Sunday, August 1, 2010

भारतीय मजदूरों को बांग्लादेशी मजदूरों से सीख लेनी चाहिए





ढाका में सैकड़ों कपड़ा फ़ैक्ट्रियों में कामकाज बंद, मजदूर उग्र हुए, बड़ी ब्रांड के कपड़े सस्ते में बनाकर मुनाफा निचोड़ने वाली कंपनियां वाजिब वेतन देने को तैयार नहीं
ढाका, 1 अगस्त
वेतन वृद्धि की लड़ाई को दो महीने से जारी रखी हुए बांग्लादेश के कपड़ा फैक्ट्री के मजदूर अब संघर्ष को अंतिम पड़ाव पर देखना चाहते हैं। 1 अगस्त को भी बड़ी संख्या में मजदूरों की हड़ताल के कारण ढाका के नज़दीक स्थित कपड़ा बनाने वाली सैकड़ों फ़ैक्ट्रियां लगातार तीसरे दिन बंद है। बांग्लादेश में कपड़ा बनाने की फैक्ट्रियां 30 लाख लोगों को रोजगार देती हैं। मजदूर संघ वेतन को लेकर पिछले कई महीनों से प्रदर्शन कर रहे हैं और ये प्रदर्शन अब हिंसक हो गए हैं। आख़िरी बार मजदूरों की तनख़्वाह 2006 में बढ़ाई गई थी। भारत में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है लेकिन यहां वैसा माहौल नहीं दिखता है। मजदूरों को कंपनियां लूट रही हैं और हसीना की तरह ही सोनिया सरकार भी मालिकों की भाषा बोल रही है। कम से कम इस मामले में भारतीय मजदूर वर्ग को बांग्लादेशी मजदूरों के बहादुराना संघर्ष से सीखना चाहिए।
इन फ़ैक्ट्रियों के मजदूर लगातार तीन दिन से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। हज़ारों मजदूरों ने मुख्य राजमार्ग को बंद कर दिया। फ़ैक्ट्री मजदूरों और पुलिस के बीच लगातार झड़पों की भी ख़बरें मिली हैं।
अधिकतर मजदूर संघों ने बीते बृहस्पतिवार को सरकार की ओर से घोषित नई न्यूनतम मजदूरी (3000 टका) को अस्वीकार कर दिया है। वे 5000 टका न्यूनतम वेतन की मांग पर अड़े हुए हैं। कपड़ा निर्माताओं का कहना है कि ऐसा पहली बार है जब विरोध प्रदर्शन की वजह से कपड़ा बनाने वाली सैकड़ों फैक्ट्रियों को बंद करना पड़ा है।
ढाका में सड़क मार्ग जाम करके प्रदर्शन कर रहे हज़ारों मजदूरों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने रबड़ की गोलियां चलाई और लाठियां बरसाईं। पिछले दो दिनों में और अधिक फैक्ट्रियों के मजदूर विरोध प्रदर्शन में शामिल हो चुके हैं।
कंपनियां नुकसान सहने को तैयार हैं लेकिन मजदूरों को उनका देने के लिए अभी तैयार नहीं हो पाई हैं। ढाका में कपड़ा निर्यात संघ के उपाध्यक्ष सिद्दीक़र रहमान ने बीबीसी को बताया, "अगर विरोध का यह सिलसिला जारी रहा तो कपड़ा निर्माता पश्चिमी देशों से मिले मौजूदा ऑर्डर को निर्धारित समय पर पूरे नहीं कर पाएंगे। नतीजतन उनको नए ऑर्डर नहीं मिल सकेंगे।"
कर्मचारी संघों ने चेतावनी दी है कि जब तक न्यूनतम मजदूरी को 70 डॉलर महीना (लगभग 5000 टका) नहीं कर दिया जाता, वे प्रदर्शन जारी रखेंगे।
अभी बीते बृहस्पतिवार को सरकार ने मजदूरों के वेतन में 80 फ़ीसदी की बढ़ोतरी करके 43 डॉलर (लगभग 3000 टका) कर दिया था। अभी उन्हें 1600 टका पर 12-12 घंटे काम करना पड़ रहा है। लेकिन उनके इस संघर्ष में कथित लोकतांत्रिक सरकार भी पूंजीपतियों की भाषा बोल रही है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने चेतावनी दी है कि मजदूरों की ओर से किए जा रहे तोड़-फोड़ को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और दोषियों के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी।

बड़े ब्रांड बांग्लादेशी मजदूरों की मजदूरी चुरा रहे हैं

कई विदेशी ब्रैंड जैसे वॉलमार्ट, टेस्को, एच एंड एम, मार्क्स एंड स्पेंसर और ज़ारा बांग्लादेश से बनकर आए कपड़े बेचते हैं।
कपड़ा उद्योग को बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। देश के कुल निर्यात से होने वाली 80 फ़ीसदी कमाई इसी उद्योग से आती है। बांग्लादेश में कपड़ा बनाने की चार हज़ार फैक्ट्रियां हैं जिसमें 30 लाख लोगों को रोजगार मिलता है। इनमें अधिकतर महिलाएं हैं। बांग्लादेशी कपड़ा उद्योग पर ये आरोप लगाए गए थे कि फ़ैक्ट्रियों में मजदूरों का शोषण होता है। इसके बाद कई विदेशी कंपनियों ने बांग्लादेश सरकार से कहा था कि वो मजदूरों का न्यूनतम वेतन बढ़ाए।

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