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23 मार्च
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Thursday, May 20, 2010
स्वदेशी काटन मिल अंतिम पड़ाव पर
मऊ, eastern up : जिले की स्वदेशी काटन मिल अदूरदर्शिता के चलते अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी है। 25 हजार तकुये से प्रतिदिन लाखों का टर्न ओवर करने वाली मिल आज पाई-पाई को मोहताज है। 600 मजदूरों में अधिकतर को जबरन स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति (वीआरएस) दी जा चुकी है। डेढ़ दर्जन अधिकारी व इतने ही कर्मचारियों को भी बाहर का रास्ता दिखाने की जुगत लगाई जा रही है। सहादतपुरा स्थित स्वदेशी काटन मिल की स्थापना सन 1966 में सीताराम जयपुरिया ने की थी। 80 के दशक में भारत सरकार ने इसे अधिगृहीत कर एनटीसी के अधीन कर दिया। यह 25 वर्षाें तक मुनाफा कमाती रही, लेकिन इसके बाद घाटे का दौर शुरू हुआ। इसे लेकर मजदूर व प्रबंधन एक दूसरे पर ही दोष मढ़ते रहे। फरवरी 09 में प्रबंधन और मजदूरों के बीच गतिरोध इस कदर बढ़ गया कि शीर्ष नेतृत्व ने मिल पूरी तरह से बंद कर दी। वर्तमान में करीब डेढ़ दर्जन अधिकारियों और इतने ही कर्मचारियों को सरकार ने वीआरएस का नोटिस जारी कर दिया है। 31 मई तक आवेदन न करने वालों की छंटनी हो जायेगी। सरकार से नोटिस मिलने के बाद से सभी सकते में हैं। मिल इंचार्ज एमजे अंसारी का कहना है कि मिल के भविष्य के बारे में शीर्ष प्रबंधन के निर्णय का अनुपालन कराया जायेगा। ठंडे बस्ते में गया मामला : स्वदेशी काटन मिल के भविष्य पर केंद्र में बदली सरकार ने भी गतिरोध का काम किया। केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार में टेक्सटाइल्स मिनिस्टर रहे शंकर सिंह बघेला ने मिल को गति देने के लिए इसे पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के अंतर्गत चलाने की योजना बनायी, जिसमें 51 प्रतिशत शेयर एनटीसी और 49 प्रतिशत शेयर पीपीपी का निर्धारित किया गया था। यह योजना मूर्त रूप लेती, इससे पहले लोकसभा चुनाव आ गया। केंद्र में यूपीए की सरकार ने सत्ता संभाली और टेक्सटाइल्स मिनिस्टर बने दयानिधि मारन। यूपीए सरकार ने पूर्ववर्ती सरकार की योजना ठंडे बस्ते में डाल दी।
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