मजदूरों को अब तक करीब 400 करोड़ रुपये के वेतन व एरियर का भुगतान बकाया-
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को चाय बागानों का प्रबंधन अधिग्रहण करने को कहा
आईयूएफ की ओर से दायर जनहित याचिका पर अहम फैसला
देहरादून, 11 agust:
उत्तराखंड समेत देश के सभी बीमार चाय बागानों के श्रमिकों के दिन बहुरने वाले हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केेंद्र सरकार को देश के सभी बीमार चाय बागानों के प्रबंध तंत्र का अधिग्रहण करने के निर्देश दिए हैं, ताकि नारकीय हालात में काम कर रहे वहां के मजदूरों को रुका एरियर और वेतन दिया जा सके।
एक मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि ज्यादातर चाय बागान उनके मालिकों द्वारा छोड़ दिए गए हैं। ऐसे में चाय बागानों के मजदूरों को बरसों से न तो मजदूरी मिल रही है न सुविधाएं, जिससे चाय बागानों के मजदूर भुखमरी की हालत में हैं। सरकारों ने कुछ प्रयास किया, मगर उसका कोई असर नहींहुआ है। इंटरनेशनल यूनियन ऑफ फूड, एग्रीकल्चर, होटल, रेस्टोरेंट, कैटरिंग, टोबैको, प्लांटेशन एंड एलाइड वर्कर्स एसोसिएशन (आईयूएफ)की ओर से दायर एक जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडिय़ा, न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन व स्वतंत्र कुमार की बेंच ने कहा है कि इस स्थिति में केद्र सरकार को टी-एक्ट 1953 के तहत अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभानी होगी। कोर्ट ने केद्र को बागानों काप्रबंधन अपने हाथ में लेकर छह माह के भीतर मजदूरों को उनके अवशेष के भुगतान के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल से वेतन और ग्रेच्युटी से वंचित उत्तराखंड , हिमाचल प्रदेश, असम, पश्चिमी बंगाल, त्रिपुरा, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु आदि के चाय बागानों के मजदूरों को मनरेगा के तहत काम देने को भी कहा है। कोर्ट ने मजदूरों को आईसीडीएस योजना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ देने को भी कहा है।
2006 में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील व मानवाधिकार कार्यकर्ता कोलिन गोंजाल्विस ने यह जनहित याचिका दायर की थी। उनके मुताबिक आईयूएफ की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि चाय बागानों के मजदूरों को अब तक करीब 400 करोड़ रुपये के वेतन व एरियर का भुगतान नहीं हुआ है। अब मालिकों व कंपनियों द्वारा छोड़ दिए गए बागानों की नीलामी से यह राशि बटोरी जाएगी। एटक से जुड़ी देहरादून की चाय बागान मजदूर यूनियन के अध्यक्ष अशोक शर्मा का कहना है कि यह चाय बागान मजदूरों की एक बहुत बड़ी जीत है।
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23 मार्च
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Wednesday, August 11, 2010
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