Tuesday, August 3, 2010

खदानों में सुरक्षा उपायों में कमी से ४३ मजदूरों की मृत्यु पर बवाल

आयोग ने 43 व्यक्तियों की मौत पर लिया संज्ञान
जयपुर 3 अगस्त

राजस्थान मानवाधिकार आयोग ने भीलवा़डा जिले के बिजौलिया क्षेत्र में खदानों में सुरक्षा उपायों की कमी के कारण 43 व्यक्तियों की कथित मृत्यु श्वसन रोग से होने के बारे में प्राप्त परिवाद पर संज्ञान लिया गया।
आयोग की यहां जारी विज्ञप्ति में यह जानकारी दी गई। आयोग को मिले परिवाद में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, भीलवाडा से प्राप्त रिपोर्ट पर प्रकरण को आयोग द्वारा बडी गंभीरता से लिया गया तथा जिला कलेक्टर, भीलवाडा़ को आदेश दिए गए हैं कि वह खदान मालिकों को सुनवाई का अवसर देने के उपरान्त उनके खिलाफ जरूरी कानूनी कार्रवाई करें, जिनकी लापरवाही से 43 व्यक्तियों की श्वास रोग की बीमारी से मृत्यु हुई।
विज्ञप्ति के अनुसार आयोग ने भविष्य में भी खदानों में काम करने वाले मजदूरों की श्वास रोग से मृत्यु नहीं हो, इसके लिए किए गए उपाय की जानकारी देने की निर्देश दिए हैं।

४५ दिन कर्मचारी जा सकेंगे श्रम न्यायालय

कर्मचारी को श्रम न्यायालय तक पहुंच के प्रावधान वाले विधेयक को रास की मंजूरी
नई दिल्ली, ३ अगस्त

संसद की स्थाई समिति की सिफारिश को मानते हुए सरकार ने इस विधेयक में यह प्रावधान किया है कि कर्मचारी अपने मामले को सुलह प्रक्रिया में भेजे जाने के 45 दिन बाद अपने मामले को श्रम अदालत या न्यायाधिकरण में ले जा सकता है। मौजूदा कानून के तहत इसकी अवधि तीन माह है। औद्योगिक संस्थान में कार्यरत किसी कर्मचारी की बर्खास्तगी, पदावनति, छंटनी या सेवा समाप्त किए जाने की स्थिति में कर्मचारी को सीधे श्रम न्यायालय या न्यायाधिकरण में जाने का अधिकार देने के प्रावधान वाले एक विधेयक को मंगलवार को राज्यसभा ने मंजूरी दे दी।
श्रम एवं रोजगार मंत्री मल्लिकार्जुन खरगे ने 'औद्योगिक विवाद (संशोधन) विधेयक 2009' पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि बीस या इससे अधिक कर्मचारियों वाले औद्योगिक संस्थान में शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना किए जाने का प्रस्ताव भी है। मंत्री के जवाब के बाद सदन ने विधेयक को ध्वनिमत से मंजूरी प्रदान कर दी।
इससे पूर्व खरगे ने कहा कि विधेयक में सुपरवाइजर की वेतन सीमा को 1600 रूपए से बढ़ाकर 10 हजार रूपए कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि कुछ सदस्यों का सुझाव था कि इस सीमा को बढ़ाकर 25 हजार रू कर दिया जाना चाहिए।

Sunday, August 1, 2010

स्टील कंपनी में पिघला लोहा गिरने से 17 घायल

वद्धर्मान (पश्चिम बंगाल)

दुर्गापर के एक इस्पात संयत्र में आज पिघला लोहा गिरने से कम से कम 17 व्यक्ति घायल हो गए। पुलिस ने बताया कि दुर्घटना अंगदपुर औद्योगिक इलाके के अमित मेटालिक स्टील प्लांट में घटी। घायलों को एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
घायलों में तीन की हालत गंभीर बताई जाती है। प्रथम दृष्टया यह सुरक्षा मानकों में कंपनी की लापरवाही का नतीजा प्रतीत होती है और मजदूरों ने भी इसके लिए कंपनी की अतिशय मुनाफाखोरी की इच्छा में सुरक्षा मानकों को लागू न करनो को जिम्मेदार ठहराया है। हालांकि अभी तक किसी के खिलाफ पुलिस ने कोई मुकदमा नहीं दर्ज किया है और ना ही किसी मुआवजे की कंपनी ने घोषणा की है।

भारतीय मजदूरों को बांग्लादेशी मजदूरों से सीख लेनी चाहिए





ढाका में सैकड़ों कपड़ा फ़ैक्ट्रियों में कामकाज बंद, मजदूर उग्र हुए, बड़ी ब्रांड के कपड़े सस्ते में बनाकर मुनाफा निचोड़ने वाली कंपनियां वाजिब वेतन देने को तैयार नहीं
ढाका, 1 अगस्त
वेतन वृद्धि की लड़ाई को दो महीने से जारी रखी हुए बांग्लादेश के कपड़ा फैक्ट्री के मजदूर अब संघर्ष को अंतिम पड़ाव पर देखना चाहते हैं। 1 अगस्त को भी बड़ी संख्या में मजदूरों की हड़ताल के कारण ढाका के नज़दीक स्थित कपड़ा बनाने वाली सैकड़ों फ़ैक्ट्रियां लगातार तीसरे दिन बंद है। बांग्लादेश में कपड़ा बनाने की फैक्ट्रियां 30 लाख लोगों को रोजगार देती हैं। मजदूर संघ वेतन को लेकर पिछले कई महीनों से प्रदर्शन कर रहे हैं और ये प्रदर्शन अब हिंसक हो गए हैं। आख़िरी बार मजदूरों की तनख़्वाह 2006 में बढ़ाई गई थी। भारत में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है लेकिन यहां वैसा माहौल नहीं दिखता है। मजदूरों को कंपनियां लूट रही हैं और हसीना की तरह ही सोनिया सरकार भी मालिकों की भाषा बोल रही है। कम से कम इस मामले में भारतीय मजदूर वर्ग को बांग्लादेशी मजदूरों के बहादुराना संघर्ष से सीखना चाहिए।
इन फ़ैक्ट्रियों के मजदूर लगातार तीन दिन से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। हज़ारों मजदूरों ने मुख्य राजमार्ग को बंद कर दिया। फ़ैक्ट्री मजदूरों और पुलिस के बीच लगातार झड़पों की भी ख़बरें मिली हैं।
अधिकतर मजदूर संघों ने बीते बृहस्पतिवार को सरकार की ओर से घोषित नई न्यूनतम मजदूरी (3000 टका) को अस्वीकार कर दिया है। वे 5000 टका न्यूनतम वेतन की मांग पर अड़े हुए हैं। कपड़ा निर्माताओं का कहना है कि ऐसा पहली बार है जब विरोध प्रदर्शन की वजह से कपड़ा बनाने वाली सैकड़ों फैक्ट्रियों को बंद करना पड़ा है।
ढाका में सड़क मार्ग जाम करके प्रदर्शन कर रहे हज़ारों मजदूरों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने रबड़ की गोलियां चलाई और लाठियां बरसाईं। पिछले दो दिनों में और अधिक फैक्ट्रियों के मजदूर विरोध प्रदर्शन में शामिल हो चुके हैं।
कंपनियां नुकसान सहने को तैयार हैं लेकिन मजदूरों को उनका देने के लिए अभी तैयार नहीं हो पाई हैं। ढाका में कपड़ा निर्यात संघ के उपाध्यक्ष सिद्दीक़र रहमान ने बीबीसी को बताया, "अगर विरोध का यह सिलसिला जारी रहा तो कपड़ा निर्माता पश्चिमी देशों से मिले मौजूदा ऑर्डर को निर्धारित समय पर पूरे नहीं कर पाएंगे। नतीजतन उनको नए ऑर्डर नहीं मिल सकेंगे।"
कर्मचारी संघों ने चेतावनी दी है कि जब तक न्यूनतम मजदूरी को 70 डॉलर महीना (लगभग 5000 टका) नहीं कर दिया जाता, वे प्रदर्शन जारी रखेंगे।
अभी बीते बृहस्पतिवार को सरकार ने मजदूरों के वेतन में 80 फ़ीसदी की बढ़ोतरी करके 43 डॉलर (लगभग 3000 टका) कर दिया था। अभी उन्हें 1600 टका पर 12-12 घंटे काम करना पड़ रहा है। लेकिन उनके इस संघर्ष में कथित लोकतांत्रिक सरकार भी पूंजीपतियों की भाषा बोल रही है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने चेतावनी दी है कि मजदूरों की ओर से किए जा रहे तोड़-फोड़ को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और दोषियों के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी।

बड़े ब्रांड बांग्लादेशी मजदूरों की मजदूरी चुरा रहे हैं

कई विदेशी ब्रैंड जैसे वॉलमार्ट, टेस्को, एच एंड एम, मार्क्स एंड स्पेंसर और ज़ारा बांग्लादेश से बनकर आए कपड़े बेचते हैं।
कपड़ा उद्योग को बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। देश के कुल निर्यात से होने वाली 80 फ़ीसदी कमाई इसी उद्योग से आती है। बांग्लादेश में कपड़ा बनाने की चार हज़ार फैक्ट्रियां हैं जिसमें 30 लाख लोगों को रोजगार मिलता है। इनमें अधिकतर महिलाएं हैं। बांग्लादेशी कपड़ा उद्योग पर ये आरोप लगाए गए थे कि फ़ैक्ट्रियों में मजदूरों का शोषण होता है। इसके बाद कई विदेशी कंपनियों ने बांग्लादेश सरकार से कहा था कि वो मजदूरों का न्यूनतम वेतन बढ़ाए।