Tuesday, May 24, 2011

यहाँ भी झोंक दिए गए ठेका मजदूर


प्राकृतिक आपदा से इंसानी समाज को पहले खतरा था और अब भी है। लेकिन आज विभिन्न देशों की सरकारें आर्थिक विकास के नाम पर प्रकृ ति से साथ जो छेड़-छाड़ कर रही हैं उसका जीता-जागता उदाहरण जापान में कुछ दिन पहले आयी सुनामी के बाद जो कुछ हुआ वह है। अब जब उन्होंने तेल जैसे उर्जा के पराम्परागत स्रोत का भरपुर शोषण कर लिया है तो वे बड़ी तेजी से दुनिया के देशों में नाभिकीय संयन्त्र स्थापित करने के दिशा में बढ़ रहे हैं। इसी के साथ-साथ दुनिया के एक बहुत बड़ी आबादी नाभिकीय विकरण के खतरे के नीचे आती जा रही है। दिनाँक ११ अपै्रल २०११ को 'दि हिन्दुÓ में प्रकाशित हिरोको ताबुची की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है ११ मार्च २०११ को जब सुनामी ने जापान के फ ुकु शिमा दाई-ची न्यूक्लीयर पावर प्लाण्ट को अपनी चपेट में लिया तो किस तरह वहाँ ठेके पर काम करने वाले मजदूर विकिरण के प्रभाव में आये, ये ऐसे अकुशल मजदूर थे जिन्हें नाभिकिय विकिरण के बारे में कुछ भी नहीं पता था।
जापान में कियो विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर यूको फुजित, जो लम्बे समय के न्यूक्लीयर पावर प्लाण्ट में काम की स्थिति के सुधार के लिए अभियान चलाते रहे हैं, कि जापान सरकार ने प्लाण्ट में खतरनाक स्थिति के बावजूद भी मजदूरों को लगाया है जो उनके जीवन के साथी ही न्यूक्लियर सुरक्षा के लिए भी खतरनाक है।
जापान के १८ व्यावसायिक उर्जा संयन्त्र में लगभग ८३ हजार मजदूर काम करते हैं। इस आबादी का ८८ प्रतिशत आबादी ठेके के मजदूर हैंं। फु कोशिमा दाई-ची प्लाण्ट में १०,३०३ मजदूर काम कर रहे थे इनमें से ८९ प्रतिशत मजदूर ठेके के थे। एक उदाहरण मायासुकी इशीवाजा का है। सुनामी के आने के बाद जब प्लाण्ट में भगदड़ मची तो पचपन का साल का वह मजदूर इतना घबराया हुआ था कि अपने आप को बड़ी मुश्किल से संभाल पा रहा था। वह हेलमेट हाथ में लिये गेट की ओर भागा। गेट पर बहुत सारी गाडिय़ों की भीड़ लगी हुई थी और दरबान सबसे उनके पहचान पत्र देखकर अन्दर जाने की अनुमति दे रहा था। मजदूर गार्ड पर चिल्लाने लगा कि तुम्हें पहचान पत्र की पड़ी है और सुनामी आ रही है इसकी चिन्ता नहीं है। लेकिन गार्ड करता भी तो क्या करता? उसकी भी तो नौकरी खतरे में पड़ सकती थी। अन्तत: इशीवाज को बाहर जाने की इजाजत मिली।
यह मजदूर नाभिकीय खतरे के बारे में न कोई जानकारी रखता था और न हीं, वह टोकियो पावर कम्पनी का कर्मचारी ही था। वह उन हजारों खानाबदोश लोगों में से था जो न्यूक्लियर पावर प्लाण्ट के खतरनाक काम को बड़े पैमाने पर करते हैं। दूसरे देशों के न्यूक्लियर पावर प्लाण्टों में की यही हाल है। इन मजदूरों को ज्यादा दिहाड़ी की लालच देकर अस्थायी तौर पर रखा जाता है। ये मजदूर विकिरण के खतरे के बावजूद ज्यादा पगार के लालच में काम करते हैं। इस पावर प्लाण्ट को नाभिकिय और औद्योगिक सुरक्षा एजेंसी चलाती है। इसका कहना है कि ये ठेके के मजदूर इस बार, पिछले साल विकिरण से प्रभावित कर्मचारियों की तुलना में १६ गुना अधिक विकिरण से प्रभावित हुए हैं।

श्रमजीवी पहल पत्रिका के मई अंक से साभार

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