Friday, June 4, 2010

यूपी बिहार के मजदूर बंबई में कैसे जी रहे हैं

मुंबई, शुक्रवार, ४ जून
यूपी और बिहार से आए मजदूर कैसे मुंबई महानगरी में अपनी आजीविका के लिए जी रहे हैं यह खबर इस बात की बानगी है। बृहस्पितवार को एक मजदूर निर्माणाधीन इमारत की १२वीं मंजिल से रात में गिर गया। हालांकि वह बच गया लेकिन अगर वह नहीं बचता तो मुंबई में रोजाना मर रहे हजारों मजदूरों की फेहरिश्त में उसका भी नाम जुड़ जाता।
जानकारी के अनुसार कुर्ला में 28 साल का एक युवा बढ़ई निर्माणाधीन इमारत की 12वीं मंजिल से गिरकर भी जिंदा बच गया। अमरेंद्र राय नाम के इस शख्स का सिर्फ एक पांव फ्रैक्चर हुआ और सिर में कुछ चोटें आईं। उन्होंने बताया कि किस तरह चौथी मंजिल पर लगे एक जाल ने उसकी जान बचाई। हालांकि तेज गति से गिरने के कारण जाल उन्हें पूरी तरह संभाल नहीं पाया और टूट गया, अलबत्ता यह अमरेंद्र की जिंदगी बचाने के लिए पर्याप्त था। शुक्र है, वे अब फिर अपने बीवी, बच्चों को देख पाएंगे। अमरेंद्र मूल रूप से बिहार के गोपालगंज के रहने वाले हैं और यहां इस बिल्डिंग में बतौर बढई का काम कर रहे थे। ठेकेदार ने उन्हें वहीं सोने की इजाजत दे दी थी। महज 3,000 रुपये कमाने वाले अमरेंद्र के लिए मुंबई में ठहरने की कोई जगह ले पाना बेहद मुश्किल था, इसीलिए वह इसी अंडर कंस्ट्रक्शन इमारत की 12वीं मंजिल सोते थे। गुरुवार रात वह सोए थे। सुबह 3 बजे वह पेशाब करने गए और संतुलन बिगड़ जाने से नीचे गिर गए।
मुंबई में ही क्यों देश के किसी भी कोने में मजदूरों की हालत इससे भी बदतर है। ठेकेदार मनमानी शर्तों पर और न्यूनतम वेतन पर मजदूरों को रख लेते हैं । न उनके स्वास्थ्य की चिंता होती है न उसके ठहरने आदि की। केंद्र ने भी बखूबी उन्हें कानून का डंडा सौंप दिया है।

3 comments:

  1. मजदूर की सुनवाई कहां होती है हमारे देश में। कम्यूनिस्ट पार्टियां जो दम भरती थी कामगारों की किसानों की पार्टी होने का. वही पूंजीवादी के लिए सिंगुर में कामगारों औऱ किसानों पर गोलियां चलाती है। सर्वहारा की पार्टी होने का दम भरने वाली पार्टी का खुद का दम ही निकल रहा है। पूंजीवाद की जय हो का जब नारा लग रहा हो, तो कैसे मजदूर औऱ क्या मजदूर के अधिकार। लाखो करोडो़ डकारे पूंजीपतियों के लिए राहत पैकेज. पर किसानों के लिए कुछ किया तो सिर्फ वोट बैंक की खातिर। औऱ उसपर एहसान जताना अलग।

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  2. बिल्कुल सही कहा अपने मजदूरों की कहीं सुनवाई नहीं है। इसलिए मजदूरों को अब सुनवाई कराने की चिंता छोड़नी पड़ेगी। उन्हें खुद संगठित होकर फैसला करना होगा अपने बारे में। दूसरों से फैसलों की भीख मांगने का समय अब चला गया।

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  3. saathiyo, achanak ye sannata kyon? nayee post aani kyon band ho gayee?
    puneet

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