नई दिल्ली, एजेंसी
देश की शहरी आबादी में बेतहाशा वृद्धि होती जा हो रही है और इसका कारण ग्रामीण आबादी पर बढ़ रहा दबाव है। सेज और बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहणों के कारण बड़ी तादाद में ग्रामीण आबादी मजदूरी करने के लिए शहरों की ओर कूच कर रही है। आधिकारिक आंकड़े शहरों में जनसंख्या विस्फोट होने के संकेत देते हैं, जिसके तहत आबादी वर्तमान में 32 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2021 तक 53 करोड़ हो जाएगी।
शहरी विकास मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मौजूदा जनगणना के तहत शहरी आबादी का आंकड़ा 32 करोड़ के पार हो जाने की आशंका है। मौजूदा आंकड़ों का संकलन अगले वर्ष तक होगा। वर्ष 2001 में हुई जनगणना में शहरी आबादी 28.61 करोड़ थी। यह आंकड़ा वर्ष 2021 तक बढ़कर 53 करोड़ हो सकता है।
अधिकारी का कहना है, ''शहरीकरण का रूझान उत्साहजनक है। भारत अगले दशक में वैश्विक औसत तक पहुंच जाएगा। यह रफ्तार अब काफी बढ़ गई है।Ó असल में यह उत्साहजनक माहौल पूंजीपतियों के मनमाफिक है। क्योंकि आधारभूत संरचनाओं से लैस शहरी और औद्योगिक इलाकों में मजदूरों की लंबी लाइन से उन्हें सस्ता श्रम हासिल करने में आसानी होगी। सस्ते श्रम के लिए बड़े पैमाने पर बेरोजगारी शासक वर्ग के लिए मजबूरी है।
मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक, शहरी आबादी बढऩे से जलापूर्ति, गंदे पानी की निकासी और लोक परिवहन जैसी आधारभूत संरचना पर काफी दबाव पड़ेगा। इससे सभी प्रमुख शहरों में मकानों की उपलब्धता पर भी असर पडेगा। लेकिन शासक वर्ग को केवल मुनाफे की मलाई खाने में ही दिलचस्पी है। मजदूरों की जीवन परिस्थियों में सुधार उसका न कभी उद्देश्य था और न ही है। इसीलिए सरकार एक तरफ तो शहरी इनफ्रास्ट्क्चर पर दबाव बढ़ने का रोना रो रही है और दूसरी तरफ भारी पैमाने पर सस्ते श्रमिक मिलने से उसकी बाछें खिल गई हैं।
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23 मार्च
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