नौकरी की तलाश में अमेरिका पहुंचे भारतीय कामगारों को वहां पहुंचने के बाद अहसास हुआ कि वाकई दुनिया का खूबसूरत नर्क क्या होता है। दुनिया भर में मानवाधिकारों और श्रम कानूनों पर एकमेव फतवा देने वाले अमेरिकी उद्योगपति किस तरह द्वितीय विश्वयुद्ध की मानसिकता में हैं, उसकी बानगी इस रिपोर्ट में मिलती है-
अमेरिका में भारतीय कामगारों के उत्पीडऩ का मामला प्रकाश में आया है। संघीय अधिकारियों ने अलबामा स्थित एक समुद्री सेवा कम्पनी के खिलाफ पांच सौ भारतीय कर्मचारियों के साथ अमानवीय व्यवहार करने के लिए मुकदमा दायर किया है। इन कर्मचारियों को घटिया आवास देने के अलावा खराब भोजन खाने के लिए मजबूर किया गया।
यूएस ईक्वल एम्प्लॉयमेंट अपॉरच्युनिटी कमीशन (ईईओसी) ने सिग्नल इंटरनेशनल नामक कम्पनी के खिलाफ मुकदमा दायर किया है। आयोग के अनुसार, इन भारतीय कामगारों को किसी दूसरी कम्पनी में काम करने के लिए बुलाया गया था, जो इस मामले का हिस्सा नहीं हैं। आयोग ने कहा कि इनसे अधिक पैसे लेने के बावजूद उन्हें खराब भोजन दिया गया। यही नहीं, उन्हें नीचा दिखाने के लिए नाम के बजाय नम्बर के हिसाब से बुलाया जाता था। जब दो कामगारों ने शिकायत करने की कोशिश की तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई।
आयोग ने कहा कि वर्ष २००४-०६ के बीच सैकड़ों भारतीयों ने सिग्नल के भर्तीकर्ताओं को २ हजार डॉलर (करीब नौ लाख रुपये) देकर, यात्रा वीजा हासिल की थी। कम्पनी ने उन्हें नौकरी और ग्रीन कार्ड दिलाने का वादा किया था। कई भारतीयों ने तो अपना घर बेचकर यह धन जुटाया था। साल २००६ के अन्त में इन्हें पता लगा कि उन्हें ग्रीन कार्ड की बजाय १० महीने का मेहमान कामगार वीजा दिया गया है।
श्रमजीवी पहल पत्रिका से साभार
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23 मार्च
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Tuesday, May 24, 2011
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