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23 मार्च
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Tuesday, June 14, 2011
चूहे बिल्ली का खेल खेल रहा है मारुति सुजीकी का मैनेजमेंट
मानेसर से लौटकर विस्तृत रिपोर्ट
10 दिन से मानेसर के मारुति सुजुकी प्लाण्ट में 2000 मजदूर हड़ताल हैं, जिनमें तकरीबन एक हजार मजदूर फैक्ट्री के अंदर बने शेड में 10 दिन से धरने पर बैठे हुए हैं। कल सोमवार को जारी बातचीत टूटने के बाद अब यह आग पूरे गुड़गांव मानेसर में फैलती नजर आ रही है। मानेसर गुड़गांव की लगभग 60- 65 फैक्ट्रियों की यूनियनों के करीब 50 हजार वर्करों ने धरने पर बैठे मजदूरों के समर्थन में आज दो घंटे का टूल डाउन करने की घोषणा की है। इन यूनियनों में हीरो होण्डा, होण्डा मोटर साइकिल इंडिया और रिको आटो जैसी बड़ी फैक्ट्रियों की यूनियनें भी बढ़चढ़ कर भाग ले रही हैं। एटक के अलावा सीटू, इंटक, एचएमएस से जुड़ी हुई यूनियनों के अलावा रिको जैसी फैक्ट्रियों की स्वतंत्र यूनियनें भी इस टूल डाउन को सफल बनाने की कोशिश कर रही हैं।
मानेसर मारुति वर्करों की कल 13 जून को हड़ताल के दसवें दिन मैनेजमेंट और कर्मचारियों के बीच दिन भर वार्ताओं का दौर चलता रहा। देर शाम तक मैनेजमेंट के अड़ियल रवैये और बार-बार अपना रुख बदने के चलते बातचीत टूट गई। पहले तो ऐसा लग रहा था कि मैनेजमेंट नई यूनियन को मान्यता देने पर सहमत हो गया है लेकिन वह मजदूरों द्वारा अपने बर्खास्त साथियों को वापस लिए जाने की मांग पर मैनेजमेंट ने ऐसा दिखाया कि मानो वह उससे सहमत हो गया है। लेकिन उसने अपनी ओर से यह नई शर्त रख दी कि सभी 11 बर्खास्त वर्करों को वापस लिए जाने की स्थित में मजदूरों को मैनेजमेंट की पिट्ठू पुरानी यूनियन को मान लेना पड़ेगा। ऐसी स्थित में बातचीत का टूटना लाजिमी था।
दूसरी ओर, कल दूसरे दिन मानेसर स्थित होण्डा और मानेसर गुड़गांव बेल्ट के अन्य फैक्ट्रियों के वर्करों ने आम सभाओं के माध्यम से हड़ताली मजदूरों का समर्थन किया और घोषणा की कि यदि वार्ताएं बेनतीजा रहती हैं तो वे अगले दिन यानी आज, दिन मंगलवार 14 जून को दो घंटे का टूल डाउन करेंगे। ऐसे उम्मीद है कि आज पूरे गुड़गांव मानेसर बेल्ट में विभिन्न फैक्ट्रियों के 50,000 से अधिक मजदूर इस सांकेतिक हड़ताल में हिस्सेदारी करेंगे। इस हड़ताल को नेतृत्व दे रहे एटक के अलावा इन्टक, एचएमएस भी इसमें शिरकत करेंगी।
कल दोपहर तीन बजे, होण्डा, मानेसर के गेट पर हुई मजदूरों की सभा को सम्बोधित करते हुए एटक के सुरेश गौड़ ने अधिक से अधिक संख्या में मजदूरों को मंगलवार को होने वाले टूल डाउन में शामिल होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि मारुति सुजुकी मानेसर के वर्कर साथियों के साथ जो कुछ हो रहा है वह सिर्फ उन्हीं का मुद्दा नहीं है, यह सभी मजदूरों का मुद्दा है और मजदूर वर्ग की आपसी एकजुटता की मिशाल कायम करनी चाहिए।
नलों और बाथरूम तक पर ताला जड़ा
एक तरफ मैनेजमेंट की तरफ से यह बयान आया है कि वह अपने कर्मचारियों की बहुत चिंता करता है और उसके सीएमडी भार्गव कैंटीन में मजदूरों के साथ लाइन में ही खड़ा होकर खाने की प्लेट का इंतजार करते हैं। दूसरी ओर असली स्थित यह है कि इस भीषण गर्मी में टीन शेड के नीचे 10 दिन से धरने पर बैठे एक हजार मजदूरों के लिए पानी के नलों तक को बंद कर दिया गया है। यहां तक कि एक को छोड़कर बाकी सभी बाथरूमों पर ताला जड़ दिया गया है और कैंटीन तो बंद है ही। मजदूर बाहर से खाना मंगा रहे हैं। परिजनों, शुभचिंतकों और यहां तक कि पत्रकारों को भी मजदूरों से मिलने और बातचीत करने नहीं दिया जा रहा है। जो भी वहां जाता है उसे गेट पर तैनात सिक्यूरिटी गार्ड और मैनेजमेंट के लोग सीधे कम्पनी के पीआरओ से मिलने की सलाह देते हैं। हड़ताली मजदूरों के परिजनों से हमें पता चला है कि जिस दिन धरना शुरू हुआ उस दिन मैनेजमेंट की ओर से वर्करों के घरों पर ढोरों फोन किए गए जिनमें उनको धमकी दी गई और परेशान किया गया। जिसके चलते कई मजदूरों के रिश्तेदार धरना स्थल पर पहुंच गए और रोने गाने की स्थिति पैदा हो गई। यह सब कुछ जानबूझ कर वर्करों के मनोबल को तोड़ने के लिए गया था। आखिर अपने प्रिय मजदूरों को मैनेजमेंट इतनी सुविधाएं देकर अपनी मांग मनवाने का यह एक नायाब तरीका अख्तियार किया है।
रोज ही बेहोश हो रहे हैं मजदूर
पता चला है कि भीषण गर्मी और पानी न मिलने की वजह से प्रतिदिन दो चार वर्कर बेहोश हो जाते हैं, जिनकी चिकित्सा की कोई व्यवस्था वहां उपलब्ध नहीं है। हालांकि धरना अभी तक पूरी तरह से शांतिपूर्ण रहा है लेकिन फैक्ट्री प्रबंधन को वहां सैकड़ों की संख्या में निजी सिक्यूरिटी गार्ड तैनात करने की तो सुध है लेकिन अपने ही कर्मचारियों को कुछ बुनियादी सुविधाएं ही उपलब्ध कराने के ख्याल नहीं है। धरना शुरू होने के दूसरे दिन मजदूरों के कुछ शुभचिंतकों ने फैक्ट्री के बाहर टेंट लगाकर उनके लिए कुछ सुविधाएं मुहैया करते रहने की कोशिश की लेकिन मानेसर पुलिस ने उनके टेंट उखाड़कर उन्हें वहां से भगा दिया।
धरने पर बैठे एक मजदूर ने हमें टेलीफोन से सूचित किया कि इन सारी परिस्थितियों के बावजूद वर्करों का मनोबल ऊंचा है और वह अपनी दोनों मांगों- अपनी यूनियन को मान्यता दिए जाने और बर्खास्त साथियों को वापस लिए जाने पर किसी तरह का समझौता करने पर तैयार नहीं हैं। जबकि मैनेजमेंट यह चाहता है कि मजदूरों में फूट डालकर हड़ताल को खत्म करवा दे। अतः कभी वे पांच बर्खास्त मजदूरों को वपास लेने तो कभी छह को वापस लेने की बात कर रहा है।
मजदूरों द्वारा गठित ताजा मारुति सुजुकी एम्प्लाइज यूनियन (एमएसईयू) के महासचिव शिव कुमार ने कहा है कि प्रबंधन द्वारा छह जून को बर्खास्त किए गए सभी 11 वर्करों को वापस लेना ही होगा।
मैनेजमेंट मीडिया के माध्यम से फैक्ट्री को हो रहे घाटे का बढ़ाचढ़ा कर प्रचार कर रहा है लेकिन इस घाटे के लिए असल में वही जिम्मेदार है और वह जानी समझी रणनीति के तहत यह घाटा बर्दास्त कर रहा है। इसके पीछे उस इलाके के सभी फैक्ट्रियों के प्रबंधन का सहयोग हासिल है। जो यह समझते हैं कि यदि मजदूरों द्वारा अपनी मनपसंद यूनियन के गठन की मांग को एक बार मान लिया गया तो भविष्य में सभी फैक्ट्रियों में उनकी मनमानियां नहीं चल पाएंगी और मजदूरों को वे सुविधाएं देनी पड़ेंगी जिनके वे हकदार हैं। जिस तरह से कोई फैक्ट्री बोर्ड का यह विशेषाधिकार है कि वह अपने फैक्ट्री के लिए जैसा भी उचित समझे, प्रबंधन का चुनाव करे, उसी तरह से यह मजदूरों का विशेषाधिकार है कि वह जैसा भी उचित समझे अपने लिए वैसी ही यूनियन का निर्माण करे और जिसे भी उचित समझे उसका पदाधिकारी बनाए। यह एक बुनियादी किस्म का और संविधान प्रदत्त अधिकार है। दरअसल, इस अधिकार को सदा के लिए छीन लेने के उद्देश्य से ही फैक्ट्री प्रबंधन ने इतना अड़ियल रवैया अख्तियार किया हुआ है। और इसी के चलते उसे अपने इस मकसद में इलाके में तमाम फैक्ट्रियों के प्रबंधकों और सम्पूर्ण मालिक वर्ग का सहयोग और समर्थन हासिल हो रहा है। हरियाणा सरकार और श्रम मंत्रालय के अधिकारी भी अपनी मालिक परस्त नीतियों के चलते इनका समर्थन कर रहे हैं और वार्ताओं में उनकी दखलंदाजी भी निष्पक्ष नहीं है।
मारूति के मजदूर कभी बीमार नहीं पड़ते
प्रबंधन ऐसा मान कर चलता है कि उसके कम्पनी के वर्कर कभी बीमार नहीं होते। शायद इसीलिए यहां मजदूरों को सिक लीव का प्रावधान नहीं है। मारुति सुजुकी, मानेसर में 900 परमानेंट कर्मचारी हैं जिन्हें 16,000 रुपये की तनख्वाह मिलती है। हर परमानेंट कर्मचारी को साल भर में सिर्फ 20 छुट्टी मिलती है। हर उस दिन की छुट्टी के लिए, जो कि स्वीकृत नहीं है, हर मजदूर की तनख्वाह से 1200 से लेकर 1600 रुपये की कटौती होती है। इस तरह से केवल स्थाई कर्मचारियों को 11 दिन के हड़ताल से नुकसान एक करोड़ 8 लाख रुपये से लेकर एक करोड़ 58 लाख रुपये के बीच होगा। ऐसा केवल स्थित में होगा जब एक दिन के हड़ताल पर केवल एक दिन की तनख्वाह काटी जाए और कोई पेनाल्टी न लगाई जाए।
संयंत्र में 1500 ट्रेनी कर्मचारी हैं जिन्हें 12,000 वेतन मिलता है और स्थायी बनाए जाने के लिए उन्हें तीन वर्ष तक इसी स्थिति में रहना होता है। 600 कैजुअल वर्कर हैं। हरेक कैजुअल वर्कर को 6,500 रुपये वेतन मिलता है। दोनों ही ट्रेनी और कैजुअल वर्कर को बिना स्वीकृत छुट्टी के लिए उनकी तनख्वाह से प्रति दिन 1200 रुपये की कटौती होती है।
एक न्यूज चैनल के पत्रकार द्वारा किए गए तुलनात्मक अध्ययन से यह स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि देश के सबसे बड़े कार निर्माता मारुति सुजुकी के कर्मचारियों को मिलने वाली तनख्वाहें और सुविधाएं इस उद्योग के अन्य क्षेत्रों मसलन होण्डा मोटर्स में मजदूरों को प्राप्त होने वाली तनख्वाहों और सुविधाओं से बहुत नीचे हैं।
मजदूरों की यह भी मांग है कि स्वास्थ्य सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की जाए और सिक लीव को फिर से बहाल किया जाए। गुड़गांव में मकान के किरायों में जितनी तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है उसे देखते हुए वे किराया भत्ता को बढ़ाकार 1400 से 4,000 रुपये करने और 600 रुपये महीने आवागमन भत्ता देने की मांग कर रहे हैं जैसा कि हीरो होण्डा के वर्करों को दिया जाता है।
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