यह कहना है केन्द्रीय श्रम और रोजगार मन्त्री मल्लिकार्जुन खडग़े का
अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) का संस्थापक सदस्य होने के बावजूद भारत ने इसके दो अतिमहत्वपूर्ण संधियों (कन्वेंशन्स) की अभीतक पुष्टि नहीं की है। ये दो संधियां हैं-संधि संख्या 87 और संधि संख्या 98, जो क्रमश: एकताबद्ध होने के अधिकार और संगठित होने के अधिकार के संरक्षण (1948) तथा संगठित होने एवं सामूहिक मोलभाव के अधिकार संधि (1949) से संबंधित है। इन दोनों को उन केंद्रीय आठ संधियों में से समझा जाता है, जो मजदूर वर्ग के अधिकारों की दृष्टि से बुनियादी तत्व हैं।
अन्तरराष्ट्रीय मजदूर वर्ग द्वारा समय समय पर इन संधियों के महत्व को रेखांकित किया जाता रहा है। सबसे पहले 1995 में कोपेनहेगन में हुई सामाजिक विकास पर विश्व सम्मेलन में, उसके बाद 1998 में आईएलओ के बुनियादी सिद्धांतों और कार्यस्थल और उसके बाद के अधिकारों की घोषणा में और अन्तिम तौर पर जून 2००8 में जब अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने न्यायोचित वैश्विकरण हेतु सामाजिक न्याय के घोषणा पत्र को स्वीकार किया। भारत जोकि आईएलओ के संचालक निकाय में अभी तक निर्वाचित सीट है, उन आठ में से सिर्फ चार केन्द्रीय संधियों को मान्यता प्रदान की है। वे हैं- संधि संख्या 29-(बंधुआ मजदूर), संधि संख्या 1००- (समान पारिश्रमिक), संधि संख्या 1०5- (बंधुआ मजदूरी की समाप्ति) और संधि संख्या 111- (रोजगार और पेश में भेदभाव की समाप्ति)। गत नौ मार्च को केन्द्रीय श्रम और रोजगार मन्त्री मल्लिकार्जुन खडग़े ने राज्य सभा में एक लिखित सवाल के जवाब में बताया कि उपरोक्त दोनों संधियों को भारत सरकार इसलिए पुष्टि नहीं कर रही है कि इससे सरकारी कर्मचारियों को कुछ ऐसे अधिकार देने पड़ेंगे जो भारतीय संविधान के अनुरूप नहीं हैं।
परोक्ष रूप से उन्होंने इसे भारतीय शासक वर्ग की मजबूरी बताया। संधि 87 की दुनिया के 15० देशों ने पुष्टि कर दी है। जबकि संधि 98 की 16० देशों ने पुष्टि कर दी है।
बाल श्रम,आत्महत्याएं,औद्योगिक दुर्घटनाएं
23 मार्च
export garment
gorakhpur mahdoor sangharsh
labour
pf
अंतरराष्ट्रीय
अदालत
आईएमटी चौक
आजीवन कारावास
आत्महत्याएं
एक्सपोर्ट गार्मेंट
ऑटो उद्योग
औद्योगिक दुर्घटना
कर्मचारी
कामगार
कार्यक्रम
खेतिहर मजदूर
गुड़गांव
चीन
जनसभा
जेल
तालाबंदी
दमन
पीएफ
फिल्म
फैसला
बंधुआ मजदूर
बहस मुहाबसा
बाल श्रम
भारतीय
मजदूर
मज़दूर
मजदूर अधिकार
मजदूर आक्रोश
मजदूर मौतें
मजदूर विजय
मजदूर हत्याएं
मजदूरी
मानेरसर
मानेसर
मारुति
मारुति संघर्ष
मौत
यूनियन
रिफाइनरी
श्रम
श्रम कानून
सज़ा
सिंगापुर
सेज
हड़ताल
Tuesday, May 24, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment