Monday, May 17, 2010

मजदूरों की हालत का आईना है भगदड़


१-नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नम्बर तेरह पर हुई भगदड़ में घायल महिला सुमित्रा देवी जिसने इस भगदड़ में पचास हजार रूपये, व बेटी की शादी के गहने व अन्य सामान भी गंवा दिया।



२-नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नम्बर तेरह पर हुई भगदड़ के बाद पंद्रह नम्बर प्लेट फार्म पर संपूर्ण क्रांति ए'क्सप्रेस में खिड़की से चढने की कोशिश करते लोग। यह कोई नया नजारा नहीं है। जनरल बोगी में प्रवासी मजदूर ऐसे ही लदकर आते हैं और ऐसे ही जाने को मजबूर होते हैं।
३-नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर रविवार को प्लेटफार्म नम्बर तेरह पर मची भगदड़ के बाद चौदह नंबर प्लेट फार्म पर हावड़ा एक्सप्रेस ट्रेन पकडऩे वालें यात्रियों की भीड़। प्रशासन फिर भी कहीं नजर नहीं आया।
आप ट्रेन पकड़ने जाएं तो एक बार जनरल बोगी की ओर जरूर झांक लें। अगर आपकी ट्रेन बिहार-उत्तर प्रदेश से आने वाली या वहां जाने वाली है तो निश्चित ही जनरल बोगी के सामने लंबी कतार देखने को मिलेगी। इस कतार में करीब-करीब वे मजदूर होते हैं जो या तो काम की खोज में शहर की ओर जा रहे होते हैं या कमा कर घर की ओर लौट रहे होते हैं। इस लंबी लाइन में उन्हें बस इतनी उम्मीद होती है कि बैठने की या खड़े होने की जगह मिल जाए। वे टायलेट तक में बैठकर जाने की मन्नतें करते नजर आएंगे। हो सकता है कि आपको आश्चर्य हो कि पूरी ट्रेन में जहां एसी की आधा दर्जन के करीब और सेकेंड क्लास की दर्जन भर से ज्यादा बोगी लगी होती है, जनरल बोगी एक आगे होती है और एक पीछे। इसमें भी एक बोगी का आधा हिस्सा देश के जाबांज जवानों द्वारा कब्जा लिया जाता है। यानी सैकडों यात्रियों के लिए डेढ़ बोगी का इंतजाम।
लोकतंत्र में अंतिम आदमी के लिए यही अंतिम बची है। और इनमें भी जो सबसे अंतिम होते हैं उन्हें पायदान पर एक पैर अड़ाए अपने घर पहुंचने की उम्मीद होती है। यह हाल है उन लोगों का जिनपर देश की मशीनरी चलाने का पूरा जिम्मा है। ऐसे में दोष किसका है यह सोचने की जरूरत है।

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