत लौटने के एक दिन पहले राजनयिक के न्यूयार्क स्थित घर से गायब हो गई थी।
विदेश मंत्रालय में निदेशक (दक्षिण) के पद पर फिलहाल कार्यरत मल्होत्रा ने गुरुंग को नौकरानी के तौर पर उस समय रखा था, जब वह साल 2006 में न्यूयार्क स्थित वाणिज्यिक दूतावास में पदस्थापित थीं।
सूत्रों ने बताया कि 19 वर्षीय गुरुंग ने मल्होत्रा के घर नौकरानी के तौर पर काम करने के लिए सहमति देने के बाद वीजा के लिए यहां स्थित अमेरिकी दूतावास गई थी।
उन्होंने बताया कि रोजगार की शर्तों पर सहमति बनी थी और गुरुंग को प्रत्येक माह 5000 रुपया दिया जाना था। मल्होत्रा एक साल के लिए न्यूयार्क में थीं और बाद में उनके पति वहां पहुंचे।
विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार चूंकि राजनयिक सुबह से लेकर शाम तक काम पर रहती थी इसलिए नौकरानी पर घर छोड़ दिया जाता था। उन्होंने कहा कि गुरुंग ने भारत की यात्रा भी की थी और अपने परिवार के साथ ठहरी भी थी। इसका खर्च मल्होत्रा ने वहन किया था।

नोएडा में बगावत पर उतरे विद्युत कर्मचारी

हड़ताल पर रोक के शासनादेश को किया दरकिनार
-22 व 23 जुलाई को करेंगे प्रदेशव्यापी हड़ताल
-केस्को को निजी हाथों में सौंपे जाने का विरोध करेंगे नोएडा की विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति


नोएडा, 7 जुलाई : बिजली कर्मचारी बगावत पर उतर आए हैं। शासन के निर्णय के विरोध में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने झंडा बुलंद कर दिया है। ऊर्जा निगमों के कर्मचारी व अभियंता कानपुर विद्युत आपूर्ति कंपनी (केस्को) को निजी एजेंसी टोरेंट पावर कंपनी को सौंपे जाने का विरोध कर रहे हैं। संघर्ष समिति ने हड़ताल पर रोक के शासनादेश को भी दरकिनार कर दिया है। विद्युत कर्मचारी 22 व 23 जुलाई को प्रदेशव्यापी हड़ताल करेंगे।
संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया कानपुर के बाद नोएडा को निजी हाथों में सौंपे जाने की सुगबुगाहट तेज हो गई है। शासन स्तर पर फायदे में चल रहे सभी मंडल को निजी कंपनी के हाथों में सौंपने का षडयंत्र रचा जा रहा है। बिजली क्षेत्र में सुधार ही करना है तो मऊ, गाजीपुर व आजमगढ़ मंडल को निजी कंपनी को सौंपा जाए।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बुधवार को नोएडा में इसकी घोषणा की। दुबे ने कहा कि उत्पादन, पारेषण व वितरण सभी क्षेत्र के कर्मचारी गांधीवादी तरीके से हड़ताल करेंगे। कार्य बहिष्कार कर प्रदेश के मुख्य व अधीक्षण अभियंता कार्यालय पर धरना दिया जाएगा। विद्युत निगम को प्रति यूनिट बिजली की उत्पादन लागत पांच रुपये पैंतीस पैसे पड़ रही है, जबकि आगरा में निजी कंपनी को एक रुपये 54 पैसे की दर से बिजली दी जा रही है। उन्होंने सवाल किया कि करोड़ों रुपये का घाटा उठाने के बावजूद कंपनी पर यह मेहरबानी क्यों? प्रदेश में बिजली की किल्लत होने पर केंद्रीय ग्रिड से 17 रुपये 46 पैसे प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदनी पड़ रही है। ऐसे में कंपनी को कौडिय़ों के भाव बिजली बेचना तर्कसंगत नहीं है। आगरा में दो हजार मिलियन यूनिट बिजली आपूर्ति हर साल की जाती है। कम दरों पर बिजली देने से निगम को सात सौ करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है। शासन राजस्व वसूली में कमी आने पर केस्को को निजी हाथों में सौंपने का हवाला दे रहा है। जबकि कानुपर बिजली आपूर्ति कंपनी ने सबसे अधिक साढ़े सत्रह फीसदी राजस्व वृद्धि दर्ज की है। निजी कंपनी के पीछे भागने का कारण जनता के पैसे को हड़पना है।
उन्होंने कहा कि कानुपर में डंकन फर्टिलाइजर्स कंपनी तीन साल से बंद पड़ी हुई थी। जेपी इसे खरीदकर जनवरी 2011 से शुरू करने जा रहा है। चार करोड़ यूनिट बिजली की कंपनी में हर महीने खपत है। इससे बीस करोड़ रुपये निगम को राजस्व के रूप में प्राप्त होते हैं। केस्को के निजी हाथों में चले जाने से निगम को मात्र आठ करोड़ रुपये मिलेंगे, जबकि 12 करोड़ रुपये कंपनी के खाते में जाएंगे। इसे देखते हुए ही संघर्ष समिति ने प्रदेश व्यापी आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया है। हड़ताल के बावजूद केस्को को निजी हाथों में सौंपने का निर्णय निरस्त नहीं किया गया, तो 24 जुलाई को कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे।

Monday, July 5, 2010

वेतन न मिलने पर एमसीडी के सफाई कर्मचारियों ने की हड़ताल

नई दिल्ली, 5 जुलाई
राजधानी के अनेक इलाकों में दिल्ली नगर निगम के सफाई कर्मचारी निगम द्वारा कथित तौर पर वेतन नहीं दिए जाने के खिलाफ काम नहीं कर रहे हैं। अधिकारियों ने कहा कि निगम के नजफगढ़, करोलबाग, शाहदरा उत्तर और दक्षिण, दक्षिण और मध्य दिल्ली जोन के कर्मचारी सप्ताहांत में काम पर नहीं आए।
आंदोलन को गैरकानूनी ठहराते हुए एमसीडी ने चेतावनी दी है कि सोमवार से काम के बजाय धरना-प्रदर्शन करने वाले सफाई कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जाएगी।
सफाई कर्मचारियों का एक सप्ताह से चल रहा आंदोलन एमसीडी को भारी पड़ रहा है। आयुक्त केएस मेहरा ने कर्मचारी नेताओं के साथ बैठक में उनकी अधिकतर मांगें ली थीं। स्थायी समिति अध्यक्ष योगेंद्र चंदोलिया भी सार्वजनिक तौर पर सफाई कर्मियों की मांगें मानने की घोषणा कर चुके हैं। इसके बावजूद आंदोलन खत्म होने के बजाय तेज हो गया है। एमसीडी प्रवक्ता दीप माथुर का कहना है कि प्रशासन ने आंदोलनकारी सफाई कर्मियों के प्रति अब कोई नरमी नहीं बरतने का फैसला किया है। उन्हें हर हाल में काम करना होगा। ऐसा नहीं करने पर विभागीय कार्रवाई होगी।
उधर, कर्मचारियों के आंदोलन के चलते एमसीडी का 1 जुलाई से शुरू हुआ विशेष सफाई अभियान टांय-टांय फिस्स है। आंदोलनकारियों ने जगह-जगह कूड़ा डालकर सफाई व्यवस्था चौपट कर दी है। शनिवार को तो उन्होंने उस कालोनी में उन्होंने प्रदर्शन किया, जिसमें मेयर पृथ्वीराज साहनी रहते हैं। उनकी कालोनी के चारों ओर सड़कों पर कर्मचारियों ने कूड़ा फैला दिया।
निगम ने कहा कि दैनिक वेतन वाले कर्मचारियों का पंजीकरण अभी उपस्थिति की बायोमेट्रिक प्रणाली में नहीं है और कुछ को इसके इस्तेमाल में तकनीकी कठिनाइयां आ रहीं हैं।
हड़ताली कर्मचारी चाहते हैं कि निगम में हाजिरी के लिए इस तरह की तकनीकी प्रणाली का इस्तेमाल नहीं किया जाए लेकिन एमसीडी इस मांग पर विचार नहीं कर रहा।
एमसीडी की स्थाई समिति के अध्यक्ष योगेंद्र चंडोलिया ने कहा कि सफाई कर्मचारी अनेक मुद्दों पर पिछले कुछ महीनों से हड़ताल कर रहे हैं। नियमितीकरण की उनकी मांग जायज है और इस पर विचार किया गया है, लेकिन उन्हें बायोमेट्रिक प्रणाली से हाजिरी लगानी चाहिए। हम किसी तकनीकी समस्या पर विचार करेंगे लेकिन इस प्रणाली को नहीं अपनाने का सवाल ही नहीं है।
सफाई कर्मियों को समय पर नहीं मिलता वेतन
गोहाना, 20 जून नगरपालिका के ठेके पर लगे सफाई कर्मचारियों को पिछले तीन माह से वेतन न मिलने के कारण उनमें रोष पनप रहा है। समय पर वेतन का भुगतान न होने के कारण सफाई कर्मचारियों की आजीविका भी प्रभावित हो रही है। कर्मचारियों ने बुधवार को एसडीएम से मुलाकात कर उनको हर माह समय पर वेतन का भुगतान करवाने की मांग की।
ठेके पर लगे सफाई कर्मचारी राजे, जितेंद्र, गौतम, विकास, देशराम, राजू, सतबीर, रिंकू, अनु, सीमा, अनीता, कविता, विजय, नीरू, सुनीता, रानी, राजेश आदि वेतन समस्या को लेकर बुधवार को एसडीएम से मिलने पहुंचे। मौके पर मौजूद सफाई कर्मचारियों ने कहा कि उनको तीन माह से वेतन नहीं मिल है। वेतन न मिलने के कारण उनके घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया है। उनका परिवार भुखमरी की कगार पर पहुंच चुके हैं। उनके बच्चों की पढ़ाई की फीस भी नहीं दी जा रही है, जिसकी वजह से उनके बच्चे में परेशानी में हैं और वे भी अपनी पढ़ाई ठीक तरह से नहीं कर पा रहे हैं। कर्मचारियों ने एसडीएम से गुहार लगाकर उनको समय पर वेतन देने की मांग की।


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Sunday, July 4, 2010

बंद के खिलाफ भ्रामक प्रचार कर रही है कांग्रेस सरकार

नई दिल्ली,एजेंसी
पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत बढोतरी के विरोध में भाजपा और वाम सहित विभिन्न दलों के कल के भारत बंद को '' राष्ट्र की प्रगति में बाधक ÓÓ बताने वाले आज जारी सरकारी विज्ञापनों की विपक्ष ने कड़ी निंदा की है। उसने कहा कि विपक्ष से राय मश्विरा करके मंहगाई का समाधान निकालने की बजाय सरकार विज्ञापनों पर करोडों रूपए खर्च कर जनता को गुमराह कर रही है।
पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की ओर से जारी विज्ञापन में भारत बंद को समस्या का समाधान नहीं बताते हुए कहा गया है कि पाकिस्तान में रसोई गैस सिलिण्डर की कीमत 577 रूपए, बांग्लादेश में 537, श्रीलंका में 822 और नेपाल में 782 रूपए है जबकि भारत में इसकी कीमत महज 345 रूपए है।
राजग के कार्यकारी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी और संयोजक शरद यादव ने इन विज्ञापनों पर सख्त आपत्ति जताते हुए इन्हें जनता को गुमराह करने वाला बताया। राजग की बैठक के बाद इन नेताओं ने कहा कि सरकार ने ए तो बताया कि रसोई गैस भारत के मुकाबले उक्त देशों में सस्ती है लेकिन इस बात को छिपा गई कि पेट्रोल और डीजल के दाम इन्हीं देशों में भारत के मुकाबले कहीं कम है।
पेट्रोल पाकिस्तान में 22 रूपए, बांग्लादेश में 26, नेपाल में 34, अफगानिस्तान में 30 और म्यांमार में 36 रूपए प्रति लीटर बिक रहा है जबकि भारत में यह 53 रूपए प्रति लीटर है।

भारत बंद से पहले मुंबई में हजारों लोगों को गिरफ्तार किया

मुंबई, 4 जुलाई
ईंधन के दाम बढ़ाने के खिलाफ विपक्षी दलों के सोमवार को राष्ट्रव्यापी बंद के मद्देनजर किसी अप्रिय घटना को टालने के इरादे से पुलिस ने आज एक हजार से ज्यादा शरारती तत्वों को यहां एहतियातन हिरासत में ले लिया।
पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ''बतौर एहतियात, हमने शहर के विभिन्न इलाकों से ऐसे एक हजार से ज्यादा शरारती तत्वों को हिरासत में लिया है जो हिंसा में शामिल हो सकते हैं। इनमें से कुछ को अदालतों में पेश करके पुलिस हिरासत में लिया गया है जबकि बाकी को सोमवार को पेश किया जाएगा।ÓÓ
उन्होंने बताया, ''हमने अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 149 के तहत नोटिस जारी किए, जो पुलिस को संज्ञेय अपराध रोकने की इजाज़त देती है। हमने विभिन्न राजनीतिक दलों के दो हजार से ज्यादा कार्यकर्ताओं को नोटिस जारी किया। कोई भी व्यक्ति या राजनीतिक दल जो हिंसा या आगजनी में शामिल हुआ तो उसे मुआवजे की भरपाई करनी होगी।ÓÓ
तमिलनाडु सरकार ने कल आहूत भारत बंद के दौरान किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है। इस बंद का आह्वान विपक्षी दलों ने ईंधन की कीमतों में वृद्धि के खिलाफ किया है।
रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों और बस अड्डों समेत सभी महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थलों पर पुलिस सुरक्षा मुहैया कराई गई है। उन्होंने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो चलती बसों को भी सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी।
सरकार ने सामान्य जनजीवन को बाधित करने का प्रयास करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी है।
अन्नाद्रमुक, वाम दलों और उनके सहयोगी दलों के अतिरिक्त भाजपा ने कल भारत बंद का आह्वान किया है।