11 बर्खास्त कर्मचारी वापस हुए, शनिवार से कामकाज शुरू करेंगे कर्मचारी
मानेसर स्थित मारुति सुजकी इंडिया में नई यूनियन के गठन को लेकर चली आ रही श्रमिक हड़ताल का पटाक्षेप बृहस्पतिवार की देर रात हो गया। श्रमिक शनिवार से कामकाज शुरू करेंगे।
हरियाणा के श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) शिवचरण लाल शर्मा की मध्यस्थता में श्रमिकों व प्रबंधन के बीच बृहस्पतिवार की देर रात हुई बैठक में एक ऐसा समझौता हुआ है जिससे यह पता चलता है की तेरह दिनके अपने शानदार संघर्ष के बावजूद हरियाणा सरकार और मारुति प्रबन्धन के मिलीभगत और दबाव के चलते मजदूरों को कुछ झुक कर समझौता करना पड़ा है। समझौते के तहत मारुति सुजकी इंडिया द्वारा बर्खास्त किए गए सभी 11 कर्मियों को वापस काम पर ले लियागया है। नई यूनियन की माँग के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है ऐसा लगता है की उसके प्रस्ताव को टाल दिया गया। बीबीसी ने यह खबर दी है कि " कर्मचारी संगठनों ने अलग यूनियन बनाने की मांग छोड़ दी है"। जबकि एन ड़ी टी वी खबर का कहना है कि "कर्मचारी भी प्रबंधन की इस मांग के सामने झुक गए हैं कि कम्पनी में दूसरी यूनियन नहीं बनेगी।" नवभारत टाइम्स के अनुसार "यूनियन बनाने पर कोई चर्चा नहीं हुईं।"
श्रम मंत्री शिवचरण लाल शर्मा के हवाले से सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि शनिवार से सभी कर्मचारी काम पर लौटेंगे। शुक्रवार को कंपनी में अवकाश घोषित कर दिया गया है। इसके बदले कर्मचारी रविवार को काम करेंगे। हड़ताल पर रहे कर्मियों का 13 + 13 (तेरह दिन की हड़ताल और इतने ही दिन का वेतन) का वेतन काटा जाएगा। बर्खास्त किए गए वे 11 कर्मचारी जिन्हें काम पर वापस ले लिया गया है, की प्रबंधन द्वारा अनुशासनात्मक जांच की जाएगी। श्रमिकों ने मारुति प्रबंधन, श्रम मंत्री और श्रम अधिकारियों को आश्वासन दिया कि 13 दिनों की हड़ताल के दौरान जो उत्पादन प्रभावित हुआ है, उसे अतिरिक्त काम कर पूरा करेंगे।
सिविल लाइन स्थित पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस में दोपहर 2 बजे से प्रदेश सरकार, जिला प्रशासन, मैनेजमेंट और कर्मचारी प्रतिनिधियों के बीच शुरू हुई बातचीत देर रात तक चलती रही। बैठक में मारुति सुजकी इंडिया प्रबंधन की ओर से एलके जैन, आरएस गांधी, अनिल गौड़, सीएस राजू, श्रम विभाग के वित्तायुक्त सरबन सिंह, श्रमायुक्त सतवंसी अहलावत, अतिरिक्त श्रमायुक्त नितिन यादव, उपायुक्त पीसी मीणा, उप श्रमायुक्त जेपी मान तथा श्रमिकों की ओर से रविंदर कुमार, ऋषिपाल, सोनू कुमार,नवीन कुमार, शिव कुमार, सुमित ने समझौता पर हस्ताक्षर किए।
इस पूरे प्रकरण में हरियाणा सरकार और उसके श्रम विभाग का आचरण शुरू से बहुत घृणास्पद और संदेहजनक रहा है। समझौते से ठीक पहले प्रदेश के श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पंडित शिवचरण लाल शर्मा के बयान से भी यह बात साबित हो जाती है। एक संवाददाता से बातचीत में ने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि मारुति कंपनी में चल रहा श्रमिक विवाद जल्द ही सुलझ जाएगा। इसके लिए वे हर स्तर पर प्रयासरत है। अपनी मध्ययुगीन पितृसत्तात्मक सोच जाहिर करते हुए उनका कहना था कि ऐसा विवाद फिर कहीं पैदा न हो, इसके लिए मालिक व श्रमिक के बीच बाप-बेटे जैसा संबंध स्थापित करने पर बल देना होगा। कितने नायब विचार है। ऐसा व्यक्ति जिसे भारत के श्रम कानूनों की भी कोई जानकारी नहीं है और यह भी नहीं जानता है कि मालिक- मजदूरों के बीच का सम्बन्ध अधिकारों के संतुलन के आधार पर चलता है न कि उनकी पितृसत्तात्मक सोच के अनुरूप एक राज्य का श्रम मंत्री कैसे हो सकता है।
फ़िलहाल आन्दोलन समाप्त हो गया है लेकिन इसका सार संकलन किया जाना और उससे सबक निकला जाना अभी बाकी है।
बाल श्रम,आत्महत्याएं,औद्योगिक दुर्घटनाएं
23 मार्च
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हड़ताल
Thursday, June 16, 2011
Wednesday, June 15, 2011
अपील : मारुति सुजुकी के संघर्षरत मजदूरों को सहयोग और समर्थन तेज करें !
मानेसर स्थित मारुति सुजुकी इंडिया के संयंत्र में हड़ताल आज बारहवें दिन भी जारी रही। आज, बुधवार को हड़ताली मजदूरों और प्रबंधन या प्रशासन के बीच कोई वार्ता नहीं हुई । इस तरह कल मुख्य मंत्री भूपिंदर सिंह हूडा के जिस अपील पर अन्य कारखानों में सांकेतिक हड़ताल स्थगित कर दी गयी थी, वह खोखली साबित हुई। हड़ताली मजदूरों की जायज माँगों पर कोई तवज्जो देने की जगह आज शाम मुख्य मंत्री भूपिंदर सिंह हूडा ने मारुति सुजुकी इंडिया के प्रबन्ध निदेशक और सी ई ओ शिंजो नाकानिशी और अन्य उच्चाधिकारियों से मुलाकात की और ऐसा समझा जाता है कि उन्हें नयी यूनियन न बनाने देने में सरकार के सहयोग का आश्वासन दिया।
दूसरी ओर, अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) के महासचिव अनिल कुमार ने बताया कि "हम मारुति सुजुकी श्रमिकों के साथ एकजुटता में 17 जून को एक दिन का भूख हड़ताल करेंगे और 20 जून को दो घंटे के लिए काम बन्द रखा जाएगा। अगर तब तक एक अलग यूनियन और 11 बर्खास्त कर्मचारियों की बहाली की मांग को स्वीकार नहीं कर लिया जाता है।" कुमार के अनुसार, मजदूर 17 जून को काम पर तो आएंगे लेकिन वे भूखे रहेंगे और 20 जून को गुड़गांव, रेवाड़ी, धारूहेड़ा और मानेसर के हरियाणा के औद्योगिक क्षेत्रों में स्थित कारखानों में से अधिकांश में दो घंटे तक उत्पादन ठप रखा जायेगा।
गुड़गांव, रेवाड़ी, धरुहेरा और मानेसर और अन्य सभी जगह से 65 कारखानों के 20,000 से अधिक मजदूरों द्वारा 17 जून को भूख हड़ताल और 20 जून को सुबह 11 बजे से दोपहर एक बजे तक टूल डाउन में शामिल होने की सहमति देने का समाचार मिला है।
इस हड़ताल के बारे में मारुति प्रबंधन द्वारा बार बार अपना रुख बदलने और पिछले बारह दिनों से भूखे प्यासे फैक्टरी शेड में धरना दे रहे मजदूरों को बिजली-पानी तक की सुविधा से वंचित रखने एवं उन्हें अब भी तरह तरह से उत्पीड़ित करने से यह साफ हो गया है की वह समस्या का न्यायसंगत समाधान के बारे में गम्भीर नहीं है। वह सिर्फ यह चाहता है कि संघर्षरत मजदूरों को थका कर समर्पण करने के लिए बाध्य कर दिया जाय। हरियाणा सरकार और उसके श्रम विभाग का रवैया तो और भी घृणास्पद है। उसके श्रम विभाग के अधिकारियों द्वारा नए यूनियन के गठन की गोपनीय सूचना को मारुति प्रबंधन को लीक करने से चलते ही यह संकट पैदा हुआ और जब से वार्ताओं को दौर शुरू हुआ, उन्होंने लगातार मारुति प्रबंधन को अपना रुख बदलने की इजाजत दी। ऐसे में लगता यही है कि लड़ाई लम्बी खिंच गई है।
लेकिन फिर भी यह लड़ाई महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे न केवल मारुति कर्मचारियों के भविष्य का फैसला होने वाला है बल्कि, इस बात का भी फैसला होने वाला है कि न सिर्फ इस औद्योगिक क्षेत्र में बल्कि पूरे उत्तर भारत में भविष्य में मजदूरों को अपनी जायज मांगों के लिए संघर्ष करने और उसके लिए जरूरत के अनुसार संगठनों का निर्माण करने की इजाजत होगी कि नहीं। यह सिर्फ जनतांत्रिक अधिकारों को हासिल करने का सवाल नहीं है बल्कि, अतीत के संघर्षों से हासिल जनतांत्रिक अधिकारों को बनाए रखने का भी सवाल है। इस रूप में मारुति के नौजवान मजदूर सिर्फ अपने हकों की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं बल्कि, पूरे मजदूर वर्ग और आम जनता की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनकी लड़ाई आज ऐसे मुकाम पर है कि उसे बहुत समझदारी और साहस के साथ आगे ले जाने के जरूरत है। इस काम में उन्हें हर बुद्धिजीवी, हर मजदूर, नौजवान के सहयोग और समर्थन की जरूरत है। हमें एक बार फिर सभी सामाजिक-राजनीतिक संगठनों, उनके कार्यकर्ताओं, प्रगतिशील और जनपक्षधर बुद्धिजीवियों और आम जनता से इन संघर्षरत मजदूरों को हर संभव सहयोग और समर्थन करने की अपील करते हैं।
साथ ही हम यह समझते हैं कि मारुति सुजुकी के मजदूरों का १२ दिन पुराना संघर्ष अब एक बहुत ही नाजुक दौर में प्रवेश कर रहा है। यह एक ऐसा दौर है जब प्रबंधन और प्रशासन यह कोशिश करते हैं कि मजदूर थक हार कर हथियार डाल दें। और अगर ऐसा नहीं होता है तो उनकी ओर से भड़काऊ कार्रवाईयां की जाती हैं जिससे कि उनका आड़ लेकर आन्दोलन का निर्ममता पूर्वक दमन किया जा सके, जैसा कि पिछले दिनों होण्डा के आन्दोलन में हुआ था। हम चाहते हैं कि जो भी संगठन या व्यक्ति इन हड़ताली मजदूरों का समर्थन करना चाहते हैं, वे अपनी ओर से पूरे संयम का परिचय दें और ऐसी कोई कार्रवाई न करें जिससे कि प्रशासन और प्रबंधन को हिंसा की कार्रवाई का बहाना मिल जाए।
हम प्रस्तावित करते हैं कि
१- सभी लोग हरियाणा के मुख्यमंत्री, श्रममंत्री, गृहमंत्री के पास मजदूरों के इस आंदोलन के समर्थन में अधिक से अधिक संख्या में ईमेल, पत्र और तार-फैक्स भेजें और भिजवाएं।
२- मारुति सुजुकी गेट के सामने पहुंच कर धरने पर बैठे मजदूरों के प्रति अपने सहयोग और समर्थन का इजहार करें।
३-इस आंदोलन, उसकी पृष्ठभूमि, आव्यशकता और प्रासंगिकता के बारे में अधिक से अधिक लोगों को सूचित करें और यदि संभव तो प्रचार अभियान चलाएं।
४- मजदूरों के लिए सहयोग और समर्थन जुटाने के लिए अपने-अपने इलाकों में बैठकें और आम सभाएं आयोजित करें।
Tuesday, June 14, 2011
चूहे बिल्ली का खेल खेल रहा है मारुति सुजीकी का मैनेजमेंट
मानेसर से लौटकर विस्तृत रिपोर्ट
10 दिन से मानेसर के मारुति सुजुकी प्लाण्ट में 2000 मजदूर हड़ताल हैं, जिनमें तकरीबन एक हजार मजदूर फैक्ट्री के अंदर बने शेड में 10 दिन से धरने पर बैठे हुए हैं। कल सोमवार को जारी बातचीत टूटने के बाद अब यह आग पूरे गुड़गांव मानेसर में फैलती नजर आ रही है। मानेसर गुड़गांव की लगभग 60- 65 फैक्ट्रियों की यूनियनों के करीब 50 हजार वर्करों ने धरने पर बैठे मजदूरों के समर्थन में आज दो घंटे का टूल डाउन करने की घोषणा की है। इन यूनियनों में हीरो होण्डा, होण्डा मोटर साइकिल इंडिया और रिको आटो जैसी बड़ी फैक्ट्रियों की यूनियनें भी बढ़चढ़ कर भाग ले रही हैं। एटक के अलावा सीटू, इंटक, एचएमएस से जुड़ी हुई यूनियनों के अलावा रिको जैसी फैक्ट्रियों की स्वतंत्र यूनियनें भी इस टूल डाउन को सफल बनाने की कोशिश कर रही हैं।
मानेसर मारुति वर्करों की कल 13 जून को हड़ताल के दसवें दिन मैनेजमेंट और कर्मचारियों के बीच दिन भर वार्ताओं का दौर चलता रहा। देर शाम तक मैनेजमेंट के अड़ियल रवैये और बार-बार अपना रुख बदने के चलते बातचीत टूट गई। पहले तो ऐसा लग रहा था कि मैनेजमेंट नई यूनियन को मान्यता देने पर सहमत हो गया है लेकिन वह मजदूरों द्वारा अपने बर्खास्त साथियों को वापस लिए जाने की मांग पर मैनेजमेंट ने ऐसा दिखाया कि मानो वह उससे सहमत हो गया है। लेकिन उसने अपनी ओर से यह नई शर्त रख दी कि सभी 11 बर्खास्त वर्करों को वापस लिए जाने की स्थित में मजदूरों को मैनेजमेंट की पिट्ठू पुरानी यूनियन को मान लेना पड़ेगा। ऐसी स्थित में बातचीत का टूटना लाजिमी था।
दूसरी ओर, कल दूसरे दिन मानेसर स्थित होण्डा और मानेसर गुड़गांव बेल्ट के अन्य फैक्ट्रियों के वर्करों ने आम सभाओं के माध्यम से हड़ताली मजदूरों का समर्थन किया और घोषणा की कि यदि वार्ताएं बेनतीजा रहती हैं तो वे अगले दिन यानी आज, दिन मंगलवार 14 जून को दो घंटे का टूल डाउन करेंगे। ऐसे उम्मीद है कि आज पूरे गुड़गांव मानेसर बेल्ट में विभिन्न फैक्ट्रियों के 50,000 से अधिक मजदूर इस सांकेतिक हड़ताल में हिस्सेदारी करेंगे। इस हड़ताल को नेतृत्व दे रहे एटक के अलावा इन्टक, एचएमएस भी इसमें शिरकत करेंगी।
कल दोपहर तीन बजे, होण्डा, मानेसर के गेट पर हुई मजदूरों की सभा को सम्बोधित करते हुए एटक के सुरेश गौड़ ने अधिक से अधिक संख्या में मजदूरों को मंगलवार को होने वाले टूल डाउन में शामिल होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि मारुति सुजुकी मानेसर के वर्कर साथियों के साथ जो कुछ हो रहा है वह सिर्फ उन्हीं का मुद्दा नहीं है, यह सभी मजदूरों का मुद्दा है और मजदूर वर्ग की आपसी एकजुटता की मिशाल कायम करनी चाहिए।
नलों और बाथरूम तक पर ताला जड़ा
एक तरफ मैनेजमेंट की तरफ से यह बयान आया है कि वह अपने कर्मचारियों की बहुत चिंता करता है और उसके सीएमडी भार्गव कैंटीन में मजदूरों के साथ लाइन में ही खड़ा होकर खाने की प्लेट का इंतजार करते हैं। दूसरी ओर असली स्थित यह है कि इस भीषण गर्मी में टीन शेड के नीचे 10 दिन से धरने पर बैठे एक हजार मजदूरों के लिए पानी के नलों तक को बंद कर दिया गया है। यहां तक कि एक को छोड़कर बाकी सभी बाथरूमों पर ताला जड़ दिया गया है और कैंटीन तो बंद है ही। मजदूर बाहर से खाना मंगा रहे हैं। परिजनों, शुभचिंतकों और यहां तक कि पत्रकारों को भी मजदूरों से मिलने और बातचीत करने नहीं दिया जा रहा है। जो भी वहां जाता है उसे गेट पर तैनात सिक्यूरिटी गार्ड और मैनेजमेंट के लोग सीधे कम्पनी के पीआरओ से मिलने की सलाह देते हैं। हड़ताली मजदूरों के परिजनों से हमें पता चला है कि जिस दिन धरना शुरू हुआ उस दिन मैनेजमेंट की ओर से वर्करों के घरों पर ढोरों फोन किए गए जिनमें उनको धमकी दी गई और परेशान किया गया। जिसके चलते कई मजदूरों के रिश्तेदार धरना स्थल पर पहुंच गए और रोने गाने की स्थिति पैदा हो गई। यह सब कुछ जानबूझ कर वर्करों के मनोबल को तोड़ने के लिए गया था। आखिर अपने प्रिय मजदूरों को मैनेजमेंट इतनी सुविधाएं देकर अपनी मांग मनवाने का यह एक नायाब तरीका अख्तियार किया है।
रोज ही बेहोश हो रहे हैं मजदूर
पता चला है कि भीषण गर्मी और पानी न मिलने की वजह से प्रतिदिन दो चार वर्कर बेहोश हो जाते हैं, जिनकी चिकित्सा की कोई व्यवस्था वहां उपलब्ध नहीं है। हालांकि धरना अभी तक पूरी तरह से शांतिपूर्ण रहा है लेकिन फैक्ट्री प्रबंधन को वहां सैकड़ों की संख्या में निजी सिक्यूरिटी गार्ड तैनात करने की तो सुध है लेकिन अपने ही कर्मचारियों को कुछ बुनियादी सुविधाएं ही उपलब्ध कराने के ख्याल नहीं है। धरना शुरू होने के दूसरे दिन मजदूरों के कुछ शुभचिंतकों ने फैक्ट्री के बाहर टेंट लगाकर उनके लिए कुछ सुविधाएं मुहैया करते रहने की कोशिश की लेकिन मानेसर पुलिस ने उनके टेंट उखाड़कर उन्हें वहां से भगा दिया।
धरने पर बैठे एक मजदूर ने हमें टेलीफोन से सूचित किया कि इन सारी परिस्थितियों के बावजूद वर्करों का मनोबल ऊंचा है और वह अपनी दोनों मांगों- अपनी यूनियन को मान्यता दिए जाने और बर्खास्त साथियों को वापस लिए जाने पर किसी तरह का समझौता करने पर तैयार नहीं हैं। जबकि मैनेजमेंट यह चाहता है कि मजदूरों में फूट डालकर हड़ताल को खत्म करवा दे। अतः कभी वे पांच बर्खास्त मजदूरों को वपास लेने तो कभी छह को वापस लेने की बात कर रहा है।
मजदूरों द्वारा गठित ताजा मारुति सुजुकी एम्प्लाइज यूनियन (एमएसईयू) के महासचिव शिव कुमार ने कहा है कि प्रबंधन द्वारा छह जून को बर्खास्त किए गए सभी 11 वर्करों को वापस लेना ही होगा।
मैनेजमेंट मीडिया के माध्यम से फैक्ट्री को हो रहे घाटे का बढ़ाचढ़ा कर प्रचार कर रहा है लेकिन इस घाटे के लिए असल में वही जिम्मेदार है और वह जानी समझी रणनीति के तहत यह घाटा बर्दास्त कर रहा है। इसके पीछे उस इलाके के सभी फैक्ट्रियों के प्रबंधन का सहयोग हासिल है। जो यह समझते हैं कि यदि मजदूरों द्वारा अपनी मनपसंद यूनियन के गठन की मांग को एक बार मान लिया गया तो भविष्य में सभी फैक्ट्रियों में उनकी मनमानियां नहीं चल पाएंगी और मजदूरों को वे सुविधाएं देनी पड़ेंगी जिनके वे हकदार हैं। जिस तरह से कोई फैक्ट्री बोर्ड का यह विशेषाधिकार है कि वह अपने फैक्ट्री के लिए जैसा भी उचित समझे, प्रबंधन का चुनाव करे, उसी तरह से यह मजदूरों का विशेषाधिकार है कि वह जैसा भी उचित समझे अपने लिए वैसी ही यूनियन का निर्माण करे और जिसे भी उचित समझे उसका पदाधिकारी बनाए। यह एक बुनियादी किस्म का और संविधान प्रदत्त अधिकार है। दरअसल, इस अधिकार को सदा के लिए छीन लेने के उद्देश्य से ही फैक्ट्री प्रबंधन ने इतना अड़ियल रवैया अख्तियार किया हुआ है। और इसी के चलते उसे अपने इस मकसद में इलाके में तमाम फैक्ट्रियों के प्रबंधकों और सम्पूर्ण मालिक वर्ग का सहयोग और समर्थन हासिल हो रहा है। हरियाणा सरकार और श्रम मंत्रालय के अधिकारी भी अपनी मालिक परस्त नीतियों के चलते इनका समर्थन कर रहे हैं और वार्ताओं में उनकी दखलंदाजी भी निष्पक्ष नहीं है।
मारूति के मजदूर कभी बीमार नहीं पड़ते
प्रबंधन ऐसा मान कर चलता है कि उसके कम्पनी के वर्कर कभी बीमार नहीं होते। शायद इसीलिए यहां मजदूरों को सिक लीव का प्रावधान नहीं है। मारुति सुजुकी, मानेसर में 900 परमानेंट कर्मचारी हैं जिन्हें 16,000 रुपये की तनख्वाह मिलती है। हर परमानेंट कर्मचारी को साल भर में सिर्फ 20 छुट्टी मिलती है। हर उस दिन की छुट्टी के लिए, जो कि स्वीकृत नहीं है, हर मजदूर की तनख्वाह से 1200 से लेकर 1600 रुपये की कटौती होती है। इस तरह से केवल स्थाई कर्मचारियों को 11 दिन के हड़ताल से नुकसान एक करोड़ 8 लाख रुपये से लेकर एक करोड़ 58 लाख रुपये के बीच होगा। ऐसा केवल स्थित में होगा जब एक दिन के हड़ताल पर केवल एक दिन की तनख्वाह काटी जाए और कोई पेनाल्टी न लगाई जाए।
संयंत्र में 1500 ट्रेनी कर्मचारी हैं जिन्हें 12,000 वेतन मिलता है और स्थायी बनाए जाने के लिए उन्हें तीन वर्ष तक इसी स्थिति में रहना होता है। 600 कैजुअल वर्कर हैं। हरेक कैजुअल वर्कर को 6,500 रुपये वेतन मिलता है। दोनों ही ट्रेनी और कैजुअल वर्कर को बिना स्वीकृत छुट्टी के लिए उनकी तनख्वाह से प्रति दिन 1200 रुपये की कटौती होती है।
एक न्यूज चैनल के पत्रकार द्वारा किए गए तुलनात्मक अध्ययन से यह स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि देश के सबसे बड़े कार निर्माता मारुति सुजुकी के कर्मचारियों को मिलने वाली तनख्वाहें और सुविधाएं इस उद्योग के अन्य क्षेत्रों मसलन होण्डा मोटर्स में मजदूरों को प्राप्त होने वाली तनख्वाहों और सुविधाओं से बहुत नीचे हैं।
मजदूरों की यह भी मांग है कि स्वास्थ्य सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की जाए और सिक लीव को फिर से बहाल किया जाए। गुड़गांव में मकान के किरायों में जितनी तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है उसे देखते हुए वे किराया भत्ता को बढ़ाकार 1400 से 4,000 रुपये करने और 600 रुपये महीने आवागमन भत्ता देने की मांग कर रहे हैं जैसा कि हीरो होण्डा के वर्करों को दिया जाता है।
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