मैक्लॉडगंज, एजेंसी : ता दलाई लामा का मानना है कि चीन आर्थिक क्षेत्र में भारत से आगे हो सकता है, लेकिन वह स्वतंत्रता, पारदर्शिता और कानून के शासन जैसे बुनियादी मूल्यों में उससे पीछे है। उनका यह भी कहना है कि चीन की आर्थिक समृद्धि की मुख्य वजह बाहरी पैसा और श्रमिकों के आर्थिक शोषण है। यही वजह है कि चीन के बुद्धिजीवी और कुछ नेता अब बदलाव चाहते हैं।
दलाई लामा ने कहा कि हाल के दशकों में चीन की आर्थिक वृद्धि बाहरी धन और सस्ते श्रमिकों के शोषण पर आधारित है। राजनीतिक रूप से अभी तक वहां सब कुछ नियंत्रित है। उन्होंने कहा, 'मुक्त दुनिया की ताकत केवल पैसे ही नहीं वरन अन्य चीजों पर भी निर्भर है। चीन में यह केवल पैसे की ताकत है।Ó
उन्होंने कहा कि लंबे समय में चीन के बुद्धिजीवियों और कुछ नेताओं ने महसूस किया कि वहां एक कमजोरी है और वे बदलाव चाहते हैं। वे आर्थिक और राजनीतिक दोनों क्षेत्रों का आधुनिकीकरण चाहते हैं। चीन में यह बदलाव की बयार है। दलाई लामा ने कहा कि जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना एक सकारात्मक कदम है।
। इससे चीन को तिब्बत जैसे मुद्दों को सुलझाने का आत्म-विश्वास मिलेगा।
बाल श्रम,आत्महत्याएं,औद्योगिक दुर्घटनाएं
23 मार्च
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Saturday, August 14, 2010
मनरेगा से नहीं रुका पलायन, कोसी से सात लाख श्रमिकों का पलायन
कोसी में महिलाओं के भरोसे कृषि कार्य
- पुरुष श्रमिकों के पलायन से खेती प्रभावित
सहरसा, 14 अगस्त
आर्थिक रूप से पिछड़े कोसी इलाके को श्रमिकों का गढ़ माना जाता रहा है। परंतु विगत कुछ वर्षों में पुरुष श्रमिकों के बढ़े पलायन ने यहां की कृषि व्यवस्था को प्रभावित किया है। हालांकि सरकार ने मजदूरों के पलायन को रोकने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी एकक्ट (मनरेगा) के तहत 100 दिन के रोजगार देने की योजना चला रखी है, लेकिन इसका नतीजा सिफर ही दिख रहा है। नतीजतन कोसी के इलाके में कृषि कार्य महिलाओं के कंधों पर जा टिका है। इससे कृषि व्यवस्था प्रभावित हुई है।
अप्रैल से जून माह के बीच तीन महीने में इस इलाके के सात लाख से अधिक पुरुष श्रमिक बढिय़ा मजदूरी की आस में हरियाणा, पंजाब व अन्य प्रदेशों में पलायन करते हैं। मजदूरों के पलायन का आलम यह रहता है कि इस बार मई माह में सहरसा-अमृतसर के बीच चलने वाली जनसेवा एक्सप्रेस में भारी भीड़ की वजह से जगह नहीं मिलने से आक्रोशित मजदूरों ने सहरसा जंक्शन पर भारी बवाल किया था। अंतत: मजदूरों की भारी भीड़ को देखते हुए रेल प्रशासन ने जनसेवा-2 नामक दूसरी ट्रेन चलायी। ऐसी हालत में जुलाई व अगस्त माह में कोसी इलाके में होने वाली धान रोपाई के वक्त मजदूरों की भारी कमी हो जाती है।
वर्ष 2001 के आंकड़ों के अनुसार जिले में कृषकों की कुल संख्या 1,83,501 है। मजदूरों की बात करें तो जिले में सिर्फ जाबकार्ड धारी मजदूर 9,34,904 हैं। जिले में कुल श्रमिकों की संख्या 12 लाख के करीब है, जिनमें चार लाख के करीब महिला श्रमिक हैं। इनके कंधे पर ही कृषि व्यवस्था जा टिकी है।
कृषि विभाग से मिली जानकारी अनुसार इस बार महज 38 हजार हेक्टेयर भूमि में ही धान रोपाई हो सकी है, जबकि लक्ष्य 65 हजार हेक्टेयर भूमि में रोपनी का था। कम रोपनी के पीछे जहां सुखाड़ एक कारण है, वहीं दूसरा कारण श्रमिकों की कमी भी है।
नरियार गांव के किसान लाल बहादुर सिंह व प्रभु ंिसंह कहते हैं कि मजदूरों के परदेस पलायन करने की वजह से उन लोगों ने अपने अधिकांश खेत बटाई पर दे रखे हैं। महिषी प्रखंड अंतर्गत राजनपुर गांव के किसान मो. हफीज व बीसो यादव भी मानते हैं मजदूरों की कमी की वजह से खेती करना मुश्किल हो गया है। वहीं धान रोपाई कार्य में जुटी रंगीनिया महादलित टोला की घोलटी देवी, बेचनी देवी, सारो देवी, रधिया देवी, मीना देवी व रेखा देवी कहती हैं पति धान रोपने पंजाब चले गए हैं। आखिर यहां रहकर पेट भी तो नहीं भर सकता। रधिया देवी कहती हैं यहां वे लोग मजदूरी कर बच्चों व अपना भरण-पोषण कर लेते हैं। पति जो लाएंगे वह बचत होगी।
धान रोपाई का कार्य पंजाब से लौट रहे मधेपुरा जिलान्तर्गत बड़हरी गांव निवासी पहाड़ी ऋषिदेव, चलित्तर ऋषिदेव, सिरसीया के रामोतार सादा ने सहरसा जंक्शन पर बताया कि वे लोग धान रोपाई कर लौट आए हैं। अब दशहरा बाद अक्टूबर में धान काटने पुन: जाएंगे।
- पुरुष श्रमिकों के पलायन से खेती प्रभावित
सहरसा, 14 अगस्त
आर्थिक रूप से पिछड़े कोसी इलाके को श्रमिकों का गढ़ माना जाता रहा है। परंतु विगत कुछ वर्षों में पुरुष श्रमिकों के बढ़े पलायन ने यहां की कृषि व्यवस्था को प्रभावित किया है। हालांकि सरकार ने मजदूरों के पलायन को रोकने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी एकक्ट (मनरेगा) के तहत 100 दिन के रोजगार देने की योजना चला रखी है, लेकिन इसका नतीजा सिफर ही दिख रहा है। नतीजतन कोसी के इलाके में कृषि कार्य महिलाओं के कंधों पर जा टिका है। इससे कृषि व्यवस्था प्रभावित हुई है।
अप्रैल से जून माह के बीच तीन महीने में इस इलाके के सात लाख से अधिक पुरुष श्रमिक बढिय़ा मजदूरी की आस में हरियाणा, पंजाब व अन्य प्रदेशों में पलायन करते हैं। मजदूरों के पलायन का आलम यह रहता है कि इस बार मई माह में सहरसा-अमृतसर के बीच चलने वाली जनसेवा एक्सप्रेस में भारी भीड़ की वजह से जगह नहीं मिलने से आक्रोशित मजदूरों ने सहरसा जंक्शन पर भारी बवाल किया था। अंतत: मजदूरों की भारी भीड़ को देखते हुए रेल प्रशासन ने जनसेवा-2 नामक दूसरी ट्रेन चलायी। ऐसी हालत में जुलाई व अगस्त माह में कोसी इलाके में होने वाली धान रोपाई के वक्त मजदूरों की भारी कमी हो जाती है।
वर्ष 2001 के आंकड़ों के अनुसार जिले में कृषकों की कुल संख्या 1,83,501 है। मजदूरों की बात करें तो जिले में सिर्फ जाबकार्ड धारी मजदूर 9,34,904 हैं। जिले में कुल श्रमिकों की संख्या 12 लाख के करीब है, जिनमें चार लाख के करीब महिला श्रमिक हैं। इनके कंधे पर ही कृषि व्यवस्था जा टिकी है।
कृषि विभाग से मिली जानकारी अनुसार इस बार महज 38 हजार हेक्टेयर भूमि में ही धान रोपाई हो सकी है, जबकि लक्ष्य 65 हजार हेक्टेयर भूमि में रोपनी का था। कम रोपनी के पीछे जहां सुखाड़ एक कारण है, वहीं दूसरा कारण श्रमिकों की कमी भी है।
नरियार गांव के किसान लाल बहादुर सिंह व प्रभु ंिसंह कहते हैं कि मजदूरों के परदेस पलायन करने की वजह से उन लोगों ने अपने अधिकांश खेत बटाई पर दे रखे हैं। महिषी प्रखंड अंतर्गत राजनपुर गांव के किसान मो. हफीज व बीसो यादव भी मानते हैं मजदूरों की कमी की वजह से खेती करना मुश्किल हो गया है। वहीं धान रोपाई कार्य में जुटी रंगीनिया महादलित टोला की घोलटी देवी, बेचनी देवी, सारो देवी, रधिया देवी, मीना देवी व रेखा देवी कहती हैं पति धान रोपने पंजाब चले गए हैं। आखिर यहां रहकर पेट भी तो नहीं भर सकता। रधिया देवी कहती हैं यहां वे लोग मजदूरी कर बच्चों व अपना भरण-पोषण कर लेते हैं। पति जो लाएंगे वह बचत होगी।
धान रोपाई का कार्य पंजाब से लौट रहे मधेपुरा जिलान्तर्गत बड़हरी गांव निवासी पहाड़ी ऋषिदेव, चलित्तर ऋषिदेव, सिरसीया के रामोतार सादा ने सहरसा जंक्शन पर बताया कि वे लोग धान रोपाई कर लौट आए हैं। अब दशहरा बाद अक्टूबर में धान काटने पुन: जाएंगे।
Wednesday, August 11, 2010
तमाम देशों में मजदूरों से बेसी मूल्य निचोड़ने का अनुपात कुछ यूं है
बीमार चाय बागानों के मजदूरों के दिन बहुरेंगे
मजदूरों को अब तक करीब 400 करोड़ रुपये के वेतन व एरियर का भुगतान बकाया-
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को चाय बागानों का प्रबंधन अधिग्रहण करने को कहा
आईयूएफ की ओर से दायर जनहित याचिका पर अहम फैसला
देहरादून, 11 agust:
उत्तराखंड समेत देश के सभी बीमार चाय बागानों के श्रमिकों के दिन बहुरने वाले हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केेंद्र सरकार को देश के सभी बीमार चाय बागानों के प्रबंध तंत्र का अधिग्रहण करने के निर्देश दिए हैं, ताकि नारकीय हालात में काम कर रहे वहां के मजदूरों को रुका एरियर और वेतन दिया जा सके।
एक मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि ज्यादातर चाय बागान उनके मालिकों द्वारा छोड़ दिए गए हैं। ऐसे में चाय बागानों के मजदूरों को बरसों से न तो मजदूरी मिल रही है न सुविधाएं, जिससे चाय बागानों के मजदूर भुखमरी की हालत में हैं। सरकारों ने कुछ प्रयास किया, मगर उसका कोई असर नहींहुआ है। इंटरनेशनल यूनियन ऑफ फूड, एग्रीकल्चर, होटल, रेस्टोरेंट, कैटरिंग, टोबैको, प्लांटेशन एंड एलाइड वर्कर्स एसोसिएशन (आईयूएफ)की ओर से दायर एक जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडिय़ा, न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन व स्वतंत्र कुमार की बेंच ने कहा है कि इस स्थिति में केद्र सरकार को टी-एक्ट 1953 के तहत अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभानी होगी। कोर्ट ने केद्र को बागानों काप्रबंधन अपने हाथ में लेकर छह माह के भीतर मजदूरों को उनके अवशेष के भुगतान के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल से वेतन और ग्रेच्युटी से वंचित उत्तराखंड , हिमाचल प्रदेश, असम, पश्चिमी बंगाल, त्रिपुरा, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु आदि के चाय बागानों के मजदूरों को मनरेगा के तहत काम देने को भी कहा है। कोर्ट ने मजदूरों को आईसीडीएस योजना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ देने को भी कहा है।
2006 में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील व मानवाधिकार कार्यकर्ता कोलिन गोंजाल्विस ने यह जनहित याचिका दायर की थी। उनके मुताबिक आईयूएफ की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि चाय बागानों के मजदूरों को अब तक करीब 400 करोड़ रुपये के वेतन व एरियर का भुगतान नहीं हुआ है। अब मालिकों व कंपनियों द्वारा छोड़ दिए गए बागानों की नीलामी से यह राशि बटोरी जाएगी। एटक से जुड़ी देहरादून की चाय बागान मजदूर यूनियन के अध्यक्ष अशोक शर्मा का कहना है कि यह चाय बागान मजदूरों की एक बहुत बड़ी जीत है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को चाय बागानों का प्रबंधन अधिग्रहण करने को कहा
आईयूएफ की ओर से दायर जनहित याचिका पर अहम फैसला
देहरादून, 11 agust:
उत्तराखंड समेत देश के सभी बीमार चाय बागानों के श्रमिकों के दिन बहुरने वाले हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केेंद्र सरकार को देश के सभी बीमार चाय बागानों के प्रबंध तंत्र का अधिग्रहण करने के निर्देश दिए हैं, ताकि नारकीय हालात में काम कर रहे वहां के मजदूरों को रुका एरियर और वेतन दिया जा सके।
एक मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि ज्यादातर चाय बागान उनके मालिकों द्वारा छोड़ दिए गए हैं। ऐसे में चाय बागानों के मजदूरों को बरसों से न तो मजदूरी मिल रही है न सुविधाएं, जिससे चाय बागानों के मजदूर भुखमरी की हालत में हैं। सरकारों ने कुछ प्रयास किया, मगर उसका कोई असर नहींहुआ है। इंटरनेशनल यूनियन ऑफ फूड, एग्रीकल्चर, होटल, रेस्टोरेंट, कैटरिंग, टोबैको, प्लांटेशन एंड एलाइड वर्कर्स एसोसिएशन (आईयूएफ)की ओर से दायर एक जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडिय़ा, न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन व स्वतंत्र कुमार की बेंच ने कहा है कि इस स्थिति में केद्र सरकार को टी-एक्ट 1953 के तहत अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभानी होगी। कोर्ट ने केद्र को बागानों काप्रबंधन अपने हाथ में लेकर छह माह के भीतर मजदूरों को उनके अवशेष के भुगतान के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल से वेतन और ग्रेच्युटी से वंचित उत्तराखंड , हिमाचल प्रदेश, असम, पश्चिमी बंगाल, त्रिपुरा, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु आदि के चाय बागानों के मजदूरों को मनरेगा के तहत काम देने को भी कहा है। कोर्ट ने मजदूरों को आईसीडीएस योजना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ देने को भी कहा है।
2006 में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील व मानवाधिकार कार्यकर्ता कोलिन गोंजाल्विस ने यह जनहित याचिका दायर की थी। उनके मुताबिक आईयूएफ की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि चाय बागानों के मजदूरों को अब तक करीब 400 करोड़ रुपये के वेतन व एरियर का भुगतान नहीं हुआ है। अब मालिकों व कंपनियों द्वारा छोड़ दिए गए बागानों की नीलामी से यह राशि बटोरी जाएगी। एटक से जुड़ी देहरादून की चाय बागान मजदूर यूनियन के अध्यक्ष अशोक शर्मा का कहना है कि यह चाय बागान मजदूरों की एक बहुत बड़ी जीत है।
अब तमिलनाडु में बरपा बिहारी मजदूरों पर कहर
बिहारशरीफ, 11 agust
अभी कर्नाटक में बिहारी छात्रों पर कहर बरपाने का मामला ठंडा भी नहीं हुआ है कि तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले के गणेशपुरम में रहने वाले बिहारियों की खोज-खोज कर पिटाई की जा रही है। कोयंबटूर के गणेशपुरम ऑटो सेल माउल्ड प्राईवेट कंपनी में कार्यरत नालंदा जिला के सिलाव थाना अन्तर्गत देवरिया गांव निवासी विनय कुमार ने फोन से इसकी जानकारी दी है। उसके अनुसार कुछ दिनों पूर्व इसी इलाके में एक तामिल युवती के साथ दुष्कर्म हुआ जिसका आरोप बिहारी मजदूरों पर लगा। प्रतिशोध में स्थानीय लोग बिहारियों पर कहर बनकर टूट पड़े हैं।
विनय के अनुसार वह आईटीआई से डिप्लोमा करने के बाद एक वर्ष के लिए प्रशिक्षण लेने कोयंबटूर पहुंचा है, लेकिन यहां जान आफत में पड़ गई है। उसने बताया कि उसकी कंपनी में बिहार के करीब 200 लोग कार्यरत हैं, जो स्थानीय लोगों से सहमे हुए हैं। भय के कारण यहां पर कार्यरत कर्मी अपने घर जाना चाहते हैं, लेकिन कंपनी वाले यह कह कर मजदूरी नहीं दे रहे हैं कि बाहर जाने पर स्थानीय लोग उनके साथ कुछ भी कर सकते हैं।
सहमे विनय ने बताया कि वे लोग किसी अनहोनी की आशंका से चिंतित हैं। उसके अनुसार बिहारियों ने स्थानीय प्रशासन से भी वहां से बाहर निकालने की गुहार लगाई, लेकिन उनलोगों की एक नहीं सुनी गई।
अभी कर्नाटक में बिहारी छात्रों पर कहर बरपाने का मामला ठंडा भी नहीं हुआ है कि तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले के गणेशपुरम में रहने वाले बिहारियों की खोज-खोज कर पिटाई की जा रही है। कोयंबटूर के गणेशपुरम ऑटो सेल माउल्ड प्राईवेट कंपनी में कार्यरत नालंदा जिला के सिलाव थाना अन्तर्गत देवरिया गांव निवासी विनय कुमार ने फोन से इसकी जानकारी दी है। उसके अनुसार कुछ दिनों पूर्व इसी इलाके में एक तामिल युवती के साथ दुष्कर्म हुआ जिसका आरोप बिहारी मजदूरों पर लगा। प्रतिशोध में स्थानीय लोग बिहारियों पर कहर बनकर टूट पड़े हैं।
विनय के अनुसार वह आईटीआई से डिप्लोमा करने के बाद एक वर्ष के लिए प्रशिक्षण लेने कोयंबटूर पहुंचा है, लेकिन यहां जान आफत में पड़ गई है। उसने बताया कि उसकी कंपनी में बिहार के करीब 200 लोग कार्यरत हैं, जो स्थानीय लोगों से सहमे हुए हैं। भय के कारण यहां पर कार्यरत कर्मी अपने घर जाना चाहते हैं, लेकिन कंपनी वाले यह कह कर मजदूरी नहीं दे रहे हैं कि बाहर जाने पर स्थानीय लोग उनके साथ कुछ भी कर सकते हैं।
सहमे विनय ने बताया कि वे लोग किसी अनहोनी की आशंका से चिंतित हैं। उसके अनुसार बिहारियों ने स्थानीय प्रशासन से भी वहां से बाहर निकालने की गुहार लगाई, लेकिन उनलोगों की एक नहीं सुनी गई।
Tuesday, August 10, 2010
कर्नाटक में बिहारी मजदूरों का फिर दमन
-सालों से काम कर रहे १०० मजदूरों को निकाला
- मजदूरी बढ़ाने की मांग पर की पिटाई
शेखपुरा (बिहार), १० अगस्त
कर्नाटक के धारवाड़ जिले में कार्यरत बिहारी मजदूरों के साथ मंगलवार को नियोक्ता ने फिर दमनात्मक रवैया अपनाया। मजदूरी बढ़ाने समेत अन्य मांगों को लेकर कंपनी केप्रोजेक्ट मैनेजर से गुहार लगाने गए मजदूरों की जमकर पिटाई की गई तथा पांच साल से कार्यरत श्रमिकों को बल पूर्वक हटा दिया गया।
जानकारी के मुताबिक यह घटना धारवाड़ (कर्नाटक) जिले के गुजरात एनआरई कोक लिमिटेड इंडस्ट्रीज एरिया वेल्लूर में हुई। कम्पनी के अफसरों ने मजदूरों की पिटाई के बाद शेखपुरा के मनोज ढाढ़ी को बंधक बना लिया। इसकी जानकारी वहां कार्यरत मजदूर मुकेश कुमार ने मोबाइल फोन पर दी। यहां यह बताना जरूरी है कि इसी साल मार्च में इसी कम्पनी ने बिहारी मजदूरों के साथ जमकर मनमानी की थी, जिसमें मीडिया की सक्रियता तथा शेखपुरा जिला प्रशासन की पहल पर बिहार सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा था। धारवाड़ से फोन पर इसुआ (शेखपुरा) के मुकेश ने बताया कि बिहार सरकार के हस्तक्षेप पर मार्च में हुए समझौते को लागू करने की मांग को लेकर मंगलवार को बिहारी मजदूरों ने कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजर से बात करनी चाही तो प्राइवेट गार्डों से कहकर मजदूरों को लाठी से पिटवाया गया। प्रोजेक्ट मैनेजर ने बिहारी मजदूरों को काम से हटाकर स्थानीय मजदूरों को रख लिया है।
काम से हटाए गए मजदूरों की संख्या 100 से ऊपर है। जिसमें शेखपुरा, लखीसराय, नालंदा, पटना, सिवान, गोपालगंज के लोग शामिल हैं। बिहार राज्य ढाढ़ी विकास मंच के प्रदेश अध्यक्ष ललन कुमार तथा कोषाध्यक्ष हरिकिशोर कुमार ढाढ़ी ने इस मसले पर मुख्यमंत्री से राजनीतिक व प्रशासनिक हस्तक्षेप कर बिहारी मजदूरों के हितों की रक्षा की मांग की है।
- मजदूरी बढ़ाने की मांग पर की पिटाई
शेखपुरा (बिहार), १० अगस्त
कर्नाटक के धारवाड़ जिले में कार्यरत बिहारी मजदूरों के साथ मंगलवार को नियोक्ता ने फिर दमनात्मक रवैया अपनाया। मजदूरी बढ़ाने समेत अन्य मांगों को लेकर कंपनी केप्रोजेक्ट मैनेजर से गुहार लगाने गए मजदूरों की जमकर पिटाई की गई तथा पांच साल से कार्यरत श्रमिकों को बल पूर्वक हटा दिया गया।
जानकारी के मुताबिक यह घटना धारवाड़ (कर्नाटक) जिले के गुजरात एनआरई कोक लिमिटेड इंडस्ट्रीज एरिया वेल्लूर में हुई। कम्पनी के अफसरों ने मजदूरों की पिटाई के बाद शेखपुरा के मनोज ढाढ़ी को बंधक बना लिया। इसकी जानकारी वहां कार्यरत मजदूर मुकेश कुमार ने मोबाइल फोन पर दी। यहां यह बताना जरूरी है कि इसी साल मार्च में इसी कम्पनी ने बिहारी मजदूरों के साथ जमकर मनमानी की थी, जिसमें मीडिया की सक्रियता तथा शेखपुरा जिला प्रशासन की पहल पर बिहार सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा था। धारवाड़ से फोन पर इसुआ (शेखपुरा) के मुकेश ने बताया कि बिहार सरकार के हस्तक्षेप पर मार्च में हुए समझौते को लागू करने की मांग को लेकर मंगलवार को बिहारी मजदूरों ने कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजर से बात करनी चाही तो प्राइवेट गार्डों से कहकर मजदूरों को लाठी से पिटवाया गया। प्रोजेक्ट मैनेजर ने बिहारी मजदूरों को काम से हटाकर स्थानीय मजदूरों को रख लिया है।
काम से हटाए गए मजदूरों की संख्या 100 से ऊपर है। जिसमें शेखपुरा, लखीसराय, नालंदा, पटना, सिवान, गोपालगंज के लोग शामिल हैं। बिहार राज्य ढाढ़ी विकास मंच के प्रदेश अध्यक्ष ललन कुमार तथा कोषाध्यक्ष हरिकिशोर कुमार ढाढ़ी ने इस मसले पर मुख्यमंत्री से राजनीतिक व प्रशासनिक हस्तक्षेप कर बिहारी मजदूरों के हितों की रक्षा की मांग की है।
Monday, August 9, 2010
असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को भी पेंशन
केंद्रीय मंत्रिमंडल का फैसला, करीब 40 लाख मजदूरों को मिलेगा स्वावलंबन योजना का फायदा, चार साल में सरकार देगी दस अरब रुपये
नई दिल्ली, 9 अगस्त
संगठित क्षेत्र के मजदूरों को भी अब बुढ़ापे में पेंशन की सुविधा मिल पाएगी। सरकार ने इस वर्ग को स्वावलंबन योजना का फायदा देने का फैसला किया है। योजना के तहत असंगठित क्षेत्र के जो मजदूर नई पेंशन योजना (एनपीएस) में खाता खोलेंगे, उनके खाते में केंद्र सरकार हर साल 1,000 रुपये का योगदान देगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में सोमवार को इस संबंध में एक प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। इस उद्देश्य से एक हजार करोड़ रुपये का प्रावधान भी किया गया है।
इस योजना को अगले चार साल 2013-14 तक के लिए लागू किया जाएगा। हर साल असंगठित क्षेत्र के 10 लाख मजदूरों को स्वावलंबन योजना में शामिल किया जाएगा। इस तरह चार साल में 40 लाख श्रमिक इसके तहत शामिल होंगे। योजना को पेंशन फंड नियमन और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) के जरिए लागू किया जाएगा। इसका फायदा असंगठित क्षेत्र के उन सभी कामगारों को मिलेगा, जो एनपीएस में हर साल 1,000 रुपये से 12,000 रुपये तक जमा कराएंगे। सरकार ने आश्वासन दिया है कि अगर योजना में ज्यादा कामगार शामिल होते हैं, तो वह और राशि इसके लिए आïवंटित करेगी। स्वावलंबन योजना की घोषणा वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इस साल बजट पेश करते हुए की थी। देश के असंगठित क्षेत्र में करीब 30 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है, लेकिन इनके लिए पेंशन आदि की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है।
नई दिल्ली, 9 अगस्त
संगठित क्षेत्र के मजदूरों को भी अब बुढ़ापे में पेंशन की सुविधा मिल पाएगी। सरकार ने इस वर्ग को स्वावलंबन योजना का फायदा देने का फैसला किया है। योजना के तहत असंगठित क्षेत्र के जो मजदूर नई पेंशन योजना (एनपीएस) में खाता खोलेंगे, उनके खाते में केंद्र सरकार हर साल 1,000 रुपये का योगदान देगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में सोमवार को इस संबंध में एक प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। इस उद्देश्य से एक हजार करोड़ रुपये का प्रावधान भी किया गया है।
इस योजना को अगले चार साल 2013-14 तक के लिए लागू किया जाएगा। हर साल असंगठित क्षेत्र के 10 लाख मजदूरों को स्वावलंबन योजना में शामिल किया जाएगा। इस तरह चार साल में 40 लाख श्रमिक इसके तहत शामिल होंगे। योजना को पेंशन फंड नियमन और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) के जरिए लागू किया जाएगा। इसका फायदा असंगठित क्षेत्र के उन सभी कामगारों को मिलेगा, जो एनपीएस में हर साल 1,000 रुपये से 12,000 रुपये तक जमा कराएंगे। सरकार ने आश्वासन दिया है कि अगर योजना में ज्यादा कामगार शामिल होते हैं, तो वह और राशि इसके लिए आïवंटित करेगी। स्वावलंबन योजना की घोषणा वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इस साल बजट पेश करते हुए की थी। देश के असंगठित क्षेत्र में करीब 30 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है, लेकिन इनके लिए पेंशन आदि की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है।
कुएं की मिट्टी ढहने से दो मजदूरों की मौत
मेरठ 6 अगस्त
जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर गांव असीलपुर में कुएं की सफाई करते समय दो मजदूरों की मौत हो गई।
मृतक के परिजनों और गांव के लोगों ने मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों के समक्ष मुआवजे की मांग को लेकर काफी हंगामा किया। थाना किठार पुलिस ने बताया कि गांव में आज कुएं की सफाई का काम हो रहा था। इस दौरान अचानक मिटटी की ढांग भरभरा कर गिर गई। जिसमें दो मजदूर दब गए। शोर सुनकर आसपास के ग्रामीण मौके पर पहुंच कर जब तक मजदूरां को बाहर निकालते तब तक उनकी मौत हो चुकी थी। मृतकों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है।
जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर गांव असीलपुर में कुएं की सफाई करते समय दो मजदूरों की मौत हो गई।
मृतक के परिजनों और गांव के लोगों ने मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों के समक्ष मुआवजे की मांग को लेकर काफी हंगामा किया। थाना किठार पुलिस ने बताया कि गांव में आज कुएं की सफाई का काम हो रहा था। इस दौरान अचानक मिटटी की ढांग भरभरा कर गिर गई। जिसमें दो मजदूर दब गए। शोर सुनकर आसपास के ग्रामीण मौके पर पहुंच कर जब तक मजदूरां को बाहर निकालते तब तक उनकी मौत हो चुकी थी। मृतकों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है।
अमेरिका में बेरोजगारी की दर जुलाई में 9.5 प्रतिशत रही
वाशिंगटन, 6 अगस्त
नौकरी करने वाले अमेरिकी नागरिकों की संख्या जुलाई में।,31,000 तक घट गई। इसका कारण सरकार द्वारा जनगणना के लिए अनुबंध के तहत रोजगार पर रखे गए लोगों को हटाना है। लेकिन इससे बेरोजगारी की दर पूर्व के 9. 5 प्रतिशत पर स्थिर रही।
निजी क्षेत्र में रोजगार पिछले महीने मात्र 71,000 बढ़ा जो उम्मीद से कम है।
श्रम विभाग ने एक बयान में आज कहा है कि गैर कृषि कार्य वाले रोजगार जुलाई में।,31,000 घटा तथा बेरोजगारी की दर 9.5 प्रतिशत बनी रही। ताजा आंकड़ों के अनुसार सरकारी रोजगार जुलाई में घट गया क्योंकि जनगणना के लिए काम पर रखे गए।,43,000 अस्थाई कर्मचारियों ने अपने काम को पूरा कर लिया। दूसरी ओर निजी क्षेत्र का रोजगार पिछले महीने लगभग 90,000 की संख्या में बढऩे की उम्मीद थी।
नौकरी करने वाले अमेरिकी नागरिकों की संख्या जुलाई में।,31,000 तक घट गई। इसका कारण सरकार द्वारा जनगणना के लिए अनुबंध के तहत रोजगार पर रखे गए लोगों को हटाना है। लेकिन इससे बेरोजगारी की दर पूर्व के 9. 5 प्रतिशत पर स्थिर रही।
निजी क्षेत्र में रोजगार पिछले महीने मात्र 71,000 बढ़ा जो उम्मीद से कम है।
श्रम विभाग ने एक बयान में आज कहा है कि गैर कृषि कार्य वाले रोजगार जुलाई में।,31,000 घटा तथा बेरोजगारी की दर 9.5 प्रतिशत बनी रही। ताजा आंकड़ों के अनुसार सरकारी रोजगार जुलाई में घट गया क्योंकि जनगणना के लिए काम पर रखे गए।,43,000 अस्थाई कर्मचारियों ने अपने काम को पूरा कर लिया। दूसरी ओर निजी क्षेत्र का रोजगार पिछले महीने लगभग 90,000 की संख्या में बढऩे की उम्मीद थी।
सोने की खान में आग लगी, 50 लोग फंसे
बीजिंग, 6 अगस्त
पूर्वी चीन स्थित शेनडांग प्रांत में सोने की एक खान में आग भड़कने के बाद कम से कम 50 लोग उसके भीतर फंस गए हैं।
चीन की सरकारी संवाद समिति शिन्हुआ ने प्रांतीय आपात विभाग कार्यालय के एक प्रवक्ता के हवाले से कहा है कि लिंगनन खान में स्थानीय समयानुसार शाम पांच बजे के आसपास आग भड़क उठी, उस समय खान में 64 लोग फंस हुए थे।
उन्होंने बताया कि 11 लोगों को सुरक्षित बचा लिया गया जबकि बाकी अभी भी फंसे हुए हैं। प्रांतीय सरकार ने राहत एवं बचाव कार्य शुरू किया है। शुरूआती जांच से पता चला है कि एक भूमिगत केबल की वजह से आग लगी।
पूर्वी चीन स्थित शेनडांग प्रांत में सोने की एक खान में आग भड़कने के बाद कम से कम 50 लोग उसके भीतर फंस गए हैं।
चीन की सरकारी संवाद समिति शिन्हुआ ने प्रांतीय आपात विभाग कार्यालय के एक प्रवक्ता के हवाले से कहा है कि लिंगनन खान में स्थानीय समयानुसार शाम पांच बजे के आसपास आग भड़क उठी, उस समय खान में 64 लोग फंस हुए थे।
उन्होंने बताया कि 11 लोगों को सुरक्षित बचा लिया गया जबकि बाकी अभी भी फंसे हुए हैं। प्रांतीय सरकार ने राहत एवं बचाव कार्य शुरू किया है। शुरूआती जांच से पता चला है कि एक भूमिगत केबल की वजह से आग लगी।
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