बाल श्रम,आत्महत्याएं,औद्योगिक दुर्घटनाएं
23 मार्च
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Saturday, June 19, 2010
शादियों का स्याह पहलू
बैंड वालों के पीछे सिर पर लाइट लेके चलने वालों की जिंदगी
देश में शादियां होती हैं धूम धड़ाके से, लाखों से लेकर करोड़ों रुपये स्वाहा किए जाते हैं। लेकिन बरातों में सड़क पर रौशनी फैलाने वालों की मेहनत की कीमत होती है 100 रुपये। गोलगप्पे और रसगुल्ले खूब उड़ाए जाते हैं लेकिन उन्हें जूठन भी नसीब नहीं होती। इलाहाबाद में ये महिलाएं सिर पर लाइट ढो रही हैं। इन्हें 100 रुपये की दिहाड़ी मिलती है। बैंडबाजे के पीछे पीछे इन्हें घंटों यूं ही चलना पड़ता है।
बैंड बाजों में काम करने वालों की हालत तो और बुरी होती है। बाजा बजाने वालों को टीबी की बीमारी बहुत जल्दी होती है। आधी रात तक काम करने और जगने की स्थिति में उनकी सेहत और खराब होती जाती है। उन्हें न तो कोई सामाजिक सुरक्षा मुहैया है और न मेहनताने का कोई ठीक सिस्टम। ये संगठित हों भी तो कैसे और मांग भी रखें तो क्या।
Thursday, June 17, 2010
ड्यूटी जाते समय कर्मचारी को ट्रक ने टक्कर मारा, मौत
ग्रेटर नोएडा,17 जून: नोएडा मजदूरों और हुनरमंद लोगों और नौजवानों के लिए एक हब बनाता जा रहा है। देश में सबसे तेजी से यहां उद्योग धंधे बढ़ रहे हैं। सुबह शाम मजदूरों का यहां रेला मिल जाएगा लेकिन मजदूरों की आए दिन सड़क हादसों और ड्यूटी के वकत् हुई दुर्घटनाओं में जान जाती है। बृहस्पतिवार को ग्रेटर नोएडा में एक निजी कंपनी में काम करने वाला कर्मचारी ड्यूटी को निकला लेकिन रास्ते में ट्रक ने टक्कर मार दी और उसकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई।
सूरजपुर कस्बे में बृहस्पतिवार सुबह ट्रक की टक्कर से बाइक सवार युवक की मौत हो गई। चालक ट्रक छोड़कर फरार हो गया। पुलिस ने मामला दर्ज कर शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है।
बिहार के दरभंगा का रहने वाला जीत (28) सूरजपुर में किराये का कमरा लेकर रहता था। वह निजी कंपनी में नौकरी करता था। बृहस्पतिवार सुबह बाइक से ड्यूटी पर जा रहा था। रास्ते में ट्रक ने उसकी बाइक में टक्कर मार दी। गंभीर रूप से घायल होने पर जीत की मौके पर ही मौत हो गई।
ठेकेदारी प्रथा के कारण अभी यह भी संशय है कि उसे कंपनी मुआवजा देगी भी कि नहीं। नोएडा में ऐसी घटनाएं रोजाना हो रही हैं लेकिन प्रशासन के लिए ये सब सामान्य घटनाएं है। मजदूरों की जिंदगी उतनी महंगी नहीं है जितनी की अरुषि की थी।।
सूरजपुर कस्बे में बृहस्पतिवार सुबह ट्रक की टक्कर से बाइक सवार युवक की मौत हो गई। चालक ट्रक छोड़कर फरार हो गया। पुलिस ने मामला दर्ज कर शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है।
बिहार के दरभंगा का रहने वाला जीत (28) सूरजपुर में किराये का कमरा लेकर रहता था। वह निजी कंपनी में नौकरी करता था। बृहस्पतिवार सुबह बाइक से ड्यूटी पर जा रहा था। रास्ते में ट्रक ने उसकी बाइक में टक्कर मार दी। गंभीर रूप से घायल होने पर जीत की मौके पर ही मौत हो गई।
ठेकेदारी प्रथा के कारण अभी यह भी संशय है कि उसे कंपनी मुआवजा देगी भी कि नहीं। नोएडा में ऐसी घटनाएं रोजाना हो रही हैं लेकिन प्रशासन के लिए ये सब सामान्य घटनाएं है। मजदूरों की जिंदगी उतनी महंगी नहीं है जितनी की अरुषि की थी।।
जी हां पुनीत! पूंजीवाद सड़ती हुई लाश है, ऐसे
बात शुरू हुई थी प्रणव एन की पोस्ट मुद्दा गरीबी नहीं बराबरी है मेरे दोस्त से। पुनीत ने इस पर विचारोत्तेजक कमेंट लिखा जिसे हमने पोस्ट के रूप में यहां पेश किया पूंजीवाद सड़ती हुई लाश है? भला कैसे, यह तो बताएं अब पुनीत के सवालों को संबोधित कर रहे हैं खुद प्रणव एन। पाठक स्वतंत्र हैं इस पूरी बहस में अपनी राय बनाने और व्यक्त करने के लिए - मालंच)
प्रणव एन.
‘मेरी आवाज ही पर्दा है मेरे चेहरे का
मैं हूं खामोश जहां, मुझको वहां से सुनिए'
पुनीत ने जो कहा है, वहां मैं बाद में आऊंगा। शुरू मैं वहां से करता हूं जहां पुनीत चुप हैं। उन्होंने शुरू ही इस वाक्य से किया है, ‘बाकी सब तो ठीक है...’मैं पूछना चाहता हूं पुनीत, क्या ठीक है? चूंकि आपने मेरी पोस्ट पर कमेंट किया है तो यही मानना पड़ेगा कि आपको मेरी पोस्ट की बाकी बातें ठीक लगीं, बस पूंजीवाद को सड़ती हुई लाश बताकर मैंने गलती की .. सॉरी तथ्यों की बेइज्जती कर दी आपके शब्दों में।
इसका मतलब, आप मानते हैं कि पूंजीवाद मूलतः विषमता बढाने वाली व्यवस्था है? आप जानते हैं कि ट्रासंपैरेंसी इंटरनैशनल की रिपोर्ट के मुताबिक इस देश के मात्र 23 परिवारों के पास 215 अरब डॉलर की घोषित संपत्ति है (यह तो तथ्य है ना आपके हिसाब से भी? ) । इसके बरक्स दूसरा तथ्य भी आप जानते होंगे कि सरकारी आंकड़ो के ही मुताबिक इस देश के 77 फीसदी लोग 20 रुपए रोज पर गुजारा कर रहे हैं?
आप कहेंगे जिसमें जितनी कूवत है उसने उतना कमाया। यानी जिसकी जितनी क्षमता है उसे उतना कुछ हासिल करने की आजादी होनी ही चाहिए? जिसमें कूवत ही नहीं, वह मर जाए तो मर जाए? है ना? नीति वाक्य भी आपके पास तैयार है शुद्ध संस्कृत में, ‘वीरभोग्या वसुंधरा’? आधुनिक युग की बात करें तो ‘ सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट’ की थ्योरी आपकी मदद के लिए है ही। क्यों? गलत तो नहीं कह रहा मैं?
पर मेरा सवाल बस इतना सा है कि अगर यह सब बातें सही है तो आप या आपकी यह पूंजीवादी व्यवस्था डंके की चोट पर इसे स्वीकार क्यों नहीं कर लेती ? क्यों उसे समानता का ढोंग करना पड़ता है? क्यों फ्रांसीसी क्रांति में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के नारे को स्वीकार किया गया? क्यों उसे बार-बार दोहराना पड़ता है कि जन्म से सब समान हैं? अगर शारीरिक और मानसिक क्षमता के आधार पर इंसान और इंसान में भेदभाव लाजिमी है तो क्यों देश का संविधान हर व्यक्ति को समान दर्जा देने का दावा करता है? क्यों यह कहा है कि कानून के सामने हर व्यक्ति बराबर है? अगर हर व्यक्ति को - चाहे उसके पास दौलत हो या न हो - न्याय लेने के लिए बड़े से बड़ा वकील पाने की स्वतंत्रता नहीं है, उसे अपने बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा सुनिश्चत करने का अधिकार नहीं है, उसे अपनी बूढी मां का पूरा-पूरा इलाज करवाने का हक नहीं है तो कैसे हुए सब समान? और अगर सब समान नहीं है तो यह बात खुलकर मान क्यों नहीं लेती आपकी यह पूंजीवादी व्यवस्था?
नहीं मान सकती। इसलिए कि जिन लोगों की कूवत की बात आप करते हैं और जिन्हें इस दुनिया की हर चीज का उपभोग करने की खुली छूट सिर्फ उनकी क्रय शक्ति के आधार पर दे देते हैं, उनकी शक्ति और कूवत का राज इन्ही नौटंकियों में छुपा है। वे यह बात जानते हैं कि उनकी सारी अय्याशी मेहनतकश तबकों की दिन- रात की मेहनत पर टिकी है। वे बस चालाकी से उसे अपने नाम कर लेते हैं। इसी चालाकी को चलाते रहने के लिए उन्हें ,लोकतंत्र मीडिया वगैरह के जरिए लगातार नौटंकी करवाते रहने की जरूरत होती है। समानता दावा भी वैसी ही एक नौटंकी है।
इन सब बातों को मैंने रेखांकित इसलिए किया, क्योंकि आपकी टिप्पणी के हिसाब से आप ये सारी बातें मानते हैं। और अगर मानते हैं तो पूंजीवादी व्यवस्था की सड़न से इनकार कैसे कर सकते हैं? पर यह तो हुई आपकी बात। आप चाहो तो अपने आप से पूछना कि सारी बातों को ठीक मान कर भी आप पूंजीवाद की सड़न से इनकार कर रहे हैं तो वह किस बिना पर.. लेकिन मैं अब अपनी बात करता हूं कि मैंने क्यों पूंजीवाद को सड़ती हुई लाश कहा?
सामंतवाद के खंडहर पर जब पूंजीवाद की इमारत बननी शुरू हुई तो संघर्ष उस समय भी कम नहीं हुआ। यथास्थितिवादी शक्तियां तब भी काफी मजबूत थीं। उन्होंने पूरी ताकत लगा दी पूंजीवादी शक्तियों को नष्ट करने मे। मगर, जनता की नई चेतना तब पूंजीवादी शक्तीयों के साथ थी। पूंजीवाद तब समाज को, मनुष्य की चेतना को आगे बढ़ा रहा था। सामंतवाद के विपरीत इसने माना कि जन्म के आधार पर इंसान और इंसान में कोई भेद नहीं होना चाहिए। इसने माना कि हर मनुष्य को अपनी इच्छा से अपनी जिंदगी बिताने और पेशा चुनने का हक है।
सामंतवाद में भूदास का प्रचलन था जो जमीन के साथ बंधे होते थे। जमीन बिकती थी तो वे भी बिक जाते थे। पूंजीवाद ने ऐसे प्रचलनों को बंद करवाया। पूंजीवाद की ही वजह से बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हुआ। उत्पादन इतना बढ़ा कि पूरी दुनिया के सभी मनुष्यों की सारी अनिवार्य जरूरतें पूरी करना संभव हो गया।
पर, धीरे-धीरे पूंजीवाद अपनी उम्र पूरी करता रहा। बाद की अवस्थाओं में, उसमें मानव समाज को आगे ले जाने की क्षमता कम होती गई। इसकी सीमाएं भी साफ होती गईं। यह स्पष्ट होता गया कि मनुष्य की संपत्ति चाहे जितनी जाए, मानव समाज की विसंगतियां इस व्यवस्था में दूर नहीं हो सकतीं।
इतना ही नहीं, एक दौर में जो बुराइयां पूंजीवाद ने दूर कीं, बाद के दौर में उन्हीं बीमारियों को इससे मजबूती मिल रही है। आप गौर कीजिए कि भारत में ही एक दौर ऐसा था जब बैंकों के राष्ट्रीयकरण के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में लोन वगैरह देकर लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाई गई। भले मकसद देश के घरेलू बाजार का विस्तार करना ही क्यों न हो, मगर इससे आबादी के बड़े हिस्से की जिंदगी बेहतर हुई।
मगर, 90 के बाद के दौर में इसी पूंजीवादी व्यवस्था ने फिर से निजीकरण पर जोर देना शुरू किया। लिहाजा, पब्लिक सेक्टर के बैंकों तथा अन्य उपक्रमों में भी मुनाफे का दबाव ऐसा बढ़ा कि अब आम लोगों की बेहतरी का सवाल पीछे छूट गया है। सरकारी विभागों में भी मुनाफे के इसी तर्क की वजह से छंटनी का दौर भी हम देख चुके हैं और देख रहे हैं।
सामाजिक क्षेत्र में भी हम जानते हैं कि एक दौर में पूंजीवाद ने जाति और दहेज प्रथा को मिटाने का काम किया था, मगर आज के दौर में आप देख सकते हैं कि पूंजीवाद बाजार की शक्तियों के हाथों मजबूर होकर इन बुराइयों को और बढ़ा रहा है। उदाहरण चाहिए तो आप वे सब विज्ञापन याद कीजिए जो कहते हैं कि ‘अपने समाज की लड़की पसंद करें हमारी मेट्रोमोनियल साइट पर’ या वह ऐड जिसमें कहा जाता है कि ‘फलां कंपनी का फ्रिज देने पर बेटी के ससुराल वाले खुश हो जाते हैं।’
आप ही बताइए पुनीत जी, क्या ये इस बात सबूत नहीं है कि पूंजीवादी व्यवस्था चेतनाहीन हो चुकी है? इसमें अच्छे - बुरे का होश नहीं रहा। अब इससे मानव समाज को कुछ मिलना नहीं है? साफ शब्दों में कहें तो जो पूंजीवाद हमें दिख रहा है वह पूंजीवाद नहीं, उसकी लाश है। उसमें जीवंतता के कोई लक्षण नहीं रहे। यह लाश अब सड़ रही है, जिसकी गंध हर तरफ फैली है और बढती जा रही है।
मगर, दुनिया की कोई लाश खुद से चल कर श्मशान घाट नहीं पहुंचती। उसे कंधों पर लाद कर वहां पहुंचाना पड़ता है। यह काम भी आसान नहीं होता। घर के वे सदस्य जिन्हें मृत व्यक्ति काफी प्यारा होता है, वे उसके मरने के बाद भी उससे मोह तुरंत छोड़ नहीं पाते। ऐसे सदस्य लाश उठाने का तगड़ा विरोध करते हैं। पर, समाज के और आस पड़ोस के समझदार लोगों की जिम्मेदारी होती है कि उस विरोध की अनदेखी करते हुए लाश की अंत्येष्टि सुनिश्चित करवाएं।
मेरा सवाल आपसे और आप जैसे तमाम समझदार लोगों से यही है कि इस लाश से मोह छोडकर इसका अंतिम संस्कार करने में आप सब और कितना वक्त लेंगे?
प्रणव एन.
‘मेरी आवाज ही पर्दा है मेरे चेहरे का
मैं हूं खामोश जहां, मुझको वहां से सुनिए'
पुनीत ने जो कहा है, वहां मैं बाद में आऊंगा। शुरू मैं वहां से करता हूं जहां पुनीत चुप हैं। उन्होंने शुरू ही इस वाक्य से किया है, ‘बाकी सब तो ठीक है...’मैं पूछना चाहता हूं पुनीत, क्या ठीक है? चूंकि आपने मेरी पोस्ट पर कमेंट किया है तो यही मानना पड़ेगा कि आपको मेरी पोस्ट की बाकी बातें ठीक लगीं, बस पूंजीवाद को सड़ती हुई लाश बताकर मैंने गलती की .. सॉरी तथ्यों की बेइज्जती कर दी आपके शब्दों में।
इसका मतलब, आप मानते हैं कि पूंजीवाद मूलतः विषमता बढाने वाली व्यवस्था है? आप जानते हैं कि ट्रासंपैरेंसी इंटरनैशनल की रिपोर्ट के मुताबिक इस देश के मात्र 23 परिवारों के पास 215 अरब डॉलर की घोषित संपत्ति है (यह तो तथ्य है ना आपके हिसाब से भी? ) । इसके बरक्स दूसरा तथ्य भी आप जानते होंगे कि सरकारी आंकड़ो के ही मुताबिक इस देश के 77 फीसदी लोग 20 रुपए रोज पर गुजारा कर रहे हैं?
आप कहेंगे जिसमें जितनी कूवत है उसने उतना कमाया। यानी जिसकी जितनी क्षमता है उसे उतना कुछ हासिल करने की आजादी होनी ही चाहिए? जिसमें कूवत ही नहीं, वह मर जाए तो मर जाए? है ना? नीति वाक्य भी आपके पास तैयार है शुद्ध संस्कृत में, ‘वीरभोग्या वसुंधरा’? आधुनिक युग की बात करें तो ‘ सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट’ की थ्योरी आपकी मदद के लिए है ही। क्यों? गलत तो नहीं कह रहा मैं?
पर मेरा सवाल बस इतना सा है कि अगर यह सब बातें सही है तो आप या आपकी यह पूंजीवादी व्यवस्था डंके की चोट पर इसे स्वीकार क्यों नहीं कर लेती ? क्यों उसे समानता का ढोंग करना पड़ता है? क्यों फ्रांसीसी क्रांति में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के नारे को स्वीकार किया गया? क्यों उसे बार-बार दोहराना पड़ता है कि जन्म से सब समान हैं? अगर शारीरिक और मानसिक क्षमता के आधार पर इंसान और इंसान में भेदभाव लाजिमी है तो क्यों देश का संविधान हर व्यक्ति को समान दर्जा देने का दावा करता है? क्यों यह कहा है कि कानून के सामने हर व्यक्ति बराबर है? अगर हर व्यक्ति को - चाहे उसके पास दौलत हो या न हो - न्याय लेने के लिए बड़े से बड़ा वकील पाने की स्वतंत्रता नहीं है, उसे अपने बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा सुनिश्चत करने का अधिकार नहीं है, उसे अपनी बूढी मां का पूरा-पूरा इलाज करवाने का हक नहीं है तो कैसे हुए सब समान? और अगर सब समान नहीं है तो यह बात खुलकर मान क्यों नहीं लेती आपकी यह पूंजीवादी व्यवस्था?
नहीं मान सकती। इसलिए कि जिन लोगों की कूवत की बात आप करते हैं और जिन्हें इस दुनिया की हर चीज का उपभोग करने की खुली छूट सिर्फ उनकी क्रय शक्ति के आधार पर दे देते हैं, उनकी शक्ति और कूवत का राज इन्ही नौटंकियों में छुपा है। वे यह बात जानते हैं कि उनकी सारी अय्याशी मेहनतकश तबकों की दिन- रात की मेहनत पर टिकी है। वे बस चालाकी से उसे अपने नाम कर लेते हैं। इसी चालाकी को चलाते रहने के लिए उन्हें ,लोकतंत्र मीडिया वगैरह के जरिए लगातार नौटंकी करवाते रहने की जरूरत होती है। समानता दावा भी वैसी ही एक नौटंकी है।
इन सब बातों को मैंने रेखांकित इसलिए किया, क्योंकि आपकी टिप्पणी के हिसाब से आप ये सारी बातें मानते हैं। और अगर मानते हैं तो पूंजीवादी व्यवस्था की सड़न से इनकार कैसे कर सकते हैं? पर यह तो हुई आपकी बात। आप चाहो तो अपने आप से पूछना कि सारी बातों को ठीक मान कर भी आप पूंजीवाद की सड़न से इनकार कर रहे हैं तो वह किस बिना पर.. लेकिन मैं अब अपनी बात करता हूं कि मैंने क्यों पूंजीवाद को सड़ती हुई लाश कहा?
सामंतवाद के खंडहर पर जब पूंजीवाद की इमारत बननी शुरू हुई तो संघर्ष उस समय भी कम नहीं हुआ। यथास्थितिवादी शक्तियां तब भी काफी मजबूत थीं। उन्होंने पूरी ताकत लगा दी पूंजीवादी शक्तियों को नष्ट करने मे। मगर, जनता की नई चेतना तब पूंजीवादी शक्तीयों के साथ थी। पूंजीवाद तब समाज को, मनुष्य की चेतना को आगे बढ़ा रहा था। सामंतवाद के विपरीत इसने माना कि जन्म के आधार पर इंसान और इंसान में कोई भेद नहीं होना चाहिए। इसने माना कि हर मनुष्य को अपनी इच्छा से अपनी जिंदगी बिताने और पेशा चुनने का हक है।
सामंतवाद में भूदास का प्रचलन था जो जमीन के साथ बंधे होते थे। जमीन बिकती थी तो वे भी बिक जाते थे। पूंजीवाद ने ऐसे प्रचलनों को बंद करवाया। पूंजीवाद की ही वजह से बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हुआ। उत्पादन इतना बढ़ा कि पूरी दुनिया के सभी मनुष्यों की सारी अनिवार्य जरूरतें पूरी करना संभव हो गया।
पर, धीरे-धीरे पूंजीवाद अपनी उम्र पूरी करता रहा। बाद की अवस्थाओं में, उसमें मानव समाज को आगे ले जाने की क्षमता कम होती गई। इसकी सीमाएं भी साफ होती गईं। यह स्पष्ट होता गया कि मनुष्य की संपत्ति चाहे जितनी जाए, मानव समाज की विसंगतियां इस व्यवस्था में दूर नहीं हो सकतीं।
इतना ही नहीं, एक दौर में जो बुराइयां पूंजीवाद ने दूर कीं, बाद के दौर में उन्हीं बीमारियों को इससे मजबूती मिल रही है। आप गौर कीजिए कि भारत में ही एक दौर ऐसा था जब बैंकों के राष्ट्रीयकरण के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में लोन वगैरह देकर लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाई गई। भले मकसद देश के घरेलू बाजार का विस्तार करना ही क्यों न हो, मगर इससे आबादी के बड़े हिस्से की जिंदगी बेहतर हुई।
मगर, 90 के बाद के दौर में इसी पूंजीवादी व्यवस्था ने फिर से निजीकरण पर जोर देना शुरू किया। लिहाजा, पब्लिक सेक्टर के बैंकों तथा अन्य उपक्रमों में भी मुनाफे का दबाव ऐसा बढ़ा कि अब आम लोगों की बेहतरी का सवाल पीछे छूट गया है। सरकारी विभागों में भी मुनाफे के इसी तर्क की वजह से छंटनी का दौर भी हम देख चुके हैं और देख रहे हैं।
सामाजिक क्षेत्र में भी हम जानते हैं कि एक दौर में पूंजीवाद ने जाति और दहेज प्रथा को मिटाने का काम किया था, मगर आज के दौर में आप देख सकते हैं कि पूंजीवाद बाजार की शक्तियों के हाथों मजबूर होकर इन बुराइयों को और बढ़ा रहा है। उदाहरण चाहिए तो आप वे सब विज्ञापन याद कीजिए जो कहते हैं कि ‘अपने समाज की लड़की पसंद करें हमारी मेट्रोमोनियल साइट पर’ या वह ऐड जिसमें कहा जाता है कि ‘फलां कंपनी का फ्रिज देने पर बेटी के ससुराल वाले खुश हो जाते हैं।’
आप ही बताइए पुनीत जी, क्या ये इस बात सबूत नहीं है कि पूंजीवादी व्यवस्था चेतनाहीन हो चुकी है? इसमें अच्छे - बुरे का होश नहीं रहा। अब इससे मानव समाज को कुछ मिलना नहीं है? साफ शब्दों में कहें तो जो पूंजीवाद हमें दिख रहा है वह पूंजीवाद नहीं, उसकी लाश है। उसमें जीवंतता के कोई लक्षण नहीं रहे। यह लाश अब सड़ रही है, जिसकी गंध हर तरफ फैली है और बढती जा रही है।
मगर, दुनिया की कोई लाश खुद से चल कर श्मशान घाट नहीं पहुंचती। उसे कंधों पर लाद कर वहां पहुंचाना पड़ता है। यह काम भी आसान नहीं होता। घर के वे सदस्य जिन्हें मृत व्यक्ति काफी प्यारा होता है, वे उसके मरने के बाद भी उससे मोह तुरंत छोड़ नहीं पाते। ऐसे सदस्य लाश उठाने का तगड़ा विरोध करते हैं। पर, समाज के और आस पड़ोस के समझदार लोगों की जिम्मेदारी होती है कि उस विरोध की अनदेखी करते हुए लाश की अंत्येष्टि सुनिश्चित करवाएं।
मेरा सवाल आपसे और आप जैसे तमाम समझदार लोगों से यही है कि इस लाश से मोह छोडकर इसका अंतिम संस्कार करने में आप सब और कितना वक्त लेंगे?
Wednesday, June 16, 2010
Tuesday, June 15, 2010
इंसाफ के लिए टॉवर पर चढ़ा कर्मचारी
आयुर्वेद विभाग में बहाली की मांग पर चल रहा आंदोलन
देहरादून, 15 जून
कर्मचारियों में हताशा का भाव पैदा होने से आत्महत्या की धमकी देने जैसे मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले स्टार पेपर मिल के बर्खास्त कर्मचारी के चिमनी पर चढ़ने की घटना पुरानी भी नहीं हुई थी कि मंगलवार को आयुर्वेद विभाग में बहाली की मांग पर डटे कर्मचारियों ने अल्टीमेटम के अनुरूप आत्मघाती कदम उठा लिया। मंगलवार को एक कर्मचारी अंबीवाला गुरुद्वारे के निकट मोबाइल टावर पर चढ़ गया। दिनभर कर्मचारी को मनाकर उतारने के प्रयास चलते रहे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। देर शाम शासन के साथ वार्ता भी विफल रही। एसएसपी अभिनव कुमार ने उक्त कर्मचारी पर मुकदमा दर्ज करने व मोबाइल टावर मालिक को नोटिस भेजने का आदेश दिया है।
आयुर्वेद विभाग से निकाले गए के लगभग 150 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों का धैर्य जवाब देने लगा है। करीब दो सप्ताह से ज्यादा समय से शास्त्रीनगर स्थित आयुर्वेद निदेशालय पर भूख हड़ताल पर बैठे कर्मचारियों के तेवर आक्रामक होने लगे हैं। मंगलवार को पौ फटने से पहले ही निलंबित कर्मचारी रतन सिंह रावत नेहरू कालोनी के निकट अंबीवाला गुरुद्वारे के निकट मोबाइल टावर पर चढ़ गया। पुलिसकर्मियों को पता चला कि रतन सिंह अपने साथ मिट्टी तेल भी ले गया तो चिंता और बढ़ गई। आयुर्वेद विभाग के उप निदेशक देवेंद्र चमोली रतन सिंह से वार्ता भी विफल रही। देर शाम तक वह टावर पर चढ़ा हुआ था। विभाग व शासन की ओर से कर्मचारियों के मामले में अपनाए जा रहे रवैये पर नाराजगी जाहिर करते हुए मौके पर अन्य कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की।
निलंबित कर्मचारी व संगठन के अध्यक्ष विजय सिंह, जसपाल राणा, मनोज चंदोला और देवेन्द्र सिंह के अनुसार उन लोगों को प्रमुख सचिव से वार्ता कराने की बात कहकर बुलाया गया था, जबकि वार्ता अपर सचिव चंद्र सिंह से कराई गई। शासन के रुख से कर्मचारी संतुष्ट नहीं है और आंदोलन जारी रहेगा।
देहरादून, 15 जून
कर्मचारियों में हताशा का भाव पैदा होने से आत्महत्या की धमकी देने जैसे मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले स्टार पेपर मिल के बर्खास्त कर्मचारी के चिमनी पर चढ़ने की घटना पुरानी भी नहीं हुई थी कि मंगलवार को आयुर्वेद विभाग में बहाली की मांग पर डटे कर्मचारियों ने अल्टीमेटम के अनुरूप आत्मघाती कदम उठा लिया। मंगलवार को एक कर्मचारी अंबीवाला गुरुद्वारे के निकट मोबाइल टावर पर चढ़ गया। दिनभर कर्मचारी को मनाकर उतारने के प्रयास चलते रहे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। देर शाम शासन के साथ वार्ता भी विफल रही। एसएसपी अभिनव कुमार ने उक्त कर्मचारी पर मुकदमा दर्ज करने व मोबाइल टावर मालिक को नोटिस भेजने का आदेश दिया है।
आयुर्वेद विभाग से निकाले गए के लगभग 150 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों का धैर्य जवाब देने लगा है। करीब दो सप्ताह से ज्यादा समय से शास्त्रीनगर स्थित आयुर्वेद निदेशालय पर भूख हड़ताल पर बैठे कर्मचारियों के तेवर आक्रामक होने लगे हैं। मंगलवार को पौ फटने से पहले ही निलंबित कर्मचारी रतन सिंह रावत नेहरू कालोनी के निकट अंबीवाला गुरुद्वारे के निकट मोबाइल टावर पर चढ़ गया। पुलिसकर्मियों को पता चला कि रतन सिंह अपने साथ मिट्टी तेल भी ले गया तो चिंता और बढ़ गई। आयुर्वेद विभाग के उप निदेशक देवेंद्र चमोली रतन सिंह से वार्ता भी विफल रही। देर शाम तक वह टावर पर चढ़ा हुआ था। विभाग व शासन की ओर से कर्मचारियों के मामले में अपनाए जा रहे रवैये पर नाराजगी जाहिर करते हुए मौके पर अन्य कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की।
निलंबित कर्मचारी व संगठन के अध्यक्ष विजय सिंह, जसपाल राणा, मनोज चंदोला और देवेन्द्र सिंह के अनुसार उन लोगों को प्रमुख सचिव से वार्ता कराने की बात कहकर बुलाया गया था, जबकि वार्ता अपर सचिव चंद्र सिंह से कराई गई। शासन के रुख से कर्मचारी संतुष्ट नहीं है और आंदोलन जारी रहेगा।
पूंजीवाद सड़ती हुई लाश है? भला कैसे, यह तो बताएं
पुनीत
(प्रणव एन की पिछली पोस्ट मुद्दा गरीबी नहीं, बराबरी है मेरे दोस्त पर यह महत्वपूर्ण टिप्पणी हमें कमेंट बॉक्स में पड़ी मिली। सहमति-असहमति से अलग, सबसे पहले हम पुनीत का शुक्रिया अदा करना चाहते हैं। इस बात के लिए कि उन्होंने इस पोस्ट को गंभीरता से पढ़ा, उस पर विचार किया और अपनी ईमानदार राय प्रभावशाली ढंग से प्रकट करते हुए हमें उससे अवगत कराया।जब हम विपक्ष की राय को गंभीरता से लेते हैं और उसे वह सम्मान देते हैं जिसकी वह हकदार होती है, तभी स्वस्थ बहस आगे बढ़ती है। स्वस्थ बहस को आगे बढ़ाने के ही उद्देश्य से हमने पुनीत के इस कमेंट को पोस्ट के रूप में यहां पेश करने का फैसला किया है। अपनी तरफ से हम सभी पाठकों को सादर आमंत्रित करते हैं कि खुलकर इस बारे में अपनी राय पेश करें। हां अगर मूल पोस्ट के लेखक प्रणव एन. अपना पक्ष रखना चाहें ( बल्कि हम चाहेंगे कि वह भी अपना पक्ष रखें ) तो हमें खुशी होगी - मालंच )
बाकी सब तो ठीक है पर एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि पूंजीवाद की सड़ी हुई लाश आप लोगों को कहां दिख जाती है? पूंजीवाद आज का सच है। इससे आपकी वैचारिक असहमति है, इसमें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन क्या वैचारिक सहमति या असहमति के कारण आप तथ्यों के साथ खिलवाड़ करने की छूट पा लेते हैं?
तथ्य यह है कि आपको अच्छा लगे या ,बुरा पर तीन-चार शताब्दियों से पूंजीवाद फलता-फूलता रहा है और आज भी फल-फूल रहा है। आपकी विचारधारा जहां कहीं टिमटिमाती दिख रही है ( उदाहरण - नेपाल ) वह बस टिमटिमा ही रही है। इसके विपरीत पूंजीवाद पूरी दुनिया को अपने तर्क से चला रहा है। और आसार जो दिखते ,हैं उसके मुताबिक आगे भी वही चलाएगा इस दुनिया को।
ऐसे में, चूंकि आपको पूंजीवाद पसंद नहीं है, इसलिए आप उसे सड़ती हुई लाश बता दें यह हास्यास्पद नहीं तो और क्या है? माफ कीजिएगा मैं आपमें से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से इस ब्लॉग पर नहीं आया था, मगर आपकी पोस्ट और उस पर कमेंट देख कर रहा नहीं गया। मैं कहना चाहता हूं कि अगर तथ्यों के प्रति इतना ही सम्मान आपके मन में है तो आपकी विचारधारा का भविष्य स्वतःस्ष्ट है।
Monday, June 14, 2010
30 हजार के कर्ज में 90 हजार चुकाया, फिर भी 1 लाख बाकी
यह हाल है एनसीआर क्षेत्र में सूदखोरों का
मजदूर बन रहे शिकार
मोदीनगर, 14 जून :
कर्ज लिया 30 हजार का। इसके बदले 90 हजार रुपये चुकाए, फिर भी सूदखोर को अभी चाहिए एक लाख और। यह हाल है राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के सूदखोरों का। सोमवार को मोदीनगर थाना अंतर्गत बेगमाबाद के बुलाकी पाड़ा निवासी एक महिला सूदखोर के साथ आए गुर्गों ने ब्याज न चुकाने पर सरेराह बस को रोककर ड्राइवर की पिटाई की और तोड़ फोड़ की। इतना ही नहीं बस में बैठे यात्रियों के साथ बदसलूकी कर खदेड़ दिया। सूदखोर महिला बस चालक से 10 फीसदी ब्याज के साथ 30 हजार की बजाए एक लाख की रकम मांग रही थी। जबकि बस चालक सूदखोर महिला को 90 हजार रुपये अदा कर चुका है।
बता दे कि इस सूदखोर महिला के इस प्रकार के अब तक करीब आधा दर्जन मामले पुलिस के संज्ञान में आ चुके हैं। फिर भी पुलिस की मिलीभगत से वह अपना काला धंधा जमाए हुए है। एनसीआर में आए दिन ऐसी घटनाएं होती हैं लेकिन चुंकि मामला मजदूर और गरीब तबके का होता है इसलिए पुलिस भी सूदखोरों का ही पक्ष लेती है। हाल ही में नोएडा के हरौला में कर्ज से दबे परेशान मजदूर ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी लेकिन फिर भी उस सूदखोर के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई।
मुरादनगर के डिफेंस कालोनी निवासी उमेश त्यागी पुत्र मंगू सिंह त्यागी बस ड्राइवर है। उमेश ने बताया कि गत वर्ष जून माह में उसने बेगमाबाद की बुलाकी पाड़ा मोहल्ला निवासी एक महिला सूदखोर से बहन की शादी में खर्चे हेतु 30 हजार रुपये तीन फीसदी ब्याज पर लिए थे। उसने कई किश्तों में करीब 90 हजार रुपये की रकम सूदखोर महिला को लौटा दी।
सोमवार की सुबह जब वह बस में यात्रियों को लेकर गाजियाबाद की ओर जा रहा था। जैसे ही वह मोदीनगर बस स्टैंड पर पहुंचा, तभी सूदखोर व उसके साथ आधा दर्जन गुर्गों ने बस पर हमला बोल दिया।
सरेराह हुई इस घटना को पुलिस मूकदर्शक बनकर देखती रही। आरोप है कि सूदखोर महिला के गुर्गों ने पीडि़त ड्राइवर से 25 हजार रुपये की नगदी, सोने की चेन भी लूट ली। पीडि़त ड्राइवर की तहरीर पर पुलिस क्षेत्राधिकारी ने थाना प्रभारी को जांच सौंपी है।
मजदूर बन रहे शिकार
मोदीनगर, 14 जून :
कर्ज लिया 30 हजार का। इसके बदले 90 हजार रुपये चुकाए, फिर भी सूदखोर को अभी चाहिए एक लाख और। यह हाल है राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के सूदखोरों का। सोमवार को मोदीनगर थाना अंतर्गत बेगमाबाद के बुलाकी पाड़ा निवासी एक महिला सूदखोर के साथ आए गुर्गों ने ब्याज न चुकाने पर सरेराह बस को रोककर ड्राइवर की पिटाई की और तोड़ फोड़ की। इतना ही नहीं बस में बैठे यात्रियों के साथ बदसलूकी कर खदेड़ दिया। सूदखोर महिला बस चालक से 10 फीसदी ब्याज के साथ 30 हजार की बजाए एक लाख की रकम मांग रही थी। जबकि बस चालक सूदखोर महिला को 90 हजार रुपये अदा कर चुका है।
बता दे कि इस सूदखोर महिला के इस प्रकार के अब तक करीब आधा दर्जन मामले पुलिस के संज्ञान में आ चुके हैं। फिर भी पुलिस की मिलीभगत से वह अपना काला धंधा जमाए हुए है। एनसीआर में आए दिन ऐसी घटनाएं होती हैं लेकिन चुंकि मामला मजदूर और गरीब तबके का होता है इसलिए पुलिस भी सूदखोरों का ही पक्ष लेती है। हाल ही में नोएडा के हरौला में कर्ज से दबे परेशान मजदूर ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी लेकिन फिर भी उस सूदखोर के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई।
मुरादनगर के डिफेंस कालोनी निवासी उमेश त्यागी पुत्र मंगू सिंह त्यागी बस ड्राइवर है। उमेश ने बताया कि गत वर्ष जून माह में उसने बेगमाबाद की बुलाकी पाड़ा मोहल्ला निवासी एक महिला सूदखोर से बहन की शादी में खर्चे हेतु 30 हजार रुपये तीन फीसदी ब्याज पर लिए थे। उसने कई किश्तों में करीब 90 हजार रुपये की रकम सूदखोर महिला को लौटा दी।
सोमवार की सुबह जब वह बस में यात्रियों को लेकर गाजियाबाद की ओर जा रहा था। जैसे ही वह मोदीनगर बस स्टैंड पर पहुंचा, तभी सूदखोर व उसके साथ आधा दर्जन गुर्गों ने बस पर हमला बोल दिया।
सरेराह हुई इस घटना को पुलिस मूकदर्शक बनकर देखती रही। आरोप है कि सूदखोर महिला के गुर्गों ने पीडि़त ड्राइवर से 25 हजार रुपये की नगदी, सोने की चेन भी लूट ली। पीडि़त ड्राइवर की तहरीर पर पुलिस क्षेत्राधिकारी ने थाना प्रभारी को जांच सौंपी है।
फैक्ट्री में युवक की मौत से हंगामा
साहिबाबाद, 14 जून
सोमवार को फैक्ट्री प्रबंधन की लापरवाही ने एक और मजदूर की जान ले ली। मजदूर की मृत्यु पर हंगामा हुआ लेकिन पुलिस मामले को रफा दफा करने में ही जुटी रही। जानकारी के अनुसार लिंक रोड थानांतर्गत साहिबाबाद गांव स्थित एक फैक्ट्री में पानी के टैंकर की चपेट में आने से एक युवक की मौत हो गई। युवक फैक्ट्री के मिक्सिंग डिपार्टमेंट कार्य करता था।
मूलरूप से भदोही जिले का रहने वाला सोनू (22) साहिबाबाद गांव स्थित एक फैक्ट्री के मिक्सिंग डिपार्टमेंट में कार्यरत था। सोमवार की दोपहर में वह फैक्ट्री परिसर में ही पानी के टैंकर की चपेट में आ गया, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया। सोनू को उपचार के लिए कौशांबी स्थित यशोदा अस्पताल में भर्ती कराया जहां चिकित्सकों ने उसे मृत लाया घोषित कर दिया। फैक्ट्री प्रबंधन से मुआवजे की बात चल रही है लेकिन पुलिस उलटे मामले को दबाने में लग गई है। बताया जाता है कि फैक्ट्री में सुरक्षा के मानकों का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा जाता है जिससे हादसों का खतरा हमेशा बना रहता है।
सोमवार को फैक्ट्री प्रबंधन की लापरवाही ने एक और मजदूर की जान ले ली। मजदूर की मृत्यु पर हंगामा हुआ लेकिन पुलिस मामले को रफा दफा करने में ही जुटी रही। जानकारी के अनुसार लिंक रोड थानांतर्गत साहिबाबाद गांव स्थित एक फैक्ट्री में पानी के टैंकर की चपेट में आने से एक युवक की मौत हो गई। युवक फैक्ट्री के मिक्सिंग डिपार्टमेंट कार्य करता था।
मूलरूप से भदोही जिले का रहने वाला सोनू (22) साहिबाबाद गांव स्थित एक फैक्ट्री के मिक्सिंग डिपार्टमेंट में कार्यरत था। सोमवार की दोपहर में वह फैक्ट्री परिसर में ही पानी के टैंकर की चपेट में आ गया, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया। सोनू को उपचार के लिए कौशांबी स्थित यशोदा अस्पताल में भर्ती कराया जहां चिकित्सकों ने उसे मृत लाया घोषित कर दिया। फैक्ट्री प्रबंधन से मुआवजे की बात चल रही है लेकिन पुलिस उलटे मामले को दबाने में लग गई है। बताया जाता है कि फैक्ट्री में सुरक्षा के मानकों का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा जाता है जिससे हादसों का खतरा हमेशा बना रहता है।
Sunday, June 13, 2010
प्राइवेट कालोनी की दीवार गिरने से एक मजदूर की मौत, चार घायल
गाजियाबाद, 13 जून रविवार को आयी तेज आंधी व बूंदाबांदी से विजयनगर थाना क्षेत्र के राहुल विहार इलाके में एक दीवार भर भरा कर गिर गई। दीवार की चपेट में आने से जहां एक मजूदर की मौके पर ही मौत हो गई, वहीं चार अन्य घायल हो गये। घायलों में एक की हालत गंभीर बनी हुई है। उसे एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
राहुल विहार में सीबीआई की कई बीघा जमीन है। इस पर एक तरफ से सीबीआई द्वारा बाउंड्री वाल का निर्माण कराया जा रहा था। जबकि इस दीवार से सटकर ही एक बिल्डर प्राइवेट कालोनी काट रहा है। रविवार अपरान्ह जैसे ही तेज अंधड़ व बूंदाबांदी का दौर शुरू हुआ, वैसे ही काम कर रहे मजदूर बिल्डर द्वारा पहले से ही बनी दीवार के नीचे बैठ गये। अचानक ही प्राइवेट कालोनी की दीवार भरभरा कर गिर पड़ी। दीवार के नीचे दबकर बुलंदशहर जनपद के थाना सलेमपुर निवासी 27 वर्षीय शकील पुत्र जहीर खां की मौके पर ही मौत हो गई। जबकि शकील के दो भाई बुंदे खां व नन्हे के अलावा दो अन्य मजदूर बालक राम तथा घायल हो गये। सभी घायलों को बहरामपुर स्थित एक निजी अस्पताल ले जाया गया। जहां प्राथमिक उपचार के बाद नन्हें, बालकराम व सुशील को छुट्टी दे दी गई। जबकि बुंदे खां की हालत गंभीर होने के कारण उसे भर्ती कर लिया गया है।
राहुल विहार में सीबीआई की कई बीघा जमीन है। इस पर एक तरफ से सीबीआई द्वारा बाउंड्री वाल का निर्माण कराया जा रहा था। जबकि इस दीवार से सटकर ही एक बिल्डर प्राइवेट कालोनी काट रहा है। रविवार अपरान्ह जैसे ही तेज अंधड़ व बूंदाबांदी का दौर शुरू हुआ, वैसे ही काम कर रहे मजदूर बिल्डर द्वारा पहले से ही बनी दीवार के नीचे बैठ गये। अचानक ही प्राइवेट कालोनी की दीवार भरभरा कर गिर पड़ी। दीवार के नीचे दबकर बुलंदशहर जनपद के थाना सलेमपुर निवासी 27 वर्षीय शकील पुत्र जहीर खां की मौके पर ही मौत हो गई। जबकि शकील के दो भाई बुंदे खां व नन्हे के अलावा दो अन्य मजदूर बालक राम तथा घायल हो गये। सभी घायलों को बहरामपुर स्थित एक निजी अस्पताल ले जाया गया। जहां प्राथमिक उपचार के बाद नन्हें, बालकराम व सुशील को छुट्टी दे दी गई। जबकि बुंदे खां की हालत गंभीर होने के कारण उसे भर्ती कर लिया गया है।
पुल गिरने से दो मजदूरों की मौत, सात जख्मी
मंडी :हिमाचल प्रदेश:, 13 जून : हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के सरकाघाट-तिहारा सड़क पर बन रहे एक पुल के ढह जाने से दो मजदूरों की मौत हो गई जबकि सात अन्य घायल हो गए।
15 मजदूरों का एक समूह पुल बनाने के काम में लगा था लेकिन यह अचानक ढह गया जिससे दो मजदूरों की मौत हो गई और सात घायल हो गए। मजदूरों का आरोप है कि ठेकेदार ने सुरक्षा मानकों को अनदेखी की जबकि उसे इसके बारे में कई बार कहा जा चुका था। बिहार के रहने वाले बजरंगी और शम्भू नामक मजदूर की मौत घटनास्थल पर हो गई जबकि सात अन्य घायल हो गए। अभी तक ठेकेदार के खिलाफ मामला दर्ज नहीं हो पाया है।
15 मजदूरों का एक समूह पुल बनाने के काम में लगा था लेकिन यह अचानक ढह गया जिससे दो मजदूरों की मौत हो गई और सात घायल हो गए। मजदूरों का आरोप है कि ठेकेदार ने सुरक्षा मानकों को अनदेखी की जबकि उसे इसके बारे में कई बार कहा जा चुका था। बिहार के रहने वाले बजरंगी और शम्भू नामक मजदूर की मौत घटनास्थल पर हो गई जबकि सात अन्य घायल हो गए। अभी तक ठेकेदार के खिलाफ मामला दर्ज नहीं हो पाया है।
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