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23 मार्च
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Saturday, June 19, 2010
शादियों का स्याह पहलू
बैंड वालों के पीछे सिर पर लाइट लेके चलने वालों की जिंदगी
देश में शादियां होती हैं धूम धड़ाके से, लाखों से लेकर करोड़ों रुपये स्वाहा किए जाते हैं। लेकिन बरातों में सड़क पर रौशनी फैलाने वालों की मेहनत की कीमत होती है 100 रुपये। गोलगप्पे और रसगुल्ले खूब उड़ाए जाते हैं लेकिन उन्हें जूठन भी नसीब नहीं होती। इलाहाबाद में ये महिलाएं सिर पर लाइट ढो रही हैं। इन्हें 100 रुपये की दिहाड़ी मिलती है। बैंडबाजे के पीछे पीछे इन्हें घंटों यूं ही चलना पड़ता है।
बैंड बाजों में काम करने वालों की हालत तो और बुरी होती है। बाजा बजाने वालों को टीबी की बीमारी बहुत जल्दी होती है। आधी रात तक काम करने और जगने की स्थिति में उनकी सेहत और खराब होती जाती है। उन्हें न तो कोई सामाजिक सुरक्षा मुहैया है और न मेहनताने का कोई ठीक सिस्टम। ये संगठित हों भी तो कैसे और मांग भी रखें तो क्या।
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