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23 मार्च
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Tuesday, June 15, 2010
पूंजीवाद सड़ती हुई लाश है? भला कैसे, यह तो बताएं
पुनीत
(प्रणव एन की पिछली पोस्ट मुद्दा गरीबी नहीं, बराबरी है मेरे दोस्त पर यह महत्वपूर्ण टिप्पणी हमें कमेंट बॉक्स में पड़ी मिली। सहमति-असहमति से अलग, सबसे पहले हम पुनीत का शुक्रिया अदा करना चाहते हैं। इस बात के लिए कि उन्होंने इस पोस्ट को गंभीरता से पढ़ा, उस पर विचार किया और अपनी ईमानदार राय प्रभावशाली ढंग से प्रकट करते हुए हमें उससे अवगत कराया।जब हम विपक्ष की राय को गंभीरता से लेते हैं और उसे वह सम्मान देते हैं जिसकी वह हकदार होती है, तभी स्वस्थ बहस आगे बढ़ती है। स्वस्थ बहस को आगे बढ़ाने के ही उद्देश्य से हमने पुनीत के इस कमेंट को पोस्ट के रूप में यहां पेश करने का फैसला किया है। अपनी तरफ से हम सभी पाठकों को सादर आमंत्रित करते हैं कि खुलकर इस बारे में अपनी राय पेश करें। हां अगर मूल पोस्ट के लेखक प्रणव एन. अपना पक्ष रखना चाहें ( बल्कि हम चाहेंगे कि वह भी अपना पक्ष रखें ) तो हमें खुशी होगी - मालंच )
बाकी सब तो ठीक है पर एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि पूंजीवाद की सड़ी हुई लाश आप लोगों को कहां दिख जाती है? पूंजीवाद आज का सच है। इससे आपकी वैचारिक असहमति है, इसमें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन क्या वैचारिक सहमति या असहमति के कारण आप तथ्यों के साथ खिलवाड़ करने की छूट पा लेते हैं?
तथ्य यह है कि आपको अच्छा लगे या ,बुरा पर तीन-चार शताब्दियों से पूंजीवाद फलता-फूलता रहा है और आज भी फल-फूल रहा है। आपकी विचारधारा जहां कहीं टिमटिमाती दिख रही है ( उदाहरण - नेपाल ) वह बस टिमटिमा ही रही है। इसके विपरीत पूंजीवाद पूरी दुनिया को अपने तर्क से चला रहा है। और आसार जो दिखते ,हैं उसके मुताबिक आगे भी वही चलाएगा इस दुनिया को।
ऐसे में, चूंकि आपको पूंजीवाद पसंद नहीं है, इसलिए आप उसे सड़ती हुई लाश बता दें यह हास्यास्पद नहीं तो और क्या है? माफ कीजिएगा मैं आपमें से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से इस ब्लॉग पर नहीं आया था, मगर आपकी पोस्ट और उस पर कमेंट देख कर रहा नहीं गया। मैं कहना चाहता हूं कि अगर तथ्यों के प्रति इतना ही सम्मान आपके मन में है तो आपकी विचारधारा का भविष्य स्वतःस्ष्ट है।
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युग पूंजीवाद का है, इस में कोई शक नहीं। पर यह कैसा पूंजीवाद है? जो सामंतो से समझौता किए खुद के ही विकास को अवरुद्ध किए बैठा है जो दुनिया की आधी से अधिक आबादी को खून के आँसू रुलाता है। जो हर आठ बरस बाद मंदी का रोना रोता है। लगता है अभी सड़न की गंध आप तक नहीं पहुंची या डिओ लगा कर काम चला रहे हैं। सारी व्यवस्थाएँ नष्ट हुई हैं, यह भी होगी। विकल्प युग खुद प्रस्तुत कर देगा।
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