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मज़दूरों ने कहा है कि वो इस फैसले के ख़िलाफ़ ऊपरी अदालत में जाएंगे और इसे चुनौती देंगे.
यूनियन नेताओं ने कहा है कि मारुति मज़दूरों के ख़िलाफ़ फैसले ने फिर साबित किया है की यह व्यवस्था पूँजीपतियों के हित में खड़ी है.
हालांकि 117 मज़दूरों के बेगुनाही का फैसला और 14 मज़दूरों की पूर्व जेलबंदी के आधार पर रिहाई को देशभर के मज़दूरों के एकताबद्ध विरोध संघर्ष की जीत बताया है.
गुड़गांव के मानेसर प्लांट में 2012 में हिंसा हुई थी जिसमें क़रीब डेढ़ सौ मज़दूरों को क़रीब क़रीब चार साल तक जेल में बंद रखा गया.
सवाल उठता है कि जो 117 मज़दूर बेगुनाह क़रार दिए गए हैं उनके नष्ट हुए 4 साल का हिसाब कौन देगा.
(हुंडै के कर्मचारी लंच बहिष्कार में हिस्सा लेते हुए. फ़ोटो क्रेडिट मुकुल)
इस मुक़दमे में 10 मार्च को फैसला आया था जिसमें 31 लोगों को दोषी क़रार दिया गया था.
इसके विरोध में गुड़गांव से लेकर देश के विभिन्न हिस्से के मज़दूरों ने होली न मानाने का ऐलान किया था.
इससे पहले 9 मार्च को मानेसर के मारुति के 4 प्लांटों व बेलेसोनिक सहित 6 कंपनियों के 25000 मज़दूरों ने लंच का बहिष्कार किया था.
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